मेघनाद साहा को किसी परिचय की ज़रूरत नहीं है। मशहूर खगोल भौतिक वैज्ञानिक साहा आयनीकरण समीकरण विकसित करने के लिए जाने जाते हैं, जिसका उपयोग सितारों में भौतिक और रासायनिक स्थितियों का वर्णन करने के लिए किया जाता था। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं, कि वह कैलेंडर सुधार समिति के मुखिया भी थे। उसी समिति ने भारत का राष्ट्रीय कैलेंडर बनाया था।
आज़ादी मिलने से पहले भारत में तीस अलग-अलग तरह की कैलेंडर प्रणालियां थीं। भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता के कारण विभिन्न क्षेत्रों और धर्मों ने अलग अलग कैलेंडर प्रणालियों अपनाई हुईं थीं। हिंदू, बौद्ध और जैन तिथियों और त्योहारों को तय करने के लिए पंचांग का नुसरण करते थे, जबकि मुसलमान इस्लामी कैलेंडर हिजरी का प्रयोग करते थे। इसके अलावा सन 1750 ईसवी के दशक में ब्रिटिश शासन के तहत भारत में ग्रेगोरियन कैलेंडर लागू किया गया था, जिसे पूरी दुनिया में नागरिक और प्रशासनिक उद्देश्यों के लिए माना जाता था। यूरोप में मध्ययुगीन-काल में पोप के पास तारीख़ तय करने अधिकार था, जिसका पूरे कैथोलिक यूरोप में सम्मान किया जाता था। भारत में पोप जैसे अधिकार रखनेवला कोई व्यक्ति नहीं था।
यहां विभिन्न युगों में विभिन्न राजवंशों के शासन रहे हैं, जैसे गुप्त युग की शुरुआत सन 319 में और हर्ष युग की शुरुआत सन 606 में हुई थी। दो मुख्य कैलेंडर थे, एक था विक्रम संवत जिसकी शुरुआत सन 57 में हुई थी, और दूसरा था शक संवत जिसकी शुरुआत सन 78 में हुई थी। भारत में आज भी इन्हें माना जाता है। कुल मिलाकर, उस समय की कैलेंडर-प्रणाली काफ़ी भ्रम पैदा करने वाली थी।
आज़ादी मिलने के बाद कैलेंडर में एकरूपता की आवश्यकता महसूस की गई, और इसे वैज्ञानिक तरीक़े से किया जाना था। नतीजे में, वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) ने,साहा की अध्यक्षता में, सन 1952 में, एक कैलेंडर सुधार समिति बनाई।
समिति के गठन के समय मेघनाद साहा पहले से ही खगोल भौतिकी के क्षेत्र में एक जाना-माना नाम बन चुके थे। कोलकता के प्रेसीडेंसी कॉलेज से शिक्षा प्राप्त साहा अपने करियर के दौरान गणितज्ञ सत्येंद्र नाथ बोस, खगोलशास्त्री अल्फ़्रेड फ़ॉउलर और नोबेल पुरस्कार विजेता भौतिक वैज्ञानिक सी.वी. रमन और रसायनशास्त्री वाल्टर नर्नस्ट सहित कई जाने माने विद्वानों के साथ काम कर चुके थे।
सन 1935 में साहा ने कोलकता में राष्ट्रीय विज्ञान संस्थान की स्थापना की। वह कलकत्ता में इंस्टीट्यूट ऑफ़ न्यूक्लियर फ़िज़िक्स के संस्थापक अध्यक्ष थे, जिसे अब साहा इंस्टीट्यूट ऑफ़ न्यूक्लियर फ़िज़िक्स के नाम से जाना जाता है। इस संस्थान की स्थापना भौतिक और जैव-विज्ञान में अनुसंधान और प्रशिक्षण के लिए की गई थी। इस संस्थान का उद्घाटन 11 जनवरी सन 1950 को प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानिक मैरी क्यूरी की सबसे बड़ी बेटी फ़्रांसीसी रसायनशास्त्री और भौतिक विज्ञानिक मैडम आइरीन जोलियट-क्यूरी ने किया था।
कोलकता विश्वविद्यालय में एक प्रोफ़ेसर के रूप में, साहा ने जर्मन भाषा के अपने ज्ञान का इस्तेमाल किया, और अल्बर्ट आइंस्टीन और एच. मिंकोवस्की के सापेक्षता के सिद्धांत के पेपर का अंग्रेज़ी में अनुवाद किया। उनके अनुवाद को, इस पेपर का पहला अंग्रेज़ी अनुवाद माना जाता है, जो सन 1919 में प्रकाशित हुआ था।
सत्येंद्र नाथ बोस इसके सह-लेखक थे। इसकी प्रस्तावना पी.सी. महालनोबिस ने लिखी थी। दिलचस्प बात यह है, कि साहा और बोस प्रेसीडेंसी कॉलेज में सहपाठी थे ,और महालनोबिस उनके एक साल सीनियर थे। सन 1920 में प्रकाशित उनके थर्मल आयनीकरण समीकरण, जिसे बाद में साहा आयनीकरण समीकरण के रूप में जाना गया, ने खगोल भौतिकी के क्षेत्र में हलचल पैदा कर दी थी। यह खगोल भौतिकी के क्षेत्र में तारों के स्पेक्ट्रम (तरंग) की व्याख्या करने के लिए उपयोग किए जाने वाले बुनियादी उपकरणों में से एक है। इससे किसी तारे के स्पेक्ट्रा का अध्ययन करके उसके तापमान का पता लगाया जा सकता है। इससे साहा के समीकरण का उपयोग करते हुए तारे को बनाने वाले विभिन्न तत्वों की आयनन अवस्था का पता किया जा
सकता है। साहा समीकरण को आधुनिक खगोल भौतिकी में बुनियादी कार्यों में से एक माना जाता है।
सन 1952 में, साहा की अध्यक्षता वाली कैलेंडर सुधार समिति के सामने एक बड़ा काम आया था। समिति में ए.सी. बनर्जी, एन.सी. लाहिड़ी, के.एल. दफ़्तरी, गोरख प्रसाद, आर.वी. वैद्य और जे.एस. करंदीकर सहित अन्य कई महत्वपूर्ण तारा भौतिकविद् और गणितज्ञ थे। अगले तीन वर्षों तक समिति ने पूरे भारत के सभी 30 अलग-अलग कैलेंडरों का सावधानीपूर्वक अध्ययन किया। आख़िरकार समिति ने एक पंचांग तैयार किया, जो विज्ञान पर आधारित था। इसे बनाने के लिये शक कैलेंडर के नवीनतम संस्करण का उपयोग किया गया था।
इसका कारण यह था, कि शक युग का कैलेंडर, सबसे पुराने कैलंडरों में से एक था । सन 500 से यानी आर्यभट्ट के समय से, पूरे भारत में खगोलविद इसका इस्तेमाल करते आ रहे थे। इसके अलावा विशेष रूप से शक युग के कैलेंडर का उपयोग पहली शताब्दी के बाद से भारत में कुंडली बनाने के लिए विशेष रूप से किया जाता था। सन 1955 में समिति ने वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) को अंतिम रिपोर्ट सौंप दी थी। भारत सरकार से मंज़ूरी मिलने के बाद भारतीय राष्ट्रीय कैलेंडर एक चैत्र 1879 शक युग या 21 मार्च सन 1956 से चलन में आ गया। इस कैलेंडर को शालिवाहन शक कैलेंडर के रूप में भी जाना जाता है ।
सन 1956 में मेघनाद साहा की मृत्यु हुई। खगोल भौतिकी के क्षेत्र में उनके ज़बरदस्त योगदान के लिये उन्हें एक से अधिक बार भौतिकी के नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था। उनका शोध आज भी खगोल भौतिकी के क्षेत्र में प्रासंगिक है। हालांकि आज भी सरकार ग्रेगोरियन कैलेंडर के हिसाब से चलती है, लेकिन भारत के राजपत्र और भारत सरकार के दिशा-निर्देशों में ग्रेगोरियन कैलेंडर के साथ साथ भारतीय राष्ट्रीय कैलेंडर का भी इस्तामाल किया जाता है। इसका उपयोग ऑल इंडियां रेडियो यानी आकाशवाणी के सुबह के प्रसारण में भी किया जाता है।
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