जब ज़िक्र आमों का चलेगा, तो बात मलिहाबाद तक तो पहुंचेगी ही। क्योंकि आमों और मलीहाबाद का रिश्ता ही इतना गहरा। मलिहाबाद, भारत की आमों की राजधानी के रूप में मशहूर है। लेकिन क्या आप जानते हैं, कि दशहरी, जौहरी और चौसा जैसे आमों की क़िस्में मलिहाबाद में ही पाई जाती हैं, जिसके ज़ायक़े का लुत्फ़ सारे देश के लोग उठाते हैं? दिलचस्प बात यह है, कि आमों की इस जन्नत का रिश्ता शायरी से भी है!
लखनऊ ज़िले के मलिहाबाद में 30 हज़ार हेक्टेयर से अधिक ज़मीन पर खेती होती है। यहां आमों की बहार आने से तीन सौ साल पहले यहां, महज़ सत्ता का आदान-प्रदान हुआ करता था।
मलिहाबाद के प्रारंभिक इतिहास के बारे में अधिक जानकारी नहीं मिलती है। 12वीं शताब्दी में “खोटा शहर” नाम का एक छोटा-सा गांव पासी राजा “बिजली पासी” (शासन काल अज्ञात) के शासन काल में बसा था, जहां पासी और अरख समुदाय की अपनी टकसाल हुआ करती थी।
सन 1202 में जब सैन्य जनरल बख़्तियार ख़िलजी अपनी जागीर (वर्तमान मिर्ज़ापुर ज़िला) से अपने क्षेत्र का विस्तार कर रहा था, तब कई पठान यहां गढ़ी संजर ख़ान और बख़्तियार नगर गांवों में बस गए। 15वीं शताब्दी में अरखों ने मल्हिया सिंह अरख (शासन काल अज्ञात) के नेतृत्व में दिल्ली सल्तनत के पतन का लाभ उठाया। मल्हिया सिंह अरख ने इस क्षेत्र पर कब्जा कर लिया, और इसका नाम मल्हियापुर रख दिया। आईन-ए-अकबरी (सन 1590) के अनुसार उसके वंशजों ने यहां लगभग एक शताब्दी तक शासन किया। इसके बाद मुग़लों ने इसे अपना परगना बना लिया।
लेकिन जब आम की बात आती है, तो मलिहाबाद में आम की खेती शुरू करने का श्रेय एक व्यक्ति को जाता है, और उसका नाम था, फ़क़ीर मोहम्मद ख़ान। 18वीं सदी के अंत में फक़ीर मोहम्मद ख़ान नाम का एक आफ़्रीदी पठान अवध के नवाब शुजाउद्दौला (सन 1732-1775) की सेवा में आ गया। कहा जाता है, कि फ़क़ीर मोहम्मद अपनी क़िस्मत आज़माने ख़ैबर दर्रे से भारत आया था। शुरु में फ़क़ीर, पिंडारियों (खेती करने वाली एक जाति, जो बाद में लूटपाट करने लगी) के अधीन काम करने लगा और भाड़े का एक कुशल सैनिक बन गया। आगे चलकर वो कमांडर-इन-चीफ के पद तक पहुंच गया। उसके भारत आने से सन 1748 से सन 1761 के बीच अफ़गान बादशाह अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण बढ़ गये थे । इस तरह मलिहाबाद सहित उत्तर भारत में और अधिक पठान आ गये और यहीं बस गये।
लखनऊ के आस-पास के क्षेत्रों का सर्वेक्षण करते समय फ़क़ीर की नज़र मलिहाबाद पर पड़ी, जिसके माहौल और उपजाऊ ज़मीन ने उसे आकर्षित किया। शुजा ने उसे ज़मीन देकर वहां फलों के पेड़ लगाने की अनुमति भी दे दी।इस तरह से मलिहाबाद में पहली बार आम के बाग़ लगे। भाड़े के पिंडारी सैनिक के रुप में भारत में अपने शुरुआती वर्षों में फ़क़ीर ने यहां के फल पहली बार चखे थे। तभी से वह उन पर फ़िदा हो गया था।
सफ़ेदा के रूप में पहला फल (आम) शुजा को भेंट किया गया, जिसने ईनाम में फ़क़ीर को मोती दिये, और इस तरह इसका नाम जौहरी सफ़ेदा पड़ गया। कहा जाता है, कि आम की खेती के बढ़ने के साथ ही आस-पास के गांव दशहरी और काकोरी में दशहरी आम के पेड़ की कलम लगाई गई। जहां आज भी गर्मियों में बाज़ार दशहरी आम से पटे रहते हैं। शुजा ने इन आमों को बिक्री शुरू की और अपने आदमियों को मलिहाबाद के आस-पास छोटे व्यापारिक केंद्र बनाने के लिए भेज दिया। वहां से आम या तो मित्र राज्यों को या फिर बाज़ारों में भेजे जाते थे। स्थानीय लोगों में फ़क़ीर “गोया मलिहाबादी” या “बाबा-ए-गोया” के नाम से मशहूर हो गया।
कहा जाता है, कि मशहूर शायर मिर्ज़ा ग़ालिब भी मलिहाबाद की बहुत तारीफ़ करते थे। ग़ालिब को आम बहुत पसंद थे, और इसलिये वह मलिहाबाद आया जाया करते थे। मिर्ज़ा ग़ालिब का एक बहुत मशहूर क़िस्सा है:
एक बार मिर्ज़ा ग़ालिब के घर पर आमों की दावत चल रही थी। वहां उनके एक ऐसे दोस्त भी मौजूद थे जिन्हें आम बिल्कुल पसंद नहीं थे।
सब लोग आम खा-खा कर छिल्के और गुठलियां बाहर फैंकते जा रहे थे। तभी वहां से एक गघा गुज़रा। गधे ने आम के छिल्के और गुठलियां सूंघीं और आगे बढ़ गया।
मिर्ज़ा ग़ालिब के वो दोस्त जिन्हें आम पसंद नहीं थे, फ़ौरन बोले, “देखिये मिर्ज़ाजी, गधे तक आम पसंद नहीं करते ।”
मिर्ज़ा ग़ालिब ने तुरंत जवाब दिया, “जी..सिर्फ़ गधे ही आम पसंद नहीं करते।”
फ़क़ीर मोहम्मद ने उर्दू भाषा में महारत हासिल कर ली थी और वह अवध दरबार के पसंदीदा शायर बन गए थे।अपने समय के मशहूर शायर जोश मलिहाबादी फ़क़ीर मोहम्मद के परपोते थे । सन 1898 में जोश मलिहाबादी का जन्म मलिहाबाद में हुआ था लेकिन सन 1956 में वो पाकिस्तान चले गए थे जहां उन्होंने सन 1982 में अंतिम सांस ली। उनके चचेरे भाई अब्दुर रज़्ज़ाक़ मलिहाबादी भी एक पत्रकार और लेखक के रूप में प्रसिद्ध थे।
सन 1900 के दशक की शुरुआत में मलिहाबाद में आम की 1300 से अधिक क़िस्में तैयार हुईं थीं। तभी से यह भारत की मैंगो कैपिटल बन गया था। यहां के आम अब कई देशों में निर्यात होते हैं। आम ने अपनी विरासत को क़लम लगाने की नयी तकनीकों के साथ सुरक्षित रखा है। इस मामले में सबसे पहला नाम पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित कलीमउल्लाह ख़ान का आता है, जो आम की खेती करने वाले एक प्रसिद्ध किसान हैं। वो एक ही पेड़ पर आम की 300 किस्में उगाने के लिए भी प्रसिद्ध है। दशहरी आम को सन 2010 में भौगोलिक संकेतक (GI) का दर्जा दिया गया था।
यहाँ कैसे पहुंचें
मलिहाबाद पहुंचने के लिए सबसे नज़दीक हवाई अड्डा और रेलवे स्टेशन लखनऊ ही है। सड़क के रास्ते से, लखनऊ शहर से मलिहाबाद की दूरी लगभग 30 किलोमीटर है।
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