जानें कौन थीं क्रांतिकारी भगत सिंह की ‘पत्नी’ दुर्गा देवी वोहरा

लाहौर से पुलिस की आंखों में धूल झोंककर भगत सिंह को बाहर निकालने की योजना की वह नायिका थीं लेकिन इसके बावजूद इतिहास में दुर्गा देवी वोहरा का ज़िक्र लगभग न के बाराबर है । हम आपको बताने जा रहे हैं इस जांबाज़ क्रांतिकारी और भारत के महानतम स्वतंत्रता सैनानियों के प्रति उनके जज़्बे की कहानी।

वो दिसंबर का महीना था और लाहौर से ख़बर आग की तरह फैल गई कि कुछ युवा जॉन सॉनडर्स नाम के एक अंग्रेज़ पुलिस अधिकारी की गोली मारकर हत्या करके फ़रार हो गए हैं । शहर में चारों तरफ़ पुलिस इन लोगों की सरगर्मी से तलाश कर रही थी । पुलिस को ये जानकारी थी कि इनमें से एक युवक की दाढ़ी है और उसने पगड़ी पहन रखी है । इतिहास इस युवक को शहीद भगत सिंह के नाम से जानता है जिसने आज़ादी की लड़ाई में बेहद अहम भूमिका निभाई थी ।

पुलिस की तलाश जारी रही । चप्पे चप्पे पर पुलिस तैनात थी । रेल्वे स्टेशन पर भी मुसाफ़िर कम ख़ाकी वर्दी वाले ज़्यादा दिख रहे थे । इसके बावजूद कुछ दिन बाद एक युवा परिवार स्टेशन में दाख़िल हुआ लेकिन पुलिस की इस पर नज़र नहीं पड़ी । यह परिवार एक बांके नौजवान का था जिसकी दाढ़ी नहीं थी । इसने सूट पहन रखा था और सिर पर हैट लगा रखी थी । उसके साथ उसकी ख़ूबसूरत पत्नी थीं जिनकी गोद में उनका गोलमटोल बेटा था और जो अपने पति से दो क़दम पीछे चल रही थीं।

उनका नौकर सामान लिए पीछे पीछे चल रहा था । ये लोग भीड़ भरे प्लेटफ़ॉर्म से होते हुए कानपुर जाने वाली ट्रैन के फ़र्स्ट क्लास डिब्बे में दाख़िल हो गए । नौकर ने डिब्बे में उनका सामाना रखा और ख़ुद थर्ड क्लास डिब्बे में जाकर बैठ गया । जल्द ही ट्रैन कानपुर रवाना हो गई।

इस तरह भगत सिंह और राजगुरु किसी जासूसी फ़िल्म की मानिंद पुलिस को चकमा देकर लाहौर से निकल गए । चूंकि भगत सिंह ने दाढ़ी बना रखी थी और हैट लगा रखी थी इसलिए किसी का भी ध्यान उनकी तरफ़ नहीं गया । नौकर के रुप में राजगुरु पर भी किसी की नज़र नहीं पड़ी । लेकिन फ़रार होने की इस साज़िश में सबसे बड़ी भूमिका थी उस महिला की जिसने बिना सोचे भगत सिंह की पत्नी बनना स्वीकार कर लिया था । युवा लोग इन्हें दुर्गा भाभी के नाम से बुलाते थे ।

भगत सिंह को 23 साल की उम्र में ही फ़ांसी दे दी गई थी । ज़िंदगी के उनके इतने छोटे सफ़र का बड़ी गहराई से अध्ययन किया गया है । उनका लेखन, उनके क्रांतिकारी कारनामे और उनकी शहादत किसी हैरान करनेवाली कहानी से कम नही हैं । भगत सिंह के छोटे से जीवन में दुर्गा देवी वोहरा एक महत्वपूर्ण संगनी थीं । लेकिन बदक़िस्मती से उनका नाम ज़ुबां पर कम ही आता है ।

भगत सिंह की शहादत के बाद दुर्गा देवी वोहरा कुछ और सालों तक राजनीतिक रुप से सक्रिय रहीं फिर वह इससे दूर हो गईं । ख़बरों में भी वह कम रहने लगीं हालंकि भागत सिंह के जीवन पर कई फिल्में बनीं , नाटक हुए और किताबें लिखी गईं लेकिन दुर्गा देवी वोहरा का कहीं कोई ज़िक्र नहीं हुआ बावजूद इसके कि लाहौर से भगत सिंह का फ़रार होना उनके जीवन की महत्वपूर्ण घटना थी।

दुर्गा देवी का जन्म 1907 में इलाहबाद में हुआ था । उनके माता-पिता मूल रुप से गुजरात से थे । मां के निधन और पिता द्वारा दुनिया त्यागने के बाद दुर्गा देवी की परवरिश उनकी एक रिश्तेदार ने की । 11 साल की उम्र में उनकी शादी भगवती चरण वोहरा से हो गई जो अमीर परिवार के थे और जिन्होंने लाहौर के नैशनल कॉलेज से पढ़ाई की थी । यहीं उनकी मुलाक़ात भगत सिंह और सुखदेव से हुई ।

गवती चरण नौजवान भारत सभा के सदस्य थे और लाहौर में सभा की स्थापना के समय से ही क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय थे । ये सभा 1920 के दशक में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिवोल्यूशनरी एसोसिएशन के तहत आती थी । भगवती चरण के माता-पिता का देहांत हो चुका था इसलिए दुर्गा देवी और भगवती चरण को क्रांतिकारी मार्ग अपनाने से रोकने वाला कोई नहीं था। 1928 तक इन्होंने पार्टी की गतिविधियां चलाने के लिए लाहौर में एक घर किराये पर ले लिया । इनका एक बेटा था सचिन्द्र ।

दिसंबर 1928 की शुरुआत में भगवती चरण कांग्रेस के अधिवेशन में भाग लेने कलकत्ता चले गए । ये क्रांतिकारी आज़ादी के लिए गांधी जी की राजनीति के ख़िलाफ़ थे लेकिन फिर भी कांग्रेस के नेताओं से मेलजोल रखते थे।

कलकत्ता रवानगी से पहले भगवती चरण ने दुर्गा को घर ख़र्च के लिए पांच हज़ार रुपये दिए थे । सोशलिस्ट रिवोल्यूशनरी एसोसिएशन से ख़बरें मुश्किल से ही बाहर आती थीं इसलिए पक्के तौर पर ये बताना मुश्किल है कि भगवती चरण को भगत सिंह की योजना के बारे में जानकारी थी या नहीं।

19 दिसंबर 1928 में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने मदद के लिए दुर्गा से संपर्क किया । उन्होंने दुर्गा से कहा कि उन्हें लाहौर से भागना है । दुर्गा को शायद अंग्रेज़ अफ़सर की हत्या में इनकी भूमिका के बारे में पता था लेकिन उन्होंने पूछा नहीं । दुर्गा मदद के लिए फ़ौरन तैयार हो गईं। योजना के तहत राजगुरु को भगत सिंह का नौकर बनना था और दुर्गा को पत्नी । तब के समाज में एक शादीशुदा का किसी अन्य व्यक्ति की पत्नी बनने का नाटक भी करना एक बड़ी बात थी । लेकिन उनके पास भगत सिंह को बाहर निकालने का यही एक रास्ता था।

भगत सिंह और दुर्गा कानपुर से लखनऊ और फिर वहां से कलकत्ता गए जहां उनकी मुलाक़ात भगवती चरण से हुई जिन्हें फ़रार होने की योजना में दुर्गा की भूमिका के बारे में कुछ नहीं पता था । बाद में ये दंपति लाहौर लौट गई।

अप्रेल 1929 में दुर्गा दिल्ली गईं जहां वह क़ुदसिया पार्क में एक बार फिर भगत सिंह से मिलीं । वहां से भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त दिल्ली विधान सभा गए, जहां भगत सिंह ने बम फ़ेंका।

रास्ता ये थी कि बम विस्फ़ोट के बाद वे गिरफ़्तारी देंगे । उन्हें अच्छी तरह पता था कि सॉनडर्स की हत्या में भगत सिंह के हाथ होने की बात का खुलना तय है और फ़िर उनकी फ़ांसी की सज़ा का रास्ता साफ़ हो जाएगा ।

भगत सिंह की गिरफ़्तारी के बाद, दुर्गा के जीवन और उनकी क्रांतिकारी गतिविधियों में, उनकी भूमिका में ज़बरदस्त बदलाव आया ।

1929 के आख़िर में भगत सिंह को छुड़ाने के लिए उस वैन पर हमले की योजना में वह शामिल हुईं जिसमें भागत सिंह को लाया जाना था । लेकिन ये योजना क्यों अमल में नहीं लाई जा सकी, इसके बारे में आज तक किसी कुछ पता नहीं है । 1930 की शुरुआत में वह अपने कपड़ों में पिस्तौल छुपाकर इधर से उधर ले जाती थीं ।

मई 1930 में बम बनाते समय अचानक बम फट गया और भगवती चरण की मृत्यु हो गई । उन्हें चुपचाप दफ़्न कर दिया गया । लेकिन फिर भी दुर्गा का जज़्बा कम नहीं हुआ। उनके पास पति की मौत का शोक मनाने का समय ही नहीं था क्योंकि पुलिस से बचने के लिए उन्हें भूमिगत होना पड़ा । अगले कुछ महीने पुलिस को चकमा देने में गुज़र गए।

8 अक्टूबर 1930 में उन्होंने अपने कुछ साथियों के साथ बॉम्बे में लेमिंग्टन रोड स्थित पुलिस थाने के बाहर एक अंग्रेज़ पुलिसकर्मी और उसकी पत्नी को गोली मार दी । एक दिन पहले ही भगत सिंह और उनके दो साथियों को मौत की सज़ा सुनाई गई थी और ये हमला उसी के विरोध में था ।

यह पहली बार था जब कोई महिला क्रांतिकारी हमले में शामिल हुई थी ।

दुर्गा एक बार फिर पुलिस के जाल से बच निकलीं और लाहौर आ गईं । भगत सिंह को 23 मार्च 1931 में फांसी दी गई लेकिन इसके पहले दुर्गा ,भगत सिंह डिफ़ेंस कमेटी में सक्रिय थीं । कमेटी मौत की सज़ा के ख़िलाफ़ हस्ताक्षर अभियान चला रही थी और अपील के लिए धन इकट्ठा कियाजा रहा था ।

दुर्गा, अदालत में भगत सिंह के ख़िलाफ़ चल रहे मामले की सुनवाई में जाया करती थीं और भगत सिंह से मिलती भी थीं । वह उनके लिए खाना, ख़त और किताबें ले जाया करती थीं। बताया जाता है कि उन्होंने फ़रवरी 1931 में गांधी जी से मिली थीं और उन्होंने गांधीजी से लॉर्ड इर्विन के साथ होनेवाली उनकी बैठक में भगत सिंह का मामला उठाना का आग्रह किया था।

सरकार विरोधी गतिविधियों के लिए दुर्गा को सितंबर 1932 में गिरफ़्तार किया गया । वह साल भर से ज़्यादा समय तक जेल में रहीं । ये सज़ा बहुत छोटी थी जिससे पता चलता है कि अंग्रेज़ों को क्रांतिकारी गतिविधियों में उनके योगदान के बारे कोई जानकारी नहीं थी। जेल से बाहर आने के बाद वह कांग्रेस की राजनीति से जुड़ गईं और सन 1937-38 में दिल्ली कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष बन गईं ।

1940 में दुर्गा ने सार्वजनिक जीवन छोड़ दिया और लखनऊ के एक स्कूल को अपना समय देने लगीं थीं जिसकी स्थापना उन्होंने ही की थी । गाज़ियाबाद में, सन 1999 में, निधन होने तक, वह लगभग गुमनामी के अंधेरे में ही रहीं । 1972 में दुर्गा ने नेहरु मेमोरियल और लाइब्रेरी के ओरल प्रोजेक्ट के लिए सारा क़िस्सा रिकॉर्ड करवाया था । उसी के आधार पर लाहौर कॉंस्पेरिसी केस ( सॉनडर्स की हत्या का आधिकारिक नाम ) और अन्य गतिविधियों में उनकी भागीदारी की कहानी उस रिकॉर्डिंग की वजह से ही सामने आ पाया । इनकी प्रमाणिकता के लिए अन्य सूत्रों की भी मदद ली गई थी।

दुर्गा देवी के अलावा भगवती चरण की बहन सुशीला सहित कुछ और भी महिलाएं क्रांतिकारी आंदोलन में शामिल रहीं थीं लेकिन उनकी भूमिका मदद करने तक ही सीमित थी। दुर्गा देवी वोहरा उन चंद महिलाओं में से थीं जो क्रांति की नायिका बनीं लेकिन इतिहास ने उनके योगदान को वो स्थान नहीं दिया जिसकी वह हक़दार थीं ।

हम आपसे सुनने को उत्सुक हैं!

लिव हिस्ट्री इंडिया इस देश की अनमोल धरोहर की यादों को ताज़ा करने का एक प्रयत्न हैं। हम आपके विचारों और सुझावों का स्वागत करते हैं। हमारे साथ किसी भी तरह से जुड़े रहने के लिए यहाँ संपर्क कीजिये: contactus@livehistoryindia.com