भारत में हर रोज़ हज़ारों रेल गाड़ियां इधर से उधर आती-जाती हैं। आज हम सुपरफ़ास्ट ट्रेन का सपना देख रहे हैं। यह सपना भी एक–न–एक दिन साकार होगा, क्योंकि डेढ़ सौ साल पहले तक भारत में रेलगाड़ी एक सपना ही थी। वह सपना साकार हुआ और आज भारत में एक बड़ा रेलवे नेटवर्क क़ायम हो चुका है। यही नहीं, इसका शुमार दुनिया के सबसे बड़े रेलवे नेटवर्कों में होता है। ये नेटवर्क 65 हज़ार कि.मी. से भी ज़्यादा लंबा है। ज़ाहिर है, यह हमारे लिये बहुत बड़े गर्व की बात है। भारतीय रेलवे की कहानी 16 अप्रैल सन 1853 से शुरू हुई थी। यह देश की पहली यात्री ट्रेन थी, जो बॉम्बे (आज मुंबई) के बोरी बंदर स्टेशन और ठाणे के बीच चली थी। भारत के आर्थिक इतिहास में यह उपलब्धि जगन्नाथ शंकरशेठ के प्रयासों के बिना संभव नहीं हो सकती थी। उन्हें नाना शंकरशेठ के नाम से पुकारा जाता था। नाना ने भारत में रेलवे की स्थापना के लिए कड़ी मेहनत की थी।
10 फ़रवरी,सन 1803 को मुंबई में जन्में जगन्नाथ शंकरशेठ एक व्यापारी, शिक्षाविद और परोपकारी व्यक्ति थे। नाना शंकरशेठ सुनारों के प्रभावशाली और धनी मुरकुटे परिवार से थे। वह संस्कृत के विद्वान भी थे, और मराठी, अंग्रेज़ी, हिंदी और गुजराती भाषाओं पर उन्हें पूरी महारथ हासिल थी। अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद वह व्यापार करने लगे, और शहर के सबसे भरोसेमंद और प्रतिष्ठित व्यवसायियों में जगह बनाई। कहा जाता है, लोग उनपर बहुत ज़्यादा भरोसा करने लगे थे । यहां तक कि अफ़ग़ान, अरब और अन्य विदेशी व्यापारी अपना पैसा बैंकों के बजाय उनके पास रखते थे। बहरहाल, उन्होंने व्यापार में बहुत पैसा कमाया, लेकिन कमाई का ज़्यादातर हिस्सा उन्होंने समाज की भलाई में लगाया।
19वीं शताब्दी के दौरान, जमशेदजी जीजीभॉय और फ्रमजी कावसजी जैसे शहर के कई दौलतमंद और संपन्न व्यापारियों ने शहर के विकास और कई संस्थानों की स्थापना के लिए वित्तीय सहायता देने में अहम भूमिका निभाई। इनमें नाना शंकरशेठ भी थे, जो मुंबई के विकास की कई योजनाओं में सक्रिय थे।
नाना शंकरशेठ शिक्षा में सुधार की ज़रूरत के हिमायती थे। उन्होंने कई सोसाइटी और संस्थानों की स्थापना में मदद की और इनमें से बॉम्बे नेटिव एजुकेशनल सोसाइटी भी थी जिसकी स्थापना मूल निवासियों के बीच शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सन 1827 ईस्वी में एक शैक्षणिक संस्थान के रुप में हुई थी। इसका नाम बॉम्बे के गवर्नर के नाम पर एलफ़िंस्टन कॉलेज रखा गया था, जिन्हें शहर में उच्च शिक्षा शुरू करने का श्रेय दिया जाता है। नाना शंकरशेठ महिलाओं की शिक्षा के भी हिमायती थे। सन 1849 ईस्वी में उन्होंने लिटरेरी एंड साइंटिफ़िक सोसाइटी के बैनर तले अपने घर के आंगन में लड़कियों के लिए एक स्कूल शुरू किया। उन्होंने इस स्कूल के लिये दान किया और अपनी बेटियों को भी यहां पढ़ने के लिए भेजा, ताकि लोगों के सामने एक मिसाल पेश हो सके। उन्होंने मुंबई की एशियाटिक सोसाइटी बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसके वे पहले भारतीय सदस्य थे।
बड़ी बात यह थी, कि नाना शंकरशेठ का योगदान सिर्फ़ शिक्षा के क्षेत्र तक ही सीमित नहीं रहा। कहा जाता है, कि उन्होंने ग्रांट रोड पर एक थिएटर बनाने में भी अहम भूमिका अदा की, और उसके लिये अपनी ज़मीन भी दान की थी। 26 अगस्त सन 1852 को उन्होंने जमशेदजी जीजीभॉय, नौरोजी फ़ुर्सुनजी, डॉ. भाऊदाजी लाड, दादाभाई नौरोजी तथा अन्य लोगों के साथ मिलकर बॉम्बे प्रेसीडेंसी में पहला राजनीतिक “संगठन बॉम्बे” एसोसिएशन बनाया था।
संभवतः उनका सबसे महत्वपूर्ण योगदान रेलवे के क्षेत्र में ही रहा। हालांकि इंग्लैंड में यात्री रेल सेवा सन 1830 ईस्वी के दशक में शुरु हो गई थी, लेकिन अंग्रेज़ सरकार शुरू में भारत में इतना भारी निवेश करने को लेकर उत्सुक नहीं थी। लेकिन बॉम्बे का व्यापारी समुदाय इसे लेकर बेहद उत्साहित था, क्योंकि उनका मानना था, कि इससे लोगों और सामान की आवाजाही में तेज़ी आएगी, जो स्थानीय लोगों के साथ-साथ अंग्रेज़ सरकार के लिए भी फ़ायदेमंद होगी।
सन 1840 ईस्वी के आसपास नाना शंकरशेठ ने शहर के कई अन्य व्यापारियों के साथ मिलकर रेलवे के पक्ष में जनमत जुटाना शुरू किया और कुछ अंग्रेज़ उद्योगपतियों के साथ बातचीत भी की।
सन 1845 ईस्वी में नाना शंकरशेठ ने जमशेदजी जीजीभॉय के साथ मिलकर भारत में रेलवे शुरू करने के लिए इंडियन रेलवे एसोसिएशन का गठन किया।
उन्होंने सरकार के साथ प्रस्तावों पर चर्चा भी की। आख़िरकार, सन 1849 ईस्वी में एसोसिएशन को ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेलवे में शामिल किया गया जिसमें नाना शंकरशेठ और जमशेदजी जीजीभॉय प्रमुख प्रमोटर थे। वे ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेलवे के दस निदेशकों में से केवल दो ही भारतीय थे। दिलचस्प बात यह है, कि ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेलवे का पहला कार्यालय नाना शंकरशेठ के घर में ही खोला गया था।
सन 1805 के दशक की शुरुआत में ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेलवे ने बॉम्बे के बोरी बंदर में एक रेल्वे स्टेशन बनाया। बोरी बंदर तब एक प्रमुख बंदरगाह और गोदाम क्षेत्र हुआ करता था। बोरी बंदर इसका मुख्यालय बन गया। 16 अप्रैल, सन 1853 को दोपहर 3:30 बजे देश में पहली बार यात्री ट्रेन बॉम्बे के बोरी बंदर से ठाणे के बीच चली। 34 कि.मी के फ़ासले को तय करने में लगभग 57 मिनट का समय लगा। इसमें 14 डिब्बे थे जिन्हें सुल्तान, सिंध और साहिब नाम के तीन इंजन खींच रहे थे। इस यात्रा में लगभग 400 यात्री थे, जिनमें नाना शंकरशेठ भी शामिल थे।
क्योंकि बॉम्बे एक प्रमुख शहर के रुप मे विकसित हो रहा था, इसलिये बढ़ती मांगों को पूरा करने के लिए सन 1887 में बोरी बंदर स्टेशन की जगह एक बड़ा रेलवे स्टेशन बनाया गया, जिसका नाम भारत की तत्कालीन महारानी विक्टोरिया के नाम पर “विक्टोरिया टर्मिनस” रखा गया। आज इसे “छत्रपति शिवाजी टर्मिनस” (सीएसटी) के नाम से जाना जाता है, जो यूनेस्को की विश्व धरोहर की सूची में शामिल है।
पहले यात्री रेल के बाद जल्द ही शहर, राज्य और देश के विभिन्न हिस्सों में यात्री रेल सेवा शुरु हो गई। आज भारतीय रेलवे आकार के मामले में दुनिया का चौथा सबसे बड़ा नेटवर्क है। भारत में रोज़ाना क़रीब एक लाख यात्री रेल गाड़ियां चलती हैं।
नाना शंकरशेठ का देहांत 31 जुलाई,सन 1865 को हो गया था। अपने समय में उन्होंने बॉम्बे के पुनर्निर्माण में अहम भूमिका निभाई थी। अधिनियम-1861 के तहत उन्हें मुंबई विधान परिषद में मनोनीत किया गया था। मुंबई विधान परिषद में पहुंचने वाले पहले भारतीय भी थे। सन 1991 में भारत सरकार के डाक विभाग ने उनके सम्मान में एक स्मारक डाक टिकट जारी किया था। मुंबई में ग्रांट रोड के गिरगांव चौक का नाम बदलकर उनके नाम पर रखा गया।
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