कैसे मनाया गया था भारत का पहला गणतंत्र समारोह!

भारत ने अंग्रेज़ों से एक कड़े संघर्ष के बाद, सन 1947 में आज़ादी हासिल की थी। उसके तीन साल बाद,इस नए राष्ट्र की यात्रा में एक नया अध्याय तब जुड़ा, जब भारत एक गणराज्य बना। इसीलिये हम 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं। इसी दिन भारत का संविधान लागू हुआ था, और इस तरह से देश ने एक लोकतांत्रिक गणराज्य राष्ट्र का रुप लिया था। 

यह है लोकतांत्रिक गणराज्य राष्ट्र का असली मतलब:

-इस दिन भारत सरकार अधिनियम सन 1935 के स्थान पर भारतीय संविधान ने जगह ली थी। भारत सरकार अधिनियम,सन 1935 एक औपनिवेषिक क़ानून था, जो आज़ादी के पहले तीन वर्षों तक जारी रहा था। 

-26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रुप में इसलिए चुना गया था, क्योंकि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अपने सन 1930 के लाहौर अधिवेशन में 26 जनवरी के दिन ही संपूर्ण स्वराज की घोषणा की थी। ये ऐतिहासिक घोषणा, औपनिवेषिक शासन से आज़ादी की हासिल करने की दिशा में उठाया गया पहला क़दम माना जाता है।  

-गणराज्य बनने का मतलब था, कि अब भारत एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, पंथ-निरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बना था,  जहां सभी नागरिकों को न्याय, स्वतन्त्रता, समता और बंधुता का अधिकार है। ये हमारे संविधान की प्रस्तावना में लिखा हुआ है।  

भारत का पहला गणतंत्र दिवस समारोह कैसा था?

वह सन 1950 का एक महत्वपूर्ण दिन था। उस दिन दिल्ली के वाइसरॉय हाउस (अब राष्ट्रपति भवन) के दरबार हाल में एक औपचारिक समारोह हुआ था। सुबह ठीक  10 बजकर 18 मिनट पर भारत के पहले और अंतिम गवर्नर जनरल सी. राजगोपालाचारी ने भारत को गणराज्य घोषित किया था। उसके लगभग छह मिनट बाद डॉ.राजेंद्र प्रसाद ने भारत के पहले राष्ट्रपति के रुप में शपथ ली, और इसी के साथ भारत के पहले गणतंत्र दिवस समारोह शुरुआत होने की घोषणा हुई।   

क्या, तब राजपथ नहीं था?

तब न तो आज की तरह राजपथ पर होने वाले मोटर साइकिल सवारों के करतब हुए थे, न झांकियां थीं और न ही धूमधाम या शान-ओ-शोक़त दिखाई पड़ी थी। भारत की पहली गणतंत्र दिवस परेड बहुत साधारण तरीक़े से मनाई गई थी। ये समारोह राजधानी के इर्विन एम्फ़ीथिएटर में आयोजित किया गया था, जिसे आज  मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम के नाम से जाना जाता है। 

इसकी शुरुआत भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में ध्वजारोहण समारोह से हुई थी। इसके बाद सशस्त्र बलों का मार्च पास्ट और भारतीय वायु सेना का फ़्लाई पास्ट हुआ था। पांच साल बाद राजपथ को परेड के लिए स्थायी-स्थल बनाया गया। भारत के कई राज्यों की जीवंत विरासत और संस्कृति की नुमाइंदगी करने वाली रंगारंग और रचनात्मक झांकियां गणतन्त्र दिवस के दूसरे साल समारोह से ही परेड में दिखाई दी थीं।

राष्ट्रपति की बग्गी की दिलचस्प कहानी 

सोने की परतों से सजी घोड़ा-गाड़ी का मतलब महज़ शाही अंदाज़ ही हो सकता है, और ब्रिटिश-भारत में वायसराय ही संप्रभुप्रति निधि था। अंग्रेज़ी राज की ये निशानी स्वतंत्रता के बाद राष्ट्रपति की छोटी गाड़ीया भारत के राष्ट्रपति का आधिकारिक वाहन बना। आधिकारिक कार्यक्रमों में आने के लिए,राष्ट्रपति,परम्परागत रूप से इसी बग्गी का इस्तेमाल करते हैं।

तो क्या इसी छोटी बग्गी में डॉ.राजेंद्र प्रसाद भारत के पहले गणतंत्र दिवस समारोह के लिए इर्विन एम्फीथिएटर पहुंचे थे? उन्हें इस बग्गी में बैठते बैठते..ठिठकना पड़ा था…और उसकी वजह यह थी:

सन 1947 में जब भारत का विभाजन हुआ, तो सैनिकों का भी भारत और पाकिस्तान के बीच2: 1 के अनुपात में बंटवारा हो गया था। इसी तरह गवर्नर-जनरल के अंगरक्षक (सैनिक) भी दो हिस्सों में बट गए। सन 1950 में भारत में उन सैनिकों का नाम बदलकर राष्ट्रपति के अंगरक्षककर दिया गया। लेकिन जब राष्ट्रपति की बग्गी के मालिकाना हक़ का मामला उठा, तो दोनों देश ने इस विरासतपर दावा कर दिया और ये तय हुआ, कि इसका फ़ैसला सिक्का उछालकर किया जाए!

भारतीय पक्ष के कमांडेंट लेफ्टिनेंट कर्नल ठाकुर गोविंद सिंह और उनके पाकिस्तानी समकक्ष मेजर साहबज़ादा याक़ूब ख़ान के बीच सिक्का उछाला गया। विजेता कौन था, इसका अनुमान लगाने वाले के लिए कोई इनाम नहीं है।

पहले मेहमान

भारत के गणतंत्र दिवस परेड में मुख्य अतिथि पारंपरिक रूप से कोई विदेशी नेता होता है, और इस भव्य आयोजन की अध्यक्षता करने वाले पहले विदेशी राष्ट्राध्यक्ष इंडोनेशियाई राष्ट्रपति सुकार्णो थे। इसकी वजह ये थी, कि जब सन 1947 में भारत स्वतंत्रता पाने के क़रीब था, प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने डच शासन के ख़िलाफ़ स्वतंत्रता संग्राम में इंडोनेशिया की सहायता की थी। भारत ने गुप्त रूप से इंडोनेशिया के कुछ शीर्ष नेताओं को विमानों के ज़रिए देश के बाहर निकालने में मदद की थी ताकि वे पैन-एशियाई सम्मेलन में भाग ले सकें और उनकी आवाज़ विश्व-स्तर पर सुनी जा सके। आख़िरकार सन1949 में इंडोनेशिया ने आज़ादी हासिल कर ली थी।

वीरता चक्र

इसी दिन भारत के पहले गणतंत्र दिवस समारोह के मौक़े पर, राष्ट्रपति डॉ.राजेंद्र प्रसाद ने, वीर जवानों के लिए,देश के सर्वोच्च वीरता पुरस्कारों परमवीर चक्र, महावीर चक्र और वीर चक्र का ऐलान किया। 

इनमें सबसे बड़ा पुरस्कार, परम वीर चक्र, कश्मीर युद्ध (1947-48) के दौरान पांच सैन्य कर्मियों को उनकी बहादुरी के लिए दिया गया था।ये थे मेजर सोमनाथ शर्मा (मरणोपरांत), लेफ्टिनेंट राम राघोबा राणे, लांस नायक करम सिंह, नायक जदुनाथसिंह (मरणोपरांत) और कंपनी हवलदार मेजर पीरू सिंह शेखावत (मरणोपरांत)।

लेकिन पहले गणतंत्र दिवस समारोह के दौरान ये सम्मान प्रदान नहीं किए जा सके।पहले चार सैनिकों को, अगले गणतंत्र दिवस परेड (1951) के मौक़े पर पुरस्कार दिए गए, जबकि पीरू सिंह शेखावत को सन 1952 के समारोह में सम्मानित किया गया।

मुख्य चित्र: प्रणब मुखर्जी, ट्विटर

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