कोलकाता में, पार्क स्ट्रीट पर सफ़ेद रंग की एक भव्य इमारत है जो न सिर्फ़ भारत का पहला, बल्कि भारत का सबसे बड़ा संग्रहालय भी माना जाता है। इस इंडियन म्यूजियम की स्थापना 19वीं सदी की शुरुआत में हुई थी। यही वह संग्रहलय था जिसने भविष्य के कई संग्रहालयों और इसी तरह के संगठनों की नींव डाली। वह सब संग्रहालय और संगठन अब भारत के अभिन्न अंग हैं।
इंडियन म्यूजियम में सांस्कृतिक और वैज्ञानिक कलाकृतियों की लगभग 35 दीर्घाएं हैं जो छह खंडों में बांटी गई हैं। ये हैं- भारतीय कला, पुरातत्व, मानव शास्त्र, भूविज्ञान, प्राणीशास्त्र और आर्थिक वनस्पति विज्ञान। कला और पुरातत्व खंड में अंतरराष्ट्रीय महत्व की चीज़े रखी हैं। ये चीज़े तीन अलग-अलग संग्रहालयों में हैं, जो भारतीय मूल की हैं। इनमें से ज़्यादातर प्राकृतिक और मिस्र के इतिहास की तुलना में, प्राचीन और भारतीय मध्यकालीन इतिहास से संबंधित हैं।
संग्रहालय की अवधारणा
संग्रहालय, दुनिया के हर देश के अभिन्न अंग होते हैं। संग्रहलय उन सभी तत्वों को संरक्षित करते हैं जो उस देश के समृद्ध अतीत और विरासत को समझने और सीखने में मदद करते हैं। वे हमारे शिक्षक की तरह होते हैं जिनके ज़रिए हमें हमारे इतिहास की महत्व के बारे में जानकारियां मिलती हैं। कहा जाता है, कि संग्रहालय की अवधारणा यूनान (ग्रीस) में चौथी सदी के दौरान उत्पन्न हुई थी। अलेक्ज़ेंड्रिया में पहला संग्रहालय खोला गया था , जिसके लिए भूमध्यसागरीय क्षेत्र (Mediterranean) से कलाकृतियां और दस्तावेज़ एकत्र किए गए थे। बहुत से लोगों का मानना है कि यह इराक़ में एननिगाल्डी का संग्रहालय था जिसे छठी शताब्दी में, नव-बेबिलोनिया की एक राजकुमारी एननिगाल्डी ने स्थापित किया था। वह ख़ुद संग्रहालय की क्यूरेटर भी थीं!
19वीं सदी तक, पश्चिमी देशों में, संग्रहालय की अवधारणा लोकप्रिय हो चुकी थी लेकिन भारत में इसके बारे में कोई जानकारी तक नहीं थी। यह भी सच है कि बावजूद इसके पहले कई राजाओं, राजघरानों और प्रभावशाली लोगों ने कलाकृतियों, शाही इतिहास के सिक्कों और चित्रों के अपने-अपने संग्रह बना रखे थे। ये संग्रहालय पूरे अविभाजित उपमहाद्वीप में फैले हुए थे और उन्हें एक छत के नीचे लाना बेहद कठिन काम था। यह काम अंग्रेज़ों के भारत आने के बाद हुआ जिन्होंने कोलकता (वर्तमान में पश्चिम बंगाल) में इंडियन म्यूजियम की स्थापना की।
इंडियन म्यूजियम की आवश्यकता क्यों पड़ी ?
संग्रहालय की स्थापना का विचार 18वीं सदी के अंत में आया था। सर विलियम जोन्स ने, भावी पीढ़ी के लिए सामाजिक-सांस्कृतिक गतिविधियों से संबंधित कला और संस्कृति के विकास, मनोरंजन, ज्ञान के प्रसार और सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत के संरक्षण के लिए एक शिक्षण केंद्र के रूप में, बंगाल की एशियाटिक सोसाइटी शुरू की थी। सन 1796 में, इसके सदस्य प्राकृतिक या कृत्रिम वस्तुओं को रखने और उनके संरक्षण के लिए एक संग्रहालय की स्थापना के लिए सहमत हुए।
एक क़ैदी था संग्रहालय का पहला क्यूरेटर!
संग्रहालय की अवधारणा जब शक्ल ले रही थी तब इसे किसी अंग्रेज़ से नहीं, बल्कि एक ऐसे व्यक्ति से बल मिला, जो कभी अग्रेंज़ो का क़ैदी हुआ करता था। यह डेनमार्क के एक वनस्पतिशास्त्री डॉ. नथानिएल वालिच थे, जिन्हें नेपोलियन-युद्धों (1803-1815) के दौरान हुगली में डेनिश बस्ती सेरामपुर पर कब्ज़े के बाद गिरफ़्तार किया गया था। यह उनकी वैज्ञानिक उपलब्धियां थीं, जिनकी वजह से अंग्रेज़ों को न सिर्फ़ उन्हें रिहा करने बल्कि एक संग्रहालय की आवश्यकता को पूरा करने के लिए प्रेरित भी किया, ताकि वह संग्रहालय के क्यूरेटर के रूप में काम कर सकें और अपने स्वयं के मूल्यवान संग्रह की नक़ल भी उपलब्ध करा सकें। ये संग्रहालय तब एशियाटिक सोसाइटी के ओरिएंटल संग्रहालय के रूप में जाना जाता था। संग्रहालय का परिसर सन 1808 में, पार्क स्ट्रीट के एक कोने पर तैयार होने लगा था। 2 फ़रवरी,सन 1814 को संग्रहालय की स्थापना हुई और वालिच इसके क्यूरेटर बनाए गए।
ओरिएंटल से शाही संग्रहालय तक
संग्रहालय का विस्तार होना शुरू हो गया था। कई भारतीय और यूरोपीय संग्रहकर्ताओं ने, भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न हिस्सों में होने वाली खोजों के साथ-साथ अपने-अपने संग्रह से कलाकृतियां और वस्तुएं आदि भेजनी शुरु कर दीं थीं। सन 1830 के दशक में जब संग्रहालय को आर्थिक सहायता देने वाले, एशियाटिक सोसाइटी के बैंकर दिवालिया हो गए तो संग्रहालय के वेतन का भुगतान सार्वजनिक धन से किया जाने लगा था। तब प्रसिद्ध विद्वान और प्राच्यविद् जेम्स प्रिंसेप ने एक ऐसा संग्रहालय बनाने का प्रस्ताव रखा जिसका नियंत्रण राज्य के पास हो।
सन 1840 में आर्थिक भूविज्ञान संग्रहालय की स्थापना के साथ, पहल शुरु हुई और सन 1856 में इसे भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण से संबंधित 1-हेस्टिंग्स स्ट्रीट पर स्थानांतरित कर दिया गया। लेकिन जैसे ही एक राज्य संग्रहालय बनाने के लिए दोबारा बातचीत शुरू हुई,सन 1857 का विद्रोह हो गया और अगले साल ही ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी से सत्ता ब्रिटिश सरकार के हाथों आ गई। फिर इतिहास के हर रूप के नमूनों के संग्रह और प्रदर्शनी के लिए एक शाही संग्रहालय की स्थापना की ज़रुरत को देखते हुए ब्रिटिश सरकार, सन 1866 में पहला भारतीय संग्रहालय अधिनियम लेकर आई। उसी के तहत सन 1867 में एक नए संग्रहालय का निर्माण शुरू किया गया। इस तरह सन 1878 तक इसकी इमारत को पूरा करने के बाद, जिसे इंपीरियल संग्रहालय कहा जाता था, नवनिर्मित संग्रहालय आम लोगों के लिए खोल दिया गया। तब से लेकर सन 1910 के दशक तक इसकी संरचना और इसमें रखी वस्तुओं के मामले में इसका विस्तार होता गया।
एक छत के नीचे तीन संगठन!
ज्ञान का केंद्र होने के अलावा, इंडियन म्यूजियम में तीन संगठन और बन गए। इनमें से दो इसके परिसर में स्थापित किए गए थे। शुरु में यानी सन 1851 में, कोयले के भंडार का अध्ययन करने के लिए स्थापित, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण, सन 1876 में इंडियन म्यूजियम का हिस्सा बन गया क्योंकि इसकी गैलरी को 1-हेस्टिंग्स स्ट्रीट से यहां स्थानांतरित कर दिया गया था। इसी तरह, संग्रहालय में जूलॉजिकल और एंथ्रोपोलॉजिकल सेक्शन शोध का विषय बन गए, जिसने उनके अलग-अलग संगठनों,सन 1916 में ज़ूलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया और सन 1945 में एंथ्रोपोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया को जन्म दिया।
यहां क्या क्या देखा जा सकता है?
सन 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, इंपीरियल संग्रहालय इंडियन म्यूजियम बन गया। आज, यहां एक लाख से अधिक दुर्लभ वस्तुएं रखी हुई हैं। इनमें से स्तनधारी खंड ख़ास है, जिसमें भारत और दुनिया के अन्य हिस्सों से लाए गए अद्वितीय स्तनधारी पशुओं के भरवां नमूने शामिल हैं। गांधार गैलरी में, हमें दूसरी शताब्दी की पेंटिंगें और मूर्तियां देखने को मिलती हैं, जो भगवान बुद्ध की कहानी दर्शाती हैं। भरहुत गैलरी में, अन्य कलाकृतियों और मूर्तियों के अलावा, आप जंगले (रेलिंग) और स्तूप का प्रवेश-द्वार ‘तोरण’ देख सकते हैं जो कभी भरुता (सतना, मध्य प्रदेश के पास) की शोभा हुआ करता था। इसमें जंगले के टुकड़े भी शामिल हैं, जो कभी बोधगया में बोधि वृक्ष के ईर्द-गिर्द हुआ करता था, जहां भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था। पेंटिंग गैलरी में, सर्वश्रेष्ठ बंगाल कला देखी जा सकती है। यहां रबीन्द्रनाथ टैगोर से लेकर जामिनी रॉय जैसे प्रमुख बंगाली कलाकारों की बनाई गई पेंटिंग हैं।
हम मिस्र गैलरी को कैसे भूल सकते हैं, जिसमें न केवल चार हज़ार साल पुरानी ममी रखी हुई हैं! बल्कि तरह तरह की अन्य चीज़े भी हैं, जैसे स्फिंक्स और मिस्र के प्रमुख राजघरानों के राजा-रानियों की प्रतिमाएं। आज, कोई भी भारतीय संग्रहालय जाकर तमाम अद्भुत चीज़ें देख सकता है, जो गूगल सांस्कृतिक संस्थान के सहयोग से संभव हो सका था।
शीर्षक चित्र : यश मिश्रा
हम आपसे सुनने के लिए उत्सुक हैं!
लिव हिस्ट्री इंडिया इस देश की अनमोल धरोहर की यादों को ताज़ा करने का एक प्रयत्न हैं। हम आपके विचारों और सुझावों का स्वागत करते हैं। हमारे साथ किसी भी तरह से जुड़े रहने के लिए यहाँ संपर्क कीजिये: contactus@livehistoryindia.com