राजस्थान में राठौड़ वंश की राजधानी रही हथूंडी 

राजधानी भुवो भर्तुस्त स्यास्ते, हस्ति कुण्डिका
अलका धन दस्येव धनाढ़य जन सेविता
मधुरा धन पर्वाणो हृद्य रूपा रसाधिकाः
यत्रेक्षुवाटा लोके भ्योना लिकत्वाद भिदेलिमाः

“पृथ्वीपति धवल की राजधानी हस्ति कुण्डिका ,यह धनवानों की नगरी कुबेर की अल्कापुरी के समान इस नगरी में भी सख़्त गांठ वाले रसिले और मीठे गन्ने खूब पैदा होते हैं । गन्ने का उत्पादन इतना ज़्यादा है कि खेतों से गन्ना तोड़ने की सबको छूट है ।”

चारों ओर अरावली की ऊॅंची-ऊॅंची पहाड़ियों और उन पर फैली हरियाली की चादर, झरनों का बहता शीतल जल, यहीं से निकलते बरसाती नदी-नाले जो समीप मारवाड़ का वरदान कहलाने वाले जवाई बांध में जाकर मिल जाते हैं। कई ख़ूबियों से भरपूर यह वैभवशाली हथूंडी नगरी प्रसिद्ध तीर्थ-स्थल रणकपुर से 30 किलो मीटर, तहसील मुख्यालय बाली से 20 किलो मीटर दूर है। जवाई रेल्वे स्टेशन से 15 किमी दूर बीजापुर के पास है।

यह प्राचीन नगरी 9वीं से 13वीं सदी तक अपने उत्कर्श पर रही थी । वर्तमान समय में उजड़ी हुई इस नगरी के गौरव के बारे में आमतौर पर किसी को जानकारी नहीं है । मगर हथूंड़िया राठौड़ शाखा की जन्म-स्थली तथा राजधानी कही जाने वाली इस नगरी के खंडहर आज भी अपने तारण हार के इन्तज़ार में हैं। किसी काल में अरावली की इन वादियों के बीच आबाद रही इस नगरी के प्राचीन इतिहास के बारे मे पंडित विष्वेष्वरनाथ रेऊ,डा. सोहनलाल पटनी, डा. हुकम सिंह भाटी ने लिखा है तथा विदेशी इतिहासकार कर्नल टाड अपनी यात्रा के दौरान एक बार इस शहर के पास ठहरे भी थे ।

आइये ऐसी नगरी के बारे में विस्तार से कुछ जानें:

पाली ज़िले के बीजापुर क़स्बे से मात्र तीन किमी दूर गोरिया भीमाणा सड़क मार्ग पर प्रसिद्ध जैन तीर्थ-स्थल भगवान राता महावीर मंदिर है। मंदिर के पास पहाड़ियों पर दूर से दिखाई देते महल, परकोटा, बुर्ज , प्रवेश-द्वार और सैनिकों के आवास के खंडहर उसी नगरी के अवशेष हैं जिसे हंथूड़ी, हस्तितुण्डी या हस्तिकुन्डी के नाम से जाना जाता था।

यह वही नगरी है जिसे राजपूताना, मारवाड़ के रण बांकुरूं यानी राठौड़ वंश की प्रथम राजधानी होने का गौरव भी प्राप्त है।

राठौड़ वंश:- राठौड़ वंश सूर्यवंशी तथा मर्यादा पुरूषौत्तम राम के पुत्र लव की संतान कहलाते हैं । राठौड़ शब्द राष्कूट का अपभृंश है । सन् 753 में महान शासक दन्तिदुर्ग ने दक्षिण भारत मे अपनी सत्ता स्थापित की थी । इनके बाद धुर्व-प्रथम, गोविन्द-तृतीय जैसे प्रतापी शासक हुए थे । इन्हीं के वंशज लाट (गुजरात), बदायुं (अवध- मध्य भारत) के साथ दक्षिणी और पश्चिमी राजपूताना तक शासन किया था।

वर्तमान राजस्थान में धनोप, शाहपुरा, नोगामा, बांसवाड़ा, हथूंड़ी, गोड, वाड़ क्षेत्र में 11वीं सदी तक राष्ट्रकूटों का अस्तित्व मिलता है। माना जाता है इनका सामराज्य , स्वतन्त्र जागीरें या राज्य यहां तक रहे होंगे । वर्तमान मारवाड़ में राठौड़ राजवंश की स्थापना राव सीहा ने 13वीं सदी में की थी । कर्नल टाड ने लिखा है कि सीहा ने गुहिलों को भगाकर लूनी के रेतीले भाग पर बसे खेड़ पर अधिकार किया था।

हस्ति कुन्डी या हथूंडी के राठौड़ः – इस नगरी के पहले राष्ट्रकूट राजा हरिवर्मा का नाम मिलता है । इनके बाद विदग्धराज (संवत् 973), मम्मट (संवत् 996) में और उनके पुत्र धवल (संवत् 1053) हुये। धवल को महान शासक माना जाता था । यह वहां मौजूद शिला-लेखों में लिखा है। इनके बाद पांचवें शासक के रूप में बालप्रसाद (धवल के पुत्र ) थे। यहां के राठौड़ हथूंडिया कहलाते हैं। इनके बाद इस नगरी के राठौड़ वंश की लुप्त कड़ी में एक नाम दत्त वर्मा का भी मिलता है, जिसने नाडोल के रामपाल चैहान के साथ मिलकर सोमनाथ जाते हुए महमूद ग़ज़नवी से युद्ध किया था। जिस कारण ग़ज़नवी की सेना ने इन दोनों नगरों को लूटकर उजाड़ दिया था। इस नगरी के महत्वपूर्ण अवशेष आज भी यहां के राता महावीर जैन तीर्थ स्थल पर मौजूद हैं । एक शिला-लेख में विक्रम संवत् 1053 माघ शुक्ला त्रयोदशी रविवार अंकित है जो राजकीय संग्रहालय अजमेर में मौजूद है। इस शिला-लेख में कुल 22 पंक्तियां उकेरी गईं हैं।

एक लेख में संवत् 996 माघ कृष्ण पक्ष 11 का उल्लेख है जो नागरी लिपि और संस्कृत भाषा में लिखा हुआ है। इसमें विदग्ध राजा द्वारा मंदिर निमार्ण करवाने के अलावा राठौड़ राजाओं की वंशावली भी दी हुई है। इस लेख को उकेरने वाला योगेश्वर नाम का सोमपुरा था।

इसके अलावा यहां के जैन मंदिर में संवत 1015, संवत1048, संवत1122,संवत1335 अंकित हैं । इनमें यहां के जैन आचार्यों , इस क्षेत्र में पड़े अकालों के बारे में, आस-पास गांवों में मंदिरों में मूर्तियों की प्रतिष्ठाएं करवाने, जल-स्रोतों का निर्माण, शहर की धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, व्यापारिक और कर, कृषि, दान व्यवस्था के बारे में विस्तार से लिखा हुआ है।

यहां के शासक अत्यन्त कुशल वास्तुविद और नगर-निर्माता भी रहे थे । उस समय उनकी यह नगरी अलका नगरी के समान समृद्ध रही थी। इसके प्रमाण के रूप में पहाड़ी की तलहटी में कई सुन्दर भवनों के, देवालयों के खंडहर मौजूद हैं । इनमें मुख्य रूप से पंच-तीर्थ मंदिर समूह, नौ बावड़ियां , मुक्तेश्तेवर महादेव, हर गंगा मंदिर के अलावा पहाड़ी की गुफा में हिंगलाज माता मंदिर, भीम के पैरों के निशान आज भी जन आस्था के केन्द्र बने हुए हैं ।

इन जगहों पर प्रतिवर्ष होने वाले आयोजनों में सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु और पर्यटक पहुचते हैं । वहीं पहाड़ों की दूसरी ओर रहने वाले आदिवासियों का सामाजिक परिवेश आज भी अनोखी मिसाल बनी हुई है।

निर्मल, शान्त और एकान्त वाले इस स्थल पर आप भी घूमने जायेंगे तो आपके मन को भी अपार सुकून व शान्ति प्राप्त होगी । बोध हस्तिकुण्डी की खुदाई नहीं होने से पहाड़ी क्षेत्र में कई टीलों में आज भी कई राज़ दफ़न हैं । यह नगरी कब स्थापित हुई, ध्वंस होने के क्या कारण थे, नगरी का वैभव , उस समय कितने मंदिर थे आदि आदि, ऐसे कई सवालों के जवाब अभी तक अनसुलझे हैं जिस पर शोद्ध का इंतज़ार आज भी है।

मुख्य चित्र: राता महावीर स्वामी का मंदिर

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