पाकिस्तान के शहर लाहौर से क़रीब 250 किलोमिटर दूर आबाद झंग सदर शहर में 60 से ज़्यादा मशहूर सूफ़ी मज़ार और दरबार हैं। इन दरबारों से संबंधित अलग-अलग करिश्में, करामातें और क़िस्से-कहानियां बरसों से झंग की तवारीख़ का एक हिस्सा बने हुए हैं। इन सूफ़ी स्मारकों से जुड़ी इनके अनुयाईओं की आस्था और इन दरबारों की शान तथा ख़ूबसूरती को शब्दों में बयान कर पाना आसान नहीं है। इन दरबारों और मज़ारों की मौजूदगी के कारण ही पूरा झंग सदर सप्ताह के प्रत्येक गुरूवार को किसी बड़े मेले का रूप ले लेता है और यहां दूर-दराज़ के शहरों-क़स्बों से जमा होने वाले श्रद्धालुओं की गिनती कर पाना भी असंभव हो जाता है।
भले ही झंग सदर शहर में पाँच दर्जन से ज़्यादा इतिहासिक सूफ़ी दरबार और इससे दो गुने अन्य दरबार हैं, परन्तु शहर की फ़ैसलाबाद रोड पर स्थित दरबार माई हीर तथा झंग सदर की तहसील शोरकोट के दरबार हज़रत सुल्तान बाहु रहमत अल्लहा, सहित शहर की मुल्तान रोड पर आबाद गांव गढ़ महाराजा के दरबार हज़रत शाह सादिक़ ‘निहंग’ में सूफ़ी अनुयाईओं की आस्था और विशेष सम्मान क़ायम है। इन सूफ़ी दरबारों की शोहरत आज अंर्तराष्ट्रीय स्तर तक पहुँच चुकी है।
तहसील शोरकोट में दरबार हज़रत शाह सादिक़ ‘निहंग’ के अतिरिक्त दरबार हज़रत हाफ़िज़ फ़ैज़ सुल्तान, दरबार हज़रत मंज़ूर सुल्तान, दरबार हज़रत मुजीब सुल्तान, दरबार हज़रत सुल्तान नूर मोहम्मद, दरबार हज़रत सुल्तान मोहम्मद नवाज़ तथा दरबार सुल्तान उल असर हज़रत गुलाम दस्तगीर अल-क़दरी भी क़ायम हैं। परन्तु दरबार हज़रत शाह सादिक़ ‘निहंग’ के प्रवेश-द्वार पर चीनी की टाईलों पर गुरमुखी लिपि में लिखी इबारत “जी आया नूं” वहां से गुज़रने वाले राहगिरों एवं सैलानियों के क़दम थाम लेती है। दरबार के प्रवेश-द्वार पर गुरमुखी में लिखे “जी आया नूं” (आपका स्वागत है) के साथ ही शाहमुखी लिपि में ‘खुशामदीद’ और अंग्रेज़ी में ‘वेल कम’ लिखा हुआ पढ़कर आँखें और ज़हन ठहर सा जाता है और हर कोई सोचने के लिए मजबूर हो जाता है कि आख़िर किसी सूफ़ी पीर के मज़ार पर गुरमुखी में यूं “जी आया नूं” लिखने का क्या अर्थ रहा होगा? ज़हन में यह सवाल उठना भी वाजिब बन जाता है कि ये शाह सादिक़ ‘निहंग’ थे कौन? और उन्हें ‘निहंग’ नाम से संबोधित क्यों किया जाता है?
भाई काहन सिंह नाभा ‘महानकोष’ में लिखते हैं कि निहंग सिंह, मृत्यु का भय त्यागकर हर समय क़ुर्बान होने के लिए तैयार रहता है। इसके साथ ही उन्होंने लिखा है कि निहंग का अर्थ है, जिसे मृत्यु की चिंता न हो (निरभऊ होइऊ भया निहंगा)।
डिस्ट्रिक्ट गजे़टीयर झंग में दर्ज है कि शाह सादिक़ ‘निहंग’ नाम से जाने जाने वाले क़लंद्दरिया सम्प्रदाय के उस मुस्लिम संत का असली नाम हज़रत शाह सय्यद मोहम्मद बुख़ारी रहमत अल्लहा है। उनके पिता सय्यद नसीरउद्दीन महमूद, मख़्दूम सय्यद ज़हानिया जहांगुश्त पीर सय्यद शाह जलालउद्दीन क़ुतुब कमाल ‘सूर्ख पोश’ बुख़ारी के वंशज थे।
उन दिनों सिंध के प्रसिद्ध फ़क़ीर शेख़ सलीम सद्दर क़लंद्दर के दरबार में प्रतिदिन वहां के सभी स्थानीय संत-फ़क़ीर इकट्ठा होते थे और दरबार में पहुँचने वाले संतों और श्रद्धालुओं के लिए लंगर की व्यवस्था की जाती थी। लंगर में प्रतिदिन दरिया-ए- सिंध से पकड़कर लाई गई मछलियां पकाकर परोसी जाती थीं। बताते हैं कि एक दिन फ़क़ीर क़लंद्दर के दरबार के संतों को दरिया में से कोई मछली नहीं मिली । उस दिन दरबार में पहुँचने वाले सभी श्रद्धालुओं को बग़ैर लंगर ग्रहण किए ही वापस जाना पड़ा। इस पर फ़क़ीर ने ऐलान किया कि अब जब तक लंगर के लिए भोजन नहीं मिलेगा, तब तक वे प्रतिदिन अपने एक संत की कुर्बानी देंगे। उनका ऐलान सुनते ही शाह सादिक़ सबसे पहले क़ुर्बानी देने के लिए तैयार हो गए। उनके इस जज़्बे से प्रभावित होकर फ़क़ीर शेख़ सलीम सद्दर क़लंद्दर ने उन्हें ‘निहंग’ ख़िताब से नवाज़ा ।
बादशाह औरंगजे़ब के शासनकाल में हज़रत शाह सादिक़ ‘निहंग’ ने सिंध से झंग के शोरकोट में आकर ठिकाना किया। सन 1767 में उनका देहांत होने के बाद उन्हें इसी दरबार में दफ़न कर, उनकी कब्र बना दी गई। यह क़ब्र दरबार के पीछे मौजूद है और आज भी कच्ची है। बाद में सन 1887 में दरबार के सज़्जादा नशीं हज़रत मोहम्मद पनाह शाह ने हजरत शाह सादिक़ ‘निहंग’ की स्मृति में आलीशान दरबार का निर्माण करवाया, जो कि काशिकारी आर्ट का दिलकश नमूना है।
सन 1910 में उक्त दरबार के प्रवेश-द्वार सहित अन्य भवनों का जब निर्माण किया गया तो क्षेत्र के हिंदू-सिखों ने इसमें बढ़-चढ़कर योगदान दिया। डिस्ट्रिक्ट गज़ेटीयर झंग, सन 1941 के अनुसार हज़रत शाह सादिक़ ‘निहंग’ का वार्षिक उर्स माघ के महीने में 5 से 7 तरीख़ तक यानी तीन दिन मनाया जाता है। जिस में हिंदू, सिख तथा मुस्लिम समुदाय के लोग बड़ी संख्या में शामिल होते हैं।दरबार हज़रत शाह सादिक़ ‘निहंग’ की दीवारों और छतों पर चीनी की टाईलों से की गई सजावट, पच्चीकारी, तेल चित्र, शीशे, लकड़ी तथा सीमेंट में की गई मिनाकारी हर किसी का मन मोह लेने वाली है। पिछले कुछ वर्षों से सैलाब के कारण इन सब का काफ़ी नुक़सान हो रहा था, परन्तु पुरातत्व विभाग ने समय रहते मरम्मत शुरू करवाकर इन्हें सहेजने में कामयाबी हासिल कर ली है। दरबार के माथे पर गुरमुखी में लिखे ‘जी आया नूं’ सहित फ़र्श पर गुरमुखी और देवनागरी में लिखी हिंदू-सिख दानियों के नामों की सिलों को नष्ट होने से बचा लिया गया है। विभाग का मानना है कि उक्त दरबार में गुरमुखी और देवनागरी में लिखी ये सिलें इस स्मारक की विरासत का एक अहम हिस्सा हैं, जिन के नष्ट होने से इस स्मारक की विरासत में एक बहुत बड़ी कमी आ सकती थी।
निहंग बाबा के प्रकाश स्तम्भ, जहां पर बाबा की स्मृति में उन के नाम का दिया जलाकर रोशनी की जाती है। इस समय तुलंबा शहर के कोहली निहंग में, मुलतान, झंग के मिरक स्याल, सरगोधा के ख़ानकाह डोगरा तथा पिंडी भट्टियां के गांव निहंग में मौजूद हैं। शोरकोट में दरबार हजरत शाह सादिक़ ‘निहंग’ में सज्जादा नशीं की सूची में क्रमवार हज़रत क़ुतुब शाह, फ़क़ीर मोहम्मद राशिद, फ़क़ीर डोगर मलंग, मियां रांझा, मियां नुसरत शाह, फ़क़ीर मियां कोचक, फ़क़ीर हैदर शाह, फ़क़ीर मियां मोहम्मद अली, मियां मोहम्मद पनाह, मियां नुसरत अली, फ़क़ीर मोहम्मद राशिद, फ़क़ीर मोहम्मद ख़ुरशीद तथा मौजूदा सज्जादा नशीन अनवर साजिद के नाम शामिल हैं।
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