भारत में ऐसी कई प्रेम कहानिया है जो काफी लोकप्रिय है | जैसे की हीर-राँझा ,सोनी-महिवाल, पृथ्वीराज-संयुक्ता , लैला-मजनू इत्यादि | ऐसी ही एक लोकप्रिय कथा है ढ़ोला-मारु की प्रेम-कहानी |
एक ज़माना था जब कथाकारएक गांव से दूसरे गांव जाकर कहानियां सुनाते थे | दिन भर का काम ख़त्म करने के बाद, लोग गांव की चौपालों पर कहानियां सुनने के लिये जमा हो जाते थे | ये कहानियां लिखी नहीं होती थीं | हर कथाकार इन कहानियों को अपना रंग दे देता था | एक ज़माने में कथाो का बड़ा रिवाज हुआ करता था। माहिर कथाकार हुआ करते थे।आज हम इसे स्टोरी टेलिंग के नाम से जानते हैं।
ढोला – मारु की प्रेम कथा में प्रेम और नफरत, सुख और दुःख , रोमांस और ट्रेजेडी ऐसी हर चीज़ है जो एक कहानी को इंटरेस्टिंग और आकर्षक बनाती है | इसी वजह से ये ५०० साल पुरानी कहानी आज भी इतनी लोकप्रिय है | इस कहानी के कई संस्करण (वर्शन) है जिनमे से राजस्थानी संस्करण सबसे लोकप्रिय है | इस कहानी के इतिहास में जाने से पहले , हम जानेगे ये कहानी है क्या |
एक समय , पूंगल देश (बीकानेर के पास) का राजा अपने यहाँ अकाल पड़ने पर नरवर राज्य (ग्वालियर के पास ) आये | यहाँ उन्होंने अपनी डेढ़ साल की बेटी मारू का विवाह नरवर के राजकुमार ढोला के साथ किया । ढोला की उम्र उस समय तीन थी | आकाल ख़तम होने के बाद पूंगल का राजा परिवार सहित अपने देश वापस लौट गया |
जैसे सालो बीत गए , नरवर का राजकुमार ढोला बचपन के विवाह को भूल गया | बड़ा होने पर उसका दूसरा विवाह मारवाड़ की राजकुमारी मालवणी से हो गया | मालवणी को अपनी सौतन मारू की सुन्दरता के किस्से मालूम होने के कारन , उसने पूंगल से आया कोई भी संदेश ढोला तक पहुंचने नहीं दिया |
उधर एक रात , पूंगल देश में, मारू ने सपने में ढोला को देखा और काफी बेचैन हो गयी | उसकी बेचैन अवस्था देख, उसके पितः , पूंगल की राजा ने एक चतुर गायाक नरवर भेजा | उसेनी गाने के ज़रिये मारु का सन्देश ढोला तक पहुंचाया | मरू का नाम सुनते ही ढोला को अपने बचपन की शादी की याद आ गया और वो मारु से मिलने के लिए बेचैन हो गया | मगर मालवणी उसे किसी न किसी बहाने रोकती रही |
एक दिन राजकुमार ढोला एक बहुत तेज चलने वाले ऊंट पर सवार होकर अपनी पहली पत्नी मारु से मिलने पूंगल पंहुचा | आखिर उन दोनों का मिलन हो गया और उन्होने कई दिन पूंगल में बिताए | जब वे दोनों नरवर जाने के लिए लौटे तोह रास्ते में ढोला को सांप ने काट लिया | दुःख से बेहाल मारु ने ढोला के साथ सती जाने का निर्णय लिया | तब शिव और पारवती , एक योगी और योगिनी के रूप में आये और ढोला को वापस ज़िंदा कर दिया |
लेकिन दोनों की मुसीबतें यहीं समाप्त नहीं हुई | बाद में उमर-सुमरा नमक व्यक्ति ने राजकुमारी मारु को पाने के लिए कई षड़यंत्र रचे | इन षडयंत्रो का सामना कर ढोला और मारु किसी तरह नरवर पहुंचे | नरवर लौटकर ढोला ने अपनी दूसरी पत्नी मालवणी को भी मना लेता है। अंततः ढोला-मारू के साथ मालवणी भी खुशी-खुशी रहने लगी |
यह थी ढोला मारू की कहानी , पर इस ‘फ़िल्मी ‘ लगने वाले लोककथा के पीछे एक काफी बड़ा इतिहास है |
सिराक्यूज़ यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर और भारतीय लोककला की विशेषज्ञ डॉ सुसन वोडली ने सालो इस ढोला -मारु की कथा पर रिसर्च किया है | उनका मन्ना है की यह लोककथा कई सौ साल पुराणी है | इस कहानी को एक जैन भिक्षु कुशललाभ ने सं १६१७ में ‘ढोला मारु री चौपाई ‘ नमक किताब मे लिखा |
ढोला मारु की प्रेम कहानी राजस्थान , उत्तरप्रदेश , मध्यप्रदेश, और छत्तीसगढ़ मे काफी लोकप्रिय है | हर क्षेत्र में कहानी का एक अपना अलग संस्करण पाया जाता है | मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ वाले संस्करणों में यह कहा जाता है की ढोला , हिन्दू मान्यता में प्रसिद्ध राजा नल और दमयंती का पुत्र था |
दिचस्प बात यह है की इस कहानी का खलनायक उमर-सुमरा , आपको राजस्थान की कई लोककहानियो में पात्र के तौर पर दिखता है | तब सिंध में सुमरा राजाओ का शासन था | शायद इस पात्र का राजस्थानी लोककथाओं मे एक खलनायक के तौर पर बार बार आना , हमे सिंध और राजस्थान के सम्बन्ध के बारे मे कुछ बताता है |
आज गाओ गाओ घू,मने वाले कथाकारों की परंपरा तोह ख़तम हो गयी , पर कठपुतलियों का खेल आज भी जारी है | आज भी आप जयपुर या उदयपुर जय तोह किसी होटल में ढोला मारू की कहानी पर आधारित कठपुतलियों का खेल देख सकते है | यहाँ तक की ढोला मारु की कहानी अमर चित्र कथा ,जो भारत में सबसे लोकप्रिय कॉमिक्स है, में भी पाई जाती है |
आज इंटरनेट और नेटफ्लिक्स के ज़माने में हमारी यह लोककहानिया विलुप्त हो रही है | शायद ढोला और मारु का प्रेम ही उनकी कहानी को ज़िंदा रख पाए |
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