चरक संहिता: आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति का सबसे प्रामाणिक ग्रंथ

सदियों से चिकित्सक एक शपथ लेते आ रहे हैं, जिसे “हिप्पोक्रेटिक शपथ” कहते हैं। इसके तहत वे नैतिक सिद्धांतो का पालन करने की क़सम खाते हैं। यह पश्चिमी दुनिया में चिकित्सा क्षेत्र में नैतिकता का सबसे प्रारंभिक मूलग्रंथ है। लेकिन कम ही लोग जानते हैं, कि प्राचीन भारत में भी एक महत्वपूर्ण आयुर्वेदिक ग्रंथ “चरक संहिता” में चिकित्सकों के लिए नैतिकता के सिद्धांत थे।

चरक संहिता प्राचीन भारत में रचा गया आयुर्वेद के बुनियादी ग्रंथों में से एक है। इसे आयुर्वेद का सबसे पुराना ग्रंथ भी कहा जाता है।

भारत में चिकित्सा का इतिहास दो हज़ार सालों से भी पुराना है। भारत में चिकित्सा की पारंपरिक आयुर्वेद पद्धति, वैदिक काल से ही चली आ रही है। इस दौरान आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति विकसित हुई, और इसे आठ अलग-अलग ख़ूबियों के आधार पर आठ शाखाओं में बांटा जाता है। हालांकि इन सभी शाखाओं से संबंधित कई ग्रंथ हैं, लेकिन इनमें से सिर्फ़ दो, काया चिकित्सा (आंतरिक चिकित्सा) और शल्य चिकित्सा (सर्जरी) का तेज़ी से विकास हुआ, जिसके नतीजे में दो अलग-अलग पद्धति- अत्रेय और धन्वंतरि बनीं। अत्रेय पद्धति जहां औषधि पर केंद्रित थी, वहीं धन्वंतरि पद्धतिशल्य चिकित्सा (सर्जरी) पर केंद्रित थी।

चरक संहिता, आयुर्वेद की काया चिकित्सा पद्धति का सबसे प्रामाणिक ग्रंथ है। दरअसल सुश्रुत संहिता और अष्टांग हृदयम सहित चरक संहिता को महान त्रिमूर्ति माना जाता है, जिसे बृहत्त्रयी (बड़ा) के रूप में जाना जाता है। ये तीन ग्रंथ ही आयुर्वेद की बुनियाद हैं।

ये ग्रंथ कब लिखे गये, इसको लेकर विवाद है। विद्वानों के अनुसार ये ग्रंथ लगभग चौथी ई.पू. और दूसरी शताब्दी के बीच कभी लिखे गये होंगे। कहा जाता है, कि मूल ग्रंथ महान ऋषि अग्निवेश ने लिखा था, जिसे अग्निवेश संहिता के रूप में जाना जाता था। बाद में ऋषि चरक ने इसमें संशोधन किये, और इसे और विस्तृत बनाया। इसका नाम भी बदलकर चरक संहिता हो गया जो लोकप्रिय भी हुआ। दुर्भाग्य ये है, कि हमें उनके कालखंड के बारे में जानकारी नहीं है, लेकिन वह शायद 100 सदी ई.पू. से लेकर सन 200 में कभी रहे होंगे। बहुत बाद में आचार्य द्रृधबाला ने इसका संपादन किया था क्योंकि इस दैरान इसके कुछ खंड गुम हो गए थे। पी.वी. शर्मा कहते हैं, आज दुनिया भर में पढ़ी जाने वाली चरक संहिता,अग्निवेश-तंत्र है, जिसे चरक ने निखारा था, और बाद में द्रृधबाला ने इसमें संशोधन किया था।”

सुश्रुत संहिता जहां सर्जरी (शल्य चिकित्सा) से संबंधित है, वहीं चरक संहिता आयुर्वेद के औषधि और गैर-शल्य चिकित्सा से संबंधित है। हालांकि यह पुस्तक सिर्फ़ बीमारियों के इलाज पर केंद्रित नहीं है। संशोधित और व्यापक पुस्तक में बीमारी के लक्षणों और औषध विज्ञान के साथ-साथ बीमारी के बुनियादी कारणों पर भी प्रकाश डाला गया है। यही नहीं, इसमें स्वास्थ्य, जीवन शैली और बीमारियों की रोकथाम पर विस्तृत लेख हैं, जिसकी वजह से ये एक बेहतरीन ग्रंथ बन गया है।

मौजूदा ग्रंथ में क़रीब 120 अध्याय हैं, जो आठ खंडों (स्थानों) में विभाजित हैं। इनमें क़रीब नौ हज़ार दो सौ पिनचांवे छंद (सूत्र) हैं। प्रत्येक खंड अलग-अलग विषयों के बारे में है- सूत्र (सामान्य सिद्धांत और दर्शन), निदान (विकृति विज्ञान), विमान (विशिष्ट व्याख्या), शरीरा (शारीरिक रचना), इंद्रिया (संवेदी अंग-आधारित रोग निदान), चिकित्सा, कल्प (औषध और विष विज्ञान) और सिद्धि (बीमारियों का इलाज)।

चरक संहिता मुख्य रूप से चिकित्सीय और औषध विज्ञान पर लिखा गया एक ग्रंथ है। इसमें बुख़ार, खांसी, नज़ला, ख़ून की कमी, मिर्गी, शराब की लत, आंतरिक रक्तस्राव, पागलपन, सूजन, विषाक्तता, कुष्ठ रोग और अन्य त्वचा संबंधी बीमारियों सहित कई अन्य बीमारियों और विकारों के बारे में बहुत विस्तार से बताया गया है। इसमें उपचार के साथ-साथ सभी बीमारियों और विकारों के लक्षणों और निदान के बारे में विस्तार से उल्लेख किया गया है। इसके अलावा, कई अध्याय चिकित्सा के मक़सद के लियेविभिन्न प्रकार के पौधों, पेड़ों, जड़ी-बूटियों और पशु उत्पादों के उपयोग पर केंद्रित हैं।

दवाओं से इलाज के अलावा इस ग्रंथ में आहार और खानपान पर बहुत ज़ोर दिया गया है। खान-पान चरक संहिता का एक अहम हिस्सा है, जिसमें कई अध्याय पूरी तरह पोषण, आहार पाचन और चयापचय (खाने को ऊर्जा में बदलना) पर केंद्रित हैं। चरक संहिता खानपान में संतुलन के महत्व पर ज़ोर देती है। इसमें कहा गया है, कि सब्ज़ियां, शराब या फिर मांस, जो भी खायें वो सही अनुपात, सहीमात्रा और सही समय पर खाना अथवा पीना चाहिये, क्योंकि अधिक मात्रा में कुछ भी खाने-पीने से सेहत-संबंधी समस्याएं खड़ी हो सकती हैं। चरक कहते हैं, भोजन सही मात्रा में करना चाहिए। आपके भोजन की मात्रा आपकी पाचन शक्ति पर निर्भर करती है। भोजन जितनी भी मात्रा में खाया जाये, और वह किसी परेशानी के बिना पच जाता है, तो उसे उचित मात्रा माना जाना चाहिए।

दिलचस्प बात यह है, कि इस ग्रंथ में व्यक्तिगत साफ़ सफ़ाई और सार्वजनिक साफ़ सफ़ाई के महत्व के बारे में बहुत तफ़सील से ज़िक्र किया गया है। इसमें सार्वजनिक स्थानों में खाने, जुआ खेलने, छींकने और उपद्रव करने जैसी गंदी आदतों से दूर रहने को कहा गया है। इसके अलावा इसमें लोगों से दूषित पानी से बचने को कहा गया है, क्योंकि इससे महामारी फैलती है, और ये कई बीमारियों की जड़ है।

चिकित्सकों का वर्णन ग्रंथ के सबसे दिलचस्प पहलुओं में से एक है। चरक संहिता में चिकित्सकों और नर्सों के लिए नैतिकता के शुरुआती सिद्धांत हैं। इसमें कहा गया है, कि उपचार की सफलता चिकित्सक, दवा, रोगी और कंपाउंडर पर निर्भर करती है। इसमें चिकित्सकों के कर्तव्यों और आचार संहिता विस्तृत वर्णन है। इसमें कहा गया है, कि चिकित्सक को अनुशासित जीवन जीना चाहिए, अपने मरीज़ों का ख़्याल रखना चाहिये, तथा उनसे अच्छा बर्ताव करना चाहिये।

चरक संहिता के अनुसार चिकित्सकों से उम्मीद की जाती है, कि उनका अपना दवाख़ाना हो, और वे कच्चे माल का उपयोग करके औषधीय सूत्र तैयार करें।

इसमें कहा गया है, कि ज्ञान को साझा करने और बढ़ाने के लिए चिकित्सकों को अन्य चिकित्सकों से सलाह-मशवरा करना चाहिये। इसमें कहा गया है, कि छात्र विज्ञान से संबंधित अपना विषय और अपना शिक्षक चुनने के लिए आज़ाद हैं। लेकिन साथ ही ये भी कहा गया है, कि शिक्षक को भी छात्र के व्यक्तित्व, उसकी समझ और ग्रहणशीलता के आधार पर उसे चुनने का अधिकार है।

ग्रंथ में छात्रों के लिये शिक्षक के दिशा- निर्देशों का उल्लेख है, “आपको हर तरह से मरीज़ो का इलाज करने की कोशिश करनी चाहिये। आपको मरीज़ों का बुरा नहीं सोचना चाहिए, भले ही आपकी जान पर क्यों न खतरा बन आये।” इसमें आगे कहा गया है, “आपकी बोली में मिठास, सहजता, धैर्य होना चाहिये और आपको बहुत सोच समझकर बोलना चाहिये। आपको हमेशा स्थान और समय का ध्यान रखना चाहिये। चीज़ों को अच्छी तरह याद रखकर ज्ञान, प्रगति, और बेहतरीन उपकरणों के लिए लागातार कोशिश करते रहना चाहिये।”

चरक संहिता ने कई बरसों की यात्रा के बाद लोकप्रियता हासिल की। कई विद्वानों ने इस पर लिखाजिनमें उल्लेखनीय हैं, भट्टारक हरिचंद्र की चराकन्यास (चौथी-छठी शताब्दी), बंगाली विद्वान चक्रपाणि दत्ता (1066) की चरकतापर्यातिका और शिवदास सेन की चरकतत्वप्रदीपिका (1460)।

चरक संहिता आज आयुर्वेद विज्ञान के प्रमुख ग्रंथों में से एक है, जिसका फ़ारसी, अंग्रेज़ी, हिंदी और कई अन्य प्रादेशिक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।

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