देश के हर कोने में हैं राम के निशान

आज पूरा देश विजयदशमी के रंग में रंगा हुआ है । ये त्यौहार विष्णु के सातवें अवतार राम की लंका नरेश रावण पर विजय के रुप में मनाया जाता है । चलिये देखते हैं कि कैसे राम की कहानी ने सम्पूर्ण भारत को एक धागे में पिरो रखा है।

राम के जीवन पर लिखी रामायण हिंदुओं का एक महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथ है । इसके अलावा रामायण की कथा में देश के बहुत से स्थान गुंथे दिखाई देते हैं । राम कथा हजा़रों साल पुरानी है लेकिन आज भी रामायण में वर्णित उन जगहों में राम कथा जीवित है जहां से राम अपनी सीता की खोज में गुज़रे थे ।

हम आपको देश की उन जगहों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनसे किसी न किसी तरह राम का नाम जुड़ा हुआ है ।

कान्हा नैशनल पार्क और श्रवण कुमार की कहानी

मध्य प्रदेश में स्थित कान्हा नैशनल पार्क मध्य भारत में बाघों के संरक्षण का सबसे बड़ा पार्क है । रुडयार्ड किप्लिंग की मशहूर किताब द् जंगल बुक में कान्हा के शाल वनों का बहुत सुंदर चित्रण है । लेकिन शायद आपको ये जानकर हैरानी होगी कि नैशनल पार्क का अयोध्या के राजा और राम के पिता दशरथ और श्रवण कुमार के साथ भी गहरा सबंध रहा है ।

रामायण के अनुसार श्रवण कुमार , अपने पिता शांतनु और माता की एकमात्र संतान थे । श्रवण के माता-पिता दृष्टिहीन थे । उनकी इच्छा तीर्थ यात्रा करने की थी और इस इच्छा को पूरा करने के लिए श्रवण उन्हें कांवड़ पर बैठाकर देश भर के तीर्थ स्थल घुमा रहे थे।

तीर्थ-यात्रा के दौरान एक दिन उन जंगलों से गुज़र रहे थे जिसे आज हम कान्हा के नाम से जानते हैं । उसी समय राजा दशरथ भी जंगल में शिकार कर रहे थे । श्रवण अपने माता-पिता के लिए पानी लेने पास के एक तालाब पर गए लेकिन अंधेरे की वजह से दशरथ ने उन्हें हिरण समझ लिया और तीर चला दिया । नतीजे में श्रवण की वहीं मृत्यु हो गई । दशरथ को जब अपनी ग़लती का एहसास हुआ तो उन्हें बहुत दुख हुआ । उन्होंने जब ये दुखद समाचार श्रवण के माता-पिता को सुनाया तो उन्होंने दशरथ को श्राप दिया कि जिस तरह से वे पुत्र के बिछड़ने का दुख झेल रहे हैं, वैसा ही दुख एक दिन दशरथ झेलना पड़ेगा।

कान्हा नैशनल पार्क में आज भी एक तालाब है जिसका नाम ‘श्रवण तालाब’ है। एक स्थान है जिसे ‘श्रवण चिता’ कहा जाता है । माना जाता है कि इसी जगह श्रवण का अंतिम संस्कार किया गया था । यहां एक और जगह है जिसे “दशरथ मचान” कहा जाता है । ऐसी मान्यता है कि राजा दशरथ ने यहीं से श्रवण पर तीर चलाया था ।

सीतामढ़ी: सीता का जन्म स्थान

बिहार के सीतामढ़ी ज़िले में सीतामढ़ी शहर राम की पत्नी सीता कधनुष ्म स्थान माना जाता है । किवदंतियों के अनुसार एक दिन मिथिला के राजा जनक, वर्षा के लिए इंद्र देवता से प्रार्थना कर रहे थे । वह इंद्रदेवता को प्रसन्न करने के लिए सीतामढ़ी के पास खेत जोत रहे थे तभी उनका हल किसी बर्तन से टकराया । जब उन्होंने बर्तन खोलकर देखा तो उसमें एक शिशु था । वह शिशु को उठाकर महल ले आए और उसका नाम सीता रखा । फिर उसे अपनी बेटी की तरह पाला । रामायण के अनुसार जब सीता (जानकी) १६ साल की हुईं तब राजा जनक ने घोषणा की कि वह अपनी बेटी का विवाह उस व्यक्ति से करेंगे जो शिव का धनुष तोड़ेगा । इस घोषणा के बाद कई राजसी घरानों के राजकुमारों ने धनुष तोड़ने की कोशिश की लेकिन सफलता मिली अयोध्या के राजकुमार राम को । इस तरह राम का विवाह सीता से हो गया ।

सीतामढ़ी में सीता-कुंड हिंदुओं का तीर्थ स्थल है । सीता-कुंड गोलाकार है और इसका व्यास 140 फुट है । श्रद्धालुओं का मानना है कि इसी कुंड में सीता स्नान करती थीं । सीतामढ़ी में ही सीता को समर्पित पुनौरा धाम मंदिर है जहां हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं ।

चित्रकूट

मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में चित्रकूट शहर मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमा पर स्थित है । इसका ज़िक्र वाल्मीकि रचित रामायण में मिलता है । रामायण के अनुसार राम, सीता और लक्ष्मण ने वनवास के ग्यारह वर्ष यहीं बिताए थे । चित्रकूट राम और सीता के जीवन की कई महत्वपूर्ण घटनाओं का गवाह रहा है । यहीं पर भरत मिलाप हुआ था जब राम के भाई भरत उन्हें वापस अयोध्या चलने का आग्रह करने आए थे । ऐसा माना जाता है कि राम ने यहां पिता की याद में शुद्धि अनुष्ठान किया था जिसमें सभी देवी देवताओं ने हिस्सा लिया था। आज भी यहां ऐसे कई स्थान हैं जिनका संबंध राम-कथा से है । यही वजह है कि देश भर से श्रद्धालु यहां राम-दर्शन के लिए आते हैं।

चित्रकूट में कई घाट हैं और उनमें एक रामघाट भी है । विश्वास किया जाता है कि वनवास के दौरान राम और सीता यहां पूजा और स्नान करने आते थे । 

पहाड़ी पर भगवान हनुमान को समर्पित एक मंदिर है जिसे हनुमान-घारा कहते हैं । यहां एक छोटा सा कमरा है जिसे सीता रसोई कहते हैं । माना जाता है कि सीता यहां भोजन बनाती थीं । इस जगह का इतना महत्व इसलिये माना जाता है क्योंकि ऐक मान्यता के अनुसार , 475 साल पहले यहां रामलीला भी हुई थी । 16वीं सदी में संत कवि तुलसीदास ने 80 साल की उम्र में अवधि भाषा में रामायण भी यहीं लिखी थी ।

पंचवटी

नासिक में भारत की दूसरी सबसे बड़ी नदी गोदावरी के तट पर स्थित पंचवटी पौराणिक कथाओं और इतिहास से भरा हुआ है । माना जाता है कि वनवास के दौरान राम, सीता और लक्ष्मण का यह शरण-स्थल था । राम ने यहां वनवास के कुछ साल बिताए थे । रामायण के अनुसार पंचवटी से ही सीता का हरण हुआ था । यहां बरगद ( वट) के पांच पेड़ हैं और इसीलिए इसे पंचवटी कहते हैं । पंचवटी प्रसिद्ध दंडकारण्य जंगल का हिस्सा है जिसका उल्लेख रामायण में मिलता है । रामायण में इसका इतना महत्व है कि लोग यहां

गोदावरी में, पवित्र होने के डुबकी लगाने आते हैं ।

नासिक शहर गोदावरी नदी के पश्चिम में है । कहा जाता है कि यहां राम के भाई लक्ष्मण ने रावण की बहन शूर्पणखा की नाक काटी थी । नासिक का मतलब नाक होता है और इसीलिए इसका नाम नासिक पड़ा ।

पंचवटी में सीता गुफा पांच वट वृक्षों के पास है । गुफा के अंदर जाने के लिए एक बहुत संकरी सीढ़ी है । गुफा में राम, सीता और लक्ष्मण की मूर्तियां हैं । बाईं तरफ़ एक गुफा है जिसमें एक शिवलिंग है । माना जाता है कि यहीं से रावण ने सीता का हरण किया था ।

पंचवटी में श्रद्धालुओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण स्थल है रामकुंड । विश्वास किया जाता है कि राम ने यहां स्नान किया था, इसिलिये इसे राम कुंड कहा जाता है । इस कुंड में अस्थियां भी विसर्जित की जाती हैं और कहा जाता है कि अस्थियां विसर्जित करते ही पानी में डूब जाती हैं । कुंड में स्नान करना बहुत पवित्र माना जाता है । महात्मा गांधी की अस्थियां भी यहां विसर्जित की गईं थीं ।

पंचवटी में एक अन्य महत्वपूर्ण स्थल है काला राम मंदिर । ये मंदिर १८वीं शताब्दी में पुणे के पेशवा ने बनवाया था । रामनवमी, दशहरा और चैत्र पड़वा पर यहां आज भी हर साल बड़े-बड़े जुलूस निकाले जाते हैं । इस मंदिर की विशेषता ये है कि इसे काले पत्थर से बनाया गया है । सन १९३० में डॉ. अंबेडकर ने यहां सत्याग्रह कर मंदिर में दलितों का प्रवेश करवाया था ।

बाणगंगा

मुंबई के मालाबार हिल्स पर वाल्केश्वर मंदिर परिसर का हिस्सा है बाणगंगा जो मध्यकालीन समय का एक सरोवर है । रामायण के अनुसार राम, सीता के हरण के बाद, रावण की तलाश में अयोध्या से लंका जाते समय यहां रुके थे । थकान और प्यास से परेशान राम ने भाई लक्ष्मण को पानी लाने के लिए कहा । लक्ष्मण ने फ़ौरन घनुष पर बाण चढ़ाया और ज़मीन पर चला दिया जहां से पानी का फ़व्वारा निकल पड़ा ।

कहा जाता है कि ये गंगा नदी की उपनदी थी । इस नदी का जन्म बाण से हुआ था इसलिए इसका नाम बाणगंगा पड़ गया । एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार परशुराम ने बाण चलाकर पाताल से गंगा को निकाला था इसलिए बाणगंगा को पातालगंगा भी कहते हैं।

पौराणिक कथाओं में राम और लक्ष्मण का संबंध वाल्केश्वर मंदर की स्थापना से भी बताया गया है । कहा जाता है कि राम ने ख़ुद यहां शिवलिंग की स्थापना की थी । माना जाता है कि मूल शिवलिंग बालू (संस्कृत में वालुका) से बनाया गया था और तभी वाल्केश्वर नाम वालुका ईश्वर (बालु की मूर्ति) से मेल खाता है।

बाणगंगा में सरोवर सन 1127 में ठाणे के सिलहारा राजवंश के राजाओं के दरबार में मंत्री रहे लक्ष्मण प्रभु ने बनवाया था । बाणगंगा सरोवर आयताकार है जिसके चारों तरफ़ सीढ़ियां हैं । उपलब्ध रिकॉर्ड्स के अनुसार ये सरोवर के लिए सन 1715 में राम कामथ ने दान किया था । उसके बाद से मुख्य मंदिर को दोबारा बनवाया गया है । सरोवर के प्रवेश द्वार पर दो खंबे हैं जिन पर तेल की क़ंदीलें हैं । ये खंबे संभवत: तीन सौ साल पुराने हैं । सबसे आश्चर्य की बात ये है कि पास में समुद्र होने के बावजूद सरोवर का पानी आज भी मीठा है ।

किष्किंधा साम्राज

कर्नाटक के कोप्पल ज़िले में हम्पी के पास है किष्किंधा जो दंडक जंगल का हिस्सा है। दंडक जंगल विंध्या पर्वत श्रंखला से लेकर दक्षिण भारत तक फैला हुआ है । किष्किंधा पर वानर राजा बाली और उनके भाई सुग्रीव का साम्राज हुआ करता था। रामायण के अनुसार रावण द्वारा सीता के हरण के बाद राम और लक्ष्मण सीता की तलाश करते करते किष्किंधा की तरफ़ निकल आए थे । यहीं उनकी मुलाक़ात वानर भगवान हनुमान से हुई जो राम के बड़े भक्त थे ।

ये वो समय था जब बाली और सुग्रीव में ज़बरदस्त संघर्ष चल रहा था और सुग्रीव, बाली का वध करना चाहता था । सुग्रीव ने बाली से बचने के लिए मतंग पर्वत पर ऋषि मतंगा के पास शरण ले ली । मतंग पर्वत पर चढ़कर लोग आज भी वहां से हंपी के बेहद मनेरम दृश्य का आनंद लेते हैं ।

हंपी में कोडनड्रमा मंदिर के पास सुग्रीव गुफा है जो आज एक लोकप्रिय पर्यटक स्थल है । माना जाता है कि जब सीता को हरण करके ले जाया जा रहा था तब वह रास्ते भर अपने गहने गिराती गईं थीं ताकि राम उन गहनों के सहारे उन तक पहुंच सकें । लेकिन सुग्रीव ने ये गहने जमा कर के इसी गुफ़ा में छुपाए थे । आप काल्पनिक कथाओं, इतिहास, किवदंतियों और सच्चाई में भेद को लेकर बहस कर सकते हैं लेकिन इस बात को झुठलाया नहीं जा सकता कि आज भी भारत के दो महान ग्रंथों रामायण और महाभारत ने देश के एक कोने को दूसरे कोने से कैसे जोड़ रखा है।

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