वाचिक परंपरा में भारत पर सिकंदर के हमले को लेकर एक दिलचस्प कहानी है। सिकंदर ने क़रीब 2350 साल पहले भारतीय उप-महाद्वीप पर हमला किया था। सिकंदर भारत में बहुत भीतर तक नहीं घुस सका और बाहर से ही वापस लौट गया। वह और उसके सैनिक अपने साथ भारत से कथाएं, परंपराएं और यहां तक कि केले भी ले गए।
जी हां, केले। एक वाचिक परंपरा के अनुसार सिकंदर को भारतीय केला इतना पसंद आया था कि वह अपने साथ इसे ले गया और इस तरह से भारतीय केला यूरोप पहुंच गया। सिकंदर के सैनिक भारतीय केला अरब भी ले गए जिसे अब वहां “बानन” कहते हैं जो अरबी का शब्द है। अरबी में बानन यानी उंगली।
भारत उन देशों में से हैं जहां सबसे पहले जंगली केले के पेड़ हुए थे। भारत के लोग प्रारंभिक हड़प्पा के समय से (क़रीब पांच हज़ार साल पहले) केले की खेती करते आए हैं। राजस्थान के कालीबंगा में प्रारंभिक हड़प्पा के समय का बर्तन का एक टुकड़ा मिला है जिस पर चित्रकारी है। इस चित्र में एक मुर्ग़ी केले के एक पेड़ के नीचे खड़ी है। कहा जाता है कि जंगली केले की खेती सबसे पहले नवपाषाण काल में नया गिनी द्वीप में हुई थी। ज़्यादातर जंगली केलों में बीज होते हैं लेकिन जो केलों हम देखते और खाते हैं उनमें बीज नहीं होते।
कांस्य युग की चित्रकारी के अलावा भारतवासियों के लिये केला भी बहुत महत्वपूर्ण तथा पवित्र माना जाता है। जैविक दृष्टि से देखें तो केला कोई पेड़ नहीं है लेकिन प्राचीन हिंदू ग्रंथों में इसे पेड़ माना गया है। केले का पेड़, उसका तना, उसकी पत्तियां और उसका फल पवित्र माना जाता है। मंदिरों में केले के पत्तों में प्रसाद दिया जाता है और तीज-त्यौहार के मौक़ों पर मंदिर तथा शादियों में इसमें भोजन परोसा जाता है। केले के दो पेड़ शादी-ब्याह अथवा किसी अन्य अवसरों पर सजावट के रुप में प्रवेश द्वार पर लगाए जाते हैं। विवाह में इन्हें हमेशा देखा जा सकता है क्योंकि ये उर्वरता के प्रतीक माने जाते हैं। ये समृद्धि और अच्छे भाग्य का भी प्रतीक माने जाते हैं।
भगवान गणेश का संबंध भी केले के पेड़ से है। भगवान गणेश को केले बहुत पसंद हैं और उन्हें केले का भोग लगाकर प्रसन्न किया जाता है। पूर्वी भारत में दुर्गा पूजा के सातवे दिन गणेश का विवाह केले के पेड़ से करवाया जाता है। पहले पेड़ को नहलाया जाता है और फिर लाल बॉर्डर वाली सफ़ेद साड़ी में उसे लपेटा जाता है। इसके बाद उसे चूड़ियां पहनाईं जाती हैं और सिंदूर लगाया जाता है। ये सभी एक विवाहित महिला के प्रतीक हैं। पेड़ को कोला बोऊ अथवा केला दुल्हन कहा जाता है जो पूजा के बाक़ी दिन भगवान गणेश के साथ गुज़ारती है। पुजारी पवित्र नौ-पत्रिका ( औषधि वाली 9 पत्तियां) बनाने के लिये कोला बोऊ पर पेड़ की पत्तियों की आठ अलग अलग तरह की गठानें बांधता है।धार्मिक विद्वान और “ए ट्रीटिस ऑन गणेश” के लेखक पॉल मार्टिन डूबोस्ट इसे पेड़ के रुप में दुर्गा की अभिव्यंजना मानते हैं। उनका कहना है कि गणेश के कई नामों में से एक नाम है अष्टदशा औषधि सृष्टि (औषधि के 10 पेड़ों का सजन करने वाले)।
दिलचस्प बात ये है कि विष्णु और उनकी पत्नी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिये केले का भोग लगाया जाता है। मंदिरों और धार्मिक अनुष्ठानों के मौक़े पर प्रसाद के रुप में केला भी दिया जाता है। तमाम वेदिक अनुष्ठानों में केला प्रसाद के रुप में दिया जाता है और केले के पत्ते सबस पवित्र पत्ते माने जाते हैं। केले के फल को सबसे ज़्यादा उर्जा देने वाला फल कहा जाता है और हिंदू हर गुरुवार केले के पेड़ की पूजा करते हैं जिसे विष्णु का रुप ब्रह्स्पति माना जाता है।
केला दुनिया के सबसे पौष्टिक भोजनों में से एक है जो सेहत के लिहाज़ से बहुत ही अच्छा भोजन है। इसमें उर्जा के लिये न सिर्फ़ शक्कर होती है बल्कि इसमें विटामिन बी1,बी2,बी3,बी5,बी6 और सी भी होता है। इसमें पोटेशियम, फॉस्फ़ोरस, ज़िंक और मैग्नेशियम की भी अच्छी ख़ासी मात्रा होती है।
केले की मूलत: दो तरह की खेती होती है और दोनों तरह के केले अमूमन बिना बीज के, अलैंगिक होते हैं जो जड़ से उगते हैं। केले का पेड़ नहीं होता, यह एक झाड़ी होती है इसका फल बेरी होता है। ज़्यादातर आधुनिक कृषि जातियां मूसा एक्यूमिनेट या मूसा बलबिसियाना नस्ल की होती हैं।
केले दो प्रकार होते है- पहला डेज़र्ट केला जिसे मीठे फल की तरह खाया जाता है और जबकि दूसरे प्रकार के केले को अनाज की तरह पकाकर खाया जाता है। इसे कुकिंग बनाना भी कहते हैं। यो दोनों मूसा जाति के होते हैं। वेस्ट इंडीज़ और अफ़्रीका में दूसरे प्रकार के केले को गेंहूं या चावल की जगह भोजन के रुप में खाया जाता है। केले को सिर्फ़ फल के रुप में ही नहीं खाया जाता।
दुनिया में केले की जितनी पैदावार होती है उससे कहीं ज़्यादा खेती भारत में होती है और यहां के केलों की कई क़िस्में हैं जो विश्व में और कहीं नहीं मिलतीं। यहां केलों की खेती निर्यात के लिये बल्कि ख़ुद के खाने के लिये की जाती हैं। दुर्भाग्य से ज़्यादातर भारतीय केले की कैवेंडिश क़िस्म खाते हैं जो मूलत: दक्षिण अमेरिका का है। केले की स्थानीय क़िस्में तेज़ी से ख़त्म होती जा रही हैं। दक्षिण भारत में केले के चटपटे चिप्स और पापड़ बनाए जाते हैं।
भारत एकमात्र देश है जहां न सिर्फ़ केला खाया जाता है बल्कि केले के फूल और तने के अंदर के हिस्से को भी खाया जाता है। केले के फूलों को बहुत स्वादिष्ट माना जाता है और पूरे भारतीय उप-महाद्वीप में इसे खाया जाता है। केले के पेड़ के तने का भीतरी हिस्सा अधिकतर पूर्वी भारत, तमिलनाडु, केरल और अन्य स्थानों में खाया जाता है।
भारत में केले की कई क़िस्में हैं जो पूरे देश में, ख़ासकर कम शहरी वाले इलाक़ों में खाईं जाती हैं। दक्षिण भारतीय राज्यों में यल्लांकन्नी अथवा छोटा पीला इलायची केला ख़ूब खाया जाता है। इन राज्यों में रेड बनाना जिसे संस्कृत में रक्तकदली कहते हैं, भी लोग बहुत पसंद करते हैं। भारत के हर राज्य में एक नये क़िस्म का केला उगाया जाता है। छोटे शहरों से लेकर गांव के घरों के पीछे वाले आंगन में केले के पेड़ देखे जा सकते हैं। केले की एक बेहद दिलचस्प क़िस्म असम में होती है जिसे भीम कोला कहते हैं। ये पांडव पुत्रों वाले ही भीम हैं। ये केला बड़ा और मोटा होता है तथा इसका छिलके का रंग पीला भूरा होता है। इसका गूदा सीताफल की तरह होता है जिसमें बीज भी होते हैं। ब्रह्मपुत्र घाटी में ये बहुत लोकप्रिय है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर केले को लोकप्रिय बनाने का श्रेय अमेरिकी कंपनी युनाईटेड फ़्रूट को जाता है जिसने इसे एक सस्ते भोजन के रुप में नॉर्थ अमेरिका के लोगों के सामने पेश किया था। ये लोगों को इतना पसंद आया कि उन्होंने उत्तरी अमेरिकी सरकारों पर उन्हें रेतीले मैदानों वाली ज़मीन के बदले, वहां रेल की पटरियां बिछाने और वहां केले उगाने की इजाज़त देने पर ज़ोर डाला। वहां रेल पटरियां बिछाने से उनके लिये रेल के ज़रिये केले दूसरे स्थानों पर भेजने में आसानी होने लगी थी। इस तरह से सरकारें उनकी बात मान गईं औऱ उनकी एहसानमंद भी हो गईं। इस तरह से बनाना रिब्लिक मुहावरे भी बना।
केला आज लोगों के भोजन का हिस्सा बन चुका है और इससे पेय पदार्थ भी बनाये जाते हैं। सारी दुनिया में आज केले की ब्रेड, केले की क्रीम पाई, केले का मिल्कशेक और केले का हलवा (पुडिंग) खाया जाता है। विश्व के हर हिस्से में लोग केले का तरह तरह से इस्तेमाल करते हैं। वेस्ट इंडीज़ में केले की ख़ुशबू वाला पेय पदार्थ “बनाना सोलो” बनाया जाता है। केले से जेम और कचूमर बनाया जाता है जो बहुत पौष्टिक नाश्ता माना जाता है। केला भोजन के बाद मीठे के रुप में खाया जाता है और इससे बच्चों के खाने की कई चीज़ें बनाई जा रही हैं। इसकी आइसक्रीम भी बहुत पसंद की जाती है। बनाना स्प्लिट आइसक्रीम तो विश्व में बहुत ही प्रसिद्ध है। ज़्यादातर लोग केला आसानी से हज़म कर लेते हैं और इसे हर उम्र के लोग चाव से खाते हैं।
आज भारत और चीन में केले का सबसे ज़्यादा उत्पादन होता है और दोनों देशों में इसका विश्व का 40 प्रतिशत उत्पादन होता है। केला एक काफी ख़ास पौधा है। इसका अपना पैकेजिंग होता है। इसे कच्चा भी तोड़ लें तो ये स्टोर करने पर पाक जाता है। कच्चे केले को बाद में इस्तेमाल के लिये कोल्ड स्टोरेज में रखा जा सकता है। अगर इसे खाया नहीं जाता है तो यह सड़ जाता है और इस तरह घर के अन्य पेड़-पौधों के लिये ये खाद का काम करने लगता है।
केले के तने के गूदे से काग़ज़ भी बनाया जा सकता है और इसकी पत्तियों का उपयोग पैकेजिंग में किया जा सकता है। पत्तों पर भोजन भी परोसा जा सकता है। कई लोग केले के पत्ते का प्रयोग भाप से खाना बनाने के लिये भी करते हैं। फल आदि का ज्ञान रखने वाले इतिहासकार डैन कोएप्पल ने क्या ख़ूब कहा है- अगर फल पॉप सिंगर होते तो केला यक़ीनन बियोंसे होता।
मुख्य चित्र: मदरास (चेन्नई) में केले का बागान, ब्रिटिश लाइब्रेरी
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