मुंबई के कंक्रीट जंगल के बीच एक हराभरा इलाक़ा है और इसी इलाक़े में है आरे मिल्क कॉलोनी जो इन दिनों विवादों की वजह से सुर्ख़ियों में है । यहां एक मेट्रो कार शेड बनना है और इसके लिए पेड़ काटे जा रहे थे जिसका जमकर विरोध हो हुआ और इसीलिए ये चर्चा में है वर्ना इसके पहले मुंबईकर के अलावा इस कॉलोनी के बारे में बहुत कम लोग जानते थे । चलिये हम पता करते हैं क्या है आरे का इतिहास और शहर के विकास में क्या है इसका योगदान ।
माना जाता है कि आरे का इतिहास आज़ादी के बाद शुरू हुआ जब 1949 में गोरेगांव में आरे मिल्क कॉलोनी बनाई गई थी।1951 में यहां डेयरी उत्पादन यूनिट की स्थापना की गई जिसका उद्घाटन तब के प्रधानमंत्री जवाहरलाला नेहरु ने किया था । कॉलोनी बनाने के लिए ज़मीन सर बेरामजी जीजीबॉय से ली गई थी ।
आरे कॉलोनी और डेयरी उत्पादन यूनिट आज़ाद भारत की योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था का एक शानदार उदाहरण थी । लेकिन शायद हमें ये नहीं मालूम कि कॉलोनी और आरे नाम के पीछे काफ़ी इतिहास छुपा पड़ा है । आरे का सबसे पहले संदर्भ हमें महाकावतिची बखर में मिलता है । महाकावतिची बखर उन पुराने दस्तावोज़ों में से है जिसमें मुंबई क्षेत्र का उल्लेख मिलता है । बखर मराठी में लिखा गया एक प्रकार का ऐतिहासिक आख्यान है, जिसका अक्सर उपयोग महाराष्ट्र के स्थानीय इतिहास के पुनर्निर्माण के लिए किया जाता है।
महाकावतिची बखर (माहिम का वृत्तांत) 16 वीं शताब्दी का एक ग्रन्थ है जिसमें 11 वीं से 16 वीं शताब्दी में माहिम और उसके आसपास के क्षेत्रों के इतिहास का ज़िक्र है । माहिम द्वीप राजा माही बिंब की राजधानी हुआ करती थी । माहिम पर राजा बिंब का 12वीं ई.पू. शताब्दी में शासन था और माहिम का नाम बिंब के नाम पर ही रखा गया है ।
महाकावतिची बखर उन लोगों के लिए दिलचस्प ग्रंथ है जो मुंबई से परिचित हैं । दरअसल, पुर्तगालियों के आने के पहले मुंबई बहुत अलग था । पुर्तगालियों ने 1534 में मुंबई द्वीप गुजरात सल्तनत से लिया था जिनका 14वीं शताब्दी के मध्य और बाद में मुंबई पर शासन था । पुर्तगालियों ने मुंबई पर क़रीब सौ साल से ज़्यादा शासन किया और बाद में 1662 में कैथरीन ब्रेगेंज़ा और इंग्लैंड के राजा चार्ल्स द्वितीय की शादी में उन्होंने ये द्वीप तोहफ़े के रुप में अंग्रेज़ों को दे दिया । इसके बाद ही मुंबई शहर की शक्ल बदलने लगी ।
महाकावतिची बखर के अनुसार राजा बिंब के समय जुहु, चेंबूर, भंडूप, खार, मुलुंड और आरे जैसे कुछ गांव थे जोकी आज भी मौजूद है । इनके नाम आज भी ज्यों के त्यों हैं ।
आरे गांव में लगातार व्यवसाय होता रहा । मध्यकालीन समय की शुरुआत में यहां खेतीबाड़ी ख़ूब होती थी और उस समय के कई अवशेष भी यहां मिले हैं । इनमें शिला-लेख और मंदिरों के अवशेष शामिल हैं जिनसे पता चलता है कि उस समय आरे एक अर्ध-शहरी क्षेत्र था ।
मुंबई यूनिर्सिटी के सेंटर फ़ॉर एक्स्ट्रा म्यूरल स्टडीज़ की एक टीम ने सन 2016-17 में इस क्षेत्र की गहन पड़ताल की थी । इस दौरान एक खीचक बांस मिला जो एक मध्यकालीन मंदिर का एक हिस्सा था । ये मंदिर शिलाहारा यादव के शासनकाल का था ।
मध्यकालीन समय में आरे शास्ती (सालसेती) के मध्य वन का हिस्सा हुआ करता था और वहां वारली करकारी आदिवासी रहते थे । ये आदिवासी वन में ही रहा करते थे और इधर-उधर नहीं भटकते थे । ये आदिवासी कोंकण और गुजरात में दूसरे आदिवासी समुदायों के संपर्क में रहते थे । 1 ई.पू. में आरे कन्हेरी गुफा (मौजूदा समय में बोरीवली) और महाकाली गुफा (मौजूदा समय मे अंधेरी) के बीच हुआ करता था । ऐसा समझा जाता है कि आरे उस समय इन दोनों के बीच का कॉरिडोर रहा होगा यानी यह कन्हेरी गुफा और महाकाली गुफा को जोड़ता होगा ।
पुर्तगालियों के समय आरे से लगा विहार एक महत्वपूर्ण गांव हुआ करता था । लेकिन दुर्भाग्य से आज ये विहार की झील में डूब चुका है । पुर्तगाली और और अंग्रेज़ हुकूमत के शासनकाल के दौरान आरे के बारे में कोई ख़ास जानकारी नहीं मिलती है। 20वीं सदी और आज़ादी के बाद ये ज़मीन सरकार की थी और आरे को संरक्षित वन घोषित नहीं किया गया था । महाराष्ट्र एग्रो एंड फ़ूड प्रोसेसिंग कॉर्पोरेशन ने आरे डेयरी अत्पादन यूनिट बनाई और सूकर (सूअर) पालन भी शुरु किया।
शहर की लगातार बढ़ती दूध की मांग को पूरी करने के लिए सन 1949 में आरे मिल्क कॉलोनी की स्थापना की गई थी ।
आरे की परिकल्पना अमूल के संस्थापक और श्वेत क्रांति के पिता वर्गीज़ कूरियन के सहयोगी दारा एन. खुरोडी ने की थी ।
खुरोडी को 1963 में, कूरियन के साथ, संयुक्त रुप से मेगसेसे पुरस्कार मिला था । कॉलोनी की स्थापना डेयरी विकास विभाग द्वारा दी गई ज़मीन पर की गी थी ।
कॉलोनी बनाने के तीन कारण थे- शहर के लोगों को बेहतर दूध मुहैया करना, मवेशियों को शहर के बाहर रखना और उनकी आधुनिक तरीक़े से देखभाल करना ।
डेयरी की स्थापना के लिए न्यूज़ीलैंड ने भारत सरकार की बड़ी मदद की थी । हॉस्टल के निर्माण के लिए न्यूज़ीलैंड सरकार ने एक लाख सत्तर हज़ार न्यूज़ीलैंड डॉलर की मदद की थी । ये हॉस्टल आज भी मौजूद है और इसे न्यूज़ीलैंड हॉस्टल कहा जाता है ।
स्थापना के समय जो आरे था वो आज बहुत बदल चुका है । 1977 में आरे की लगभग 300 एकड़ ज़मीन पर फ़िल्म सिटी बना दी गई । आज मेट्रों कार शेड के लिए इससे 30 एकड़ ज़मीन ली जा रही है । सबसे बड़ी बात ये है कि आरे में आज भी कुछ आदिवासी समुदाय रहते हैं ।
बहरहाल, पिछले कुछ बरसों में शहर बोरीवली और पुवई के बीच इस हरियाली को निगल चुका है।
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