आकर्षण का केंद्र नग्गर कैसल 

मशहूर पर्यटक स्थल मनाली के पास एक गांव है जो शहर की गहमागहमी और शोरशराबे से एकदम दूर खामोश में डूबा हुआ है। घनी और हरी भरी वादियों से घिरे इस गांव का नाम है नग्गर। समुद्र से 5600 फुट ऊंचाई पर स्थित ये गांव देव तिब्बा और चंद्रघनी पर्वतों की चोटियों को निहारता सा लगता है ।

गॉंव में दाख़िल होते ही आपका स्वागत करते हैं, मध्यकालीन महल और प्राचीन मंदिर। नग्गर, कुल्लु रियासत की राजधानी हुआ करता था । सन १६६० में राजधानी यहां से उठकर सुल्तानपुर चली गई जो नग्गर से बीस कि.मी. दूर थी। गर्मी के मौसम में राजा नग्गर आकर यहीं रहा करते थे।

बताया जाता है कि नग्गर महल कुल्लु साम्राज का गढ़ हुआ करता था जिसे राज सिद्ध सिंह ने सन १४६० में बनवाया था। ये ब्यास नदी के बाएं ओर एक टेकरी पर स्थित है। महल से ज़मीन एकदम नीचे की तरफ़ जाती है। ये दृश्य अपने आप में बहुत ख़ूबसूरत लगता है।

स्थानीय लोक कथाओं के अनुसार महल के लिए पत्थर ब्यास नदी की दूसरी तरफ़ बारागढ़ क़िले से लाए गए थे। पत्थरों को ऊपर चढ़ाने के लिए मज़दूरों की नीचे से लेकर ऊपर तक क़तार बनाई जाती थी और इस तरह पत्थर एक हाथ से दूसरे हाथ होते हुए ऊपर पहुंचाए जाते थे ।

यहां का महल हिमालयी लकड़ी और पत्थर की वास्तुकला का सटीक उदाहरण हैं। इस वास्तुकला को काठ कुनी कहते हैं। इस तरह की वास्तुकला में दीवार बनाने के लिए लकड़ी और पत्थरों का इस्तेमाल किया जाता है। इस क्षेत्र में देवधर के पेड़ बहुत होते हैं और महल बनाने में इनका ही इस्तेमाल किया जाता है।

दूर से महल भव्य और ऊंचा नज़र आता है लेकिन पास आने पर पता चलता है कि ये ज़मीन से बस कुछ ही ऊपर है। इसकी छतें ढ़लानदार और बरामदे हवादार हैं जिन पर लकड़ी की सुंदर नक़्क़ाशी है। अंदर का माहौल आरामदेह है और कमरों को गर्म रखने के लिए आतिशदान बने हुए हैं। ऊपर की तरफ़ जाने के लिए सीढ़ियां हैं जो लकड़ी की हैं। इसके अलावा अंदर आपको स्थानीय कला के ख़ूबसूरत नमूने भी मिलेंगे।

नग्गर महल किसी जादुई जगह की तरह है जो दिखने में नाज़ुक लगता है लेकिन इसकी ४२ इंच चौड़ी दीवारों की वजह से ये पांच सौ साल से भी ज़्यादा समय से यहां मजबूती से खड़ा है । ये महल कितना मज़बूत है इसका अंदज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि १९०५ में यहां ज़बरदस्त भूकंप आया था और आसपास के गांव नष्ट हो गए थे लेकिन महल खड़ा रहा।

महल के कमरे और बैठने की जगह दो अहातों के इर्दगिर्द है। १९वीं शताब्दी तक महल दो भागों में बंटा रहता था। एक भाग में राजाओं के लिए रहने का इंतज़ाम था और दूसरे भाग में बाक़ी लोगों के लिए भवन बने थे। इनमें रसाईघर, दफ़्तर वग़ैरह होते थे तथा इनका प्रवेश द्वार अलग होता था। इस बात का उल्लेख कर्नल एएफ़पी हैरकोर्ट ने किया है जो सन १८७० के दशक में कुल्लु के ब्रितानी सहायक आयुक्त थे । उन्होंने यहां के गांवों और घरों का विस्तार से वर्णन किया है। हैरकोर्ट ने यहां की वास्तुकला की तुलना स्विटज़रलैंड से की थी। हैरकोर्ट पेंटर थे और उन्होंने वॉटर कलर से सन १८६९ में नग्गर महल की सुंदर तस्वीर बनाई थी।

प्रथम एंग्लो-सिख युद्ध (दिसंबर १८४५-मार्च १८४६) के बाद सिखों ने नग्गर सहित कई गांव अंग्रेज़ों को दे दिये । नग्गर महल मेजर हैय ने ख़रीदा जो कुल्लु के पहले अंग्रेज़ असिस्टेंट कमिश्नर थे। उन्होंने महल को अपना मुख्यालय बनाया और भीतरी हिस्सों को काफ़ी हद तक यूरोपीय शैली में ढ़ाल दिया। यहां एक मशहूर कहानी है कि मेजर हैय ने राजा ग्यान सिंह से ये महल एक बंदूक़ के बदले में ले लिया था।

नग्गर महल के एक अहाते में जगतिपत्त मंदिर है जो स्थानीय लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। स्थानीय लोक-कथा के मुताबिक नग्गर को स्वर्ग की तरह बनाने के लिए मधुमक्खियां पर्वत से पत्थर की सिल्ली लाई थीं जो ढ़ाई मीटर लम्बी, दो मीटर चौड़ी और डेढ़ मीटर मोटी थीं ।

महल के बाहर आज भी पत्थर की सिल्लियां देखी जा सकती हैं। इन सिल्लियों को हैरकोर्ट ने समाधि के पत्थर बताया है । उनके अनुसार तब १४० से ज़्यादा सिल्लियां हुआ करती थीं लेकिन आज बस कुछ ही बची हैं। इनके बारे में कोई ख़ास जानकारी नहीं है लेकिन ज़्यादातर विवेचनाओं के अनुसार सिल्लियों पर बनी छवियों को देखकर लगता है कि ये कुल्लु के राजाओं की स्मृति शिलाएं रही होंगी।

१९७८ में महल हिमाचल प्रदेश पर्यटन निगम को सौंप दिया गया जिसने इसे होटल में तब्दील कर दिया। निगम ने तल घर में एक छोटा सा म्यूज़ियम बनाया है जिसमें स्थानीय कला कृतियां, स्थानीय संगीत के वाद्य यंत्र, लोक नृत्य की पोशाकें और चाय तथा मक्खन बनाने की सामग्री रखी हुई है।

नग्गर में महल न सिर्फ महत्वपूर्ण है बल्कि यहां रुसी कलाकार निकोलस रोरिख ने अपने परिवार के साथ, अपने जीवन के अंतिम दो दशक बिताए थे। उनकी बहू हिंदी सिनेमा की एक बड़ी अदाकारा देविका रानी थीं। निकोलस रोरिख और उनका परिवार जहां रहता था उस जगह और नग्गर में उनके द्वारा स्थापित उरुस्वति-हिमालयन रिसर्च इंस्टीट्यूट को आज भी देखा जा सकता है

नग्गर के गांव में मोहित करने वाली कई चीज़े छुपी हुई हैं। भीड़भाड़ से दूर निकलकर अगर आप इन्हें खोजना चाहते हैं तो यक़ीन मानिये आप हैरत में पड़ जाएंगे।

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