भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं का बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा है | आंदोलन हो या जेल, भूख हड़ताल हो या क्रन्तिकारी युद्ध, भारत की महिलाओं ने देश की आज़ादी के लिए पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाया | यह है ऐसी ही कुछ वीर नायिकाओं की गाथाएँ।
कैप्टेन लक्ष्मी सहगल
लक्ष्मी सहगल, जिन्हे कैप्टेन लक्ष्मी के नाम से भी जाना जाता है, नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिन्द फ़ौज की एक महत्वपूर्ण अधिकारी थी |
सन १९४२ में, दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापानी फ़ौज ने सिंगापुर और बर्मा पर विजय पायी| तब भारत को स्वतंत्रता दिलाने के लिए, नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने आज़ाद हिन्द फ़ौज का निर्माण किया| दक्षिण पूर्वी एशिया में रहने वाले भारतीयों ने, इस फ़ौज में बड़ी तादाद में सदस्यता ली | उनमें से एक थी लक्ष्मी सहगल|
लक्ष्मी सहगल का जन्म १९१४ में एक पारंपरिक तमिल परिवार में हुआ| मद्रास मेडिकल कॉलेज में मेडिकल की पढ़ाई खत्म करके वह सिंगापुर चली गयी| दूसरे विश्व युद्ध के दौरान वह घायलों की सेवा में जुटी रही|
२ जुलाई, १९४३ को नेताजी सुभाष चंद्र बोस सिंगापुर आए| तब उन्होने आज़ाद हिन्द फ़ौज में ‘रानी ऑफ़ झाँसी रेजिमेंट’ के नाम से महिलाओ का एक रेजिमेंट बनाया, जिसकी कमांडर कॅप्टन लक्ष्मी सहगल को बनाया गया| इसके साथ लक्ष्मी सहगल आज़ाद हिंद सरकार की कैबिनेट में पहली महिला सदस्य भी बनीं|
आज़ाद हिंद फ़ौज की हार के बाद अंग्रेज़ो ने स्वतंत्रता सैनिकों की धरपकड़ की और 4 मार्च, 1946 को वे पकड़ी गईं| कुछ समय बाद उन्हें रिहा कर दिया गया| भारत के स्वतंत्र होने के बाद वह कानपुर शहर में बस गयी जहाँ पर २०१२ में उनका निधन हुआ |
2. कनकलता बरुआ
हाथ में तिरंगा लिए, जब असम की कनकलता बरुआ अंग्रेज़ो के गोलियों से शहीद हुई, तब वह सिर्फ १७ वर्ष की थी| आज भी उसे असम में ‘वीरबाला’ के ख़िताब से जाना जाता हैं|
कनकलता बरुआ का जन्म २२ दिसंबर, १९२४ को असम के एक छोटे से गाँव बोरंगबारी में हुआ| उम्र के १३वे साल में ही उनके माता-पिता चल बसे| अनाथ कनकलता ने पढ़ाई छोड़ दीं औऱ अपने छोटे भाइयों और बहनों की देखभाल में लग गयी| देश में चल रहे स्वतंत्रता संग्राम से प्रभावित होकर, कनकलता ‘मृत्युबाहिनी’ नामक संस्था की सदस्य बनी| इस संगठन के सदस्य वह असमी युवक थे जो देश की आज़ादी के लिए जान कुर्बान करने के लिए तैयार थे |
२० सितम्बर, १९४२ को बाहिनी के सदस्यों ने अपने नज़दीकी पुलिस थाने पर तिरंगा फहराने का निर्णय लिया| ५०० गांववासियों की भीड़ पुलिस थाने की तरफ बढ़ी| बंदूकधारी पुलिसवालों ने भीड़ को चेतावनी दी| कनलकता ने पुलिसवालो को यह समझाने की कोशिश की, कि वह सब अहिंसावादी है और कोई हिंसा नहीं चाहते| पर जैसे ही भीड़ आगे बढ़ी, पुलिस ने गोलियां चलाई| कनकलता को सीने पर एक गोली लगी और वह शहीद हो गई|
२०११ में उनके स्मृति में असम के गौरीपुर में उनके पुतले का अनावरण हुआ |
3. प्रीतिलता वादेदार
प्रीतिलता वादेदार (१९११-१९३२), भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की महान क्रान्तिकारिणी थीं| उनका जन्म ५ मई, १९११ को बंगाल प्रांत के चटगाँव (आज बांग्लादेश में ) के एक गरीब परिवार में हुआ | १९२९ में ढाका के इडेन कॉलेज में इंटरमीडिएट परीक्षा की पढ़ाई की और फिर कोलकाता के बेथुन कॉलेज में दर्शनशास्त्र पढ़ने के लिए एडमिशन ली |
अपने गांव चटगाँव में प्रीतिलता की भेंट प्रसिद्ध क्रांतिकारी सूर्य सेन से हुई और वह उनके क्रन्तिकारी दल की सक्रिय सदस्य बनी| सूर्य सेन ने अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर पहरताली के यूरोपीय क्लब पर हमला करने की योजना बनाई| इस हमले के लिए २४ सितम्बर, १९३२ की रात का समय निश्चित किया गया| प्लान के अनुसार प्रीतिलता अन्य क्रांतिकारियों के साथ क्लब पहुंची और उन्होने एक बम डाला| पुलिस ने गोलीबारी शुरू की और प्रीतिलता को एक गोली लगी| घायल अवस्था में वह भागी, और पुलिस की गिरफ़्त से बचने के लिए, उन्होंने पोटेशियम सायनाइड खा लिया और आत्महत्या कर ली| उस समय उनकी उम्र सिर्फ २१ साल थी|