जब वे कहते हैं कि “ महाराजाओं की तरह ज़िंदगी जियो” तो ज़ाहिर है उनके ज़हन में राजस्थान ही रहा होगा। भारत के इस पश्चिमी राज्य में शानदार महल और क़िले यूं फैले हुए हैं मानो जैसे रेगिस्तान में चारों तरफ़ मोती बिखरे हुए हों। इस राज्य पर सदियों तक राजपूतों का शासन रहा था। उम्मेद भवन इन अद्भुत भवनों में से एक है जहाँ जोधपुर शाही परिवार रहा करता था।
19वीं सदी के अंतिम और 20वीं सदी के आरंभिक वर्षों में भारत में अनगिनत महलों बनवाये गए। उम्मेद भवन उनमें से एक था जो सन1928 और सन 1943 के बीच बनवाया गया था। इस दौर में, भारत की इस रियासत में शासकों द्वारा बनाया गया ये अंतिम महल था। इस काल में भारतीय महाराजाओं और राजाओं में महल बनाने की एक तरह से होड़ लगी हुई थी। हर रियासत के शासक अपने लिये महल बनवा रहे थे। महल बनाने की लहर के बाद देश के इतिहास में एक निर्णायक मोड़ आया और वो था सन 1857 की बग़ावत। ये वो समय था जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत को ब्रिटिश राज के हवाले कर दिया था।
भारत की सत्ता पर क़ब्ज़ा करने के बाद ब्रटिश शासकों ने भारतीय रियासतों को हड़पने का इरादा बदल दिया। अपमान, सत्ता से बेदख़ली और आय के स्रोत ख़त्म होना भी, सन 1857 की बग़ावत के मुख्य कारणों थे। इन बातों को ध्यान में रखते हुए ब्रिटिश सरकार ने भारतीय रियासतों के साथ ब्रिटिश अभिजातीय व्यवस्था के अनुसार संबंध बनाने शुरु किए। उन्होंने भारतीय शाही परिवारों के राजकुमारों को ब्रिटिश तर्ज़ की शिक्षा दी और उन्हें यूरोपीय सौंदर्यबोध, विचारधारा तथा आस्था के बारे में पढ़ाया। साथ ही ब्रिटिश तौर-तरीक़े सिखाए।
इससे राजकुमारों के जीवन के हर पहलू पर जैसे उनके पहनावे, जीवन शैली और उनके महलों, जिन्हें वे अपना घर कहते थे, पर प्रभाव पड़ा। पहले वे अपनी जनता के बीच भारी सुरक्षा वाले क़िलों में रहते थे लेकिन सन 1857 की बग़ावत के बाद बड़े-बड़े महल बनने लगे जो ब्रिटिश घरों की तरह बनाए गए थे। सन 1857 के बाद बने महलों की भव्यता को देखकर आश्यर्च होता है कि क्या इन्हें राजों-महाराजों ने अपनी सत्ता की कमज़ोरी को छिपाने के लिए के लिये बनवाए थे। क्योंकि ब्रिर्टिश शासकों ने उनकी असली ताक़त तो छीन ही ली थी।
इस युग में बने महल शैली के लिहाज़ से भी पहले से भिन्न थे। ये महल विशाल और सुंदर हरेभरे मैदान के बीच हुआ करते थे और ये संपत्ति तथा सत्ता के प्रतीक होते थे। चूंकि ये मैदानों के बीच में हुआ करते थे इसलिये इनका जनता से कोई संबंध नहीं होता था। महल की शैली भारतीय और यूरोपीय वास्तुकला का मिश्रण होती थी और इनका निर्माण स्थानीय कारीगर करते थे। महल का भीतरी हिस्सा और भी उत्कृष्ट होता था। भीतरी हिस्सा विदेश से लाईं गईं वस्तुओं और कलाकृतियों तथा शाही परिवार के उत्तम आभूषणों और वस्त्रों से सजा रहता था।
तो चलिये हम आपको सैर कराते हैं…भारत में बने अंतिम महल यानी.. उम्मेद भवन की ।
उम्मेद भवन का नाम इसे बनवाने वाले महाराजा के नाम पर रखा गया था। 20वीं सदी में निर्मित राजपूत महलों में उम्मेद भवन सबसे भव्य है जो जोधपुर में चित्तर पहाड़ी पर 26 एकड़ के हरेभरे मैदान पर बना हुआ है। सुनहरे बालू पत्थर के बने उम्मेद भवन महल से मेहरानगढ़ क़िला और जोधपुर शहर नज़र आता है।
दरअसल समृद्धि का प्रतीक ये महल जनता की सहायता के लिये बनाया गया था। महल निर्माण शुरू होने के पहले ही जोधपुर रियासत अकाल की गिरफ़्त में थी और उम्मेद सिंह अपनी जनता की मदद के लिये राह तलाश रहे थे। इस बीच उदार महाराजा ने अकाल की मारी अपनी जनता को रोज़गार मुहैया कराने के लिये महल बनाने का फ़ैसला किया।
महल की बुनियाद सन 1928 में रखी गई और इसका निर्माण कार्य आज़ादी के चार साल पहले सन 1943 में पूरा हुआ। महाराजा ने अपने शाही महल की डिज़ाइन बनाने के लिये प्रसिद्ध अंग्रेज़ वास्तुकार हेनरी वॉघन लैनचेस्टर को अनुबंधित किया। ये महल आर्ट डेको और भारत-अरबी वास्तुकला शैली का मिश्रण है।
19वीं सदी के अंत में इमारत बनाने में इंडो-सारासेनिक (भारत-अरबी) शैली का इस्तेमाल बहुत होता था। लेकिन अंग्रेज़ों ने भवनों की डिज़ायन में राजपूत-मुग़ल सौंदर्य शास्त्र की नयी व्याख्या थी। इस शैली में बनाये गए भवनों या महलों में विस्तृत रुपांकन तथा नक्काशी और गुंबद होते थे। सन 1925 में नयी वास्तुकला शैली आर्ट डेको आई। इस शैली से बनाए जाने वाले भवनों में साफ़-सुथरी वक्र और आकर्षक रेखाओं का प्रयोग होता था। इस शैली में पुरानी और आधुनिक डिज़ाइन का समावेश होता था और बहुत जल्द ये पूरे विश्व में लोकप्रिय हो गई थी । उम्मेद भवन में हमें पश्चिमी और प्राचीन सौंदर्य बोधवाली वास्तुकला शैली का ही मिश्रण देखने को मिलता है।
उम्मेद भवन शाही समृद्धि का प्रतीक है और इसके भीतर उसी मकराना संगमरमर का इस्तेमाल किया गया है जो ताज महल में किया गया था। पत्थरों पर सुंदर नक़्क़ाशी का श्रेय स्थानीय कारीगरों को जाता है।
महल में 347 कमरे हैं जो क्लासिक आर्ट डेको फ़र्नीचर से सजे हुए हैं। महल के लिये साज़-ओ-सामान इंग्लैंड से मंगवाया गया था लेकिन जो जहाज़ ये सामान लेकर आ रहा था वह सन 1942 में जर्मन हमले में डूब गया। इसके बाद महाराजा ने पोलैंड के शरणार्थी स्टीफ़न नॉर्ब्लिन को कमरों को नए सिरे से डिज़ाइन करने की ज़िम्मेदारी सौंपी।
आर्टिस्ट और डिज़ाइनर नॉर्ब्लिन कलाकार थे और डिज़ायनर भी थे उन्होंने न सिर्फ़ कमरों, उनके लेआउट और फ़्रनीचर का डिज़ाइन तैयार किया बल्कि महल के अंदर दीवारों पर कई भित्ति-चित्र भी बनाए। दिलचस्प बात ये है कि उन्होंने मर्दाना कमरों में युद्ध संबंधी और ज़नाना कमरों में नारी सुलभ चित्रकारी की।
महल के कमरों में सुंदर फ़र्नीचर के अलावा इनसे मलती-जुलती नाज़ुक प्राचीन वस्तुएं, कलात्मक चीज़ें और शाही परिवार की ट्रॉफ़िया भी हैं। इन वस्तुओं में महाराजा द्वारा शिकार किए गए हाथी के विशाल दांत, हिरण के सींग और बाघ की खालें भी शामिल हैं।
महल में एक भूमिगत तरण ताल (स्वीमिंग पूल) है जिसे ज़ोडिएक (राशि चक्र) पूल कहते हैं। ये आर्ट डेको, गोलाकार ताल है जिसकी तलहटी पर टाइल्स लगी हुई हैं जिन पर विभिन्न राशियों के चिन्ह बने हुए हैं। दीवारों और छतों पर भी सुनहरे रंग से रंगी टाइलें लगी हैं।
उम्मेद भवन उसी समय बने एक अन्य भव्य महल से काफ़ी मिलता-जुलता है हालंकि ये “महल” किसी राजकुमार ने नहीं बल्कि शक्तिशाली सरकार ने बनवाया था और वाइसरॉय का निवास होता था जिसे हम अब राष्ट्रपति भवन कहते हैं। दोनों भवनों के सुनहरे बालू पत्थर के अग्रभाग और विशाल गुंबदों को अगर ग़ौर से देखें तो लगेगा मानों दोनों में कोई फ़र्क़ ही नहीं है।
उम्मेद भवन आख़िरकार सन 1943 में बनकर तैयार हो गया था लेकिन दुर्भाग्य से उम्मेद सिंह इसमें सिर्फ़ चार साल तक ही रह सके क्योंकि सन 1947 में उनका निधन हो गया। उनके निधन के बाद उनके पुत्र हनवंत सिंह की सन 1952 में, 28 साल की उम्र में एक विमान दुर्घटना में असमय मृत्यु हो गई। हनवंत सिंह के बाद गज सिंह को सत्ता मिली जिन्हें स्नेह से “ बापजी ” बुलाया जाता है। वह आज भी इस महल में रहते हैं।
भारत में कई भव्य महल या तो अंधेरे में डूब गए या फिर उनका इस्तेमाल ऐसे कामों के लिये होने लगा है जो उनकी डिज़ाइन के मुताबिक़ नहीं हैं। लेकिन जोधपुर के पूर्व महाराज गज सिंह ने महल के एक हिस्से को होटल और संग्रहालय में तब्दील कर दिया है। महल के बाक़ी हिस्से में उनका परिवार रहता है। लेकिन फिर भी वित्तीय समझदारी, निजि प्रयोग और जनहित के बीच तारतम्य बैठाना मुश्किल काम तो हे ही ।
उम्मेद भवन महल के पूरा होने के पांच साल बाद ही सन 1947 में भारत को अंग्रेज़ शासन से आज़ादी मिल गई। अगले दो सालों में सरदार पटेल और वी.पी. मेनन के प्रयासों से सभी रियासतों का भारतीय संघ में विलय हो गया। राजसी शान-ओ-शौक़त अब ग़ुज़रे ज़माने की बात हो गई थी। जोधपुर के तत्कालीन महाराजा हनुवंत सिंह ने राजस्थान सरकार को राजस्थान विश्विद्यालय बनाने के लिये उम्मेद भवन 18 लाख रुपये में बेचने की पेशकश की थी लेकिन सौदा नहीं हो पाया।
नए आज़ाद भारत में बड़े बांध, सार्वजनिक भवन और प्रतिमाएं राज सत्ता के प्रतीक बने। आज उम्मेद भवन जैसे भारत के भव्य महलों ने ख़ुद को बदलते समय के साथ ढाल लिया है और इनसे हमें उस युग की भव्यता की झलक मिलती है जो बीत चुका है।
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