भारत की खोई हुई राजधानियां

एक समय भारतीय उप-महाद्वीप में विश्व की कुछ सबसे भव्य राजधानियां हुआ करती थीं। आज मुंबई, दिल्ली और बंगलुरु जैसे भारत के बड़े महानगर फलफूल रहे हैं लेकिन उन पुरानी राजधानियों के अब बस नाममात्र के अवशेष ही बाक़ी रह गए हैं जो कभी सत्ता का केंद्र हुआ करती थीं। उदाहरण के लिये 300 सदी (ई.पू.) में यूनान के राजदूत मेगस्थनीस ने पाटलीपुत्र को भव्य राजधानी बताते हुए इसकी तुलना ईरान के शहर सूसा और पर्सेपोलिस से की थी। लेकिन आज प्राचीन पटना के नाम पर एक छोटे से पुरातात्विक पार्क और उसके टूटे स्तंभों के अलावा कुछ भी बाक़ी नहीं बचा है।

माना जाता है कि ओडिशा में भुवनेश्वर के पास शिशुपालगढ़ शहर दूसरी सदी (ई.पू.) में रोम के बराबार विशाल था लेकिन इसके अवशेषों पर अतिक्रमण का ख़तरा मंडरा रहा है। यही हाल परिहासपोरा, गौड़ा, हंपी, पाटन, पैठन और अन्य प्राचीन शहरों का है, जिनकी एक लम्बी सूची है।

आख़िर ऐसा क्यों है कि हमारे प्राचीन शहर उपेक्षा और पतन के शिकार हो गए? हमसे कहां ग़लती हो गई और इन्हें बचाने के लिये अब हम क्या कर सकते हैं?

इस तरह के कई सवालों के जवाब तलाशने के लिये हमने “इंडियाज़ लॉस्ट कैपिटल्स” (भारत की खोई हुई राजधानियां) सेशन में प्रमुख इतिहासकारों और संरक्षण विशेषज्ञों से बात की जहां कई महत्वपूर्ण सवालों के जवाब मिले। ये हमारी साप्ताहिक श्रंखला “हेरिटेज मैटर्स” का पहला साप्ताहिक सत्र है। इस परिचर्चा में इंटेक दिल्ली चैप्टर संयोजक स्वप्ना लिडल, हेरिटेज कंज़र्वेशन कमेटी, अहमदाबाद म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन के सचिव देबाशीष नायक, लेखक तथा इतिहासकार पुष्कर सोहोनी और ब्लॉगर तथा विरासत में रूचि रखने वाले दीपांजन घोष ने हिस्सा लिया। इन सभी ने भारत के विभिन्न शहरों पर बरसों शोध किया है और इन्होंने इन शहरों की मौजूदा दशा और इसे बेहतर बनाने के बारे में बहुमूल्य जानकारियां दीं। भारत हमारे इन प्राचीन शहरों और उनकी धरोहरों को कैसे संजोकर रख सकता है, इसे समझने के लिये दिल्ली, मुर्शीदाबाद, अहमदनगर और अहमदाबाद (यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज सिटी) को चुना गया।

हमारी पुरानी राजधानियों की मौजूदा स्थिति उपेक्षा के शिकार स्मारक, अतिक्रमण के मारे ऐतिहासिक स्थल, शहरीकरण के लिये पुराने ढांचों का गिराया जाना, प्रमुख पर्यटक मानचित्र से हेरिटेज स्थलों का ग़ायब होना, ये तमाम बातें भारत में कई शहरों में आम हैं। लेकिन आख़िर इनकी वजह क्या हैं?

स्वप्ना लिडल ने 19वीं सदी की दिल्ली के बारे में दस्तावेज़ तैयार किए हैं और दिल्ली पर शोध किया है। देश की राजधानी दिल्ली इतिहास में कई शक्तिशाली साम्राज्यों का सत्ता केंद्र रही है। पुरानी दिल्ली का इलाक़ा शाहजानाबाद 17वीं सदी में मुग़ल साम्राज्य की राजधानी हुआ करती थी। आज भी यहां कई ऐतिहासिक स्थल और स्मारक हैं जिनमें से कुछ शाहजानाबाद बनने के पहले के भी हैं। लेकिन दुख की बात ये है कि एक तरफ़ जहां लाल क़िला या जामा मस्जिद देखने हज़ारों लोग आते हैं वहीं इन जगहों को देखने वालों की संख्या बहुत कम है।

उदाहरण के लिए हम रज़िया सुल्तान का मक़बरा लेते हैं जो गुमनामी के अंधेरे में डूबा हुआ है। ये दुख की बात है क्योंकि रज़िया सुल्तान एकमात्र महिला थीं जो दिल्ली की राजगद्दी पर बैठीं थीं। इस बारे में स्वप्ना लिडल का कहना है कि ऐतिहासिक और धरोहर और स्मारकों को लेकर हमारी समझ अलग है। इन स्मारकों को वहां रहने वाले लोगों से हटकर नहीं देखा जा सकता। इस बारे में लिडल कहती हैं, “मुझे लगता है कि हमें रज़िया के मक़बरे से ये सबक़ लेना चाहिये कि ये वो स्मारक है जिसके आसपास काफ़ी आबादी है और यहां रखरखाव तथा प्रबंधन की समस्या है। इस समस्या को हल करने के लिये हमें इसके आसपास रहने वाली आबादी को साथ लेकर चलना होगा। हमें ये सोचना बंद करना होगा कि इन लोगों ने इस जगह पर कब्ज़ा किया है। उन्होंने कब्ज़ा नहीं किया है बल्कि रज़िया के मक़बरे के पास सदियों से लोग रह रहे हैं। रज़िया को यहां सन 1240 में दफ़्न किया गया था। लेकिन 17वीं सदी में यहां शाहजानाबाद की स्थापना के बाद ये घनी आबादी वाला इलाक़ा हो गया था। इस तरह यहां लोग लंबे समय से रहते आए हैं। इन समस्याओं को हल किया जा सकता है, ये कोई त्यागी हुई धरोहर नहीं है…”

दक्कन सल्तनत के विशेषज्ञ पुष्कर सोहोनी अहमदनगर, गोलकुंडा, हैदराबाद आदि जैसे दक्षिण के कई शहरों का अध्ययन करते रहे हैं। अहमदनगर की स्थापना 15वीं सदी में निज़ाम शाहों ने की थी और ये एक सदी से भी ज्यादा समय तक उनके साम्राज्य की राजधानी रही थी।

यहां मस्जिदें, महल और मक़बरे जैसे कई ऐतिहासिक स्मार्क हैं लेकिन शहर की धरोहर अब धीरे धीरे ख़त्म होती जा रही है। अहमदनगर की स्थिति के बारे में पुश्कर का कहना है कि लोगों में जागरुकता का अभाव शहर की समस्या का मुख्य कारण है-उन्हें स्मारकों की कहानी और उनके महत्व के बारे में पता ही नहीं है। स्मारकों को सही तरीक़े से सूचीबद्ध न किया जाना और दस्तावेज़ों को नहीं रखना, ये एक अलग मसला है। पुष्कर के अनुसार, “शहर के कुछ ही स्मारक संरक्षित हैं, बहुत से स्मारक, जो शहर की सीमाओं पर होते थे, शहरीकरण की ज़द में आते जा रहे हैं।”

मुर्शिदाबाद, गोड़ा और पश्चिम बंगाल के और कई शहरों पर शोध करने वाले दीपांजन घोष का कहना है कि हमारी ज़्यादातर धरोहरें इसलिए ख़त्म हो रही हैं क्योंकि कई शहरों में स्मारकों का ठीक तरह से नक़्शे नहीं बनाए गए हैं। कभी भव्य शहर रहे मुर्शिदाबाद की स्थापना मुर्शिद क़ुली ने सन 1702 में की थी। मुर्शीद क़ुली बंगाल की राजधानी ढ़ाका को छोड़कर मुर्शिदाबाद को राजधानी बनाया था। लेकिन शहर की ऐतिहासिक विरासत तेज़ी से ख़त्म होती जा रही है।

दीपांजन के अनुसार शहर के बारे में अंतिम बार मुख्य रूप से दस्तावेज़ सन 1904 में तैयार करवाए गए थे। उनका कहना है, “अब जब आप वहां जाते हैं तो ये कल्पना करना मुश्किल हो जाता है कि ये शहर क़रीब 250 साल पहले कैसा लगता होगा क्योंकि हमने मुर्शिदाबाद को एक स्थल के रुप में देखा ही नहीं, हम इसे एक ऐतिहासिक शहर के रुप में देखने में पूरी तरह विफल रहे हैं। हम इसे पृथक स्मारकों के रुप में देखते हैं…हर बार जब मैं यहां वापस आया हूं, मैंने देखा है कि या तो स्मारकों की हालत पहले से और बदतर हो गई है या फिर मुझे वे दिखाई ही नहीं दिए क्योंकि या तो वे ग़ायब हो गए या फिर जगह का नाम ही बदल गया है जिसकी वजह से उन्हें तलाशना मुश्किल हो जाता है।

धरोहरों के साथ उपेक्षा के बीच अहमदाबाद जैसे कुछ शहर भी हैं जिन्होंने एक मिसाल पेश की है। अहमदाबाद यूनेस्कों द्वारा मान्यता प्राप्त पहली वर्ल्ड हेरिटेज सिटी है। ये मान्यता दिलाने में महत्वपूर्ण योगदान करने वाले देबाशीष नायक का मानना है कि यहां के लोगों और प्रशासन के संयुक्त प्रयासों से ये संभव हो सका।

अहमदाबाद का इतिहास 600 साल पुराना है लेकिन ये ऐसे बहुत कम शहरों में से एक है जिसके स्मारकों की निशनदही की गई है और दस्तावेज़े तैयार किए गए हैं । देबाशीष का कहना है कि यह सब लगभग बीस साल की सुनियोजित योजना की वजह से ये संभव हो पाया है। उनके अनुसार, “पहला क़दम ये होना चाहिये कि आप, स्थानीय लोगों में उनकी जगह के बारे में समझ कैसे पैदा करते हैं। यही सफलता का राज़ है और इसीलिये प्रबंध-योजना बहुत महत्वपूर्ण है…

हम अपने शहर और उनकी धरोहर को कैसे बचा कते हैं?

हमारे विशेषज्ञों के ज्ञान के आधार पर ये कुछ बाते हैं जो हमें हमारे शहर को बचाने में मदद कर सकती हैं…

1. हमारी विरासत की मिलकियत

ये किसकी विरासत है? इन ऐतिहासिक स्मारकों और स्थलों के संरक्षण के लिये कौन ज़िम्मेदार है? क्या हमारी विरासत की देखभाल करने की ज़िम्मेदारी सिर्फ़ सरकार की है?

विशेषज्ञों का मानना है कि शहरों और उनकी धरोहर को संरक्षित रखने तथा उन्हें बढ़ावा देने के लिए स्थानीय के लोगों और प्रशासन को मिलकर काम करने की ज़रुरत है। कौन-सी चीज़ वास्तव में ऐतिहासिक धरोहर है इसके लिए स्पष्ट क़ानून, दिशा निर्देश और जागरुकता होनी चाहिए। पुष्कर सोहोनी ने कहा, “मुझे लगता है कि बहुत-सी चीज़ों (स्मारक) को लेकर लोगों में मिलकियत का एहसास होना चाहिए..लोगों को लगना चाहिए कि इनके संरक्षण में उनकी भी हिस्सेदारी है और ये तभी हो सकता है जब उन्हें बताया जाए कि ये क्या चीज़ें थीं और ये क्यों महत्वपूर्ण हैं…

2. स्थानीय लोगों की भागीदारी

सभी विशेषज्ञ इस बात पर एकमत थे कि ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण में स्थानीय लोगों की भागीदारी ज़रुरी है। एक बार स्थानीय लोगों की इसमें दिलचस्पी पैदा हो गई और उन्हें उनके शहरों की इन चीज़ों की एहमियत का एहसास हो गया तो उन्हें इसमें शामिल करना आसान हो जाता है। देबाशीष नायक का मानना है कि अहमदाबाद शहर के नागरिकों में जागरुकता और दिलचस्पी की वजह से ही शहर को अंतर्राष्ट्रीय ख़िताब का मिलना संभव हुआ है। वह उदाहरण देते है, “एक दिन मैं 40 कलाकारों को लेकर ऐतिहासिक धरोहर की यात्रा पर निकल पड़ा। उन्होंने पुराने शहर पर रंगरौग़न किया। और आज हमारे सैंकड़ो नए कलाकार, हमारे छात्र पुराने शहर (अहमदाबाद के) पर रंगरौग़न कर रहे हैं, इस में आर्ट स्कूल टीचर एसोसिशन में सेवानिवृत्त लोग हैं, ये लोग अब पुराने शहर में स्थानीय छात्रों को पेंट करना सिखा रहे हैं ताकि छात्र अपने पड़ौस पर रंगरौग़न करें पंटिंग बनाएं। इस तरह अहमदाबाद में जन-स्त्रोत तथा शैक्षिक स्रोतों का पूरी तरह इस्तेमाल किया गया है।”

3. प्रशासन और नीतियों की भूमिका

स्मारकों और ऐतिहासिक स्थलों के संरक्षण और मरम्मत में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण जैसे केंद्रीय संगठन और नगर निगम, राज्य पर्यटन बोर्ड तथा ज़िला प्रशासन जैसे स्थानीय सरकारी ईकाईयों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसके अलावा क़ानून, नीतियां, सरकारी योजनाएं, धन आवंटन, रुपरेखा, वित्त, प्रलेखीकरण, सूचीबद्धता आदि भी ज़रुरी है। देबाशीष का कहना है कि अहमदाबाद में नगर निगम और स्थानीय लोगों के निरंतर प्रयासों से सफलता मिली है। उदाहरण के लिए देश में अहमदाबाद नगर निगम शायद पहला निगम है जिसने अपने यहां धरोहर विभाग खोला।

पुराने स्थलों और भवनों के संरक्षण के लिये टाउन प्लानिंग भी ज़रुरी है। विशेषज्ञों का मानना है कि टाउन प्लानिंग के समय ऐसे तरीक़े अपनाए जाने चाहिए ताकि इसमें इसमें पुराने मोहल्लों और इलाक़ों को शामिल किया जा सके, इन्हें और वहां बरसों से रहने वालों को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिये।

4. सार्वजनिक-निजी साझेदारी

धोरहर की प्रबंधन प्रक्रिया में निजी संगठन और ग़ैर-सरकारी संगठन महत्वपूर्ण होते हैं। वे स्थानीय लोगों के साथ मिलकर स्मारक के संरक्षण के लिये मुहिम चला सकते हैं। लेकिन विशेषज्ञों का ये भी मानना है कि इसे लागू करने में पारदर्शिता होनी चाहिए। इस मामले में इनटैक और आग़ा ख़ान ट्रस्ट बेहतरीन उदाहरण हैं जो पेशेवर और विशेषज्ञों के साथ मिलकर हमारी ऐतिहासिक धरोहर को बचा रहे हैं।

5.शिक्षा और जागरुकता

जब बात इतिहास विषय की आती है तब इस बोरिंग विषय के लिए स्कूल पाठ्यक्रम की किताबों को ज़िम्मेवार ठहराया जाता है। धरोहर और इतिहास के बारे में शिक्षा और जागरुकता धरोहर के संरक्षण की बुनियादी चीज़ हैं। ब्लॉगर और ब्रॉडकास्ट प्रोफ़ेशनल दीपांजन घोष इस बारे में एक दिलचस्प बात बताते है, “ये शायद इसलिए है क्योंकि स्कूल में हमें इतिहास कुछ इसी तरह से पढ़ाया गया है। अगर आपको किसी स्थल के बारे में पढ़ाया जाता है, अगर आपको शहर में या शहर से कुछ घंटों की दूरी पर स्थित किसी चीज़ के बारे में पढ़ाया जाता है तो आपको स्कूल के कुछ बच्चों को उस स्थान पर ले जाने के बारे में सोचना चाहिये और वहां उन्हें बताना चाहिये कि चैप्टर तीन, पेज 12 में जिस चीज़ के बारे में तुमने पढ़ा था वो ये है, तुम इसे छूकर देख सकते हो। अगर हम कुछ ऐसा कर सकें तो बहुत ही बढ़िया होगा।” इस संदर्भ में हेरिटेज वॉक बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है, सिर्फ़ स्थानीय लोगों को शामिल करने के मामले में ही नहीं बल्कि लोगों को इतिहास तथा धरोहर से जोड़ने के मामले में भी। किताबे, वॉकिंग गाइड्स और अन्य किताबें, ख़ासकर ऐतिहासिक स्थानों से संबंधित, भी लोगों को हमारी समृद्ध विरासत की जानकारी देने का ज़रिया हो सकती हैं।

समय आ गया है कि हम इतिहास को मुख्यधारा में लाएं और अतीत की कहानियों में आम लोगों की दिलचस्पी पैदा करें क्योंकि इन्हीं कहानियों से भारत देश बनता है….

ये सत्र अंग्रेज़ी में हमारे चैनल पर दिखाया गया है। आप इस सत्र की पूरी परिचर्चा अंग्रेज़ी में यहां देख सकते हैं-

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