महाकाव्य रामायण हिंदुओं के लिये एक महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथ है लेकिन इसके अलावा ये बात भी बड़ी दिलचस्प है कि कैसे राम से जुड़ी पौराणिक कथाएं और रामायण की कथा एक दूसरे से जुड़ी हुईं हैं जिसमें पूरे भारत वर्ष में उन स्थानों का उल्लेख है जहां राम रहे या फिर जहां से गुज़रे थे। कहानी के हज़ारों साल बाद भारत के विभिन्न स्थानों में राम की यात्राओं से संबंधित कथाएं प्रचलित हैं। ये यात्राएं उन्होंने तब की थीं जब वह अपनी पत्नी सीता को बचाने प्रायद्वीपीय भारत की तरफ़ रवाना हुए थे।
हम राम के पद-चिन्हों को तलाशते हुए उन स्थानों पर आपको लिये चलते हैं जहां कहा जाता है कि राम रहे थे या फिर वहां से गुज़रे थे।
1. कान्हा नैशनल पार्क और श्रवण कुमार की कहानी
मध्य प्रदेश का कान्हा नैशनल पार्क मध्य भारत में बाधों का सबसे बड़ा संरक्षित पार्क है। रुडयार्ड किपलिंग की किताब “द जंगल बुक” में कान्हा के अदभुत शालवनों का उल्लेख है जो बहुत प्रसिद्ध है। लेकिन इस सुंदर पार्क का संबंध अयोध्या के राजा यानी भगवान राम के पिता राजा दशरथ और श्रवण कुमार से भी रहा है जो बहुत दिलचस्प है।
रामायण के अनुसार श्रवण कुमार ऋषि शांतनु औऱ उनकी पत्नी की एकमात्र संतान थे। शांतनु और उनकी पत्नी, दोनों ही दृष्टिहीन थे। अपने माता-पिता की इच्छानुसार श्रवण दोनों को देश भर में तीर्थ-यात्रा पर लेकर जा रहे थे।
वे जब मौजूदा समय के कान्हा के वनों से गुज़र रहे थे, उस समय राजा दशरथ वहां शिकार खेल रहे थे और ग़लती से वह श्रवण को मार देते हैं। श्रवण कुमार अपने माता-पिता के लिये पानी लेने एक तालाब पर गये थे। अंधेरे में दशरथ को लगा कि वहां कोई हिरण है और वह उसे मार देते हैं। इस भूल का उन्हें बहुत पछतावा होता है और वह ये समाचार देने शांतनु और उनकी पत्नी के पास जाते हैं। ख़बर सुनने कर दुखी श्रवण कुमार के माता-पिता राजा दशरथ को श्राप देते हैं कि जैसे वे अपने पुत्र से बिछुड़ गये हैं, वैसे ही राजा दशरथ भी अपने पुत्र से अलग हो जाएंगे।
आज भी कान्हा नैशनल पार्क में एक तालाब है जिसका नाम “श्रवण ताल” है। इसके अलावा यहां एक स्थान है जिसे “श्रवण चिता” कहते हैं। माना जाता है कि यहां श्रवण कुमार का अंतिम संस्कार हुआ था। यहां “दशरथ मचान” भी है जिसके बारे में माना जाता है कि यहीं से दशरथ ने श्रवण को तीर मारा था।
2. सीतामढ़ी- सीता का जन्म-स्थान
बिहार के सीतामढ़ी ज़िले में सीतामढ़ी शहर को राम की पत्नी सीता का जन्म स्थान माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मिथिला के राजा जनक इंद्र देवता से वर्षा की प्रार्थना करने के लिये सीतामढ़ी के पास एक खेत की जुताई कर रहे थे तभी मिट्टी के एक बर्तन से सीता निकलीं। राजा जनक को सीता हल से खेत में बनी एक रेखा में मिली थीं। वह शिशु सीता को ले गये और अपनी बेटी की तरह उसका लालन पालन करने लगे। रामायण के अनुसार सीता (उन्हें जानकी भी कहा जाता था) जब 16 साल की हुईं तब राजा जनक ने घोषणा की कि जो शिव के पवित्र घनुष की तांत खींचकर बांधने में सफल होगा, वह उसी से सीता का ब्याह कर देंगे। कई लोगों ने कोशिश की लेकिन सफलता अयोध्या के राजकुमार राम को ही मिली। उन्होंने न सिर्फ़ धनुष की तांत खींच दी बल्कि धनुष के दो टुकड़े भी कर दिये। इस तरह राम ने सीता का हाथ जीत लिया और सीता से उनका विवाह हो गया।
सीतामढ़ी में “सीता-कुंड” हिंदुओं का तीर्थ-स्थल है। गोलाकार “सीता-कुंड” का व्यास 140 फ़ुट है और श्रद्धालुओं का विश्वास है कि यहां सीता ने स्नान किया था। सीतामढ़ी में पुनौरा धाम मंदिर भी है जो सीता को समर्पित पवित्र हिंदू मंदिरों में से एक है। यहां हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं।
3. चित्रकूट
मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में है चित्रकूट शहर। ये उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित है। वाल्मिकी रचित रामायण में चित्रकूट का आरंभिक उल्लेख मिलता है।
रामायण के अनुसार राम, सीता और लक्ष्मण ने अपने 14 साल के वनवास के 11 साल यहां व्यतीत किये थे। चित्रकूट का संबंध राम और सीता के जीवन में हुईं महत्वपूर्ण घटनाओं से भी है। इस क्षेत्र का संबंध भरत- मिलाप से है। माना जाता है कि भरत राम से अयोध्या वापस आने की प्रार्थना करने यहीं आए थे और उनसे मिले थे। ऐसा भी विश्वास किया जाता है कि राम ने जब अपने पिता की याद में शुद्धी अनुष्ठान किया था तब तमाम देवी-देवता भी यहां आए थे। आज भी आपको रामकथा से जुड़े कई स्थान चित्रकूट में मिल जाएंगे और यही वजह है कि देश भर से श्रद्धालु यहां राम की पूजा करने के लिये आते हैं।
चित्रकूट में रामघाट है जो राम और सीता से सबंधित प्रमुख घाटों में से एक है। माना जाता है कि जब राम और सीता यहां रुके थे तब उन्होंने यहां पूजा की थी और स्नान किया था। एक पहाड़ी पर हनुमान धारा मंदिर है जो हनुमान को समर्पित है। यहां एक छोटा सा कमरा भी है जिसे सीता रसोई कहते हैं। माना जाता है कि निर्वासन के दौरान सीता यहां भोजन बनाती थीं।
ऐसा विश्वास किया जाता है कि यहां 475 साल पूर्व, सबसे पहली रामलीला खेली गई थी। संत तुलसीदास ने 80 साल की उम्र में, 16वीं शताब्दी में, रामचरित्र मानस ग्रंथ यहीं लिखा था। यह ग्रंथ अवधी भाषा में लिखा गया था।
4. पंचवटी
नासिक में भारत की दूसरी सबसे बड़ी नदी गोदावरी के तट पर स्थित पंचवटी पौराणिक कथाओं और इतिहास से भरा पडा है। माना जाता है निर्वासन के दौरान राम, सीता और लक्ष्मण यहां ठहरे थे। राम ने अपने 14 साल के वनवास के कुछ वर्ष यहां बिताये थे। रामायण में यह स्थान “सीता-हरण” के लिये जाना जाता है। यहां पांच वट वृक्ष हैं और इसीलिये इस स्थान को पंच-वटी कहा जाता है। ये प्रसिद्ध दण्डकारण्य वन का एक हिस्सा है और इसका उल्लेख रामायण में भी है। चूंकि रामायण में इस स्थान की महत्वपूर्ण भूमिका रही है इसलिये लोग यहां गोदावरी में पवित्र डुबकी लगाने आते हैं।
नासिक शहर गोदावरी के पश्चिम की तरफ़ है। माना जाता है कि यहां राम के छोटे भाई लक्ष्मण ने रावण की बहन सूर्पणखा की नाक काटी थी। नासिक का अर्थ होता है नाक और इसी पर शहर का नाम पड़ा है।
पंचवटी में पांच वट वृक्ष के पास ही “सीता गुफा” है। गुफा में दाख़िल होने के लिये एक बहुत संकरी सीढ़ी है। गुफा में राम, लक्ष्मण और सीता की मूर्तियां हैं। बाएं तरफ़ एक गुफा है जिसमें एक शिवलिंग है। माना जाता है कि यहीं से रावण ने सीता का हरण किया था।
पंचवटी में श्रद्धालुओं के लिये सबसे महत्वपूर्ण स्थान रामकुंड है। इसे रामकुंड इसलिये कहा जाता है क्योंकि माना जाता है कि राम ने यहां स्नान किया था। इस कुंड में अस्थी विसर्जन करने पर अस्थियां फ़ौरन पानी में घुल जाती हैं। इस कुंड में डुबकी लगाना बहुत पवित्र माना जाता है। महात्मा गांधी की भी अस्थियां यहीं विसर्जित की गईं थीं।
यहां काला राम मंदिर भी है जो पुणे के पेशवाओं ने 18वीं सदी में बनवाया था। रामनवमी, दशहरे और चैत्र पड़वा (हिंदू नव वर्ष दिवस) के मौक़े पर आज भी यहां यात्राएं निकाली जाती हैं। इस मंदिर की ख़ास बात ये है कि इसका निर्माण काले पत्थर से हुआ था। सन 1930 में यहां हरिजनों के मंदिर में प्रवेश की मांग को लेकर डॉ. आंबेडकर ने सत्याग्रह किया था।
5. बाणगंगा
बाणगंगा मध्यकालीन पानी की टंकी है । ये मुंबई में मालाबार हिल के वालकेश्वर मंदिर परिसर का एक हिस्सा है। रामायण के अनुसार सीता हरण के बाद राम, रावण की तलाश में अयोध्या से लंका जाते समय यहां रुके थे। थकान और प्यास लगने पर उन्होंने अपने भाई लक्ष्मण से पानी लाने को कहा। लक्ष्मण ने तुरंत ज़मीन पर बाण चलाया और वहां से पानी का सोता फूट पड़ा जिससे गंगा नदी की एक उप-नदी बन गईं जो गंगा नदी से एक हज़ार मील दूर बहती है। इसका नाम बाणगंगा इसलिये पड़ा क्योंकि बाण से ही गंगा निकाली गई थी।
एक अन्य लोक-कथा के अनुसार भगवान परशुराम ने बाण चलाकर पाताल से गंगा निकाली थी इसलिये बाणगंगा को पातालगंगा भी कहते हैं।
लोक-कथाओं के अनुसार वालकेश्वर मंदिर का संबंध राम और लक्ष्मण से भी है। कहा जाता है कि राम ने ख़ुद यहां शिवलिंग की स्थापना की थी। माना जाता है कि मूल शिवलिंग रेत (संस्कृत में वालुका) का था। इसीलिये वालकेश्वर यानी वालुका ईश्वर (रेत से बनी मूर्ति) पड़ा।
बाणगंगा में पानी का होज़ सन 1127 में लक्ष्मण प्रभु ने बनवाया थी जो ठाणे के सिल्हर राजवंश के शासनकाल में मंत्री थे। बाणगंगा होज़ आयाताकार है और इसके सभी तरफ़ सीढ़ियां हैं। उपलब्ध रिकार्ड्स के अनुसार होज़ बनाने के लिये रामा कामथ नामक व्यक्ति ने सन 1715 में दान किया था। उसके बाद से यहां मुख्य मंदिर का फिर से निर्माण हुआ है। होज़ के प्रवेश स्थान पर दो स्तंभ हैं जिन पर तेल के दीये हैं। ये स्तंभ शायद 300 साल पुराने हैं। होज़ का बड़ी ख़ासियत ये है कि समुद्र के पास होने के बावजूद इसका पानी आज भी मीठा है।
6. किष्किंधा साम्राज्य
कहा जाता है कि कर्नाटक के कोप्पल ज़िले में हंपी के पास किष्किंधा, दण्डक वन का एक हिस्सा होता था जो विंध्या पर्वत श्रंखला से लेकर दक्षिण भारत तक फैला हुआ था। किष्किंधा वानर राजा बाली और उसके भाई सुग्रीव का साम्राज्य हुआ करता था।
रामायण के अनुसार सीता हरण के बाद राम अपनी पत्नी की तलाश में पने भाई लक्ष्मण के साथ,दक्षिण की ओर किंष्किंधा तक आए थे। यहां उनकी भेंट वानर भगवान हनुमान से हुई जो राम के परम भक्त थे। उस समय किष्किंधा के शासक बाली और सुग्रीव के बीच विवाद चल रहा था और बाली सुग्रीव की हत्या करना चाहता था। सुग्रीव ने मतंग पर्वत पर जाकर ऋषि मतंग की कुटिया में शरण ले ली थी। सैलानी हंपी के अवशेषों का मनोरम दृश्य देखने के लिये मतंग पर्वत पर चढ़ते हैं।
हंपी में कोदंदारमा मंदिर के पास सुर्गीव गुफा है। माना जाता है कि जब रावण सीता का हरण करके उन्हें ले जा रहा था तब सीता रास्ते भर अपने आभूषण गिराती जा रहीं थीं ताकि राम उन्हें खोज सकें। ये आभूषण सुग्रीव ने इसी गुफा में छुपाये थे।
मिथक और इतिहास तथा किवदंतियों तथा तथ्यों को लेकर बहस हो सकती है लेकिन एक बात से तो इंकार नहीं किया जा सकता कि कैसे भारत के दो महान महाकाव्य रामायण और महाभारत ने देश के एक कोने को दूसरे कोने से आज भी जोड़ा हुआ है।
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