भारत के संग्रहालयों में ख़ज़ाने की खोज

क्या आप जानते हैं कि भारत के संग्रहालयों में एक ऐसा भी संग्रहालय है जिसमें आप भारतीय मोना लिज़ा को देख सकते हैं? या फिर आप यह जानते हैं कि भारत में ग्रेको-रोमन गॉड पोसाइडन की उत्कृष्ट मूर्ति कहाँ देखी जा सकती है? भारतीय संग्रहालयों में कई आकर्षक वस्तुएं हैं जिनका संबंध न केवल देश बल्कि पूरे उपमहाद्वीप के लंबे और समृद्ध इतिहास से है। पेरिस में लुव्र संग्रहालय या लंदन के ब्रिटिश संग्रहालय जैसे संग्रहालयों में हर साल लाखों लोग इन अद्भुत चीज़ों को देखने के लिए आते हैं। लेकिन भारत के ख़ज़ानें क्या हैं और कहां है, इस बारे में हम क्यों कुछ ख़ास नहीं जानते? हम अपने संग्रहालयों में रखी भारत की सबसे आकर्षक वस्तुओं के बारे में जनता को कैसे जानकारी दे सकते हैं और उसे कैसे शिक्षित कर सकते हैं?

हमने अपने साप्ताहिक शो हेरिटेज मैटर्स के पिछले सत्र में भारत के संग्रहालयों में रखी वस्तुओं का वर्चुअल ट्रेज़र हंट किया यानी उन्हें दर्शकों को दिखाया। इस सत्र में हमारे मेहमान थे इलाहाबाद संग्रहालय के निदेशक डॉ. सुनील गुप्ता, पुरातत्व एवं संग्रहालय, महाराष्ट्र सरकार के निदेशक डॉ. तेजस गर्ग और नियोगी बुक्स की सीओओ तथा निदेशक तृषा दे नियोगी। हमारे सभी पैनेलिस्ट और एलएचआई की शोध टीम ने राष्ट्रीय संग्रहालय, दिल्ली, छत्रपति शिवाजी महाराज वस्तु संग्रहालय (CSMVS), मुंबई, इलाहाबाद संग्रहालय, सालार जंग संग्रहालय जैसे भारत के कई प्रमुख संग्रहालयों से दर्शकों को कई दुर्लभ चीज़ों के दर्शन करवाए। महाराष्ट्र के कुछ स्थानीय संग्रहालयों और उनमें रखी वस्तुओं पर भी प्रकाश डाला गया।

आइए हम आपको उन कुछ सबसे महत्वपूर्ण वस्तुओं के बारे में बताते हैं जिन पर इस सत्र के दौरान रौशनी डाली गई।

महाराष्ट्र में संस्कृति मंत्रालय में पुरातत्व और संग्रहालय निदेशालय के प्रमुख डॉ. तेजस गर्ग की देखरेख में लगभग 13 संग्रहालय हैं। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र के अधिकांश संग्रहालयों को तीन वर्गों में बांटा जा सकता है- वे संग्रहालय जो क्षेत्र की रियासतों से स्थानांतरित किए गए थे, सरकारी संग्रहालय जिनकी स्थापना स्वतंत्रता पूर्व हुई थी और स्वतंत्रता के बाद राज्य सरकार द्वारा स्थापित क्षेत्रीय संग्रहालय। डॉ. गर्ग ने टाउन हॉल म्यूज़ियम, कोल्हापुर म्यूज़ियम, औंध म्यूजियम, नागपुर म्यूज़ियम आदि से वस्तुओं के बारे में जानकारियां दीं।

यहाँ वे कुछ वस्तुएँ हैं जिनके बारे में उन्होंने बात की-

1. पोसाइडन की कांसे की मूर्ति, टाउन हॉल संग्रहालय, कोल्हापुर

ये मूर्ति प्राचीन व्यापारिक संबंधों और इसके प्रभाव के बारे में बताती है… 1950 के दशक में कोल्हापुर में पंचगंगा नदी के किनारे ब्रह्मापुरी नामक एक पहाड़ी में खुदाई में समंदर के ग्रेको रोमन देवता पोसाइडन की कांसे की मूर्ति मिली थी। यह मूर्ति विशिष्ट यूनानी शैली में बनी है। पहले माना जाता था कि इसे बाहर से आयात किया गया है लेकिन हालिया विश्लेषण से पता चला है कि इसे स्थानीय स्तर पर ही बनाया गया था।

2. एलिफ़ेंट राइडर्स ( हाथी सवार), टाउन हॉल संग्रहालय, कोल्हापुर

डॉ. गर्ग के अनुसार यह वस्तु संभवतः सातवाहन और शुंग युग की है। लॉस्ट वैक्स तकनीक से बना ये रुपांकन पश्चिमी भारतीय रॉक-कट वास्तुकला में एक पिलर कैपिटल में खास कर देखा जाता है। डॉ. गर्ग का कहना है कि यह कलाकृति पुरातात्विक खुदाई में नहीं मिली थी और तभी इसे अनोखी चीज़ माना गया है।

3. विष्णु की मूर्ति, रत्नागिरी संग्रहालय

शिल्हारा काल की यह मूर्ति आरंभिक ऐतिहासिक चरण से हाल ही के ऐतिहासिक चरणों तक के संक्रमण काल को दर्शाती है। कुषाण जैसे आरंभिक चरण में विष्णु की मूर्तियों के सभी चार हाथ ऊपर की तरफ़ उठे रहते थे लेकिन इस मूर्ति के दो हाथ कमर के स्तर पर हैं और दो हाथ ऊपर की तरफ़ उठे हुए है। विष्णु की ये मूर्ति उस समय की कला को बेहद अच्छी तरह से दर्शाती है।

4. जेम्स वेल्स की पेंटिंग

ब्रिटिश दौर के पेंटर जेम्स वेल्स ने ने मराठा साम्राज्य की कई हस्तियों की पेंटिंग बनाई जिनमें नाना फड़नवीस (पेशवा दरबार के राजनेता) और माधवराव पेशवा की पेंटिंग भी बनाई हैं। सर चार्ल्स मैलेट, जो पेशवाओं के दरबार में एक रेज़िडेंट के रूप में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के मुलाज़िम थे, ने इन चित्रों को बनवाया था जो यूरोपीय शैली में हैं। इन दो भव्य चित्रों को सांगली संग्रहालय में देखा जा सकता है। जेम्स वेल्स की एक और प्रसिद्ध पेंटिंग महादजी शिंदे की है जो अब नागपुर संग्रहालय में रखी हुई है।

5. विवाह समारोह का दृश्य, सांगली संग्रहालय

डॉ. गर्ग ने बताया कि जेजे स्कूल ऑफ आर्ट्स के 19 वीं शताब्दी के चित्रकार राव बहादुर एम.वी. धुरंधर की इस पेंटिंग में पारंपरिक मराठी विवाह समारोह के दृश्यों का चित्रण है। यह पेंटिंग सही मायनों में गुज़रे ज़माने के एक मराठी परिवार की सुंदरता को दर्शाती है।

पुरातत्वविद् और इलाहाबाद संग्रहालय के निदेशक डॉ. सुनील गुप्ता ने संग्रहालय के विशिष्ट संग्रह से हमारा परिचय करवाया। भारत के 4 राष्ट्रीय संग्रहालयों में से एक इस संग्रहालय की शुरुआत सन 1931 में नगर निगम संग्रहालय के रूप में हुई थी। डॉ. गुप्ता ने बताया कि संग्रहालय की भौगोलिक स्थिति भी बहुत महत्वपूर्ण होती है। ये संग्रहालय मध्य गंगा घाटी में स्थित है जो संग्रहालय के पुरातात्विक संग्रह से स्पष्ट है। संग्रहालय वर्तमान में ऐतिहासिक चंद्र शेखर आज़ाद पार्क (पूर्व में अल्फ्रेड पार्क) में स्थित है जहाँ महान स्वतंत्रता सेनानी चंद्र शेखर आज़ाद शहीद हुए थे। इलाहाबाद संग्रहालय में मथुरा और गांधार कला, भारत के स्वतंत्रता संग्राम की कई प्रतिष्ठित वस्तुओं और आधुनिक चित्रों का एक विशाल भंडार है। इलाहाबाद संग्रहालय में प्रसिद्ध रूसी कलाकार निकोलस रोरिक द्वारा बनाए गए चित्रों का भारत में सबसे बड़ा संग्रह है। यहां हम आपको बताने जा रहे हैं इलाहाबाद संग्रहालय के उन कुछ वस्तुओं के बारे में जिन्हें डॉ. गुप्ता ने दर्शकों के साथ साझा किया।

1.एकमुखी शिव लिंग

नक़्क़ाशीदार शिव लिंग की यह उत्कृष्ट कलाकृति 5वीं शताब्दी (गुप्त काल) की है। यह गुप्त काल की कला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। शिव के चेहरे को शिव लिंग से बाहर निकलते हुए देखा जा सकता है जो इसे आकर्षक बनाता है। शिव के चेहरे के भाव, नीचे झुकी आँखें और हल्की मुस्कान देखते ही बनती है। डॉ. गुप्ता के अनुसार इसे भारतीय कला का चरमोत्कर्ष कहा जा सकता है।

2. टेराकोटा कलाकृति

दूसरी सदी की टेराकोटा की यह कलाकृति बहुत दिलचस्प है क्योंकि आप उस पर आंतों जैसी संरचना देख सकते हैं। इसका इस्तेमाल शायद मेडिकल छात्रों को समझाने के लिए किया जाता होगा। दिलचस्प बात यह है कि यह वह समय था जब महान भारतीय विद्वान और चिकित्सक सुश्रुत, जिन्होंने सुश्रुत संहिता का संकलन किया था, भी थे। डॉ. गुप्ता का कहना है कि इन दोनों के बीच संबंध हो सकता है। यह कलाकृति कौशाम्बी में खुदाई के दौरान मिली थी।

3. चंद्र शेखर आज़ाद की पिस्तौल

इलाहाबाद संग्रहालय में महान स्वतंत्रता सेनानी चंद्र शेखर आज़ाद की 0.32 कोल्ट पिस्तौल अब देखी जा सकती है। यह इलाहाबाद के पुराने इलाक़े कर्नलगंज में उनके कमरे से मिली थी। हालांकि सन 1931 में ब्रिटिश सेना के साथ हुई आखिरी मुठभेड़ में उन्होंने इस पिस्तौल का इस्तेमाल नहीं किया था लेकिन फिर भी ये संग्रह में एक प्रतिष्ठित वस्तु है। इस पिस्तौल को एक अंग्रेज पुलिस अधिकारी ब्रिटेन ले गया था लेकिन बाद में उसने सन 1977 में इसे उत्तर प्रदेश राज्य को वापस कर दिया था।

4.गांधी स्मृति वाहन

यह वही फोर्ड लॉरी है जिसमें महात्मा गांधी की अस्थियों को सन 1948 में विसर्जन के लिए त्रिवेणी संगम ले जाया गया था। इस लॉरी में इलाहाबाद रेलवे स्टेशन से अस्थियां लाईं गईं थीं। अस्थियों को दिल्ली से भेजा गया था। पहले यह लॉरी चलती नहीं थी लेकिन सन 2008 में कुछ इंजीनियरों और मैकेनिकों ने इसे फिर से चलने लायक बना दिया।

5. ए.के हलधर की बनाई अकबर की पेंटिंग

इलाहाबाद संग्रहालय में चित्रकार असित कुमार हलधर के 200 से अधिक चित्रों का संग्रह है। बंगाल स्कूल के भारतीय चित्रकार हलधर शांतिनिकेतन में रवींद्रनाथ टैगोर के सहायक होते थे। इस पेंटिंग में मुग़ल बादशाह अकबर को इलाहाबाद में एक क़िले के निर्माण को देखते दर्शाया गया है।

नियोगी बुक्स में सीओओ और निदेशक तृषा नियोगी ने दर्शकों को भारत के संग्रहालयों में रखी पहाड़ी पेंटिंग्स के दर्शन करवाए। भारत के प्रमुख प्रकाशक नियोगी बुक्स ने भारतीय कला और संग्रहालयों पर कई पुस्तकें प्रकाशित की हैं। वे ’ट्रेज़र’ नामक पुस्तकों का एक संकलन भी तैयार कर रहे हैं। इस संकलन में भारतीय संग्रहालयों के ख़ज़ानों की जानकारी होगी। राष्ट्रीय संग्रहालय, दिल्ली, सी.एस.एम.वी.एस. मुंबई, इलाहाबाद संग्रहालय और सालार जंग संग्रहालय, हैदराबाद पर चार पुस्तकें पहले ही प्रकाशित हो चुकी हैं। चलिए एक नज़र डालते हैं उन कुछ पहाड़ी पेंटिग्ज़ पर जिनके बारे में तृषा ने हमें बताया।

1. ऋषि भृगु को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए ऋषि अंगिरस, राष्ट्रीय संग्रहालय, दिल्ली

बशोली की यह विस्तृत पहाड़ी पेंटिंग काफी अनोखी है। तृषा के अनुसार इस पेंटिग में हल्के और मटियाली रंगों का प्रयोग किया गया है जबकि चटकदार रंग पहाड़ी पेंटिग्स की विशेषता होते हैं। तृषा ने बताया कि इस पेंटिंग में वनस्पतियों और जीवों के चित्रण की जटिलता ही इस पेंटिग की ख़ासियत है।

2. वासकसज्जा नायिका, सीएसएमवीएस, मुंबई

तृषा के अनुसार इस पेंटिंग में नायिका भेद का चित्रण है। इसमें श्रृंगार रस का सार है, जो भारतीय अभिनय कला के नौ रसों या अभिव्यक्तियों में से एक है। राधा को कृष्ण की प्रतीक्षा में यहाँ देखा जा सकता है और इस पेंटिग में उनकी एक सहेली भी है। तृषा ने कहा कि एक नृत्यांगना होने के नाते यह उनकी पसंदीदा पेंटिग्स में से एक है।

3. सीटेड ऋषि, सालारजंग संग्रहालय, हैदराबाद

इस पेंटिंग में एक राजा, एक रईस और एक जोगी या फ़कीर को एक साथ बैठा दिखाया गया है। कोई व्यक्ति अपनी कल्पनाशीलता से इनकी हैसियक के अंतर को समझ सकता है। इसके अलावा, जोगी के कंधे पर रखे सूफ़ी उपकरण या तीनों की पोशाकों में अंतर जैसी चीज़ों के विवरणों पर भी ध्यान दिया गया है।

4. मनु और शतरूपा, इलाहाबाद संग्रहालय

इस पेंटिंग में तीन अलग-अलग दृश्यों में हिंदू पौराणिक कथाओं के मनु और शतरूपा के चरित्रों को दिखाया गया है और इसमें तीन स्थितियों को एक स्थिति में समाहित करने की विविधता ही इसे विशिष्ट बनाती है। मनु और शतरूपा के साथ ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी हैं।

लिव हिस्ट्री इंडिया की शोध टीम ने सबसे प्रमुख संग्रहालयों में से कुछ नायाब वस्तुओं को भी सामने रखा। ये उनमें से कुछ है-

1. बुद्ध के अवशेष

दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय और पटना संग्रहालय में आगंतुकों के लिए बुद्ध के पवित्र अवशेष एक प्रमुख आकर्षण हैं। राष्ट्रीय संग्रहालय में, बुद्ध की अस्थियों के लगभग 20 टुकड़े हैं जो सन 1970 के दशक में उत्तर प्रदेश के पिपरहवा नामक स्थल में खुदाई में मिले थे। बाद में कुछ विद्वानों ने इस स्थल की कपिलवस्तु के रूप में पहचान की जो शाक्य राज्य की राजधानी थी। बुद्धा शाक्य राज्य के ही राजकुमार थे। ताबूत में ये अस्थियां और अन्य क़ीमती नग और गहने हैं।

बिहार के पटना संग्रहालय में भी एक ताबूत है जिसमें बुद्ध के अवशेष रखे हुए हैं। इसकी खोज प्रसिद्ध पुरातत्वविद् और इतिहासकार ए.एस. अल्तेकर ने सन 1958-1961 के दौरान बिहार के वैशाली में एक स्तूप की खुदाई में की थी। बुद्ध के अवशेषों के अलावा कुछ मोती, तांबे के चिह्नित सिक्के, एक शंख और सोने का एक पत्ता भी ताबूत में मिला था।

दोनों ही संग्रहालयों में इन दिव्य अवशेषों को देखें कई लोग आते हैं।

2. दीदारगंज यक्षी, बिहार संग्रहालय

दीदारगंज यक्षी (मुख्य चित्र में), जिसे कला इतिहास के क्षेत्रों में भारत की मोना लिज़ा के रूप में भी जाना जाता है, बिहार संग्रहालय में है। इसे मौर्यकालीन कला का सबसे अच्छा उदाहरण माना जाता है। आदमक़द यक्षी की मूर्ति 5 फीट 2 इंच लंबी है। ये चौरी (फ्लाई व्हिस्क) वाहक की एक प्रतिमा है। प्रतिमा को बलुआ पत्थर (चुनार से) के एक टुकड़े से तराश कर बनाया गया है और इसमें मौर्यकालीन दर्पण की पॉलिश है। यह दूसरी शताब्दी (मौर्य काल) के आसपास की है। प्रतिमा का नाम दीदारगंज यक्षी इसलिए रखा गया है क्योंकि यह सन 1917 में, पुराने पटना शहर के दीदारगंज में गंगा नदी के तट पर मिली थी जहां ये दबी हुई है।

3. सारनाथ का सिंह स्तंभ शिखर, सारनाथ संग्रहालय

उत्तर प्रदेश के सारनाथ में ये अशोक स्तंभ का सिंह स्तंभ शिखर है जिसे स्वतंत्रता के बाद हमारे राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में अपनाया गया था। यह मूल रूप से स्तंभ के शीर्ष पर हुआ करता था जिसके बारे में कहा जाता है कि यह अशोक के शासन के दौरान लगभग 250 ई.पू में बनाया गया था। 1905 में जर्मन मूल के सिविल इंजीनियर फ्रेडरिक ऑस्कर ओर्टेल ने सारनाथ में खुदाई में इसे खोजा था और अब ये सारनाथ संग्रहालय में रखा हुआ है। इसमें शीर्ष पर चार शेरों को दर्शाया गया है, जो चार दिशाओं में देख रहे हैं। ये सिंह एक बेलनाकार आधार पर खड़े हैं जो एक बैल, एक घोड़े, एक हाथी, एक शेर और धर्म चक्र से सजा हुआ है – ये सभी बौद्ध धर्म के महत्वपूर्ण प्रतीक हैं।

4. दायमाबाद पुरुष, नेशनल म्यूजियम, नयी दिल्ली

इस कांस्य की मूर्ति को दायमाबाद पुरुष के रूप में जाना जाता है और कई लोग मानते हैं कि यह शिव के सबसे पुराने चित्रणों में से एक हो सकता है! आप इसे दिल्ली में राष्ट्रीय संग्रहालय में देख सकते हैं। यह मूर्ति दायमाबाद में मिली थी जहां तांबा मिलता है। ये स्थान वर्तमान महाराष्ट्र के अहमदनगर ज़िले में है जहां 2200-1000 ई.पू में भी तांबे की खानें होती थीं। यह महाराष्ट्र का वह स्थल है जहां सबसे ज़्यादा तांबा मिलता है। दायमाबाद पुरुष, दायमाबाद में मिले कांसे की चार मूर्तियों के झुंड का एक हिस्सा था। यह एक पुरुष की विस्तृत कांस्य मूर्ति है जिसमें पुरुष एक रथ पर सवार है जिसे बैल खींच रहे हैं।

5. तांबे की मानव रुपी मूर्ति

यह उत्तर प्रदेश के शाहाबाद में मिली तांबे की मानव रुपी मूर्ति है जो तीन हज़ार साल पुरानी है। इसका संबंध गंगा घाटी के रहस्यपूर्ण ताम्र संचय से संबंधित है। आप इसे मथुरा संग्रहालय में देख सकते हैं। इसे सांस्कृतिक और विरासत संगठन इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट, कल्चर एंड हेरिटेज (INTACH) ने अंगीकृत कर लिया है। तांबे की वस्तुएं, अमूमन तांबे के औज़ार और हथियार, उत्तरी भारत में विशेष रूप से दोआब क्षेत्र में बिखरे पड़े हैं। ये मूर्तियां, जिन्हें मानव रुपी माना जाता है, इस ढ़ेर महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

यह हमारे संग्रहालयों में रखी समृद्ध ऐतिहासिक संपदा, संस्कृति और कला की एक छोटी सी झलक है। लेकिन हम उनके बारे में इतना कम क्यों जानते हैं? और संग्रहालय कैसे रोमांचक स्थान बन सकते हैं जबकि वह इन वस्तुओं के माध्यम से कई कहानियां बयां करते हैं?

हमारे पैनलिस्टों के पास इन प्रश्नों के कुछ उत्तर थे। वे इस बात पर सहमत हुए कि हमारे संग्रहालयों को पुनर्जीवित करने के लिए बहुत कुछ करने की आवश्यकता है, हालाँकि, इस दिशा में कुछ गतिविधियाँ और काम किए जा रहे हैं जिससे न सिर्फ़ लोगों का जुड़ाव बढ़ रहा है बल्कि संग्रहालयों और उनके संग्रह के बारे में लोगों को जागरूक करने में भी मदद मिल रही है।

सी.स.एम.वी.एस. द्वारा म्यूज़ियम ऑन व्हील्स जैसी अभिनव पहल का उदाहरण देते हुए डॉ. गर्ग ने बताया कि इस पहल के तहत एक म्यूज़ियम बस को विषयगत संग्रहों के साथ मुंबई और उसके बाहर महाराष्ट्र के कोने कोने में स्कूलों, कॉलेजों और गैर-सरकारी संगठनों तक ले जाया जाता था। डॉ. गर्ग ने कहा, “यह लोगों तक पहुंचने का एक शानदार प्रोग्राम था..हमने एक साल में लगभग 27 हज़ार छात्रों तक ये बस पहुंचाई… हम इस कार्यक्रम को और आगे ले जाने के लिए तैयार हैं। इस मामले में शिक्षा महत्वपूर्ण है और मैं इन सभी संग्रहालयों को ज्ञान का केंद्र मानता हूं इसलिए उन्हें हर क्षेत्र का सांस्कृतिक केंद्र बनना चाहिए, उन्हें जीवंत होना चाहिए और यहां तक कि स्थानीय लोगों में अपनेपन की भावना होनी चाहिए। हमने स्थानीय लोगों को ख़ुद के कार्यक्रम बनाने की छूट दे रखी है। कोल्हापुर में साल में एक बार स्थानीय कलाकार के लिए एक समारोह होता है जिसका आयोजन हमारे संग्रहालय में होता है।”

चर्चा में जहां ऑडियो गाइड, आयोजित टूर विषय बात की गई वहीं एक और दिलचस्प बात यह भी रही कि कैसे संग्रहालयों में उपहार और स्मारिका की दुकानें संग्रहालयों को और अधिक आकर्षक बनाने में मदद कर सकती हैं जिसके दूरगामी नतीजे निकल सकते हैं। लोग अपनी पसंदीदा वस्तुओं की नक़ल के रूप में इतिहास का एक छोटा-सा हिस्सा अपने साथ वापस घर ले जा सकते हैं। इस संदर्भ में इलाहाबाद संग्रहालय की पहल का उदाहरण देते हुए डॉ. गुप्ता ने कहा, “हां, मैं मानता हूं कि हमने माल तैयार करने के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं किए हैं, जिसका अर्थ है कि संग्रहालयों में जो हमारे समृद्ध संग्रह हैं, उनकी वस्तुओं की नक़ले, टी-शर्ट या स्मृति चिन्ह बनाना। पश्चिमी देशों में एक छोटे से संग्रहालय में भी आकर्षक उपहारों की दुकान होती है…इलाहाबाद संग्रहालय, पिछले दो दशकों से, वस्तुओं की नक़ल बनाने वाली एक बहुत सक्रिय कार्यशाला है….हमने कई चित्रों और कलाकृति को फोलियो में विकसित किया गया है जिसे हम फ्रेम करते हैं और बेचते हैं। हमारे यहां ये काम जारी है….लेकिन हाँ, यह एक बड़ा बाज़ार है जिसका पूरा उपयोग किया जाना चाहिये…”

तकनीक और रखरखाव, कलाकृतियों तथा वस्तुओं का प्रलेखन और उन्हें सूचीबद्ध करने के संदर्भ में, संग्रहालयों का आधुनिकीकरण और बेहतर जागरुकता कार्यक्रमों के ज़रिए निश्चित रूप से आगे बढ़ाया जा सकता है। लेकिन संग्रहालयों की वस्तुओं पर पुस्तकों और नामावली का प्रकाशन इन ख़ज़ानों के बारे में जानकारी का प्रसार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। तृषा नियोगी ने इस बारे में कहा, “ कैसे संग्रहालय के संग्रह पर पुस्तकों की श्रृंखला प्रकाशित करना भी एक कठिन काम रहा है। इस पुस्तक को तैयार करने के पहला चरण में इन संग्रहालयों की वस्तुओं का विस्तृत ज्ञान होना चाहिए। इसके लिए हमें हर संग्रहालय में जाना पड़ा, एक बार नहीं कई बार ताकि उनका अध्ययन किया जा सके और ये समझा जा सके कि किस पर ध्यान केंद्रित करना है।“

डॉ. गुप्ता ने यह भी सुझाव दिया कि संग्रहालयों, जो क्यूरेटोरियल हब के रूप में कार्य करते हैं, उन्हें अनुसंधान आदि के संदर्भ में अन्य संस्थानों के लिए परामर्शी विंग के रूप में भी काम करना चाहिए। इससे विभिन्न संगठनों के बीच सहयोग के अवसर बढ़ेंगे।

इस तरह के विचार और सुझाव उम्मीद की एक ऐसी किरण है कि हमारे संग्रहालय और उनका विशाल भंडार जल्द ही व्यापक दर्शकों तक पहुंचेंगे और संग्रहालयों को वो सम्मान मिलेगा जिसके वे हक़दार हैं क्योंकि वे हमारे महान अतीत की खिड़कियां हैं।

मुख्य चित्र: दीदारगंज यक्षी, विकिमीडिआ कॉमन्स

ये सत्र अंग्रेज़ी में हमारे चैनल पर दिखाया गया है। आप इस सत्र की पूरी परिचर्चा अंग्रेज़ी में यहां देख सकते हैं-

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