लखनऊ का विक्टोरिया मेमोरियल

कोलकता का विक्टोरिया मेमोरियल शहर की पहचान बनाने वाली इमारतों में से एक है लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि लखनऊ में भी विक्टोरिया मेमोरियल है जो शहर के बीच हज़रत महल पार्क के एक किनारे स्थित है।

क्वीन विक्टोरिया ने सन 1837 से लेकर सन 1901 तक यानी 63 साल तक ब्रिटिश साम्राज्य पर हुक़ुमत की थी। उस समय ब्रिटिश इतिहास में इतने लंबे अर्से तक शासन करने वाली वह पहली शासक थीं। उनके शासनकाल को विक्टोरिया युग कहा जाता है । उनके शासनकाल में ही अंग्रेज़ साम्राज्य का इतना विस्तार हुआ था कि कहा जाता था,“अंग्रेज़ साम्राज्य में कभी सूर्यास्त नही होता।”

22 जनवरी सन 1901 में, 81 साल की उम्र में महारानी विक्टोरिया के निधन के बाद भारत में अंग्रेज़ सरकार ने उनकी स्मृति में हर प्रांतीय राजधानी में भव्य स्मारक बनाने का प्रस्ताव रखा। उस समय भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड कर्ज़न हुआ करते थे जिनका अंग्रेज़ शाही परिवार से बहुत लंबा और गहरा नाता था। उनके प्रयासों की वजह से ही सन 1906 में कोलकता में भव्य स्मारक विक्टोरिया मेमोरियल का निर्माण शुरु हुआ। इसे बनाने के लिये भारतीय महाराजाओं और नवाबों से पैसा लिया गया था। इसके अलावा जनता से भी चंदा लिया गया था।

कोलकता का स्मारक जो सबसे भव्य और सबसे महंगा था वहीं मद्रास, इलाहबाद, लाहौर और लखनऊ में भी महारानी की स्मृति में छोटे छोटे स्मारक बनवाए गए थे। अंग्रेज़ अधिकारियों ने अवध (अब उत्तर प्रदेश का हिस्सा) में विक्टोरिया मेमोरियल बनाने के उद्देश्य से धन जमा करने के लिये एक समिति बनाई। इस समिति के ज़रिये दो लाख 66 हज़ार 647 रुपये जमा किये गए जिसमें से 26 हज़ार पांच सौ रुपये कलकत्ता के इम्पीरियल मेमोरियल फंड को भेजे गए। ये फंड लॉर्ड कर्ज़न ने बनाया था। बाक़ी की धनराशि अवध में, लखनऊ और इलाहबाद में महारानी की याद में दो स्मारक बनवाने के लिये रखी गई।

अंग्रेज़ों ने सन 1856 में अवध साम्राज्य पर क़ब्ज़ा कर लिया था जिसकी वजह से सन 1857 का बग़ावत हुई। ग़दर का केंद्र लखनऊ शहर था और इसका नेतृत्व वाजिद अली शाह की बेगम हज़रत महल कर रहीं थीं। अंग्रेज़ों ने क्रूरता के साथ विद्रोह को कुचलकर नवाबी दौर की इमारतों को ध्वस्त कर दिया। अंग्रेज़ दरअसल लखनऊ के नवाबों के इतिहास को मिटाना चाहते थे। वे लखनऊ में विक्टोरिया मेमोरियल बनाकर शहर पर अपनी छाप छोड़ना चाहते थे।

लखनऊ में विक्टोरिया मेमोरियल में महारानी विक्टोरिया की मूर्ति मशहूर अंग्रेज़ मूर्तिकार हैमो थॉर्नीक्रोफ़्ट (1850-1925) ने डिज़ाइन की थी। लंदन में शानदार मूर्तियों में से कुछ मूर्तियां बनाने का श्रेय “नयी मूर्ति के जनक” थॉर्नीक्रोफ़्ट को जाता है। कलकत्ता के विक्टोरिया मेमोरियल में किंग जॉर्ज पंचम और लॉर्ड कर्ज़न की मूर्तियां भी इन्होंने बनाईं थीं।

स्मारक की डिज़ाइन सेना के इंजीनियर सर सैमुअल स्विंटन जैकब (1841-1917) ने बनाई थी। सर जैकब को जयपुर के अल्बर्ट हॉल और बीकानेर के लालगढ़ महल जैसे भवन बनाने के लिये जाना जाता था।

स्मारक बनाने का काम सितंबर सन 1904 में शुरु हुआ और दो अप्रैल 1905 में ख़त्म हुआ था। इस पर लगभग डेढ़ लाख रुपये ख़र्च हुए थे। हालंकि जैकब को नव-क्लासिकी वास्तुकला पसंद थी जो गोथिक और इंडो- इस्लामिक शैली का मिश्रण होती है, लेकिन यहां जो स्मारक बना उसमें भारतीय शैली की ज़्यादा झलक मिलती थी। इसकी इस बात से भी पुष्टि होती है कि पूरा ढांचा एक ऊंचे चबूतरे पर है और चबूतरे के चारों कोनों पर चार छतरियां हैं। स्मारक के ऊपर गुंबद के इर्द-गिर्द चार और छतरियां हैं जो मस्जिद के मानार की तरह लगती हैं। गुंबद अपने आप में इस्लामिक शैली का है जिसके ऊपर कमल की कली का उल्टा कलश है। स्मारक का निर्माण लोक निर्माण विभाग के औपनिवेशिक इंजीनियरों की देखरेख में आगरा की मैसर्स एडम एंड कंपनी ने किया था।

स्वतंत्रता संग्राम और फिर सन 1947 में आज़ादी के बाद देशभक्ति की भावना से लखनऊ में महारानी विक्टोरिया की मूर्ति बच नहीं सकी। आज़ादी के बाद देश भर में कई औपनिवेशिक मूर्तियों को हटा दिया गया था। लखनऊ में एक मंडप के भीतर छतरी के नीचे महारानी विक्टोरिया की बैठी मुद्रा में एक मूर्ति थी जिसे हैमो थॉर्नीक्रोफ़्ट ने बनाया था। इस मूर्ति को वहां से हटाकर लखनऊ राज्य संग्रहालय में रख दिया गया।

सन 1957 में सिपाही बग़ावत के शताब्दी महोत्सव के मौक़े पर सन 1857 के ग़दर में महत्वपूर्ण भूमिका के लिये राज्य सरकार ने विक्टोरिया पार्क का नाम बदलकर अपदस्थ नवाब वाजिद अली शाह की पत्नी बेगम हज़रत महल के नाम पर बेगम हज़रत महल पार्क रख दिया था। उसी समय मंडप के अंदर पट्टिका के साथ एक स्तंभ स्थापित किया गया था। पट्टिका पर बेगम हज़रत महल का उल्लेख था। राज्य सरकार मौजूदा पीठिका पर बेगम हज़रत महल की एक मूर्ति बनवाना चाहती थी लेकिन रुढ़िवादी मुसलमानों की वजह से ऐसा नहीं हो पाया। इनका मानना था कि सार्वजनिक स्थल पर एक मुसलमान महिला की मूर्ति नहीं लगाई जा सकती।

विक्टोरिया मेमोरियल स्मारक देखने के लिये टिकट लगता है और ये सुबह छह बजे से शाम पांच बजे तक खुला रहता है। रात को स्मारक में चराग़ा होता है लेकिन बेगम बह़रत महल की पट्टिका या तो चोरी हो गई या फिर हटा दी गई। इस स्मारक के साथ प्रसिद्ध वास्तुकारों और मूर्तिकारों के नाम जुड़े हुए हैं लेकिन इसकी लखनऊ के प्रमुख स्मारकों में गिनती नही होती है हालंकि बेगम हज़रत महल पार्क लखनऊ वालों की पसंदीदा जगह है।

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