ताजमहल पूरे विश्व में आज भारत की पहचान है। ताजमहल को यूं ही दुनियां के सात अजूबों में शामिल नहीं किया गया है। इसकी सुंदरता तो बस देखते ही बनती है। ताजमहल को उसकी असाधारण वास्तुकला के लिये ही नहीं बल्कि उसके साथ जुड़े रोचक इतिहास के लिये भी जाना जाता है। मुग़ल बादशाह शाहजहां ने आगरा शहर में अपनी तीसरी पत्नी मुमताज़ महल की याद में ये मक़बरा बनवाया था जिसे मुहब्बत की निशानी भी कहा जाता है। किसी समय ताजमहल परिसर में बाज़ार और सराय भी हुआ करती थीं। यहां न सिर्फ़ मुमताज़ महल की क़ब्र है बल्कि शाहजहां भी यहीं दफ़्न हैं। कहा जाता है कि शाहजहां की और दो पत्नियों की भी क़बरे यहीं हैं। इसी तरह के न जाने कितने कहानी-क़िस्से ताजमहल से जुड़े हुए हैं।
आगरा, भारत में मुग़लों की पहली राजधानी थी जो बाबर, अकबर और जहांगीर के शासनकाल में ख़ूब फूलीफूली लेकिन सन 1628 में सत्ता संभालने के बाद शाहजहां के शासनकाल में आगरा में और ख़ुशहाली आई। सन 1638 तक आगरा मुग़ल राजधानी रहा। इसके बाद शाहजहां ने दिल्ली में अपनी राजधानी के लिये शाहजानाबाद बनवाया । इतिहास हमें बताता है कि शाहजहां को इमारतें बनवाने का बड़ा शौक़ था । वह कलाओं प्रेमी भी था।
इतिहास हमें शाहजहां और मुमताज़ महल की मोहब्बत के बारे में भी बताता है जो सफ़ेद पत्थरों में अमर हो चुकी है। कहा जाता है कि शाहजहाँ अपनी बीवियों में से सबसे ज़्यादा प्यार मुमताज़ महल से करता था। दोनों की मोहब्ब्त का तफ़्सील से ज़िक्र मोहम्मद अमीन क़ज़वीनी जैसे दरबारी लेखकों ने भी किया है। मुमताज़ महल अकसर शाहजहां के साथ उनकी सैन्य मुहिम में साथ जाया करती थीं। सन 1631 में, बच्चे के जन्म के दौरान अचानक मुमताज़ की मृत्यु से शाहजहां पर ग़म का पहाड़ टूट पड़ा था।
लेकिन बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि मुमताज़ महल की मृत्यु आगरा में नहीं हुई थी और उन्हें पहले यहां नहीं दफ़नाया गया था। उनकी मृत्यु आगरा से 900 कि.मी. दूर मध्य प्रदेश के बुरहानपुर शहर में हुई थी। उस समय शाहजहां अहमदनगर के निज़ाम शाहों से लड़ रहे थे और मुमताज़ महल उनके साथ थीं।
मुमताज़ महल को बुरहानपुर में दफ़न नहीं किया जाना था। शाहजहां चाहते थे कि उन्हें राजधानी आगरा में दफ़्न किया जाए और वहां स्वर्ग की तरह का एक शानदार स्मारक बनवाया जाए। लेकिन मुमताज़ को पहले बुरहानपुर के बाग़ ज़ैनाबाद में दफ़्न किया गया। बाद में 14 दिसंबर सन 1631 में मुमताज़ महल के ताबूत को एक जुलूस का शक्ल में आगरा ले जाया गया था। उपलब्ध रिकार्ड के अनुसार जुलूस का नेतृत्व शाहजहां के पुत्र शाह शुजा और परिवार के हकीम वज़ीर ख़ान कर रहे थे। जुलूस में हज़ारों सैनिक भी शामिल थे। मुमताज़ महल का शव सोने के ताबूत में रखा गया था।
क़रीब एक महीने बाद जनवरी सन 1632 में जनाज़ा आगरा पहुंचा जहां पहले मुमताज़ के शव को एक बाग़ में दफ़्न किया गया जो शाहजहां के सिपहसालार,आमेर के राजा जयसिंह की मिलकियत था। वास्तुकारों के अनुसार ये जगह यमुना नदी के किनारे पर थी और ये भारी भरकम स्मारक बनाने के लिये एकदम उपयुक्त थी। शाहजहां ने राजा जयसिंह से ये जगह ले ली और बदले में उन्हें एक विशाल हवैली दे दी। ताजमहल में मुमताज़ को दफ़नाने को लेकर दो बातें कही जाती हैं। एक कथा के अनुसार मुमताज़ का शव ताजमहल बनने के बाद वहां लाया गया जबकि दूसरी कथा के अनुसार मुमताज़ की क़बर के ऊपर ही ताजमहल बनवाया गया था। ताजमहल का निर्माण कार्य सन 1632 में शुरु हुआ था।
सफ़ेद संगमरमर के मक़बरे में मुग़ल गार्डन में चारबाग़ की विशिष्टाएं दिखती हैं। मक़बरे के सामने यमुना नदी का दक्षिणी तट था। शाहजहां ‘जन्नती बाग़’ की तर्ज़ पर ताजमहल बनवाना चाहते थे जहां मुमताज़ को दफ़्न किया जा सके। जन्नती बाग़ की परिकल्पना ताजमहल की डिज़ाइन में आज भी देखी जा सकती है। ताजमहल मुग़ल वास्तुकला का बेहतरीन नमूना है।
ताजमहल बनवाने के लिये सफ़ेद संग-ए-मरमर आगरा से 400 कि.मी. दूर राजस्थान के मकराना से मंगवाया गया था। मकराना तब आमेर के शासक जयसिंह के क्षेत्रों में आता था। ताजमहल के निर्माण क लिये राजगीर, शिल्पकार, संगतराश, पेंटर, सुलेखक, मक़बरे बनाने वाले और अन्य कारीगरों को पूरे मुग़ल साम्राज्य से बुलवाया गया था। इसके अलावा मध्य एशिया और ईरान से भी कारीगर बुलवाये गए थे। ताजमहल का निर्माण कार्य सन 1648 में पूरा हो गया था लेकिन कहा जाता है कि इसमें बाक़ी काम सन 1653 तक चलता रहा।
ताजमहल का गहन अध्ययन करने वाले ऑस्ट्रिया के कला एवं वास्तुकला के इतिहासकार एब्बा कोच सहित कई विद्वानों का मानना है कि ताजमहल बनवाने का मक़सद सिर्फ़ वहां मुमताज़ को दफ़्न करना ही नहीं था बल्कि एक विशाल स्मारक के ज़रिये शाही संपदा और शक्ति का प्रदर्शन करना भी था। इसलिये ताजमहल शाहजहां के गौरवशाली शासन का प्रतीक था। एब्बा कोच ने सन 2005 में अपने एक पर्चे “ताज महल:आर्किटेक्चर, सिंबोलिज़म एंड अर्बन सिगनिफ़िकेंस “ में लिखा है कि ताज महल भावी पीढ़ी को ध्यान में रखकर बनवाया गया था, इसे देखने वाले हम लोग इसकी अवधारणा का हिस्सा रहे हैं।
दिलचस्प बात ये है कि किसी समय ताज महल परिसर में बाज़ार और सराय हुआ करती थीं और लोग दूर दूर से यहां आते थे। बाज़ार और सराय से होने वाली आमदनी ताजमहल के रखरखाव पर ख़र्च की जाती थी। ये बाज़ार और सराय ताजमहल परिसर के गार्डन और चौकोर प्लॉट से लगे रास्तों पर हुआ करती थीं। यहां मुमताज़ के मक़बरे के अलावा पवैलियन, दालान और अन्य स्मारक भी होते थे जिससे लगता है कि ये जगह सिर्फ़ मक़बरा ही नहीं थी बल्कि इसका इस्तेमाल अन्य कामों के लिये भी किया जाता रहा होगा।
मक़बरे के बाग़ीचे के दो प्रमुख हिस्से हैं- चौतरफ़ा चारबाग़ गार्डन और नदी की तरफ़ उठी हुई एक चबूतरा जिस पर मक़बरा और अन्य भवन बने हुए हैं। चारबाग़ की रिवायती डिज़ायन के हिसाब से मक़बरा को मध्य में होना चाहिये था लेकिन यहां मक़बरा बाग़ीचे के एक अंत पर है। इसकी वजह से ताज महल का निहायत ही सुंदर दृश्य दिखता है जिसके पीछे बहती हुई नदी दिखाई देती है। ताज महल की ख़ूबसूरती को बढ़ाने के लिये ही इस स्थान को चुना गया था। मक़बरे के एक तरफ़ मस्जिद और दूसरी तरफ़ मेहमान ख़ाना है। मक़बरे के सामने बाग़ीचे के रास्ते हैं जिसके छोर पर दो पवैलियन भी बने हैं।
ज़्यादातर लोगों को ये नहीं मालूम है कि ताज महल परिसर में एक छोटी सी बावड़ी भी है। ये बावड़ी परिसर में बने दो मीनारों में से एक मीनार के पास है। ताज महल के विशाल प्रवेश द्वार के पहले एक अग्र प्रांगड़ है जिसके पास मक़बरे की देखरेख करने वालों के लिये कमररे बने हुए हैं। ताज परिसर की एक और दिलचस्प बात यह है कि यहां सिर्फ़ मुमताज़ महल का ही मक़बरा नहीं है बल्कि कहा जाता है कि यहां परिसर के द्वार के क़रीब शाहजहां की बाक़ी दो बीवियों- अकबराबादी महल और फ़तेहपुरी महल के भी मक़बरे हैं। ये मक़बरे शायद ताज महल बनने के बाद सन 1643 में बनवाए गए थे और ये ज़्यादा मशहूर भी नहीं हैं।
सन 1658 में शाहजहां के बाग़ी बेटे औरंगज़ेब ने, तख़्त के असली वारिस यानी शाहजहां के बड़े बेटे, दारा शिकोह की हत्या कर पिता से सत्ता छीन ली। शाहजहां उस समय दिल्ली से शासन करते थे। औरंगज़ेब ने शाहजहां को गिरफ़्तार कर आगरा के क़िले में क़ैद कर दिया। कहा जाता है कि शाहजहां ने क़िले के अपने कमरे से ताज महल को देखते हुए अपने आख़िरी आठ साल गुज़ारे। सन 1666 में जब शाहजहां की मृत्यु हुई तो उन्हें ताज महल में मुमताज़ महल की क़ब्र के पास ही दफ़्न कर दिया गया। ऐसा कोई दस्तावेज़ उपलब्ध नहीं है जिससे पता चल सके कि शाहजहाँ को यहाँ दफ़नाने का निर्णय किसका था या क्या शाहजहां को दफ़्न करने के लिए यह जगह पहले से तय थी।
इसमें कोई शक नहीं कि सजावट के मामले में ताज महल सबसे अनोखा है। ताज महल पर किये गये बारीक और विस्तृत काम की वजह से ही ये स्मारक पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। मक़बरे के अंदर पैनलों पर अरबी भाषा में क़ुरान की आयतें, ख़ूबसूरत लिखावट में लिखी गई हैं और पत्थरों पर फूल-पत्तियों की डिज़ाइन तथा जाली पर सुंदर नक़्क़ाशी की हुई है। संगमरमर पर उभरी हुई नक़्क़ाशी क़ीमती पत्थरों पर सुंदर कारीगरी न सिर्फ़ उस समय की शिल्पकला को दर्शाती है बल्कि मुग़ल साम्राज्य की ख़ुशहाली को भी बयां करती है। विशाल मक़बरे के अंदर मुमताज़ महल और शाहजहां की क़ब्रें हैं। उनकी असली क़ब्रें भूतल में हैं। इन दोनों फ़रज़ी क़ब्रें के आसपास अष्टकोणीय घेरा है जो संगमरमर की ख़ूबसूरत जड़ाउ नक़्क़ाशीदार जाली से बना है।
ताज महल के निर्माण से जुड़े मुख्य वास्तुकार, पैंटर और सुलेखकों का उल्लेख मौजूद है। सुलेखकों में से एक ईरान के शिराज़ शहर के रहने वाले अब्दुल हक़ को ताज महल बनने के बाद अमानत ख़ान का ख़िताब दिया गया था। उन्हें अपने काम के साथ अपना नाम लिखने की इजाज़त भी दी गई थी।अमानत ख़ान ने स्मारक पर क़ुरान की आयतें लिखी थीं। इसी अभिलेखों में वर्णित तारीख़ों से हमें ताज महल के निर्माण के कालक्रम के बारे में पता चलता है। हमें यह भी पता लगता है कि ताज महल के निर्माण के दौरान शाहजहां इसमें शामिल सभी लोगों के साथ रोज़ बैठकें करते थे। कहा जाता है कि शहजहां के दरबार के मुख्य वास्तुकार अहमद लाहौरी और एक अन्य वास्तुकार मीर अब्दुल करीम की निगरानी में ताज महल बना था। अहमद लाहौरी ने दिल्ली के लाल क़िले की बुनियाद भी डाली थी।
मुग़ल शासक को मालूम था कि इतने विशाल स्मारक पर न सिर्फ़ लोगों का ध्यान जाएगा बल्कि इसे नुक़सान पहुंचाने की कोशिशें भी हो सकती हैं। आपको पता है ताजमहल के अपने रक्षक भी थे ? इसीलिये इसकी सुरक्षा के लिये लोग नियुक्त किये गए थे। शाहजहां के समय में भी इसकी सुरक्षा के लिये सेना और नाविक तैनात किये गए थे। नदी की सुरक्षा के लिये आग़ा ख़ान नामक व्यक्ति को फ़ौजर-ए-नवाही यानी नदी और ताजमहल की निगरानी करनेवाला पुलिस अफ़सर नियुक्त किया गया था। उसके मातहत सैनिक नदी से आने जाने वालों लोगों पर नज़र रखते थे। इसके अलावा वे नदी के किनारे रहने वाले ख़ास लोगों की भी सुरक्षा करते थे।
यमुना नदी की दूसरी तरफ़ मुग़ल गार्डन यानी महताब बाग़ है। किवदंतियों में इसका सम्बन्ध काळा ताज महल से किया जाता है। ये बाग़ यमुना नदी के पूर्वी तट पर है जहां से ताज महल दिखाई देता है। लोक कथाओं के अनुसार शाहजहां उस जगह पर काले रंग का भी एक ताज महल बनना चाहता था। लेकिन इस बारे में इतिहास में कोई रिकॉर्ड नहीं मिलता। ये जगह शाहजहां ने चुनी थी लेकिन एक और ताज महल बनाने के लिये नहीं बल्कि यहां से ताज महल की ख़ूबसूरती को निहारने के लिये। मेहताब का अर्थ होता है चांद की रौशनी। इन दोनों के बीच नदी है। चांद की रौशनी में इन दोनों के बीच अक्स उभरता था और शायद इसीलिये इसका नाम मेहताब बाग़ पड़ गया था। सन 1652 में शाहजहां को लिखे पत्र में उनके बेटे औरंगज़ैब ने यमुना नदी में आई बाढ़ में बाग़ के डूबने का ज़िक्र किया था।
18वीं शताब्दी में मुग़ल शासन के पतन के बाद आगरा और ताज महल दोनों पर विभिन्न सोनाओं के आक्रमण शुरु हो गए क्योंकि इन्हें मुग़ल शासन का प्रतीक माना जाता था। भरतपुर के जाट शासकों ने आगरा और ताज पर हमला बोल दिया था। हमले के दौरान वे प्रवेश द्वार के चांदी जड़े दो दरवाज़े अपने महल दीग ले गए। उन्होंने स्मारक के मुख्य हिस्सों में भी आग लगा दी थी जिससे काफ़ी नुक़सान हुआ था।
सुनकर बड़ा अजीब लगेगा कि सन 1770 में जब आगरा पर सिंधिया का नियंत्रण हो गया तब ताज महल को गेस्ट हाउस की तरह इस्तेमाल किया जाने लगा। यह सुनकर भी आश्चर्य होगा कि अंग्रेज़ यहां पार्टियों का आयोजन करने लगे थे। सन 1803 में जब अंग्रेज़ों ने आगरा पर कब्ज़ा कर लिया तो वे इसे पार्टियों के दौरान बॉलरुम की तरह इस्तेमाल करते थे।
सन 1830 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ताज महल को ढ़हाकर इसका संगमरमर लंदन में बेचना चाहती थी। ये आइडिया भारत के लॉर्ड विलियम बेंटिक ने दिया था ताकि बर्मा युद्ध से हुए नुक़सान की भरपाई की जा सके। हद तो यह हो गई कि आगरा क़िले के शाही हमाम को तोड़कर उसके संगमरमर को इस लिये बेचा गया ताकि बाजार में उसकी मांग का पता लग सके। लेकिन इससे कोई ख़ास कमाई नहीं हो पायी और इसे लेकर देश में हंगामा भी मच गया। इस तरह ताज महल को बेचने का ईरादा रद्द हो गया और ताज महल बच गया।
20वीं सदी की शुरूआत में, 1900 और 1908 के बीच वाइसराय लॉर्ड कर्ज़न ने ताज महल की मरम्मत का काम करवाया। बाग़ीचे और स्मारक के देखरेख करने वालों के कमरों को ठीक किया गया। लॉर्ड कर्ज़न ने महल में कांसे के लैंप भी लगवाये थे जिस पर सोने और चांदी का काम था।
ताज महल के साथ अनेक क़िस्से भी जुड़े हुए हैं। एक क़िस्से को लेकर आज भी राजनीति होती रहती है। ये क़िस्सा यूं है कि जहां ताज महल बना है,उससे पहले वहां शिव मंदिर तेजो महालय हुआ करता था। पी.के. ओक ने सन 1989 में अपनी किताब “ ताज महल:ए ट्रू स्टोरी” में एक ग़लत जानकारी दी है कि ताज महल, शिव मंदिर के ऊपर बनाया गया था । इस दावे का कोई सबूत भी पेश नहीं किया गया है। सन 2015 में भारतीय संसद में संस्कृति मंत्री डॉ. महेश शर्मा ने कहा था कि सरकार को ऐसा कोई सबूत नहीं मिला है जिससे साबित हो कि ताज महल शिव मंदिर था। भारतीय पुरातत्व स्रवेक्षण सहित अन्य विभागों ने मंदिर होने के दावे को ख़ारिज किया है।
मुग़ल हुमुमत का चरम बिंदू और अद्भुत कहानियों से जुड़ा स्मार्क, ताज महल आज भी पूरी शानशौकत के साथ खड़ा है। हर साल विश्व के इस अजूबे को देखने सारी दुनियां से लाखों लोग आगरा आते हैं। ताज महल की चमक और इसके सौंदर्य को ठीक उसके सामने खड़े होकर ही महसूस किया जा सकता है। आप जितनी बार भी बार वहां जाएं, वह हमेशा आपको आश्चर्यचकित करता रहेगा।
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