मुग़ल बादशाह शाहजहां के बनवाये दिल्ली के शाहजहांबाद और ताजमहल को तो पूरी दुनिया जानती है। यह बात बहुत कम लोगों को पता होगी कि मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल का आपना एक अलग शाहजहांबाद है। एक अपना “ ताज “ भी है जो ताज-उल-मसाजिद के नाम से जाना जाता है। इसे भोपाल की जामा मस्जिद भी कहा जाता है। फ़ारसी और अरबी भाषा में मस्जिद का बहुवचन होता है मसाजिद । ताज-उल-मसाजिद का मतलब है मस्जिदों का ताज। भोपाल की यह दोनों तारीख़ी इमारतें भी शाहजहां ने ही बनवाई हैं लेकिन यह शाहजहां हैं…..शाहजहां बेगम।
भोपाल की ताज-उल-मसाजिद को सिर्फ़ भारत की ही नहीं बल्कि पूरे ऐशिया की सबसे बड़ी मस्जिद माना जाता है। यह मस्जिद शिल्प का एक शाहकार तो है ही यह भोपाल की महिला शासकों यानी “ भोपाल की बेगमात ” की बेशक़ीमती निशानी भी है।
सन 1707 में औरंगज़ैब की मौत के बाद मुग़ल हुकूमत की जड़ें हिलने लगी थीं। उस अफ़रातफ़री का फ़ायदा उठाकर कई महात्वाकांक्षी भाड़े के सैनिकों ने अपनी हुकूमतें क़ायम करली थीं। उनमें से ही एक पठान था दोस्त मोहम्मद ख़ां। वह तिराह का रहनेवाला था। तिराह अब पाकिस्तान के ख़ेबर पख़्तूनवा प्रांत में है। दोस्त मोहम्मद ने मालवा के कई छोटे राजाओं के यहां भाड़े के फ़ौजी की तरह काम किया। उसने गोंडा की रानी कमलापति के यहां भी काम किया था। रानी कमलापति ने उस रियासत पर भी राज किया था जिसे आज भोपाल कहा जाता है। रानी कमलापति की मृत्यू के बाद दोस्त मोहम्मद ने उनके बेटे नवल सिंह की हत्या की और ख़ुद राजा बन बैठा। उसके बाद दोस्त मोहम्मद के ख़ानदान ने भोपाल रियासत पर सन 1947 तक हुकूमत की। मशहूर फ़िल्म कलाकार सैफ़ अली ख़ां, दोस्त मोहम्मद ख़ां के वंशज हैं।
सन 1819 से लेकर सन 1826 तक भोपाल पर शक्तिशाली महिलाओं ने हुकूमत की, जिन्हें बेगमात कहा जाता है। हुआ यह था कि नवाब नज़ीर मोहम्मद ख़ां की, बंदूक़ की गोली लगने से अचानक मौत हो गई। यह माना जाता है कि वह अपनी बंदूक़ साफ़ कर रहे थे तभी ग़लती से गोली चल गई। कुछ लोग यह भी मानते हैं कि उनकी हत्या की गई थी। उनकी बेगम गौहर बेगम, अपनी बेटी नवाब सिकंदर बेगम के नाम पर हुकूमत करने लगीं। उनके बाद सिकंदर बेगम ने सन 1868 तक भोपाल रियासत पर राज किया। सिकंदर बेगम एक बहादुर महिला थीं जो युध्द-कला में भी माहिर थीं। भोपाल में मोती मस्जिद और मोती महल का निर्माण उन्होंने ही करवाया था। उन्होंने सन 1857 की बग़ावत में ब्रिटिश हुकूमत की मदद करने में अहम भूमिका भी निभाई थी।
सन 1868 में सिकंदर बेगम की मृत्यू के बाद उनकी बेटी नवाब शाहजहां बेगम ने हुकूमत की बागड़ोर संभाली। नवाब शाहजहां बेगम को भोपाल के इतिहास का सबसे दिलचस्प चरित्र मान जाता है। उनकी परवरिश रियासत पर हुकूमत करने के लिये ही की गई थी। उन्होंने ख़ुद को एक सक्षम शासक साबित भी किया। शाहजहां बेगम ने कर-व्यवस्था में सुधार किया जिससे राजस्व बढ़ने में मदद मिली। उन्होंने सिपाहियों के वेतन बढ़ाये। उन्होंने आधुनिक हथियार ख़रीदे । उनके ज़माने में ही बांध और तालाब बनवाये गये। उन्हीं के दौर में पुलिस को ज़्यादा सक्षम बनाया गया। दो बार पलेग की महामारी फैलने के बाद उन्होंने पहली बार राज्य में जनगणना करवाई।
शाहजहां बोगम ने उर्दू में कई किताबें भी लिखी है।उनकी एक किताब है, गोहर-ए-इक़बाल जिसमें उन्होंने अपने पहले सात वर्षों की हुकूमत की प्रमुख घटनाओं का ज़िक्र किया है। साथ ही उस समय के भोपाल के सामाजिक और राजनीतिक हालात के बारे में भी लिखा है। उनकी दूसरी किताब है, अख़्तर-ए-इक़ाबाल है जो दरअसल गोहर-ए-इक़बाल का ही दूसरा भाग है।सन 1918 में उन्होंने इफ़्फ़त-ए-मुस्लेमात लिखी। जिसमें उन्होंने यूरोप, एशिया और मिस्र में हिजाब और पर्दा रिवाज की धारणाओं के बारे में लिखा है।
शाहजहां बेगम की विकास में बहुत रूची थी। भवन बनवाने के मामले में उनका सीधा मुक़ाबला मुग़ल बादशाह शाहजहां से था। उन्होंने भापाल में एक रिहाइशी इलाक़ा बनवाया और उसका नाम रखा…. शाहजहानाबाद । यहीं उन्होंने अपना महल बनवाया। जिसको नाम दिया गया ताजमहल । सन 1887 में उन्होंने, दिल्ली की जामा मस्जिद की तरह की मस्जिद, ताज-उल-मसाजिद का निर्माण शुरू करवाया। उनका इरादा भारत की सबसे बड़ी मस्जिद बनवाने का था। यानी मुग़लों की बनवाई गई, हर मस्जिद से बड़ी मस्जिद। इसका बजट बहुत लम्बा-चौड़ा था और भोपाल के ख़ज़ाने में इतना पैसा नहीं था, इसलिये स मस्जिद का निर्माण कार्य बहुत धीमी गति से चला।
सन 1889 मे शाहजहां बेगम ने इंग्लैंड के वोकिंग शहर में बननेवाली मस्जिद के लिये भी आर्थिक मदद दी। उस मस्जिद का नक्शा मशहूर आर्किटैक्ट विलियम आईज़ेक चैम्बर्स(1847-1924) ने तैयार किया था। वह इंग्लैंड में बननेवाली पहली मस्जिद थी। सन 1960 तक वह इंग्लैंड की सबसे महत्वपूर्ण मस्जिद मानी जाती थी। बेगम के सम्मान में उस मस्जिद का नाम शाहजहां मस्जिद रखा गया था। शाहजहां बेगम ने अलीगढ़ के मोहमेडन एंग्लो-औरियंटल कालेज को भी दिल खोल कर आर्थिक मदद की थी। वही कालेज बाद में अलीगढ़ मुस्लिम विश्विद्यालय के रूप में विकसित हो गया।
सन 1901 में शाहजहां बेगम, मुंह के कैंसर की चपैट में आगईं थीं और उसके बाद जल्द ही उनकी मौत हो गई । उसी के साथ मस्जिद निर्माण का काम थम गया। उनकी उत्तराधिकारी बेटी नवाब सुलतान जहां बेगम ने अपनी मां की योजना के तहत मस्जिद का काम आगे बढ़ाने की कोशिश की। लेकिन पैसे की कमी की वजह से वह मुमकिन नहीं हो पाया। नवाब सुलतान जहां बेगम भी बहुत अच्छी प्रशासक थीं। उन्होंने भोपाल में कई अहम शिक्षा संस्थाए शुरू कीं। सन 1918 में उन्होंने भोपाल में बुनियादी शिक्षा को मुफ़्त और ज़रूरी कर दिया। हमेशा उनका पूरा ध्यान शिक्षा पर रहा , ख़ासतौर पर महिलाओं की शिक्षा पर। सन 1920 से ले कर अपनी मृत्यु तक वह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की संस्थापक चांसलर रहीं। उन्हें अलीगढ़ विश्वविद्यालय की पहली और आख़री महिला चांसलर होने का भी सम्मान प्राप्त है।
सन 1926 में बेगम सुलतान जहां की मृत्यु के बाद उनके बेटे नवाब हमीदउल्लाह ख़ां ने भोपाल की गद्दी संभाली। वही भोपाल के अंतिम नवाब थे। नवाब हमीद्दुल्लाह आधुनिक विचारों के व्यक्ति थे, उन्होंने मस्जिद निमार्ण में कोई रूची नहीं दिखाई और वह ताज-उल-मसाजिद बरसों अधूरी इमारत की तरह पड़ी रही। सन 1947 में सरदार पटेल के दबाव में आकर नवाब हमीदुल्ला ख़ां ने भोपाल को भारतीय संध में शामिल कर दिया और भोपाल मधेयप्रदेश राज्य का हिस्सा बन गया। सन 1971 में भोपाल की एक संस्था दारुल उलूम सोसायटी ने की कोशिशों से मस्जिद के निर्माण का काम दोबारा शुरू हुआ। कुवैत के अमीर की आर्थिक मदद से मस्जिद निर्माण का काम पूरा हुआ। यह मस्जिद, अपने निमार्ण काम शुरू होने के पूरे 98 साल बाद, सन 1985 में बन कर तैयार हुई।
आज भोपाल में ताज-उल-मसाजिद गर्व के साथ खड़ी है और उस बेगम की याद दिलाती है जो दूसरा शाहजहां बनना चाहती थी।
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