हिमालय का अजंता

स्पीति घाटी को हिमालय का अजंता कहा जाता है तो इसकी भी कोई वजह तो है। ताबो मठ की दीवारें मूर्तियों ,कलाकृतियों , थांगा चित्रकला,भित्ति-चित्रों ,फ़्रेस्को, पांडुलिपियों से सजी हुई हैं जिन पर कश्मीर,बंगाल और नेपाल के बौद्ध केंद्रों का प्रभाव साफ़ दिखाई देता है। इससे ऐसा लगता है कि कि एक हज़ार साल पहले इन जगहों के सारे मार्गों की दिशा स्पीति घाटी की तरफ़ ही थी।

ताबो मठ या ताबो चोस-खोर हिमलय की तलहटी में बना हुआ है जो हिमालचल प्रदेश की स्पीति घाटी के ताबो गांव में स्थित है। सन 996 में इसे पश्चिमी तिब्बत के पुरंग-गुएंग साम्राज्य के राजा ये-शे-ओ ने बनवाया था। उनका साम्राज्य लद्दाख़ से, आज के, नेपाल के मस्टंग तक फैला हुआ था। राजा ये-शी-ओ ने तिब्बती-बौद्ध धर्म को इस क्षेत्र में पुनर्जीवित करने के लिए बेहद प्रयास किए। उन्हीं के दौर में हिमालयाई इलाक़ों में बौद्ध धर्म ख़ूब फलाफूला।

ताबो मठ की कहानी भी बेहद दिलचस्प है। माना जाता है कि राजा ये-शे-ओ ने, भारतीय गुरूओं से तंत्र-विद्या के बारे में पढ़ने और उसे सीखने के लिए 21 स्थानीय युवकों को बिहार के विक्रमशिला विश्वविद्यालय भेजा। उस समय यह विश्वविद्यालय तंत्र-विद्या सीखने का विख्यात केंद्र हुआ करता था। दुर्भाग्य से वह युवक मैदानी इलाक़े की गर्मी सहन नहीं कर पाए और उनमें से 19 युवकों की मृत्यु हो गई। सिर्फ़ रिनचेन सांगपों और लखपेई शेरप नाम के दो युवक ही जीवित बचे।

रिंचेन सांगपो बड़े यात्री और मशहूर विद्वान बन गए। कहा जाता है कि उन्होंने कई भारतीय पुस्तकों का तिब्बति भाषा में अनुवाद किया। उनहोंने मध्य भारत और कश्मीर के कई बोद्ध-केंद्रों की यात्रा की। यह भी माना जाता है कि ताबो मठ रिंचेन सांगपो को ही समर्पित है।वहां उनके दो छवियां भी बनी हैं। ताबो मठ में मौजूद एक शिला-लेख से पता चलता है कि ये-शे-ओ के परभांजे चांग-चू-पो ने मठ-निमार्ण के 46 वर्ष बाद इसकी मरम्मत करवाई थी।

ताबो मठ-परिसर में कुल 9 मंदिर,4 स्तूप और गुफा-मंदिर हैं जिनका उपयोग भिक्षुक ध्यान के लिए करते थे।

यह एक अद्भुत स्थान है । यहां से निकलने वाले मार्ग कश्मीर और तिब्बत को बाक़ी भारत से जोड़ते थे। इसिलिए ताबो मठ शिक्षा का एक महान केंद्र और तिब्बत, नेपाल, कश्मीर, बंगाल और ओडिशा के विद्वानों के लिए मिलने का केंद्र बन गया था। इस मठ की कलाकृतियों में बहुआयामी छाप दिखाई पड़ती है जो इसे अनौखापन देती है और इस पवित्र स्थान को आकर्षक बना देती है। यहां आज भी भिक्षुक जाप और पूजा-अर्चना करते हैं।

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