प्राचीन भारत की गुफाएं और मंदिर स्थापत्यकला के अजूबे हैं। एक चीज़ जो इन्हें इतना विशिष्ट बनाती है, वह है मंदिर की दीवारों पर विभिन्न मूर्तियां। लेकिन ये मूर्तियां बेतरतीब ढंग से नहीं बनी हुई हैं। शिल्पशास्त्र (कला और शिल्प का विज्ञान) पर कई ग्रंथ उपलब्ध हैं, जिनमें छवि बनाने की तकनीकों का विस्तार से वर्णन किया गया है। सबसे अधिक मूर्तियां देवी-देवताओं की हैं। हम विष्णु के विभिन्न अवतारों से तो परिचित हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं, कि शिव को भी मंदिरों में विभिन्न रूपों में दर्शाया गया है?
ब्रह्मा और विष्णु के साथ त्रिमूर्ति का एक हिस्सा शिव, प्रमुख हिंदू देवताओं में से एक है। वेदों में शिव भगवान को शुभ माना गया है और उनकी गिनती वैदिक काल के सबसे शक्तिशाली देवताओं में होती है। शैव संप्रदाय हिंदू धर्म के सबसे पुराने संप्रदायों में से एक है, जिसके उद्भव के प्रमाण पहली सदी से मिलते हैं। पहली सदी में पशुपथ संप्रदाय का उद्भव हुआ था। शिव को अमूमन लिंग के रूप में पूजा जाता है।
शिव की छवि के आरंभिक प्रमाणों में आंध्र प्रदेश के गुदिमल्लम में परशुरामेश्वर मंदिर में स्थित शिव लिंग है, जो 3 ई.पू से 2 ई. के बीच का है।
प्राचीन भारत में चोल, राष्ट्रकूट और चालुक्य, जैसे कई राजवंश या तो शैव धर्म के अनुयायी थे, या उन्होंने इसे संरक्षण दिया था। इन राजवंशों के बनवाये गये मंदिरों में पत्थर को तराश कर बनाई गई शिव के अनेक रुपों की कुछ छवियां बहुत आकर्षक हैं।
लिंगोद्भव
दक्षिण भारत में लिंगोद्भव (लिंग का उद्भव) शिव की प्रचलित छवियों में एक है, जो शिवलिंग की उत्पत्ति को दर्शाती है। लिंग पुराण, कूर्म पुराण, वायु पुराण और शिव पुराण में इससे संबंधित एक कथा है। इसके अनुसार, विष्णु और ब्रह्मा के बीच इस बात को लेकर विवाद हो गया था, कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है। विवाद को शांत करने के लिए शिव ने एक विशाल ज्वाला का रूप धारण किया और उन्हें ज्वाला का स्रोत खोजने की चुनौती दी। विष्णु ने एक सूअर का और ब्रह्मा ने हंस का रूप धारण कर स्रोत की खोज की लेकिन दोनों विफल रहे।
शिवागम (शैव धर्म से संबंधित ग्रंथ) में इस छवि को कैसे बनाया जाना चाहिए, इसका विस्तृत विवरण है। इसमें लिंग से उभरती हुई शिव की एक आकृति को दर्शाया गया है। लिंग के ऊपर दाईं ओर ब्रह्मा को हंस के रूप में जबकि विष्णु को एक सूअर के रूप में नीचे बाईं ओर दर्शाया गया है। इसके अलावा लिंग के दोनों ओर हाथ जोड़कर ब्रह्मा और शिव की आकृतियां भी हैं।
इस रूप के बेहतरीन उदाहरण तमिलनाडु में चोल राजा राजराजा-द्वितीय द्वारा निर्मित 12वीं शताब्दी के ऐरावतेश्वर मंदिर, कांचीपुरम में पल्लव राजा नरसिम्हावर्मन- द्वितीय द्वारा 7वीं शताब्दी में बनवाया गया कैलाशनाथर मंदिर और राष्ट्रकूट राजा कृष्ण-प्रथम के शासनकाल का एलोरा में दशावतार गुफा है।
अर्धनारीश्वर
अर्धनारीश्वर, शिव के सबसे लोकप्रिय रूपों में से एक है। जैसा कि नाम से ज़ाहिर है, कि यह शिव का आधा पुरुष आधा महिला रूप है, जो ब्रह्मांड की पौरुष और स्त्रियोचित ऊर्जा के संयोग का प्रतीक है। अर्धनारीश्वर की सबसे पुरानी मूर्तियां पहली शताब्दी में कुषाण काल की हैं, जिसमें समय के साथ सुधार होता रहा और गुप्त काल (तीसरी-छठी शताब्दी) के दौरान कहीं जाकर एकदम आदर्श छवि बन पायी। छवि के आधे दाहिने हिस्से में शिव और बाएं हिस्से में पार्वती हैं।
ये छवि अमूमन दो से चार भुजाओं वाली होती है। इसमें शिवजटामुकुट (उलझे हुए बालों वाला मुकुट) पहने हुए हैं, माथे पर अर्धचंद्र बना हुआ है,एक तिहाई नेत्र खुला हुआ है और घुटने तक एक वस्त्र पहने हुए हैं। दूसरी तरफ़ पार्वती माथे पर तिलक, टखने तक का वस्त्र और गहने पहने हुये हैं। मूर्ति अथवा छवि के किनारे शिव का वाहन नंदी भी बना हुआ है।
शिव के कुछ बेहतरीन चित्रण कर्नाटक में बादामी गुफा-1, एलीफेंटा गुफा-1 और तमिलनाडु में गंगैकोण्डचोलपुरम मंदिर में हैं।
हरिहर
अर्धनारीश्वर के अलावा शिव का एक और मिश्रित रूप है हरिहर, जिसमें विष्णु (हरि) और शिव (हर) को दर्शाया गया है। यह शिव और विष्णु का परम वास्तविकता या ब्रह्म के विभिन्न पहलुओं का रूप माना जाता है। कुछ विद्वानों का मानना है, कि हरिहर की पूजा शिव और विष्णु के संप्रदायों के बीच संघर्ष के कारण शुरु हुई थी। पूजा की इस पद्धति में शिव और विष्णु को एक ही रूप में प्रस्तुत किया गया। दोनों सृष्टि की रचना, संरक्षण और विनाश के लिए ज़रुरी थे। शिव और विष्णु दोनों को उनके विशिष्ट प्रतीकों के माध्यम से दिखाया गया है। शिव के हाथ में त्रिशूल है, जबकि विष्णु शंख बजा रहे हैं। शिव जहां रौद्र रुप में हैं, वहीं विष्णु शांति का प्रतिनिधित्व करते दिखाई पड़ते हैं। जैसे जटामुकुट शिव की विशेषता है, वैसे ही विष्णु का मुकुट किरीतामुकुट है। छवि के दो तरफ़ शिव और विष्णु के वाहन नंदी तथा गरुड़ हैं। कुछ छवियों में उनकी पत्नियां पार्वती और लक्ष्मी हैं।
बादामी गुफा- एक और गुफा-तीन में हरिहर की सबसे पुरानी मूर्तियां हैं। कर्नाटक में 13वीं शताब्दी का हरिहरेश्वर मंदिर शिव को समर्पित है, जिसका निर्माण होयसला राजा वीर नरसिम्हा -द्वितीय ने करवाया था।
रावणानुग्रह
शिव वरदान देने वाले और विनाशकारी दोनों रूपों का प्रतिनिधित्व करते हैं। अनुग्रह-मूर्तियां शिव के उदार रूप को दर्शाती हैं। इनमें से सबसे लोकप्रिय रूप रावणानुग्रह है। यह शिव की कथा , वह लंका के राजा रावण के अहंकार को ख़त्म करते हैं। रावण नेशिव को कैलाश पर्वत के नीचे फंसाकर पर्वत को उठाने की कोशिश की थी। रावण ने शिव की स्तुति में भजन गाए और बाद में शिव ने उसे छोड़ दिया और वरदान भी दिया। छवि में चार भुजाओं वाले शिव को पार्वती के साथ दर्शाया गया है, जो गणों (सेवकों) से घिरे हुए हैं। छवि में जहां दस सिर वाला रावण कैलाश पर्वत उठा रहा है, वहीं शिव एक पैर से पर्वत को दबा रहे हैं। कई बार उनके गणों (सेवकों) को रावण पर हथियारों और पत्थरों से हमला करते हुए दिखाया गया है।
इस छवि के बेहतरीन उदाहरण 12वीं शताब्दी में होयसल राजा विष्णुवर्धन द्वारा निर्मित होयसलेश्वर मंदिर, हलेबिडु, एलीफेंटा गुफा-1 और कैलाश मंदिर तथा एलोरा में गुफा- 29 में पायी जाती हैं।
गजंतक
समारा मूर्तियों में शिव के उग्र और विनाशकारी रुप को दिखाया गया है। इसमें शिव असुरों का विनाश करते दिखाई पड़ते हैं। समारा मूर्ति में से गजंतक के रूप में शिव की मूर्ति आम है।इसे गजसुरसंहार के रूप में भी जाना जाता है, जिसने गजसुर राक्षस का वध किया था। कूर्म पुराण में एक दिलचस्प विवरण है। गजसुर नाम के एक राक्षस उत्पात मचाते हुए शिव लिंग की पूजा करने वाले ब्राह्मणों को परेशान कर रहा था। इससे क्रोधित होकर शिव, लिंग से निकले और हाथी-दानव को नष्ट कर दिया और हाथी की खाल को अपने ऊपरी बदन पर वस्त्र के रूप में पहन लिया। शिवागम में शिव की इस भयंकर छवि का विस्तृत विवरण है। शिव हाथी के सिर पर खड़े हुए हैं, उनकी चार या आठ भुजाएं हैं, हाथ में त्रिशूल और डमरू है, तथा हाथी की खाल पहने हुए हैं। इस छवि की ख़ासियत हाथी की खाल है जिससे एक प्रभामंडल पैदा होता है। शिव के इस रौद्र रुप से भयभीत पार्वती स्कंद को अपनी बाहों में लिए हुए कांपती हुई खड़ी हैं।
इस देवता की शायद धातु की एकमात्र मूर्ति की पूजा तमिलनाडु के वीरत्तेश्वर मंदिर में की जाती है। बेलूर में होयसला राजा विष्णुवर्धन द्वारा बनवाई गयी, जटिलता से सजायी गयी, सोलह भुजाओं वाली शिव की एक भव्य मूर्ति., 12वीं शताब्दी के चेन्नाकेशव मंदिर में पायी गयी है।
शिव की मिश्रित छवियां अपनी जटिलता के बावजूद पूरी महारत से बनाई गई हैं, जो पूरे भारत के प्राचीन मंदिरों में देखने को मिलती हैं।
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