-केसरिया बालम आओ नी पधारो म्हारे देश— जैसी सरस एवं भावपूर्ण अभिव्यक्ति के साथ राजस्थान सदैव से पर्यटकों के स्वागत में पलक-पांवड़े बिछाता आया है।
राजस्थान का नाम आते ही खड़कते खाँडे, घाटियों और पहाड़ो में घोड़ों की टापों की गूंज, मेघ गर्जना सी प्रतीत होती है। जहाँ धधकते आग के शोलों में सर्वस्व होम करने वाली सौभाग्यवती रानियाँ और केसरिया बाना धारण किये मातृभूमि की रक्षा में अपने प्राण निछावर करने वाले सैकड़ों वीरों के स्मारक, गढ़, क़िले, दुर्ग और मंदिर पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। राजस्थान की स्थापत्य कला अत्यन्त प्राचीन, समृद्ध, अद्वितीय एवं गौरवपूर्ण रही है। इस कला के माध्यम से मानव के अव्यक्त भाव अधिक स्पष्ट होते हैं।
यहाँ राजपूत काल की स्थापत्य कला विश्व विख्यात रही है। जिसके कारण यहाँ के दुर्ग, मंदिर, परकोटे, राजाप्रासाद, जलाशय, स्तम्भ, छतरियां आदि चारों ओर विद्यमान हैं। मुख्य रूप से 7वीं से 13वीं सदी का काल स्थापत्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा है। जहाँ-जहाँ राजधानियां बनीं वहाँ नगर विन्यास की भूमिका रही है। इस दृष्टि से भीनमाल, चन्द्रावती, लौद्रवा, चित्तौड़, रणथम्भौर, आमेर, मंडोर तथा ओसियां जैसे नगर विकसित हुए। विश्व पर्यटन दिवस के अवसर पर शैव, शाक्त, वैष्णव और जैन धर्म की त्रिवेणी संगम स्थली ओसियां नगरी के धरोहरों से रूबरू होते हैं।
ओसियां:-‘‘क्षत्रि हुआ साख अठारा उठे ओसवाल बखाणा,
इक लाख चैरासी सहस्रधर राजकुली प्रतिबोधिया,
श्री रत्नप्रभु ओस्यों नगर आसवाल जिणा दिन किया,
प्रथम साख पंवार सेस सिसोदिया सिंगाला,
रणथम्बा राठौड़ वंश चंवाल बचाला,
दया भाटी सोनगरा कछाहा धन गौड़ कहीजै,
जादम झाला जिन्द लाज मरजाद लहीजै,
खखारा पाट औ पेखरा लेणा पटा ज लाख रा,
इक दिवस हता महाजन हुवा सूर बड़ा भिड़ साख रा,,
स्थापत्य कला एवं संस्कृति का अनूठा संगम मारवाड़ की अति प्राचीन ओसियां नगरी में देखा जा सकता है। इस नगरी को प्रसिद्ध तीर्थ स्थल के रूप में जाना जाता है। यही वह नगर है जहाँ पर जैनाचार्य रत्नप्रभ सुरि जी महाराज द्वारा क्षत्रियों की अठारह खापों को जैन धर्म में दीक्षित इसी ओसिया नगरी में होने के कारण ये सभी ‘‘ओसवाल’’ कहलाये। इन्हीं ओसवालों की उद्गम स्थली ओसियां मंदिर स्थापत्य और ओसवालों के कारण विश्व विख्यात है।
यह क़स्बा वर्तमान में पश्चिमी राजस्थान का प्रमुख पर्यटन केन्द्र बना हुआ है। यहां प्रतिदिन देश-विदेशी पर्यटकों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है। यहाँ के प्राचीन इतिहास और प्रमुख स्थलों की जानकारी देते हुए पृथ्वीराज सारस्वत बताते हैं कि 8वीं से 12वीं शताब्दी में निर्मित ओसियां के ये भव्य मंदिर क्रमशः श्री सच्चियाय माता, भगवान महावीर स्वामी, विष्णु भगवान, हरिहर, सूर्य, शिव के अलावा देवी पीपलाज माता के है जो अपनी विशेष स्थापत्यकला के कारण बरबस ही पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षिंत करते हैं। यह क़स्बा जोधपुर से 65 कि.मी. दूर जैसलमेर सड़क मार्ग पर बसा हुआ है।
ओसियां का इतिहास:-1
यह पौराणिक नगरी किसी काल में सरस्वती नदी के किनारे बारह योजन लम्बी और नौ योजन चैड़ाई में बसी हुई थी। यहां की दंतकथा, मंदिरों का समूह, यहां वहां बिखरे पड़े भग्नावशेष जो अपनी गौरवशाली संस्कृति और प्राचीन सभ्यता की कहानी बयां करते हैं। इस सम्बन्ध में डा.महेन्द्रसिंह खेतासर बताते हैं कि ओसियां में ब्राह्मण और वैश्य जातियों की प्रधानता रही है। वैष्णव और जैन धर्मों का यह समन्वय भी इस नगर के विकास में सहायक रहा है। इस नगर पर अनेक इतिहासकारों ने शोध एवं सर्वेक्षण किया है। जैन ग्रन्थों में ओसियां के उपकेशपुर, उपकेश पट्टन और भेलपुर पट्टन नाम मिलते हैं। लोक कथा में भीनमाल के राजकुमार उप्पलेव परमार ने अपनी नई राजधानी यहाँ स्थापित की थी।
ओसियां के प्राचीन मंदिर:-
ओसियां अपने मंदिर स्थापत्य कला के कारण विश्व विख्यात है। इन मंदिरों के निर्माणकाल को विद्धानों ने दो काल खण्डों में बांटा है। मंडोर के प्रतिहार शासकों के द्वारा निर्मित यह भव्य मंदिर उनकी कला के प्रति प्रेम को दर्शाता है। 8वीं से 12वीं सदी के मध्य नागर शैली में निर्मित जैन, शैव और वैष्णव धर्मों के लगभग 16 मंदिर यहाँ मौजूद हैं। यह मंदिर ऊँची जगती पर स्थित हैं जिनकी रथिकाओं में देवता सुशोभित किये गये हैं। इनमें कुछ पंचायतन शैली के मंदिर भी बने हुए हैं। इनमें देवी-देवताओं, गणों, दिक्पालों की मूर्तियों में अद्भूत अलंकरण हुआ है। वहीं मूल प्रासाद पर लतिन, जातक, शिखर आच्छादित है। क़स्बे के मध्य ऊँचाई वाली जगह पर स्थित सच्चियाय माता जी का मंदिर 12वीं सदी का माना गया है। इसके मण्डप में आठ तोरण अत्यन्त आकर्षक वितान और वृक्षिका-मदल दिये गये हैं। यह बड़ी ही सुन्दर रचना विधान है। इसमें लतिन शिखर का उपयोग हुआ है।
यहां के मंदिरों की कला में पदम, घटपल्ल, कीर्ति मुख आदि रूपांकनों से अलंकरण हुआ है तथा पत्थरों में विविध रूपांकरण उकेर ने से यहां के हस्तशिल्प कलाकारों की क्षमता पर भी आश्चर्य होता है।
ओसियां का मुख्य भगवान महावीर स्वामी मंदिर रत्न प्रभ सूरि महाराज के आगमन के पश्चात् बनाया गया था। इसका निर्माण राजा वत्सराज (770-800 ई.) के शासन काल में हुआ। यह मंदिर एक परकोटे में स्थित है। कालान्तर में इसका जीर्णोद्वार भी हुआ है। अन्य मंदिरों पर संवत् 1013, 1236 व 1245 के शिलालेख अंकित हैं। पंचायतन शैली में निर्मित हरिहर मंदिर सर्वधर्म समन्वय का प्रतीक है। इस मंदिर में भगवान विष्णु और शिव की संयुक्त मूर्तियां उकेरी गई हैं। क़स्बे में सूर्य, पीपलाज माता मंदिर के अलावा विशाल कातन और मूँग की बावड़ी भी स्थापत्य कला के बेजौड़ स्मारक है।
यहां मंदिरों में शिव, पार्वती की अर्धनारीश्वर तथा हरिहर हिरण्यगर्भ स्वरूपों की संयुक्त मूर्तियां भी मिलती हैं।
ओसियां में भगवान गणेश का अलग से कोई मंदिर नहीं है। इसके बावजूद गणेशजी की मूर्तियां अधिक संख्या में हैं। लाल पत्थरों से निर्मित यह सभी मंदिर इतने वर्षों बाद भी अपने वैभव को बयां करते हुए खड़े हैं।
मुग़लकाल में इन पर भी कई बार आक्रमण हुए थे जिससे भारी क्षति भी हुई। प्रतिवर्ष रेगिस्तानी बालू के टीलों पर पर्यटन विभाग द्वारा ‘‘मारवाड़ समारोह’’ के दौरान विभिन्न रंगारंग कार्यक्रम में ऊँट की सवारी पर्यटकों को आकर्षित करती है। यहां अंतराष्ट्रीय अतिथि गृह, धर्मशाला, गेस्ट हाउस, थार कैम्प और होटल बने हुए हैं। यहां आस-पास तिवरी, घटियाला, फलौदी, मंडोर सहित अन्य कई पर्यटन स्थल भी मौजूद हैं।
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