अमृतसर से 26 कि.मी. की दूरी पर आबाद इतिहासिक कस्बा फतेहगढ़ चुड़ियां के मेन बाज़ार में महाराजा रणजीत सिंह के सुपुत्र खड़क सिंह की पत्नी रानी चंद कौर द्वारा करीब 170 वर्ष पहले बनवाया गया पंच मंदिर आज भी अपनी गरिमा और सुंदरता बनाए हुए है। सिख शासन के दौरान बनाए गए कांगड़ा और मुगल भवन कला के सुमेल इस मंदिर की जिला गुरदासपुर के विरासती स्मारकों में अपनी एक अलग पहचान है। हालांकि इसके इतिहास के बारे में किसी सरकारी या गैर-सरकारी रिकाॅर्ड में बहुत कम ही जानकारी दर्ज है।
यह कस्बा (फतेहगढ़ चूड़ियां) कन्हैया मिसल के प्रमुख स. जय सिंह कन्हैया (महाराजा रणजीत सिंह की सास रानी सदा कौर के ससुर) के साथी हकीकत सिंह कन्हैया द्वारा आबाद किया गया। स. हकीकत सिंह गांव जुल्का के स. बघेल सिंह संधू के सुपुत्र थे। कन्हैया मिसल के मुखी जय सिंह ने जब अपना जत्था (बाद में यह जत्था कन्हैया मिसल में तब्दील हो गया) तैयार किया तो स. हकीकत सिंह और उनके तीन भाईयों स. मेहताब सिंह, जीवन सिंह और भाग सिंह सबसे पहले उनके जत्थे में शामिल हुए। स. हकीकत सिंह ने स. जय सिंह कन्हैया के साथ कई भयंकर युद्धों में भाग लिया और उसे विजय दिलाई।
स. हकीकत सिंह ने सबसे पहले अमृतसर के पास ही संगतपुरा गांव में अपनी रिहायश रखी और फिर कलानौर पर कब्जा करने के बाद अपनी सरहद बढ़ाकर मौजूदा फतेहगढ़ चूडियां कस्बे तक ले गए। यह कस्बा 17वीं सदी में बंदेशी जाटों के कब्जे के अधीन था। स. हकीकत सिंह ने यहां पठानों को खदेड़ कर अपना अधिकार कायम कर लिया और अपनी रिहायश के लिए इस कस्बे में एक आलीशान किला तामीर करवाया, जिसका नाम उसने फतेहगढ़ रखा। उसके आस-पास बहुत जल्द घनी आबादी बस गई। उनमें से अधिकतर घर चूड़ीघरों (चूड़ियां बनाने वाले) के थे जिस कारण यह कस्बा फतेहगढ़ चूडियां वाला के नाम से जाना जाने लगा।
जब स. हकीकत सिंह ने उक्त किले का निर्माण करवाया तो किले के पास ही पूजा-पाठ के लिए एक खूबसूरत मंदिर और तालाब का भी निर्माण करवाया। घर की महिलाओं के मंदिर और तालाब में स्नान करने जाने के लिए बाकायदा किले के अंदर एक सुरंग भी बनवाई गई। यह तालाब आज भी मौजूद है और यहां बने मंदिर को तालाब वाला मंदिर कहा जाता है। यह तालाब 14 फीट गहरा,223 फीट लंबा और 229 फीट चैड़ा है जो कि आज भी तसल्लीबख्श हालत में मौजूद है। लेकिन तालाब की परिक्रमा और मंदिर की भूमि पर कुछ नाजायज़ कब्जे़ हो चुके हैं। वर्ष 1782 में स. हकीकत सिंह स्वर्गवास हो गए, उनका इकलौता बेटा स. जैमल सिंह उस समय सिर्फ 11 वर्ष का था। स. जै सिंह ने उसकी शादी पटियाला के महाराजा स. साहिब सिंह की बहन बीबी साहिब कौर के साथ करवा दी। जिसका वर्ष 1801 में देहांत हो गया। स. जैमल सिंह ने जल्दी बाद दूसरी शादी कर ली जिससे वर्ष 1802 में चंद कौर का जन्म हुआ। वर्ष 1803 में जब चंद कौर सिर्फ एक वर्ष की थी तो उसकी सगाई महाराजा रणजीत सिंह के शहज़़ादा स. खड़क सिंह के साथ कर दी गई। जब वह 10 वर्ष की हुई तो 6 फरवरी 1812 को फतेहगढ़ चूडियां में बड़ी शानो-शौकत के साथ उसकी शादी की गई। शहज़ादा खड़क सिंह की बारात लाहौर से हाथी-घोड़ों पर सवार होकर वहां पहुंची; जिसमें गवर्नर जनरल हिंद की तरफ से उनका कमांडर इन चीफ कर्नल अख्तरलोनी, राजा संसार चंद (कांगड़ा) और अन्य राज्यों के राजा, नवाब और अंग्रेज़ अधिकारी शामिल हुए। इसी रानी चंद कौर की कोख से 9 मार्च 1821 को कंवर नौनिहाल सिंह का जन्म हुआ।
अगस्त 1812 में जब शहज़़ादा खड़क सिंह के ससुर स. जैमल सिंह का देहांत हुआ तो उसका जो कीमती खज़ाना फतेहगढ़ चूडियां के किले में पड़ा हुआ था; सहित उसकी सारी जागीर को महाराजा रणजीत सिंह ने अपने कब्जे में लेकर खड़क सिंह के नाम लगवा दिया। जब नवंबर 1812 में स. जैमल सिंह की विधवा ने चंद सिंह को जन्म दिया तो महाराजा ने 15,000 रूपये की वार्षिक जागीर उसके नाम लगवा दी। शेर-ए-पंजाब के देहांत के बाद महाराजा बनने के कुछ समय उपरांत रानी चंद कौर, महाराजा खड़क सिंह से नाराज़ होकर फतेहगढ़ चूडियां में अपने भाई चंद सिंह के पास आ गई और महाराजा के देहांत के दो दिन बाद अपने बेटे कंवर नौनिहाल सिंह की मौत की खबर सुनकर लाहौर लौटी।
फतेहगढ़ चूडियां में रहते हुए धार्मिक विचारों वाली रानी चंद कौर ने वर्ष 1838-39 में किला फतेहगढ़ के पास ही अपने निजी पूजा-पाठ के लिए एक आलीशान एवं खूबसूरत मंदिर का निर्माण करवाया। इस मंदिर के निर्माण में कांगड़ा के और मुगल भवन कला निर्माण में माहिर कारीगरों का सहयोग लिया गया। उस समय उत्तरी भारत में पंच मंदिर निर्माण का काफी रिवाज़ था, जिसके चलते फतेहगढ़ चूडियां में भी श्री राम एवं कृष्ण भगवान् के भव्य मंदिर के चारों कोनों में श्री गणेश, विष्णु, देवी शक्ति और सूरज देवता को समर्पित पंच मंदिर का निर्माण किया गया। इन मंदिरों के निर्माण में सीमेंट या रेत का नहीं बल्कि चूने, मांह की दाल और रावा गुड़ इत्यादि का प्रयोग किया गया।
इस मंदिर का आर्किटैक्चर पंजाब के किसी भी मंदिर के साथ मेल नहीं खाता। इस मंदिर परिसर के मध्य एक विशाल मंदिर बना हुआ है और इसकी परिक्रमा के चारों कोनों में चार छोटे मंदिर बनाए गए हैं। किसी मकबरे के गंुबद की शक्ल जैसा मुख्य मंदिर का गुंबद करीब 20 फीट ऊंचा और 18 फीट चैड़ा है। इस पंच मंदिर में 150 के करीब दिलकश दीवार चित्र बने हुए हैं जिनमें से 60 से अधिक दीवार चित्रों पर रंग-रोगन करवाकर मौजूदा प्रबंधकों द्वारा उन्हें नष्ट कर दिया गया है। इनमें से कुछ तेल चित्र सिख गुरू साहिबान के, कुछ कृष्ण लीला, श्रीचंद्र भगवान और कुछ राम दरबार के हैं।
मंदिर के मुख्य दरवाजे के अंदर दाखिल होते ही पुजारी का कमरा है जिसके ऊपर लाइब्रेरी बनी हुई है। उसमें रखीं दुर्लभ पुस्तकों की हालत देखकर प्रतीत होता है कि जैसे इन्हें 35-40 वर्षों से खोलकर नहीं देखा गया होगा। मंदिर के बाहर कुछ वर्ष तक एक विशाल कुंआ भी हुआ करता था जिसे बंद कर दिया गया है। इसके पास ही मंदिर का निर्माण करवाने वाले रानी के दीवान की समाधि बनी हुई है जिसकी हालत काफी खस्ता हो चुकी है।
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