गुजरात में पोरबंदर से क़रीब 45 कि.मी. के फ़ासले पर एक वीरान और धूल भरा शहर है घुमली। इस शहर के बीचों बींच 11वीं-12वीं सदी का नौलखा मंदिर है। अगर कभी सौराष्ट्र घूमने जाएं तो इस मंदिर को देकना ने भूलें ।
सूर्य देवता को समर्पित नौलखा मंदिर इतना भव्य है कि अगर इस पर ज़रा भी ध्यान दिया जाता तो इसकी तुलना मोढ़ेरा और कोणार्क के सूर्य मंदिरों से आसनी से की जा सकती है।
सूर्य की पूजा के लिए गुजरात का इतिहास बहुत रहा है। यहां सौ से ज़्यादा सूर्य मंदिर हैं। गुजरात में सूर्य पूजा की दो परंपराएं रही हैं। मग ब्राह्मणों की मूर्तियों पर ईरानी प्रभाव (मूर्तियों के पैरों में जूते औऱ सिर पर टोपी होती है) है। ऐसी मूर्तियां मोढ़ेरा में देखी जा सकती हैं। दूसरी तरफ़ क्षत्रिय परंपरा में सूर्य देवता की पूजा उनके परिवार के साथ यानी पत्नी उषा और प्रत्यूष तथा पुत्र रेवंत के साथ की जाती है। इसी तरह राज्य में सूर्य पूजा का एक और महत्वपूर्ण उदाहरण है मकर संक्राति या उत्तरायण पर्व।
नौलखा मंदिर का निर्माण तब हुआ था जब इस क्षेत्र पर जेठवा शाही परिवार का शासन होता था। जेठवा वंश की उत्पत्ति का पता नहीं है। बॉम्बे प्रेसीडेंसी (1884) के गज़ेटियर के अनुसार जेठवा क़रीब सन 900 के आसपास कच्छ प्रांत आए थे। उन्हें शायद सिंध से खदेड़ दिया गया था। उन्होंने रण को पार कर मोरबी पर कब्ज़ा किया और इसे अपनी राजधानी बना लिया। इसके बाद उन्होंने कच्छ की दक्षिणी खाड़ी के तटों से लगे क्षेत्रों पर अपना प्रभाव जमाया। जल्द ही उन्होंने अपना साम्राज्य बाड़दा की पहाड़ियों और घाटियों तक फैला लिया। यहां जेठवा शासक सईं कुमार ने भुमबली को अपनी राजधानी बनाया। बाद में ये नाम बिगड़कर घुमली हो गया।
लोक-कथाओं के अनुसार जेठवा वंश की उत्पत्ति को लेकर दिलचस्प बातें कहीं जाती हैं। जेठवोओं का दावा है कि उनके वंश के संस्थापक मकरध्वज हनुमान और मादा घड़ियाल के पुत्र थे। अभी हाल तक कहा और माना जाता था कि जेठवा दुम के साथ पैदा होते थे।
घुमली में जेठवाओं ने क़रीब 200 वर्ष बिताए होंगे। उस समय के भवनों के जो अवशेष आप यहां देख सकते हैं उससे लगता है कि घुमली किसी समय एक बड़ा, घनी आबादी वाला समृद्ध और संपन्न शहर रहा होगा।
लेकिन जल्द ही घुमली का भाग्य बदल गया। ऐसा माना जाता है कि 14वीं सदी के आरंभ में जेठवा दुश्मनों के हमले बर्दाश्त नहीं कर पाए और उन्होंने अपनी राजधानी छोड़ दी। वे पोरबंदर जाकर बस गए। जेठवा ने सन 1947 तक पोरबंदर साम्राज्य पर राज किया। सन 1947 में अंतिम शासक महाराजा नटवर सिंहजी ने इसका विलय भारत में कर दिया था। दिलचस्प बात ये है कि महात्मा गांधी के दादा, पिता और चाचा पोरबंदर के जेठवा राजाओं के दीवान हुआ करते थे।
बहरहाल धीरे धीरे घुमली वीरान होता चला गया और सदियों के दौरान दुश्मन शासकों और लुटेरों के हमलों की वजह से ये बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया। क़रीब एक दशक पहले ही गुजरात सरकार और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने मिलकर घुमली के स्मारकों की मरम्मत करवाई और इसकी समृद्ध विरासत को देखते हुए इसे एक महत्वपूर्ण पर्यटक स्थल के रुप में विकसित किया।
भव्य नौलखा मंदिर की मरम्मत का काम सबसे कठिन था जिसका निर्माण 11वीं या 12वीं सदी में हुआ था। इसकी वास्तुकला में सोलंकी और मरु-गुजरात शैली की झलक मिलती है। ये मंदिर सुंदर नक़्क़ाशीदार तलघर के ऊपर है। पूर्व दिशा की तरफ़ स्थित इस मंदिर का प्रवेश-द्वार सुंदर और बारीक डिज़ाइनों से सुसज्जित है। प्रवेश-द्वार पर एक कीर्ति तोरण भी है। गर्भगृह प्रदक्षिणा-पथ से घिरा हुआ है। यहां आपको हाथियों, घोड़ों, पक्षियों और सांपों की मूर्तियां मिलेंगी उन्हीं के साथ खड़ी हुई, घुटने टेके और नृत्य करती मानव छवियां भी हैं।
यहां ब्रह्मा-सावित्री, पश्चिम दिशा में शिव-पार्वती और उत्तर दिशा में लक्ष्मी, नारायण की भी छवियां हैं। सूंड उठाए तीन हाथियों की मूर्ति इस मंदिर की विशिष्ट पहचान है। दिलचस्प बात ये है कि कहा जाता है कि इस मंदिर का नाम नौलखा इसलिए पड़ा क्योंकि इसे बनवाने में नौ लाख रुपये की लागत आई थी।
नौलखा मंदिर के अलावा घुमली में मध्यकाल के और कई स्मारक हैं। इनमें सीढ़ियों वाले दो बावड़िया या वाव, वीकिया वाव, जेठा वाव के अलावा सोन कंसारी मंदिर समूह भी है।
गुज़रे ज़माने की शान-ओ-शोकत के गवाह, छोटे-से शहर घुमली को लगभग भुला दिया गया है। इसकी सुंदर वास्तुकला और प्राकृतिक घरोहर आपको विस्मित करने का इंतज़ार कर रही है।
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