मध्यकालीन दिल्ली का तेलंगाना से संबंध

दक्षिण दिल्ली के साकेत इलाके में, सिलेक्ट सिटी वॉक जैसै ठाट-बाट वाले शॉपिंग मॉल के सामने खिड़की गांव में एक मस्जिद है, जिसे खिड़की मस्जिद कहते हैं। लेकिन सबसे दिलचस्प बात यह है, कि इसे वारंगल के काकतीय साम्राज्य के अधिकारी मलिक मक़बूल तेलंगानी के बेटे जूनान शाह ने बनवाया था, जो आगे चलकर तुग़लक साम्राज्य में प्रधानमंत्री बना।

मलिक मक़बूल का जन्म 14वीं शताब्दी में काकतीय साम्राज्य में गण नायक (अपने समुदाय का सरग़ना) के रूप में हुआ था। वह काकतीय राजवंश के अंतिम राजा प्रतापरुद्र-द्वितीय के शासनकाल में एक बहादुर फौजी था। राजा प्रतापरुद्र-द्वितीय ने 12वीं और 14वीं शताब्दी के बीच तेलंगाना पर शासन किया था।

गियासुद्दीन तुग़लक ने जब सन 1320 ईसवी में ख़िलजी वंश को समाप्त कर तुग़लक वंश की स्थापना की, प्रतापरुद्र-द्वितीय को लगने लगा था, कि अब दिल्ली सल्तनत कमज़ोर हो गई है, तो उसने ख़ुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया। गियासुद्दीन ने अपने बेटे, उलूग़ खां (बाद में मुहम्मद बिन तुग़लक़ के नाम से प्रसिद्ध) को सन 1323 ईसवी में तेलंगाना क्षेत्र में भेजा, जहां काकतीय शासक सक्रिय थे। उलूग़ खां ने प्रतापरुद्र-द्वितीय को हराकर उनका राजवंश समाप्त किया।

इसी दौरान गण नायक ने इस्लाम धर्म अपना लिया। चूंकि वह एक बहुत ही बहादुर योद्धा था, इसीलिए उसे दिल्ली की ताकतवर होती तुग़लक सल्तनत में रोज़गार मिल गया। मुहम्मद बिन तुग़लक की नज़र उसकी सैन्य क्षमता पर पड़ी, और उसने खुद ही उसे पदोन्नत किया। मुहम्मद बिन तुग़लक के दरबार में उसका ओहदा बढ़ने लगा, और वह मलिक मक़बूल तेलंगानी के नाम से जाना जाने लगा। बाद में उसे मुल्तान का सूबेदार और पंजाब क्षेत्र का प्रशासक बनाया गया, जो दिल्ली सल्तनत के लिए राजस्व और रक्षा के मामले में प्रमुख क्षेत्र थे।

सन 1351 में मुहम्मद बिन तुग़लक़ की मृत्यु के बाद उसका चचेरा भाई फ़िरोज़ शाह तुग़लक दिल्ली का नया सुल्तान बना। फ़िरोज़ शाह तुग़लक ने, सक्षम और वफ़ादार मलिक म़कबूल तेलंगानी को पहले वित्त मंत्री और बाद में दिल्ली सल्तनत का वज़ीर या ख़ान-ए-जहाँ (प्रधान मंत्री) बनाया।

शाही दरबार में उसका दर्जा दूसरे नम्बर का था। फ़िरोज़ शाह उसे अपना भाई मानता था।

मलिक मक़बूल तेलंगानी भारत का शायद पहला पेशेवर सीईओ था, क्योंकि उसे उसके काम के बदले बहुत दाम मिलते थे। कहा जाता है, कि उसे सालाना तेरह लाख टके मिलते थे। इसके अलावा ज़मीन-जागीर आदि से भी उसकी कमाई होती थी। सन 1369 में मलिक मक़बूल की मृत्यु हो गई और विरासत में उसकी तमाम दौलत उसके बेटे जुनान शाह को मिल गई।

मलिक मक़बूल का बेटा जुनान शाह मक़बूल तेलंगानी, अपने पिता की तरह योद्धा नहीं था, लेकिन वास्तुकला प्रेमी फ़िरोज़ शाह तुग़लक की तरह, उसने अपने पिता और ख़ुद की विरासत को अमर करने के लिए जहांपनाह (मोहम्मद बिन तुग़लक द्वारा निर्मित) के आसपास कई इमारतें बनवाईं। उसका अंत उसके पिता की तरह गरिमापूर्ण नहीं रहा। बाद के वर्षों में वह बहुत बदनाम हो गया था। सन 1389 में सुल्तान और उसके सबसे बड़े बेटे मुहम्मद ख़ां तुग़लक़ के बीच उसने सत्ता-संधर्ष पैदा करवा दिया था । इसीलिये उसे मौत के घाट उतार दिया गया था। हालाँकि परिवार की विरासत तो जुनान शाह के साथ समाप्त हो गई, लेकिन उसने जो तीन इमारतें बनवाईं थीं,वो आज भी मौजूद हैं।

मलिक मक़बूल तेलंगानी का मक़बरा

निज़ामुद्दीन वेस्ट के एक कोने में स्थित यह भारत का पहला मक़बरा है, जो अष्टकोणीय आकार में बनाया गया था। दिल्ली सल्तनत के सैय्यद और लोदी राजवंशों से पहले भारतीय उपमहाद्वीप में इस्लामी मक़बरे अक्सर चोकोर हुआ करते थे। दिल्ली सल्तनत के सैय्यद और लोदी राजवंशों के दौर में अष्टकोणीय भवन बेहद लोकप्रिय हो गये थे, और वास्तुशिल्प का यह रुप मुग़ल साम्राज्य ने भी अपनाया था।

खिड़की मस्जिद

दिल्ली के साकेत इलाक़े में स्थित है, खिड़की मस्जिद। इस मस्जिद की एक दिलचस्प खासियत यह है, कि इसके चारों कोनों में विशाल गोल मीनार बने हैं और छत 25 वर्गों के एक ग्रिड में विभाजित है, जिनमें से 21 वर्गों के ऊपर नौ नुकीले गुंबद हैं।

 

बाक़ी चार वर्गों को हवा के आने-जाने लिए खुला छोड़ दिया गया था। इस तरह वहां एक छोटा-सा आंगन बन गया था। वहां एक बड़ा और खुला आंगन बनवाने की बजाय, अस्सी फ़ीसदी से ज़्यादा भाग छत से ढका हुआ है। भारत में इससे पहले, इस तरह की वास्तुकला की और कोई मस्जिद नहीं बनाई गई थी।

रौशनी की कमी को पूरा करने के लिये मस्जिद की तीन बाहरी दीवारों में ग्रिड-पैटर्न वाली खिड़कियां हैं। हर दीवार में बारह खिड़कियां हैं, जिसके कारण शायद इस मस्जिद का नाम “खिड़की मस्जिद” पड़ा होगा।

बेगमपुर मस्जिद

सन 1387 में जुनान शाह तेलंगानी ने बेगमपुर में एक शाही मस्जिद बनवाई थी, जो तीन सौ साल तक दिल्ली की सबसे बड़ी मस्जिद मानी जाती थी।

 

इसके बाद सन 1656 में शाहजहाँ ने इससे भी बड़ी मस्जिद जामा मस्जिद बनवा दी। लेकिन बेगमपुर की मस्जिद आज भी दिल्ली की दूसरी सबसे बड़ी मस्जिद मानी जाती है।

 

शीर्षक चित्र: यश मिश्रा

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