मदुरई का नाम आते ही ज़हन में यहां के पवित्र मीनाक्षी मंदिर की तस्वीर उभर आती है जो दक्षिण भारत के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। लेकिन इस प्राचीन शहर में स्थित इस मंदिर के पास ही एक और भव्य स्मारक है जो शहर के इतिहास और गौरव की निशानी है। तिरुमलई नयक्कर महल, जिसे मदुरई पैलेस भी कहते है, शहर के 17वीं सदी के सबसे शक्तिशाली और कुशल शासकों में से एक तुरुमला नायक की धरोहर है। हालंकि किसी ज़माने में भव्य रहे इस महल के आज कुछ ही हिस्से बाक़ी रह गए हैं लेकिन 385 साल पुराना ये महल आज भी शहर के गौरवशाली अतीत और उसके महान शासक की गाथा सुनाता है।
तमिलनाडु में प्राचीन दक्षिण भारतीय शहर मदुरई को थूंगा नागराम के नाम से भी जाना जाता है जिसका अर्थ होता है एक ऐसा शहर जो कभी सोता नहीं है। समृद्ध इतिहास, संस्कृति और परंपराओं की वजह से इसे राज्य की सांस्कृतिक राजधानी भी माना जाता है। मदुरई चौथी सदी ई. पू. से ही पंडयन, चोल, विजयनगर शासकों और मदुरई नायक साम्राज्यों का सत्ता केंद्र था। ये शहर व्यापार का भी एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है और इतिहास में मदुरई तथा रोमन-विश्व के बीच व्यापार के उल्लेख भी मिलते हैं। प्राचीन काल में, भारत में रहे यूनानी राजदूत औऱ इतिहासकार मेगस्थनीज़ ने मदुरई का उल्लेख “पंडई” के नाम से किया है जबकि पेरिप्लस ऑफ़ द एरिथ्रियन सी (सन 59-62) नामक पुस्तक में इसका “पंडी मंडला” नाम से उल्लेख मिलता है। माना जाता है कि ये किताब, मिस्र में रहनेवाले एक यूनानी ने लिखी थी ।
शहर का सबसे महत्वपूर्ण दौर मदुरई नायकों के शासनकाल के दौरान आया था। इनके शासनकाल में शहर में बहुत ख़ुशहाली आई थी और मदुरई नायक शासकों ने मीनाक्षी मंदिर और मदुरई पैलेस सहित कई भवनों को संरक्षण दिया था। 14वीं सदी में विजयनगर के शासकों ने मदुरई पर कब्ज़ा कर लिया और ये शहर विजयनगर साम्राज्य का हिस्सा बन गया। विजयनगर के शासकों की राजधानी हंपी हुआ करती थी। 16वीं सदी में विजयनगर प्रशासन के दौरान नायनकरा प्रणाली लागू की गई जिसके तहत शासक अपने क्षेत्र, अपने सूबेदारों को दिया करते थे जिन्हें नायक कहा जाता था। नायकों को उनके क्षेत्रों में बहुत आज़ादी थी और वे सालाना एक निश्चित राशि विजयनगर शासकों को दिया करते थे। सन 1529 में विजयनगर के महान राजा कृष्ण देव राया के निधन के बाद नायक बहुत प्रभावशाली हो गए, ख़ासकर तंजोर, मदुरई और गिंगी में।
मदुरई में नायकों ने कैसे शासन शुरू किया, इसके बारे में अलग अलग राय मिलती हैं लेकिन मोटे तौर पर माना जाता है कि इस राजवंश की स्थापना विश्वनाथ नायक ने सन 1529 में की थी। विश्वनाथ नायक बहुत सक्षम शासक था जिसने सुरक्षा के लिए मदुरई शहर की क़िलेबंदी करवाई थी और मीनाक्षी मंदिर को भी चंदा दिया था। लेकिन मदुरई के इतिहास में तिरुमल नायक सबसे महत्वपूर्ण और शक्तिशाली शासकों में से एक था जिसने मदुरई पैलेस बनवाया था। मुत्तु विरप्पा के बाद सत्ता में आए तिरुमल नायक का शासनकाल सन 1623 में आरंभ हुआ था। तिरुमल ने त्रिचि (अब तिरकुचिरापल्ली) के बजाय मदुरई को दोबारा राजधानी बना लिया था और बहुत सावधानी से साम्राज्य की सुरक्षा व्यवस्था की थी। उसके शासनकाल में कई बड़े सैन्य अभियान छेड़े गए थे। तिरुमल ने मैसूर के साथ युद्ध में भी सफलता प्राप्त की थी और उसने बीजापुर के सुल्तान सहित और कई साम्राज्यों के साथ गठबंधन किया था।
तिरुमल का कला तथा वास्तुकला के क्षेत्र में बहुत बड़ा योगदान रहा है। उसने कई भवनों का निर्माण करवाया था और उसके शासनकाल में शहर में कई सांस्कृतिक परंपराएं और रीति रिवाज ख़ूब फलेफूले। उसने मीनाक्षी मंदिर के लिए बहुत अंशदान और चंदा दिया था। उसने मंदिर में पुडु मंडप बनवाया था । तिरुमल ने मदुरई में ही नहीं बल्कि तिरुप्परकुर्णरम, अलगारकोईल और श्रीविल्लीपुतुर आदि जैसी जगहों पर भी कई धार्मिक और सार्वजनिक स्मारक बनवाए थे।
मदुरई में, तिरुमलई नायक्कर महल सही मायने में उसकी धरोहर को पारिभाषित करता है। इसका नाम तिरुमल के नाम पर ही रखा गया था। ये महल दक्षिण-पूर्व दिशा में मीनाक्षी मंदिर से क़रीब दो कि.मी. के फ़ासले पर स्थित है। एक अनुमान के तहत महल का निर्माण कार्य सन 1629 में शुरु हुआ था जो सन 1636 में संपन्न हुआ। कहा जाता है कि तिरुमल ने सामरिक और प्रशासनिक कारणों से त्रिचि की जगह मदुरई को अपनी राजधानी बनाया था । इसलिए उसने ये महल बनवाया था। विशेषज्ञों के अनुसार जो महल आज हमें नज़र आता है, असली महल उससे चार गुना बड़ा था। माना जाता है कि महल का जो हिस्सा आज बचा रह गया है वो महल का मुख्य हिस्सा हुआ करता था जहां तिरुमल रहता था और दरबार लगाता था।
वास्तुकला की दृष्टि से देखें तो ये महल दक्षिण भारत में सबसे ख़ूबसूरत महलों में से एक है। इसमें इस्लामिक, द्रविड़ और यहां तक कि राजपूत सहित कई वास्तुकला शैलियों का मिश्रण है। ऐसा माना जाता है कि तिरुमल ने महल बनवाने के लिए एक इतालवी वास्तुकार को नियुक्त किया था। महल का मुख्य हिस्सा दो विभागों मे बंटा हुआ है- रंगविलास और स्वर्गविलास। स्वर्गविलास राजा का निवास होता था। यहां शाही निवास, मंदिर, मकान, थिऐटर, जलाशय, बाग़ तोपख़ाने और शाही चबूतरे होते थे। परिसर में एक दरबार, नाटकशाला, रानी का हरम, शाही कक्ष, राजाराजेश्वरी मंदिर, बाग़, फ़व्वारे और मंत्रियों तथा अधिकारियों के मकान थे। ये महल भव्य स्तंभों के लिए जाना जाता है। महल में 248 स्तंभ हैं। पूरे महल में नक़्क़ाशी का काम है सुंदर तरीक़े की सजावट है।
तिरुमल नायक के निधन के बाद महल क्षतिग्रस्त होने लगा था। तिरुमल नायक का पोता चोकनाथ नायक (1659-1682) सन 1665 में त्रिचि चला गया और उसने महल का ज़्यादातर हिस्सा ध्वस्त करवा दिया। वह अपने साथ महल के कई सजावटी सामान त्रिचि ले गया। इसके बाद तिरुमल नायक का महल धीरे धीरे बरबाद होता गया। नायकों का शासन सन 1736 में समाप्त हो गया।
सन 1801 में मदुरई, अंग्रेज़ प्रशासन के अधीन हो गया। अंग्रेज़ों के शासन के दौरान महल का इस्तेमाल सैनिकों के रहने और निर्माण कार्यों के लिए होने लगा था। कहा जाता है कि इसका इस्तेमाल काग़ज़ बनाने के कारख़ाने के लिए भी हुआ और यहां बुनकर भी अपना काम करते थे। सन 1857 में भारी वर्षा के दौरान महल काफ़ी क्षतिग्रस्त हो गया था।
वो मद्रास प्रेसेडेंसी के गवर्नर नैपियर ही था जिसने महल में दिलचस्पी ली। कहा जाता है कि उसने महल परिसर की मरम्मत के लिए पांच लाख तेरह हज़ार रुपए आवंटित किए थे। आज़ादी के बाद सन 1970 तक इसका इस्तेमाल मदुरई-रामनाद अदालत के रुप में होता रहा और इसके बाद राज्य पुरातत्व विभाग ने इसे संरक्षित स्मारक घोषित कर दिया।
आज बड़ी संख्या में सैलानी इस महल को देखने आते हैं। हालंकि महल कठिन दौर का गवाह रहा है लेकिन फिर भी ये उस शासक की धरोहर की निशानी है जिसने मदुरई के एक महत्वपूर्ण दौर में अपनी छाप छोड़ी।
मुख्य चित्र: मदुरई पैलेस, ब्रिटिश लाइब्रेरी
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