लोथल की प्राचीन देवी

लोथल नामक स्थान के एक छोटे से किनारे पर एक मंदिर है जो समुद्र की देवी को समर्पित है। पांच हज़ार साल पहले लोथल एक विशाल बंदरगाह हुआ करता था।

इस मंदिर में आज भी कुछ लोग आते हैं और आपको भी आना चाहिये क्योंकि कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यहां की देवी सिकोतर माता की हड़प्पा सभ्यता के समय में भी पूजा होती थी। इसलिये कहा जा सकता है कि सिकोतर माता भारत की प्राचीनतम देवियों में से एक है। आधुनिक निर्माणों और हाल ही में बने शिवलिंग की वजह से असली सिकोत्री माता मंदिर की प्राचीनता छुप गई है।

1950 के दशक तक लोथल में खुदाई के पहले सिकोतर माता को समर्पित मूल मंदिर एक छोटी पहाड़ी पर स्थित था। सन 1954 में प्रसिद्ध पुरातत्वविद डॉ. एस.आर. राव के नेत़त्व में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के दल ने जब यहां खुदाई शुरु की तो खुदाई दल ने स्थानीय गांव वालों की मदद से मूर्ति के लिये एक नया मंदिर बनाया। मूल मंदिर के नीचे जब खुदाई हुई तो वहां से हड़प्पा युग का एक विशाल भंडार मिला। भंडार में हड़प्पा समय की 54 दुर्लभ मोहरें थी।

दुर्भाग्य से खुदाई के दौरान सिकोतर माता मंदिर ढ़ह गया इसलिये हम इसके निर्माण का समय हमें नहीं पता चल सका। लेकिन इतिहासकारों के अनुसार कुछ ऐसे संकेत मिले हैं जिससे लगता है कि ये देवी बहुत प्राचीन है।

पहली बात तो ये कि सिकोतर माता देवी का नाम संभवता: लाल सागर में सिकोत्रा द्वीप के नाम पर पड़ा होगा। हड़प्पा सभ्यता और उसके बाद के समय में सिकोत्रा भारतीय व्यापारियों का गढ़ हुआ करता था जिसका उल्लेख यूनानी रिकॉर्ड्स में मिलता है।

दूसरी बात ये कि पुराने बंदरगाह के सामने स्थित ये मंदिर लोथल के पास समुद्री तटों पर उतरने वाले नाविकों का आज भी पहला विश्राम स्थल है। इससे संकेत मिलता है कि ये पांच हज़ार साल पहले जब लोथल गहमागहमी वाला बंदरगाह हुआ करता था, तब की बची रह गई विरासत का हिस्सा है।

आख़िर में, समुद्र की ये देवी हड़प्पा समय की देवी रही होगी, इसके समर्थन में ये तर्क दिया जाता है कि गुजरात के तट पर कई ऐसे मंदिर हैं जो इस देवी को समर्पित हैं। घोघा, भड़ौच और सूरत के पास हड़प्पा समय के प्राचीन और महत्वपूर्ण बंदरगाहों से इन सभी मंदिरों का संबंध है।

अगर आप आज लोथल जाएं तो ये कल्पना करना कठिन होगा कि ये शांत जगह पांच हज़ार साल पहले कभी भारतीय उप-महाद्वीप का गहमागहमी वाला सबसे बड़ा बंदरगाह रहा होगा। ये विश्वास करना भी मुश्किल है कि हमें अब भी ये नहीं पता कि हड़प्पा के समय लोग लोथल को किस नाम से जानते थे। उस समय के लोग यहां से विश्व यात्रा पर निकलते थे।

सालों के तमाम अनुसंधान और शोध के बावजूद हड़प्पा सभ्यता आज भी कई मायनों में एक रहस्य बनी हुई है। इसी तरह लोथल की देवी की मौजूदगी भी एक रहस्य बनी हुई है।

सिकोतर माता, जिनकी आज भी पूजा की जाती है, गुज़रे समय की एक मूक गवाह हैं। सिर्फ़ इस देवी को ही लोथल में छुपे रहस्यों के बारे में पता है।

हड़प्पा के समय का लोथल बंदरगाह शहर गुजरात के अहमदाबाद ज़िले के छोटे से गांव सागरवाला में है। लोथल के पास सबसे नज़दीक एयरपोर्ट,अहमदाबाद में सरदार वल्लभभाई पटेल एयरपोर्ट है जो लोथल से 89 कि.मी.के फ़ासले पर है। इसके अलावा इसके क़रीब, अहमदाबाद-भावनगर रेल्वे लाइन पर बुर्खी रेल्वे स्टेशन है। रेल्वे स्टेशन से लोथल पुरातत्व स्थल 8 कि.मी. दूर है।

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