कुकुर्रामठ: कुत्ते की याद में बना शिव मंदिर

हिन्दू धर्म में मंदिरों का एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान सदैव से ही रहा है और यही कारण है, कि हमें तमाम स्थानों पर ऐतिहासिक मंदिर दिखाई दे जाते हैं। भारतीय पुरातत्त्व में भी मंदिरों का एक अहम स्थान है। ये किसी भी स्थल की तिथि, राजनैतिक स्थिति, इतिहास आदि जानने के एक महत्वपूर्ण साधन होते हैं। उदहारण के लिए खजुराहो के मंदिरों को ही लिया जा सकता है। मंदिरों को मात्र एक धार्मिक स्थापत्य के रूप में ही नहीं देखा जा सकता, बल्कि ये समाज, कला और साम्राज्य का आईना भी होते हैं। भारतभर में पाए जाने वाले मंदिरों के साथ कुछ न कुछ कहानियाँ जुड़ी होती हैं। कुछ तो लोगों तक पहुँच पाती हैं और कुछ आज भी गुमनामी के अंधेरे में ही पड़ी हैं।

ऐसा ही एक मंदिर मध्य प्रदेश के डिंडोरी ज़िले में है। डिंडोरी ज़िला मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य ज़िलों में से एक है, यहाँ गोंड और बैगा जनजातियों समेत अन्य कुछ और जनजातियाँ भी रहा करती हैं। डिंडोरी में बैगा जनजाति आज भी अपने प्राचीन जीवन शैली में रहती है। इसी वजह से यहां आज भी आदिवासी संस्कृति अपने वास्तविक स्वरुप में दिखाई देती है। यह ज़िला आज से करोड़ों वर्ष पहले सुन्दर वनों से घिरा रहता था। यहाँ पर विशाल ताड़ के पेड़ व अन्य प्रागैतिहासिक पेड़-पौधे बड़े पैमाने पर हुआ करते थे। इन पेड़-पौधों के अवशेष आज जीवाश्म के रूप में पूरे ज़िले में फैले हुए हैं। यहीं पर देश के विशालतम वनस्पति जीवाश्म उद्यानों में से एक घुघुआ राष्ट्रीय जीवाश्म पार्क मौजूद है। घुघुआ के अलावा अमोलखोह और नर्मदा के आस-पास के अनेक स्थलों पर ये जीवाश्म उपलब्ध हैं। आज भी यह ज़िला अपने वनों के लिए विख्यात है।

डिंडोरी ज़िले में 9 वीं शताब्दी से 12वीं-13वीं शताब्दी तक कलचुरियों का शासन रहा था। यही कारण है, कि इस ज़िले में वर्तमान समय में भी कई मंदिरों आदि के अवशेष हमें देखने को मिल जाते हैं।

मेरे पिछले डिंडोरी के पुरातात्विक सर्वेक्षण के दौरान कई मंदिर और पुरातात्विक अवशेष प्रकाश में आये। डिंडोरी ज़िले में कई स्थान पर मूर्तियाँ, मंदिरों के अवशेष आदि आसानी से दिखाई दे जाते हैं। इन अवशेषों में बीहर धाम के कलचुरी-कालीन जल कुंड, शीर्ष घाट और आस-पास के क्षेत्र में फैले मंदिरों और प्रतिमाओं के अवशेष, दुर्गा मडिया के कलचुरी कालीन प्रतिमा अवशेष, कुकुर्रामठ का मंदिर और उसके आस-पास फैले कलचुरी-कालीन मंदिर अवशेष तथा नर्मदा किनारे बसे लक्ष्मण मंडप के मंदिर आदि।

कुकुर्रामठ मंदिर डिंडोरी ज़िले के कई कलचुरी कालीन मंदिरों में से एक है, जो आज भी पूरी तरह मौजूद है। यह मंदिर कलचुरी-कालीन कला का आज भी प्रतिनधित्व करता है। यह मंदिर पूरे ज़िलेभर में आस्था के प्रमुख स्थल के रूप में जाना जाता है। इस मंदिर का संरक्षण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग, जबलपुर मंडल द्वारा किया गया है तथा यह केन्द्रीय संरक्षित स्मारक में शुमार है।

इस मंदिर से जुड़ी लोककथाएं, मंदिर को अति विशिष्ट बनाती हैं। ऐसा माना जाता है, कि यह मंदिर एक स्वामीभक्त कुत्ते की समाधि पर स्थित है। इस मंदिर से सम्बंधित कथा के अनुसार ऐसा माना जाता है, कि इस मंदिर को एक बंजारे ने बनवाया था,  जिसने अपने स्वामीभक्त कुत्ते की समाधि के ऊपर इस मंदिर का निर्माण करवाया था।

जैसा की कुत्ते को कुकुर नाम से जाना जाता है, तो इसलिये इस मंदिर को कुकुर्रामठ नाम से जाना जाता है।

कुछ विद्वानों का मत है, कि इस मंदिर का निर्माण कलचुरी राजा कोकल्यदेव के सहयोग से तत्कालीन शंकराचार्य ने गुरु ऋण से मुक्त होने के लिए करवाया गया था।

यही कारण है, कि इस मंदिर को एक अन्य नाम ऋणमुक्तेश्वर के नाम से जाना जाता है। कुछ प्राचीन दस्तावेज़ो में इस मंदिर का एक जैन मंदिर के रूप में वर्णन किया गया है। परन्तु यदि इस मंदिर के स्थापत्य एवं इसके गर्भगृह को देखा जाए, तो यह एक शिव मंदिर ही ज़्यादा प्रतीत होता है। यह मंदिर एक ऊंचे चबूतरे पर निर्मित है, तथा यह यहीं समीप ही पाए जाने वाले पत्थरों के प्रयोग से बनाया गया है।

मंदिर के प्रांगण में बड़ी संख्या में मंदिर स्थापत्य अवशेष भी रखे गए हैं, जिससे यह कहा जा सकता है, कि संभवतः यहाँ पर और भी मंदिर रहे होंगे। यह मंदिर जिस पत्थर से बना है, वह आसानी से टूटने वाला है। यही कारण है, कि इस मंदिर का एक विशाल भाग काफी हद तक टूट चुका है। मंदिर में प्रवेश के लिए पूर्व दिशा में सीढ़ियों का निर्माण किया गया है, तथा यह एक विशाल चौकोर चबूतरे पर निर्मित है। इस मंदिर के गर्भगृह के ऊपर एक वक्र रेखीय शिखर है। इस मंदिर के चारों ओर आलयों व चैत्य गवाक्ष का निर्माण किया गया है, जिसमें एक समय में प्रतिमाएं रही होंगी। कुछ में आज भी प्रतिमाएं दिखाई देती हैं।

इस मंदिर में वर्तमान समय में कुछ नायिकाओं, नायकों और देव प्रतिमाएं मौजूद हैं, जो पत्थर की गुणवत्ता के कारण बहुत हद तक टूट चुकी हैं। मंदिर के वाह्य दीवारों पर व्यालों, उरु शिखरों एवं फूल पत्तियों की शाखें भी बनाई गई हैं। मंदिर के जंघा भाग पर निर्मित एक आलय में निर्मित प्रतिमा गर्भ के द्वार शाखा पर सूर्य प्रतिमा का अंकन किया गया है, जिसमें सूर्य को प्राप्त घोड़ों के ऊपर दर्शाया गया है तथा उन्हें दोनों हाथों में सनाल पद्म धारण किये हुए प्रदर्शित किया गया है।

इसी द्वार शाखा एवं द्वार स्तंभों पर प्रेमी युगल, द्वार पालों, गंगा, यमुना और पुष्प की लताओं का भी अंकन किया गया है। इसी प्रकार के 2 अन्य प्रकोष्ठ भी मंदिर के जंघा भाग पर निर्मित हैं।

मंदिर के मुख्य द्वार पर दंपति एवं शिशु का अंकन किया गया है, तथा उसके ठीक नीचे सांप पर सवार पुरुष का भी अंकन किया गया है। मंदिर में बायीं ओर ही एक शैव सम्प्रदाय के देव का भी अंकन किया गया है, जिन्हें जटा मुकुट धारण किये हुए प्रदर्शित किया गया है।

 

मुख्य द्वार के दोनों ओर स्तंभों पर पूर्णघटों का अंकन और यज्ञशाला का अंकन भी किया गया है। मुख्य द्वार शाखा के ऊपर देवों का अंकन किया गया है तथा उसके ठीक नीचे एक चैत्य में दो व्यालों का भी अंकन किया गया है।

इस मंदिर के प्रांगण में अनेकों मंदिर के अवशेष बिखरे पड़े हैं, जो यह सिद्ध करते हैं, कि यहाँ पर कई अन्य मंदिर भी हुआ करते थे। मंदिर प्रांगण से दायीं ओर क़रीब 100 मीटर की दूरी पर एक अन्य मंदिर के अवशेष दिखाई देते हैं, जो इस बात की पुष्टि करते हैं। वर्तमान में इस मंदिर के कुछ ही अवशेष बचे हैं, जो मिट्टी में दबे हुए हैं..