फ़रवरी सन 1838 में रॉयल बंगाल इंजीनियर्स का नौजवान अंग्रेज़ अफ़सर कैप्टन टी.एस. बर्ट अपनी टीम के साथ मध्य भारत के जंगली पठार के इलाक़ों के मुआयने पर निकला हुआ था। उसकी टीम जब मध्य प्रदेश के शहर ऐरण और सागर के बीच से गुज़री तो उसकी पालकी उठाने वाले ने उसे पास ही में मंदिर की दीवारों पर बनी उत्तेजक मूर्तियों के बारे में बताया। ये सुनकर बर्ट को उत्सुकता हुई और उसने सच्चाई जानने का फ़ैसला किया।
बर्ट और उसकी टीम जब छोटे से गांव खजुराहो पहुंची तो वहां का नज़ारा देखकर बर्ट आश्चर्यचकित रह गया। उसके सामने बलुआ पत्थर के बने क़रीब 22 मंदिर खड़े थे जो एक दूसरे के बहुत नज़दीक थे। बर्ट को एकदम एहसास हो गया कि उसने एक असाधारण ख़ज़ाना खोज लिया है। उसने अपनी रिपोर्ट में इनका ज़िक्र किया जिसके बाद कभी जंगल में छुपे इन मंदिरों की तरफ विश्व का ध्यान गया।
खजुराहो के ये मंदिर इतने अद्भुत थे कि 1986 में यूनेस्को ने इन्हें विश्व धरोहर की सूची में शामिलकर लिया। मंदिरों का ये समूह मध्य प्रदेश के छतरपुर ज़िले में स्थित है। इस समूह में हिंदू और जैन मंदिर हैं जिनका निर्माण 10वीं और 12वीं शताब्दी के बीच में हुआ था। ये मंदिर नागरा-शैली की वास्तुकला में बने हुए हैं। तब इस इलाक़े प चंदेला राजवंश का शालन था।
चंदेला शुरु में गुर्जर-प्रतिहार राजवंश में जागीरदार हुआ करते थे। ये राजवंश अपनी राजधानी कन्नौज से उत्तर भारत के ज़्यादातर हिस्सों पर शासन करता था। बहरहाल, छठे चंदेला शासक हर्ष ने ख़ुद को गुर्जर-प्रतिहार राजवंश से आज़ाद कर लिया और तब से 10वीं और 13वीं शताब्दी के बीच चंदेला शासकों ने वर्तमान समय के बुंदेलखंड प्रातं के ज़्यादातर हिस्सों पर शासन किया। उस समय बुंदेलखंड को जेजाकभुक्ति कहा जाता था। कालिंजर दुर्ग, खजुराहो, महोबा और अजयगढ़ उनके गढ़ हुआ करते थे।
चंदेला शासकों के शासनकाल में काफ़ी समृद्धि आई। उन्होंने कला और वास्तुकला को संरक्षण दिया और कई मंदिर, जलाशय, महल तथा क़िले बनवाए। खजुराहों इसका एक शानदार उदाहरण है।
कहा जाता है कि खजुराहो का नाम खजूर के दो सुनहरे पेड़ों के नाम पर पड़ा जो शहर के एक द्वार की शोभा बढ़ाते थे लेकिन ये भी सच है कि उस समय यहां खजूर के बहुत पेड़ हुआ करते थे और हो सकता है कि इसी वजह इस जगह का नाम खजुराहो पड़ गया। खजुराहो का आरंभिक उल्लेख फ़ारसी इतिहासकार अबु-अल-बरुनी के यहां मिलता है जो सन 1022 में कालिंजर के ख़िलाफ़ युद्ध में महमूद गज़नी के साथ यहां आया था।
इन मंदिरों की नियति सन 1202 में तब बदली जब क़ुतुब-उद्दीन-ऐबक के नेतृत्व में दिल्ली सल्तनत की सेना ने चंदेला साम्राज्य पर कब्ज़ा कर लिया। इसके बाद मंदिरों में गतिविधियां बंद हो गईं।
कहा जाता है कि खजुराहो गांव में एक समय में 85 मंदिर हुआ करते थे जो क़रीब 20 वर्ग किलोमीटर ज़मीन पर फैले हुए थे। लेकिन समय की मार, अनदेखी और अन्य वजहों से सिर्फ़ 22 मंदिर ही बच पाए। उदाहरण के लिए सन 1495 में जब सिकंदर लोधी ने मंदिर तोड़ने की मुहिम शुरू की तब इसमें खजुराहो के मंदिर भी शामिल थे। समय और सदियां बीतने के साथ मंदिर के आसपास जंगल पैदा हो गए और मंदिर इसमें छुप गए। लेकिन सन1838 में बर्ट की खोज के बाद खजुराहो फिर सुर्ख़ियों में आ गया।
आज खजुराहो के मंदिर उत्तेजक मूर्तियों और धर्म तथा अध्यात्म के मेल से बनी इस ग़ैर- पारंपरिक कला लिये प्रसिद्ध हैं। मंदिर की दीवारों पर उत्तेजक मूर्तियां क्यों बनी हैं, इसे लेकर तरह तरह की बातें कही जाती हैं। वेदों के अनुसार प्रत्येक मानव के जीवन में चार उद्देश्य होते हैं- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। एक अन्य तर्क ये है कि ये कला गुप्त तांत्रिक संप्रदाय का प्रतिनिधित्व करती है। इस उत्तेजक कला को लाक्षणिक स्तर पर भी समझा जा सकता है जैसे उदाहरण के लिये युगल का शारीरिक मिलन दरअसल आत्मा और ईश्वर के मिलन को दर्शाता है।
खजुराहो और उत्तेजक कलाकृतियों के गहरे रिश्तो के बावजूद यहां सेक्स विषय पर आधारित मूर्तियां दस प्रतिशत से भी कम हैं? ज़्यादातर कलाकृतियों में दैनिक जीवन, पौराणिक कहानियों तथा विभिन्न धर्मनिरपेक्ष और आध्यात्मिक मूल्यों को दर्शाया गया है। उदाहरण के लिये कुछ कलाकृतियों में महिलाओं को श्रृंगार करते दिखाया गया है, कुछ में संगीतकारों को संगीत बजाते, कुम्हारों को बर्तन बनाते आदि रुपों में दर्शाया गया है। कुल मिलाकर इन प्रतिमाओं मेंमध्यकाल के समय के जीवन को दिखाया गया है। खजुराहो परिसर में कंदारिया महादेव मंदिर इसका उदाहरण है।
यहां कंदारिया महादेव मंदिर सबसे बड़ा और सबसे व्यापक मंदिर है जिसे राजा विद्याधर ने 1025 सी.ई और 1050 सा.ई. में बनवाया था। इस नाम का अर्थ गुफ़ा का महान भगवान होता है और शिव प्रमुख देवता हैं। ये मंदिर 6500 वर्ग फुट में फैला हुआ है और इसका शिखर 116 फुट की ऊंचाई पर है। इस्र मुख शिखर के अलावा छोटे छोटे 83 शिखर और हैं।
मंदिर का प्रवेश द्वार नक़्क़ाशीदार माला मकर तोरण से सुसज्जित है। ये माला एक ही पत्थर को तराशकर बनाई गई है। प्रवेश द्वार पर शिव-पार्वती, लक्ष्मी-नारायण और ब्रह्मा-ब्रह्मणी की मूर्तियांबनी हुई हैं। मंदिर के भीतर तीन मंडप हैं जिनकी लंबाई और चौड़ाई क्रमानुसार बढ़ती गई है। मंदिर की दिशा पूर्व की तरफ़ है और इसे कुछ इस तरह से बनाया गया है कि सूर्य की पहली किरण गर्भगृह में सीधे मुख्य देवता के चरणों पर पड़ती है।
मंदिर के बाहर और भीतर, हर हिस्से में सुंदर मूर्तियां बनी हुई हैं। दीवारों पर भारतीय पौराणिक कथाओं को बयां करती 872 से ज़्यादा छवियां हैं। ये तीन इंच से लेकर तीन फुट तक ऊंची हैं। इसे ब्रह्मांड का लघु रुप कहा जा सकता है जिसमें देवी-देवताओं, मानव, जानवर, कीट-पतंग, पेड़, नदी, महलों, शिकार,और युद्ध के दृश्यों की मूर्तियां से सुसज्जित हैं। भारतीय पुरातत्व विभाग के पहले निदेशक एलेक्ज़ेंडर कनिंघम ने मंदिर के बाहर 646 और भीतर 226 मूर्तियां गिनी थीं।
परिसर में एक अन्य महत्वपूर्ण मंदिर चौसठ योगिनी है जो 900 सी.ई. का है। ये खजुराहो का शेष रह गया सबसे पुराना मंदिर है। भारत में चौसठ योगिनी मंदिरों का ढांचा गोलाकार होता है लेकिन ये मंदिर आयताकार है। अब इसमें मूर्तियां नहीं हैं। ज़्यादातर मूर्तिया शायद गांववाले ले गए और मलबे से मिली देवताओं की तीन बड़ी मूर्तियां खजुराहो संग्रहालय में रखी हुई हैं।
वराह मंदिर की मूर्ति बेहद शानदार हैं। इस मंदिर में विष्णु को वराह अवतार में दिखाया गया है। वराह के पूरे शरीर पर 675 छोटी मूर्तिया बनी हुई हैं और उसकी नाक तथा मुंह के बीच में सरस्वती की छवि है जो वीणा बजा रही है। पौराणिक कथा के अनुसार विष्णु ने हिरण्यकश्यप को हराने के लिये वराह का अवतार लिया था। कथा के अनुसार हिरण्यकश्यप पृथ्वी को लेकर ब्रह्मांडीय सागर के तल में ले गया था।
जैन परिवार द्वारा बनवाया गए पाश्र्वनाथ मंदिर में एक बेहद सटीक जादुई वर्गाकार में शिलालेख है। ये शिलालेख विश्व का 4X4 के आकार वाला सबसे पुराना जादुई वर्गाकार शिलालेख है। इस में 1 से 16 तक सभी आंकड़े लिखे हुए हैं। खड़ी, आड़ी और गोलाकार लाइनों पर लिखे आंकड़ों का जोड़ कुल मिला कर 34 होता है।
खजुराहो के सभी मंदिर विश्व में मंदिर कला के बेहतरीन नमूने हैं। ये एक हज़ार साल पुरानी मूर्तियांअपने समय और काल को दर्शाती हैं। मध्यकालीन भारत में ये मूर्तियां तब बनाईं गई थीं जबवास्तुकला अपने चरम पर थी। इनकी सुंदरता और इनके मनोभाव तो बस देखते ही बनते हैं।
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