कहां है जयदेव का जन्मस्थान ?
पश्चिम बंगाल और उड़ीसा के बीच सिर्फ़ इस बात पर ही विवाद नहीं है कि रोशोगुल्ला (रसगुल्ला) का आविष्कार किसने किया, विवाद इस बात पर भी है कि कवि जयदेव पैदा कहां हुए थे।
जयदेव 12वीं शताब्दी के संस्कृत के कवि थे। उनके आरंभिक जीवन के बारे कोई ख़ास जानकारी उपलब्ध नहीं है लेकिन उन्हें लेकर कई किवदंतियां हैं। किवदंतियों में एक समानता है और वह ये कि जयदेव का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था और उनके पिता का नाम भोजदेव और मां का नाम रमादेवी था। सत्यनारायण राजगुरु द्वारा अध्ययन किये गये शिला-लेखों से पता चलता है कि जयदेव ने या तो संस्कृत की आरंभिक शिक्षा प्राप्त की थी या फिर वह कर्मपताका (Kurmapataka) में संस्कृत स्कूल से जुड़े हुए थे। कहा जाता है कि जयदेव होनहार छात्र थे लेकिन वह पढ़ाई लिखाई छोड़कर घुमंतु कवि बन गए। किवदंतियों के अनुसार जयदेव एक बार पुरी गए थे जहां उन्होंने पद्मावती नाम की युवती से विवाह किया। पद्मावती ब्राह्मण थीं और पुरी के जगन्नाथ मंदिर में नृत्य करती थीं।
जयदेव गीत गोविंद नाम की कविता के लिए प्रसिद्द हैं। यह कविता राधा और कृष्ण के प्रेम बारे में है। गीत गोविंद (मोतीलाल बनारासी दास 1977) का अनुवाद बारबरा स्टोलर मिलर ने किया है। अनुवाद से पता चलता है कि कविता की रचना कैसे हुई थी। मिलर के अनुसार “जयदेव कविता का अंत कृष्ण के इस अनुरोध के साथ करना चाहते थे कि राधा उनके (कृष्ण) के सिर पर पैर रखे जो एक तरह से राधा के प्रेम की विजय का प्रतीक होता लेकिन कवि फिर ऐसा लिखने से झिझक गए और पंक्तियां अधूरी रह गईं। इसके बाद वह नहाने चले गए। उनकी ग़ौरहाज़िरी में अधूरी पंक्तियों को पूरा करने के लिए कृष्ण उनके भेस में अवतरित हुए; फिर कृष्ण ने वो भोजन किया जो पद्मावती ने जयदेव के लिए बनाया था और वहां से चले गए। जब जयदेव वापस आये, तो उन्हें राधा के प्रति कृष्ण के अपार प्रेम में परमात्मा की कृपा प्राप्त हुई है।”
लेकिन सवाल है कि जयदेव पैदा कहां हुए थे? विद्वानों और शोधकर्ताओं में इस इस सवाल को लेकर सहमति नहीं हो हो पाई है क्योंकि जन्मस्थान को लेकर अलग अलग मत हैं। विलियम एम. रेड्डी ने अपनी किताब “द मैकिंग ऑफ़ रोमैंटिक लव” यूनिवर्सिटी ऑफ़ शिकागो प्रेस, 2012), में लिखा है कि दो ऐसे सबूत हैं जो जयदेव का संबंध बंगाल और बंगाली राजा लक्ष्मणसेना के दरबार से बताते हैं। रेड्डी के अनुसार गीत गोविंद के आरंभ में जयदेव दरबार के अन्य कवियों का उल्लेख करते हैं। लक्ष्मणसेना द्वारा श्रीधरदास से सन 1205 में तैयार दरबारी कवियों की कविताओं के संकलन में सदुक्ति कर्णामृत में गीत गोविंद के चुछ छंद शामिल हैं। उड़िया कवि बनमाली दास ने भी जयदेव चरित्र में जयदेव का संबंध लक्ष्मणसेना दरबार से बताया है।
पुराने ग्रंथों में जयदेव के जन्मस्थान के नाम पर बस एक गांव किंडुबिलवा का ज़िक्र मिलता है। दूसरी तरफ़ उड़िया लोगों का मानना है कि यही गांव पुरी के पास आज का आधुनिक केंडुली सासन है जबकि बंगालियों का कहना है कि केंडुली गांव भीरभूम ज़िले में है। जयदेव के जन्मस्थान को लेकर आस्था इतनी गहरी है कि केंडुली को आज जयदेव-केंडुली के नाम से जाना जाता है। यहां काफ़ी समय तक बंगाल के रहस्मयी घुमंतु लोक गायकों का मेला लगता था। इस मेले को अब जयदेव मेला कहा जाता है जिसमें हर साल भारी संख्या में लोग आते हैं । हालंकि मेले का कवि से कोई लेनादेन नही है।
केंडुली में 17वीं शताब्दी का एक बड़ा मंदिर राधा बिनोद है जो हाईवे के पास स्थित है। ये नवरत्न मंदिर है लेकिन जयदेव की तरह मंदिर के उद्भव को लेकर रहस्य बना हुआ है। इसकी एक वजह ये है कि मंदिर पर लगी तख़्ती काफ़ी पहले ग़ायब हो चुकी है। मंदिर वर्धमान राज की महारानी नौरानी और उनकी मां को समर्पित है। वैसे भारतीय पुरातत्व विभाग ने मंदिर निर्माण का वर्ष सन 1683 बताया है। मंदिर में विभाग के साइन बोर्ड पर लिखा है कि मंदिर का निर्माण वर्धमान के महाराजा कीर्तिचंद ने करवाया था।
मंदिर हालंकि जर्जर हालत में है लेकिन ये बंगाल के टेराकोटा मंदिरों का एक बेहतरीन नमूना है। मंदिर का प्रवेश द्वार पश्चिम दिशा में है और मंदिर की तीन मेहराबों के ऊपर तीन बड़े टेराकोटा पैनल मुख्य आकर्षण हैं। ये अभी भी अच्छी हालत में हैं हालंकि इन पर मरम्मत के निशान देखे जा सकते हैं जो संभवत: भारतीय पुरातत्व विभाग ने करवाई होगी। मध्य पैनल और दाहिने पैनल पर रामायण के दृश्य अंकित हैं।
दाहिनी तरफ़ के एक पैनल पर अंकित रामायण के एक दृश्य के बारे में काफ़ी लोगों को मालूम ही नहीं है। इसमें एक विशाल पक्षी को रथ को निगलने की कोशिश करते दिखाया गया है। ये रथ रावण का है जिसे दस सिरों की वजह से आसानी से पहचाना जा सकता है। रावण के पीछे एक महिला है जो सीता हो सकती है। ये पक्षी जटायू नहीं है। ये पक्षी सुपर्ष है जो गिद्धों के राजा संपति का पुत्र और जटायू का भतीजा है।
इस दृश्य में रावण सीता को भगाकर ले जा रहा है सुपर्ष उसके रथ को निगलने की कोशिश कर रहा है लेकिन रथ में महिला को देखकर वह रथ को निगलने का इरादा छोड़ देता है लेकिन रावण का रास्ता रोक लेता है। रावण उससे कहता है कि उसकी बहन सुर्पणखा की नाक काटने की वजह से वह राम की पत्नी का अपहरण कर रहा है। सुपर्ष को रावण की बात तर्कसंगत लगती है और वह रास्ता छोड़ देता है बिना ये जाने कि कुछ देर पहले ही रावण जटायु का वध कर चुका था।
व्याप्त परंपराओं के अनुसार राधा बिनोद मंदिर उसी जगह बनाया गया था जहां कभी जयदेव का घर हुआ करता था। लेकिन इस दावे के समर्थन में पुख़्ता सबूत नहीं मिलते। लेकिन लोगों की आस्था बंगाल के इस छोटे से हिस्से को ही जायदेव का जन्मस्थान मानती है।
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