हरयाणा का गुड़गांव शहर आधुनिकता के साथ साथ ऊँची इमारतों और मॉल्स के लिए जाना जाता है, लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि गुड़गांव या गुरुग्राम का एक आकर्षक इतिहास भी रहा है। आज हम आपको ऐसे ही 5 ऐतिहासिक स्मारकों से रूबरू करवाते हैं
1.शीतला माता मंदिर
यहाँ कई जगहें हैं जिनके बारे में स्थानीय लोगों को विश्वास है कि वह महाभारत युग से जोड़ी हैं। खंडसा गाँव (सेक्टर 37) में एक छोटा सा मंदिर है। स्थानीय लोगों का मानना
है कि यही वह स्थान है जहां एकलव्य ने अपना अंगूठा काटा था। एक तालाब है भीम कुंड, लोगों के विश्वास के मुताबिक़ यहां गुरु द्रोणाचार्य ने स्नान किया था। इसीलिए यह मंदिर गुरु द्रोणाचार्य को समर्पित किया गया है। लेकिन सबसे प्रसिद्ध शीतला माता मंदिर है जहां हजारों लोग दर्शन के लिए आते हैं। यहां साल में एक भव्य मेला भी लगता है।
लोककथाओं के अनुसार, शीतला माता मंदिर, गुरु द्रोणाचार्य की पत्नी किरपई को समर्पित है, जो केशोपुर गाँव में रहती थीं। उन्होंने चेचक से पीड़ित बच्चों की सेवा में अपना जीवन बिताया था। उनकी मृत्यु के बाद, उसकी याद में यहां एक मंदिर बनवाया गया। माना जाता है कि माता एक बार, गुड़गांव के ज़मीदार सिंघा के सपने में आईं थी, और माता ने सिंघा से कहा कि उनका मंदिर उसके गांव में बनाया जाए। सिंघा ने देवी की आज्ञा का पालन करते हुए अनुपालन किया और गुड़गांव में उनके सम्मान में एक नया मंदिर बनवा दिया। आज भी स्थान्य लोगों के लिए शीतला माता सबसे अधिक पूजनीय देवी हैं।
यह मंदिर काफ़ी प्राचीन है । सन1910 के के गुड़गांव ज़िला गज़ेटियर में इस बात की पुष्टी की गई है।इसमें लिखा गया है कि हर साल, चेचक से पीढित बच्चों के माता-पिता यहां आते हैं ताकि माता के आशीर्वाद से बच्चे स्वस्थ हो जाएं। ऐसे तीर्थयात्रियों की संख्या 50 से 60 हज़ार तक होती है। तीर्थयात्री बनारस जैसे दूरदराज़ सहरों तक से आते हैं। वार्षिक चढ़ावा 10 से 20 हज़ार तक होता है। वर्तमान मंदिर का निर्माण 18 वीं शताब्दी में भरतपुर के जाट राजा जवाहर सिंह ने, मुग़लों पर अपनी जीत के उपलक्ष्य में करवाया था।
जब मेट्रो लाइन गुड़गांव तक पहुंची, तो पहले स्टेशन का नाम “ गुरु द्रोणाचार्य स्टेशन” रखा गया ताकि इस स्थान की लोकप्रिय मान्यताओं का सम्मान किया जा सके। 2016 में, गुड़गांव का नाम बदलकर ‘गुरुग्राम’ कर दिया गया।
2- भोंडसी मस्जिद और मक़बरा
गुड़गांव-सोहना मार्ग पर भोंडसी नाम का एक छोटा-सा, अंजाना–सा गांव है। यहां धरोहर के रूप में एक ख़ज़ाना छुपा हुआ है जो धीमी मौत मर रहा है। यहां 500 साल पुरानी एक मस्जिद और मकबरे-परिसर है जो खानजादों की बनवाई हुआ है। इसमें लोदी-युग की वास्तुकला की विशेषताएं हैं। मस्जिद में बांसुरीनुमा डिज़ाइन के गुंबद, अष्टकोणीय गर्दन, मेहराबदार ताक़ , कमलनुमा कलश और किनारे पर ख़ुशनुमा मीनारें हैं।
मक़बरा चौकोर नक्षे के मुताबिक़ बनाया गया है। जिसमें कंगूरेदार मुंडेरें हैं। छत से ढ़के छज्जे हैं। एक अष्टकोणीय गर्दन और मेहराबदार ताक़ हैं।
परिसर वीरान पड़ा है। अंदर चमगादड़ और बाहर बड़ी बड़ी घास उग आयी हैं। पांच से अधिक शताब्दियां गुज़ार देनेवाले ये स्मारक अगले कुछ वर्षों के मेहमान हैं।
3 – अली वर्दी खां की सराय और मस्जिद
दिल्ली में मुहम्मद शाह के शासनकाल के दौरान नवाब अली वर्दी खां बंगाल के नवाब (1740-56) हुआ करते थे। वह इस सराय के मुख्य संरक्षक रहे होंगे य़ह सराय अजमेर शरीफ़ जाने वाले ज़ायरीन के लिए बनाया गया था। सराय के आसपास एक गांवका नाम इस सराय के नाम पर पड़ गया। गुड़गांव के सेक्टर 110 में यह गांव अब सराय अलावर्दी के नाम से जाना जाता है।
आज सराय़ मलबे के ढ़ेर से ज़्यादा कुछ नहीं है, लेकिन शुक्र है मस्जिद अब भी बची हुई है।
मस्जिद में तीन सुंदर, उभरे हुए गुंबद हैं, जो ऊपर की ओर कमल और कलश की तरह बने हुए हैं। इसका एक मीनार टूट चुका है लेकिन बाक़ी का ढ़ांचा बरक़रार है। यहां लाल बलुआ-पत्थर से बने अगले हिस्से पर फ़ूलपत्तियों वाली ख़ूबसूरत नक़्क़ाशी और नुकीली मेहराबें देखी जा सकती हैं । मस्जिद में आज भी आसपास के क्षेत्रों के लोग नमाज़ पढ़ते हैं।
4– बादशाहपुर किला और बावड़ी
बादशाहपुर, गुरुग्राम के सेक्टर 66 में, एक विशाल क़िले के सपास बसा हुआ है। यह क़िला कभी 17 एकड़ ज़मीन पर फैला हुआ था। हालांकि, स्थानीय लोगों और सरकारी उदासीनता के कारण यहां बड़े पैमाने पर अतिक्रमण हो चुका है। क़िला लगभग गायब हो चुका है।आज जो कुछ भी मौजूद है वह एक विशाल गढ़ और कुछ दीवारों के हिस्से हैं।
आसपास के इलाक़े में ,100 साल पुरानी बावड़ी या कुआं, जो सन 2018 तक मौजूद था, नई सड़क के नीचे दब गया है । बादशाहपुर बड़े पैमाने पर शहरीकरण और उदासीनता का बहुत बड़ा उदाहरण है।।
5- चर्च आफ़ एपीफ़ेनी
सन 1803 में,लॉर्ड लेक की विजय के साथ दिल्ली पर ब्रिटिश प्रभाव शुरू हुआ। बेगम समरू की झारसा छावनी पर नज़र रखने के लिए, एक ब्रिटिश घुड़सवार सेना की टुकड़ी हिदायतपुर में तैनात थी। अंग्रेजों ने तब अपने सिविल ऑफिसों को भारवास (रेवाड़ी के पास) से गुड़गांव की सिविल लाइंस इलाके में स्थानांतरित कर दिया, जहाँ उन्होंने बंगले, एक चर्च, जेल, डाकघर, दो सराय और सदर बाज़ार बनवाए। गुड़गांव को सन 1821 में ज़िले का दर्जा मिल पाया।
द् एपिफ़ेनी चर्च, सन 1863 में गुड़गांव में तैनात ब्रिटिश अधिकारियों के लिए बनाया गया था। यह सन 1866 में कलकत्ता के बिशप द्वारा प्रतिष्ठित किया गया था। यह एक विचित्र, अंतरंग चर्च है जिसकी छत में काफ़ी के रंग की लकड़ियों के बीम हैं, एक साधारण वेदी और पुते हुए कांच की खिड़कियां हैं जिन पर ईसा को सूली पर चढ़ाए जाने के दृश्यों का चित्रण किया गया है।
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