अमृतसर की सरजमीं पर सिखों के चौथे गुरू रामदास जी ने, सन 1570 के क़रीब नगर का निर्माण शुरू करवाया था। तब सबसे पहले पानी की बेनाम ढाब को सरोवर का रूप देकर उसे “अमृत कुंभ” का नाम दिया गया और उसके चारों ओर किनारों पर यहां आबाद होने आए लोगों के रहने के लिए कच्ची झोंपड़ियां बनाई गईं। नगर-निर्माण के लिए शुरू हुई कार-सेवा के ज़रिए 18 जून सन 1573 को इस धरती पर पहला पक्का मकान अर्थात रिहायशी स्थल ‘गुरूद्वारा गुरू के महल’ के रूप में बनाया गया। यह मुक़द्दस स्थान, आज भी शहर के गुरु बाज़ार से लगी आबादी की एक तंग गली में अपनी भव्यता बनाए हुए है।
‘श्री हरमंदिर साहिब के सुनहरी इतिहास’ में ज्ञानी कृपाल सिंह लिखते हैं, कि अमृतसर की स्थापना के समय जब अमृत सरोवर (श्री हरिमंदिर साहिब का सरोवर) एवं संतोख़सर सरोवर की कार-सेवा शुरू की गई, तो गुरु रामदास जी के निवास के लिए संगत ने पहले छपरियां, फिर मिट्टी का कच्चा मकान और बाद में स्थाई पक्के घर का निर्माण किया। गुरूद्वारा से “गुरू के महल” में तब्दील हो चुके उक्त धर्मस्थल में गुरु रामदास जी, गुरू अर्जन देव जी और गुरू हरिगोबिंद निवास करते थे। इस स्थान पर गुरु हरिगोबिंद के साहिबज़ादों, गुरु तेग बहादुर (जो बाद में नौवे गुरू बने), श्री सूरज मल जी, श्री अनी राय जी और बाबा अटल राय सहित बीबी वीरो जी का जन्म हुआ। इसी स्थान पर गुरू अर्जन देव जी तथा गुरू हरिगोबिंद की शादियाँ भी हुईं। गुरू के महल के पास ही गुरु बाजार के बग़ल में गुरुद्वारा चुरस्ती अटारी भी स्थित है। जहां छठे पातशाह, संगत को दर्शन दिया करते थे।
जब गुरु रामदास जी ने अमृतसर का निर्माण करवाया, तो इस नवनिर्मित नगर “गुरु का चक्क” या “चक्क गुरू का” (अमृतसर का पुराना नाम तथा मौजूदा समय अंदरूनी शहर की आबादी चौक पासियां, टोबा भाई सालो, गुरु के महल और चुरस्ती अटारी आदि क्षेत्र) में बसने वालों तथा बाहरी क्षेत्रों से आए यात्रियों को दैनिक जीवन की आवश्यक वस्तुएं प्रदान करने के लिए, गुरु साहिब के सेवकों भाई सालो, चंद्रभान, रूप राम और गुरिया जी ने पट्टी, क़सूर, कलानौर आदि शहरों के भिन्न-भिन्न हुनरमंदों को लाकर यहां बसने के लिए प्रेरित किया।
जब पाँचवीं पातशाही गुरू अर्जुन देव जी, श्री हरिमंदिर साहिब का निर्माण करवा रहे थे, तो उसी दौरान उन्होंने अपने निवास स्थान “गुरु का महल” और “अमृत सरोवर” के मध्य एक व्यापार मंडी की स्थापना की। “गुरु का बाज़ार” नाम से विख्यात हुई इस मंडी तथा इसके आस-पास के आवासीय क्षेत्रों का सन 1594 में गुरु अर्जन देव जी ने विस्तार करते हुए बाज़ार का आकार और बढ़ा दिया। पाँचवी पातशाही तथा उनके पश्चात उनके सुपुत्र गुरु हरिगोबिंद साहिब के समय शहर की आबादी और तीर्थ-यात्रियों की संख्या में वृद्धि के साथ “गुरु का बाज़ार” का विस्तार भी होने लगा। साथ ही “बत्तीहट्टा” (अलग-अलग चीज़ों की 32 बड़ी दुकानें एक जगह) जैसे बड़े बाजार भी अस्तित्त्व में आए।
शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह के शासनकाल के दौरान वर्तमान गुरुद्वारा गुरु का महल के स्थान पर पुरानी मुगलशाही ईंटों और चूने से बना गुरुद्वारा मौजूद था। गुरुद्वारा साहिब की इमारत काफ़ी छोटी थी और भीतर लंगर-घर, पुराना कुआँ और रिहायशी कमरे मौजूद थे। इस स्थान के आस-पास बहुत कम रिहायशी आबादी थी। महाराजा रणजीत सिंह के शासनकाल के दौरान शहर की वृद्धि के साथ कई नई व्यापारिक मंडियां; स्वांक मंडी, मजीठ मंडी, आटा मंडी, नमक मंडी, कनक मंडी, पापड़ मंडी, गुड़ मंडी, दाल मंडी, आहन फ़रोशा मंडी (लोहा मंडी) आदि अस्तित्त्व में आईं और गुरु का बाजार में व्यापार में काफी वृद्धि हुई।
देश के विभाजन के बाद गुरुद्वारे के पास कुछ सिखों ने घर और दुकानों का निर्माण किया। वर्ष 1978 में श्रद्धालुओं के अनुरोध पर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने इस स्थान की कार सेवा बाबा सेवा सिंह आनंदपुर साहिब वालों से शुरू करवाई, जिसके नतीजे में सन 1947 के बाद गुरुद्वारा साहिब के चारों ओर मौजूद लगभग 91 दुकानें और मकान ख़रीद कर, शहर के चैक पासियां से गुरुद्वारा गुरु का महल तक एक खुली सड़क बना दी गई। इस स्थान पर नौवें पातशाह गुरु तेग बहादुर जी का जन्म हुआ था, इसीलिए कार-सेवा के दौरान पांच प्यारों से यहां नौ मंजिला गुरूद्वारे की इमारत की आधारशिला रखवाई गई और गुरुद्वारे का निर्माण शुरू करवाया गया। वर्तमान में भी दीवान हॉल, जोड़ा घर और लंगर भवन की कार सेवा जारी है।
200 से अधिक वर्षों तक शहरवालों को रोज़ाना ज़िंदगी की आवश्यक वस्तुएं उपलब्ध कराने वाला गुरु का बाजार, जिसे अब ‘गुरु बाजार’ के नाम से जाना जाता है, अब सोने, चांदी और हीरे के गहनों का एक प्रमुख बाजार बन चुका है, जहां रोजाना करोड़ों रुपयों का कारोबार होता है। इस बाजार में कुछ दुकानें महंगी साड़ियों और रेशमी कपड़ों की भी हैं। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है, कि उक्त गुरु बाजार से, श्री हरिमंदिर साहिब को जाने वाले मुख्य मार्ग पर, गुरु अर्जन देव जी ने एक ड्योढ़ी का भी निर्माण करवाया था। उसी ड्योढ़ी से निकलकर,“गुरु का महल” होते हुए वे श्री हरिमंदिर साहिब के दर्शन किया करते थे। गुरु साहिब के समय इस ड्योढ़ी और श्री दरबार साहिब के बीच के क्षेत्र में कोई आबादी नहीं थी और “गुरु का महल” और “टोबा भाई सालो” के आसपास केवल कुछ ही घर थे। शहर के “माई सेवा बाजार” में उक्त ड्योढ़ी आज “गुरुद्वारा दर्शन ड्योढ़ी” के रूप में मौजूद है।
मौजूदा समय में गुरुद्वारा “गुरु का महल” की पुरानी इमारत को संगमरमरी “भोरा साहिब” में बदल दिया गया है और गुरु साहिब के घर के ऐतिहासिक तथा मुक़द्दस कुएँ का पानी सूख जाने के बाद इसके बाहरी और अंदरूनी ढांचे में परिवर्तन करते हुए, इसे संगमरमरी रूप दे दिया गया है।
गुरूद्वारा साहिब में गुरू तेग बहादुर जी का प्रकाश तथा शहीदी गुरूपर्व सहित हर रविवार को साप्ताहिक दीवान सजाए जाते हैं। इन दीवानों की सेवा ईशनान सेवक सभा “गुरुद्वारा गुरु का महल” द्वारा की जा रही है। प्रचार की कमी और अमृतसर आने वाले अधिकांश लोगों को गुरुद्वारा साहिब के अस्तित्व और इतिहास का ज्ञान न होने के कारण, यहां गुरूपर्व, शहीदी पर्व तथा अन्य महत्त्वपूर्ण दिनों को छोड़कर बहुत कम श्रद्धालु यहाँ आते हैं।
हम आपसे सुनने के लिए उत्सुक हैं!
लिव हिस्ट्री इंडिया इस देश की अनमोल धरोहर की यादों को ताज़ा करने का एक प्रयत्न हैं। हम आपके विचारों और सुझावों का स्वागत करते हैं। हमारे साथ किसी भी तरह से जुड़े रहने के लिए यहाँ संपर्क कीजिये: contactus@livehistoryindia.com