मुंबई का गेटवे ऑफ़ इंडिया  

सन 1911 में ब्रिटेन के राजा किंग जार्ज-पंचम और उनकी पत्नी क्वीन मेरी मुम्बई के अपोलो बंदर पर उतरे थे और कार्डबोर्ड यानी गत्ते की बनी मेहराब से होकर गुज़रे थे जो भारत में उनके स्वागत के लिये बनायी गयी थी। जी..कार्डबोर्ड की मेहराब! शाही जोड़े को मुम्बई से, सन 1911 में दिल्ली दरबार जाना था। जहां किंग जार्ज-पंचम की भारत के किंग-एम्परर की हैसियत से ताजपोशी होनी थी। यह भी इत्तिफ़ाक़ था कि तभी राजधानी भी कलकत्ता से दिल्ली लाई जा रही थी।

जिस जगह पर कार्डबोर्ड की अस्थाई मेहराब बनाई गई थी, यह वही जगह है जहां आज गेटवे आफ़ इंडिया बना हुआ है।

19वीं सदी में अरब महासागर के किनारे पर स्थित मुम्बई का अपोलो बंदर, यात्रियों और व्यापारिक सामान के आनेजाने का सबसे महत्वपूर्ण घाट हुआ करता था। भारत में आनेवाले यात्रियों के लिये सबसे महत्वपूर्ण केंद्र यही था। शायद इसीलिये ब्रिटिश हुकुमत ने इस जगह गेटवे बनाने का फ़ैसला किया जो न सिर्फ़ शाही यात्रा की बल्कि भारत पर उनके प्रभाव की निशानी भी थी।

गेटवे आफ़ इंडिया की आधार शिला 31 मार्च सन 1913 को, बाम्बे के गवर्नर सर जार्ज सिडेनहैम क्लार्क ने रखी थी। सन 1914 में इसकी डिज़ायन बनाने की ज़िम्मेदारी स्काटलैंड के मशहूर आर्किटैक्ट जार्ज विटेट को सौंपी गई थी। विटेट को छत्रपति शिवाजी महाराज वास्तु संग्रहलय( प्रिंस वाल्स म्युज़ियम ) की डिज़ायन बनाने के लिये भी जाना जाता है। लेकिन समुद्र का पानी हटाकर ज़मीन बनाने और समुद्र के पानी में दीवार खड़ी करने की वजह से रुकावट पैदा हो गई थी । इसी वजह से सन 1919 तक गेटवे के निर्माण का काम रुका रहा। गेटवे का निर्माण सन 1920 में शुरू हुआ। इस इमारत की कुल ऊंचाई 85 फ़ुट है। यह इमारत पीले रंग की खरोड़ी बासाल्ट से बनाई है जो आसपास की खदानों से लाई गई थी।

इसमें तीन मेहराबें हैँ और बीचवाली मेहराब के ऊपर चार बुर्ज बने हैं जो ख़ूबसूरत शिल्पकारी से सजे हुय़े हैं जिन्हें देखकर लगता है कि यह रोम की विजयीय मेहराबों से प्रभावित हैं। उदाहरण के लिये पेरिस का आर्क द् ट्रौम्फ़ डु कारांसेल। इस पर स्थानीय़ प्रभाव भी दिखाई देता है। गेटवे की मेहराबों पर 15वीं सदी में बनी अहमदाबाद (गुजरात) की जामा मस्जिद का असर भी देखा जा सकता है।

गेटवे पर बनी जाली का जो सुंदर काम है, वह बिल्कुल चम्पानेर (गुजरात) की जामा मस्जिद के प्रवेश द्वार पर बनी डिज़ायन की तरह है। इसके कारण, स्मारक को वास्तुकला के रूप में इंडो-सारासेनिक के रूप में वर्गीकृत किया गया है। बुनियादी तौर पर यह शैली, ब्रिटिश शिल्पकारों ने 19वीं शताब्दी में भारत में शुरू की थी|इसे उन्होंने देसी इंडो-इस्लामिक और भारतीय शिल्पकारी को विक्टोरियन ब्रिटेन में पसंद की जानेवाली नव-शास्त्रीय शैली और गॉथिक पुनरुद्धा को मिलाकर बनाया था।

एक एस्पलेनैड बनाने के लिये गेटवे के सामनेवाले बंदरगाह के दोबारा व्यवस्थित किया गया ताकि समुद्र का पानी शहर में न घुस पाय़े। गेटवे के आगे बने हुये बाग़ीचे में किंग जार्ज- पंचम की कांसे की मूर्ति भी लगाई गई थी। लेकिन 26 जनवरी 1961 उसकी जगह छत्रपति शिवाजी महाराज की, 16 फ़ुट ऊंची मूर्ति लगा दी गई। गेटवे के निर्माण पर 21-25 लाख रूपये खर्च हुये थे। लेकिन यह सारे पैसे भारत सरकार ने नहीं दिये थे बल्कि आधे से ज़्यादा पैसा ससून परिवार ने दान में दिया था। ससून परिवार, बग़दादी यहुदी था और उसकी गिनती दुनिया के सबसे ज़्यादा प्रभावशाली लोगों में होती थी। डेविड ससून , किसी ज़माने में,बग़दाद के ख़ज़ांची हुआ करते थे। 19वीं शताब्दी में वह बाम्बे आकर बस गये थे और प्रमुख पूंजीपति बन गये थे।

गेटवे को 4 दिसम्बर 1924 को, भारत के वाइसराय रीफ़्स आइजैक ने जनता के लिये खोला।

भारत को आज़ादी मिलने के बाद, भारत छोड़ने वाली ब्रिटेन की आख़िरी फ़ौजी टुकड़ी, फ़र्स्ट बैटालियन आफ़ समरसैट लाइट इनफ़ैंट्री थी। उस फ़ौजी टुकड़ी ने 28 फ़रवरी 1948 को आयोजित एक कार्यक्रम में, ब्रिटिश उपनिवेशवाद की समाप्ति और भारत को अंतिम रूप से अलविदा कहने के लिये, गेटवे के सामने मार्चपास्ट किया था और 21 तोपों की सलामी दी थी। कितनी बड़ी विडम्बना है कि जो गेटवे ब्रिटेन की शाही दम्पत्ति के स्वागत के लिये बनवाया गया था, 24 वर्षों बाद उसी जगह से अंगरेज़ भारत को छोड़ कर गये।

आज भी आलीशान गेटवे आफ़ इंडिया, अपने नाम को सार्थक करते हुये, शहर का सबसे ज़्यादा मशहूर स्थान बना हुआ है। मुम्बई आने वाले पर्यटक अपना भ्रमण वहीं से शुरू करते हैं। ख़ास बात यह है कि वह जिस इमारत के सामने तस्वीर खिंचवाने के लिये ख़ड़े होते हैं वह इमारत गत्ते की नहीं बल्कि मज़बूत पत्थरों की बनी हुई है।

क्या आप जानते हैं ?

क्या आप जानते हैं कि गेटवे आफ़ इंडिया की एक निशानी यानी एक छोटा सा गेटवे आफ़ इंडिया दक्षिणी मुम्बई के गामदेवी की भेंडी गली में रखा हुआ है।

गेटवे का यह छोटा रूप भी बसाल्ट पत्थर से बना हुआ है जिसे आज भी यशवंत सिद्धी को-आपरेटिव हाउसिंग सोसायटी के भूतल में देखा जा सकता है। किसी ज़माने में इसी जगह पर जानेमाने भारतीय आर्किटैक्ट राव बहादुर यशवंतराव हरिशचंद्र देसाई का बंग्ला था। उन्हीं की देखरेख में इस स्मार्क का निर्माण हुआ था।

शीर्षक चित्र: यश मिश्रा

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