गोवा और पुर्तगाल के रिश्तों के बारे में तो आमतौर पर सब ही जानते हैं, लेकिन यह बात कम ही लोग जानते होंगे, कि गोवा की राजधानी पणजी के पास एक ऐसी जगह है, जिसका संबंध पूर्वी अफ़्रीक़ी देश मोज़ाम्बिक से भी रहा हैI वैसे चटख़रंगों वाले घरों के आसपास की सड़कें इस क्षेत्र के यूरोपीय अतीत की कहानियाँ बयां करती हैं।
अल्टिन्हो पहाड़ी की तलहटी और ओरेम क्रीक के बीच स्थित बैरो दास फ़ॉनटेनहास या फ़ॉनटेनहास एक पुराना लातिनी मोहल्ला है, जिसने 320 सालों से लगातार पुरानी-दुनिया की अपनी दिलकशी को बरक़रार रखा है।
यहां की वास्तुकला, खान-पान और इससे जुड़ी कहानियां आज भी सुनने वालों को मंत्रमुग्ध कर देती हैं।
बीजापुर सल्तनत के साथ एक छोटी-सी लड़ाई के बाद सन 1510 में पुर्तगालियों ने अपनी दूसरी राजधानी और प्राथमिक बंदरगाह गोवा (जिसे अब वेल्हा गोवा कहा जाता है) पर क़ब्ज़ा किया। जैसे-जैसे विश्व के अन्य देशों पर पुर्तगाल का क़ब्ज़ा होता गया, इसके कई निवासी भी बेहतर भविष्य के लिए इन देशों में जाकर बसते गये। इनमें गोवा का एक प्रवासी एंटोनियो जोआओ डी सिक्वेरा भी था, जो 18 वीं सदी के मध्य में कारोबार की बेहतर संभावनाओं को देखते हुये मोज़ाम्बिक़ चला गया था।
समय के साथ एंटोनियो एक सफल व्यापारी बना, और उसने ख़ूब दौलत कमाई। उम्र बढ़ने के साथ, वह सन 1760 के दशक में वेल्हा गोवा (पुराना गोवा) वापस आ गया, जो तब पुर्तगालीयों की राजधानी थी। दुर्भाग्य से, उस समय वहां मलेरिया और हैज़ा जैसी महामारियाँ फ़ैली हुई थीं। पणजी उस समय एक छोटा-सा गांव हुआ करता था। उसके पास मशहूर अवर लेडी ऑफ़ दि इमैक्युलेट कॉन्सेप्शन चर्च (निर्माण 1541) के क़रीब एंटोनिओ ने अल्टिन्हो हिल और ओरेम क्रीक के बीच स्थित एक शांत और ख़ुशनुमा क्षेत्र को पट्टे पर लेकर बसाया, और उसको एक नारियल के बाग़ान में तब्दील किया, जिसे ‘पालमैरा पोंटे’ कहा जाता था। यह वह समय था, जब सन 1759 में पुर्तगाली वायसराय का सरकारी निवास बदल गया था।
लोगों के आने और यहां बसने के साथ ही पाल्मेरा पोंटे स्थानीय उद्योगों के केंद्र के रूप में विकसित हो गया, जहां लोग नारियल की खेती, मछली पकड़ने और तेल निकासी का काम करते थे। एंटोनियो स्थानीय लोगों में ‘मोस्मिकर’ के नाम में लोकप्रिय हो गया, जिसका अर्थ होता है, मोज़ाम्बिक से वापस आने वाला एक समृद्ध निवासी। सन 1790 के दशक में,मृत्यु से पहले एंटोनियो ने सारी ज़मीन, चिंबेल में कॉन्वेंट ऑफ़ अवर लेडी ऑफ़ कार्मो की कार्मलाइट (संस्थान) ननों को सौंप दी।
दूसरी तरफ़ वेल्हा गोवा में महामारी के कारण जनसंख्या घटने लगी थी। सन 1700 में वहां की जनसंख्या 30 हज़ार थी, जो सन 1759 में, महामारी की वजह से घटकर सोलह सौ हो गई। इस वजह से राजधानी पणजी (नोवा गोवा) को बनाने का फ़ैसला किया गया। अधिक सरकारी प्रतिष्ठानों के साथ-साथ प्रशासकों और अधिकारियों की तादाद बढ़ जाने की वजह से अतिरिक्त घरों की मांग भी बढ़ गई। इन हालात के बीच पुर्तगालियों की नज़र फॉनटेनहास पर पड़ी और उन्होंने कार्मलाइट नन से इसे ख़रीद लिया। इस तरह सन 1810 से लेकर सन 1839 तक यहां विकास हुआ। छोटे-छोटे भू-खंडो पर बिना किसी योजना के बेतरतीब ढ़ंग से मकान बनने लगे। आज भी आप कहीं से भी, किसी भी गली को निकलता देख सकते हैं। यह वजह है, कि वहां सड़कें संकरी हैं और घरों का कोई क्रम नहीं है।
इस जगह का नाम ‘फ़ॉनटेनहास’ रखा गया था, जो एक विचित्र झरने, ‘फ़ोन्टे दा फ़ेनिक्स’ या ‘फ़ॉउनटेन ऑफ़ फ़ीनिक्स’ (पौराणिक फ़ीनिक्स पक्षी) से लिया गया था, और जिसका निर्माण पुर्तगालियों ने क्षेत्र को बसाने के दौरान किया था।
यह अब भी माला क्षेत्र में मारुति मंदिर की तरफ़ जाने के पहले देखा जा सकता है। चूंकि स्थानीय लोग इस नाम का उच्चारण ठीक से नहीं कर पाते थे, इसलिए इसका नाम बिगड़कर ‘फ़ॉनटेनहास’ हो गया।
सन 1818 में सेंट सेबेस्टियन चैपल (छोटा गिरिजाघर) बनाया गया, ताकि लोग महामारी से राहत पाने के लिए सेंट सेबेस्टियन से प्रार्थना कर सकें। ये चर्च अब गोवा के इस पुराने मोहल्ले की प्रमुख निशानियों में से एक है। सन 1510 में, रोमन कैथोलिक चर्च ने, उनकी आस्था पर विश्वास न करने वालों को कुचलने के लिये गोअन इंक्विज़िशन नाम की संस्था बनाई थी। यहां समय के अवशेष भी मिले हैं, जिन्हें शुरू में यूसुफ़ आदिल शाह (1450-1510) के कब्ज़े वाले महल में रखा गया था।
15वीं सदी की सिरेमिक टाइलों (अज़ुलेजोस) पर पुर्तगालियों की हाथ से पेंट की जाने वाली कला फॉनटेनहास भी आई, जो आज भी यहां प्रचलित है। ये टाइल्स बारीक और रंगीन कलाकृतियों से सजी रहती हैं, और इन्हें उच्च तापमान पर पकाया जाता है। शहरी के हर निवासी के लिए मानसून की बारिश के बाद, अपने घर को पेंट करने के लिए एक नया क़ानून भी बनाया गया था, जिसका पालन फ़ॉनटेनहास की रंगीन सड़कों पर आज भी देखा जा सकता है।
दिलचस्प बात यह है, कि फ़ॉनटेनहास की सड़कों के साथ दिलचस्प कहानियां जुड़ी हुई हैं। रुआ 31 डिजेनेरा रोड और वहां मौजूद कॉन्फेटेरिया 31 डिजनेरा, यहां की सबसे पुरानी बेकरियों में से हैं। इन दोनों का नाम 31 जनवरी, सन 1640 को तब रखा गया था, जब पुर्तगाल को स्पेन से आज़ाद मिल गई थी। इसी तरह, 18 जून रोड का नाम भारतीय स्वतंत्रता सेनानी राम मनोहर लोहिया की याद में रखा गया था। डॉ.लोहिया ने 18 जून, सन 1946 को सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया था, जिसकी वजह से सन 1961 में पुर्तगालियों से गोवा को मुक्ति मिली।
गोवा की आज़ादी के बाद, जब पणजी में शहरी विकास होने लगा, तो फ़ॉनटेनहास में अभिजात वर्ग के लोगों की कई कोठियां छिन गईं, जिससे वहां के निवासियों में घबराहट पैदा हो गई। सन 1974 में इसे संरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया गया। इसके बाद सन 1980 में इसकी मरम्मत की गई और सन 1984 में यूनेस्को ने इसे अपनी हेरिटैज़ ज़ोन की सूची में शामिल कर लिया।
यहाँ कैसे पहुंचें
फ़ॉनटेनहास बहुत आसानी से पहुंचा जा सकता है। फ़ॉनटेनहास, गोवा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से महज़ 25 कि.मी दूर और तिविम रेलवे स्टेशन से सिर्फ़ 20 कि.मी. के फ़ासले पर है।
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