फ़तेहपुर सीकरी : लाल पत्थरों का संगीत

आगरा से सिर्फ़ 36 कि.मी. दूर फ़तेहपुर सीकरी भारत के उन ऐतिहासिक शहरों में से एक है जिसे देखने भारी संख्या में लोग आते हैं। दिल्ली, आगरा और जयपुर के गोल्डन ट्रायंगल के इस हिस्से को देखने को लिये हर साल यहां लाखों लोग इस अद्भुत मुग़ल वास्तुकला को देखने आते हैं। मुग़ल बादशाह अकबर ने फ़तेहपुर सीकरी सन 1571 में बनवाया था लेकिन सन 1610 आते आते ये शहर निर्जन हो गया था हालंकि ये आज भी मध्यकालीन शहरों की प्लानिंग के एक शानदार नमूने के रुप में मौजूद है।

फ़तेहपुर सीकरी का इतिहास बहुत पुराना है। इतिहासकार सय्यद अली नदीम रिज़वी ने अपने पर्चे सीकरी बिफ़ोर अकबर में शुंग शासनकाल के समय के मिले अवशेषों का उल्लेख किया है। रिज़वी का मानना है कि 19वीं शताब्दी में दिल्ली सल्तनत के पहले यहां सिकरवार राजपूतों का शासन होता था और इसीलिये शहर का नाम सीकर पड़ा।

सन 1527 में बाबर और मेवाड़ के शासक राणा सांगा के बीच प्रसिद्ध युद्ध खानवा हुआ था और तभी ये स्थान पर मुग़लों की नज़रों में आया। ये युद्ध सीकरी गांव से बस कुछ ही मील की दूरी पर हुआ था। कहा जाता है कि युद्ध में जीत के प्रतीक के रुप में बाबर ने इस गांव का नाम शुक्री (शुक्रिया) रख दिया था और यहां एक बाग़ बनवाया था। सन 1530 मं बाबर के निधन के बाद उसके बेटे हुमांयू ने सत्ता संभाली लेकिन हुमायूँ ने दिल्ली से शासन किया। हुमांयू के शासनकाल में शेख़ सलीम चिश्ती यहां आकर पहाड़ के ऊपर रहने लगे थे। इस सूफ़ी संत का राजनीति महत्व था जिसका पता इस बात से भी चलता है कि अफ़ग़ान शासक शेरशाह सूरी के पुत्र इस्लाम शाह और आदिल शाह उनसे मिलने आते थे।

सन 1568 में हुमांयू के पुत्र अकबर ने हाडा राजपूतों के प्रसिद्ध रणथंभोर क़िले पर कब्ज़ा कर लिया। यहां से लौटते वक़्त अकबर शेख़ सलीम चिश्ती से मिलने गया और बेटे की प्राप्ति के लिये दुआ मांगी। संत ने अकबर को आशीर्वाद दिया और एक साल बाद ही अकबर के घर में एक पुत्र ने जन्म लिया। अकबर ने न सिर्फ़ अपने पुत्र का नाम सूफ़ी संत के नाम की तरह सलीम (बाद में जहांगीर) रखा बल्कि वह उसे प्यार से शेख़ू बाबा के नाम से भी बुलाया करता था जो संत के नाम शेख़ सलीम पर ही था।

सन 1571 में अकबर ने 11 कि.मी. लंबी क़िलेबंद दीवार वाला एक नया शहर बसाने का फ़ैसला किया। ये शहर सन 1571 से लेकर सन 1585 तक मुग़लो की राजधानी रहा। सन 1572 में यहीं से अकबर ने गुजरात की ओर कूच किया था और वहां से जीत हासिल करके लौटा था। विजय के प्रतीक के रुप में अकबर ने महल का नाम फ़तेहपुर सीकरी रखा। समय के साथ यहां दरबार, महल मस्जिदें और अन्य भवन बने।

शहंशाह अकबर के जीवनी लेखक अबुलफ़ज़ल ने अकबर नामे मं लिखा है :सीकरी में चूँकि उनके असाधारण बेटे (सलीमऔरमुराद)पैदा हुए थे और यहीं देवदूत शेख़ सलीम चिश्ती की आत्माका भीवास था और उनके पवित्र मन की ये इच्छा थी कि आध्यात्मिक वैभव से सम्पन्न इस ज़मीन पर बाहरी वैभव का निर्माण किया जाए। इसलिए जब उनके अनुयायी यानी अकबर यहाँ पहुँचे तो सलीम चिश्ती की परिकल्पना को पूरा करने की दिशा में काम शुरू हुआ और ये आदेश हुआ किप्रशासन अधीक्षक शहंशाह के इस्तेमाल के लिए विशाल इमारतों का निर्माण करवाए ।

फ़तेहपुर सीकरी के महत्व का उल्लेख अंग्रेज़ व्यापारी रैफ़ फ़िच ने किया है। उन्होंने लिखा है- आगरा और फ़तेहपुर सीकरी दोनों शहर महान हैं, लंदन से भी महान और यहां घनी आबादी है। आगरा और फ़तेहपुर के बीच की दूरी 12 मील (कोस) है और पूरे रास्ते में बाज़ार हैं। बाज़ारों में इतनी रौनक़ रहती है कि लगता है कि आप अभी भी शहर में ही हैं।

फ़तेहपुर सीकरी में ही मुग़ल दरबार में यूरोपीय प्रभाव मेहसूस किया जाने लगा था। सन 1580 में गोवा से पुर्तगालियों के धर्म प्रचारकों का एक दल फ़तेहपुर सीकरी आया था जिसमें इयोडोल्फ़ी एक्वाविवा, एंटोनियो मॉंसेरट और फ़्रांसिस हेनरिख थे। महल में उनका स्वागत किया गया जहां उन्होंने एक छोटा सा गिरजाघर बनवाया। उन्हें अपने धर्म के प्रचार-प्रसार और धर्मांतरण करवाने की पूरी आज़ादी मिली हुई थी। उन्होंने यहां एक अस्पताल भी बनाया। ये उत्तर भारत में यूरोपीय शैली का पहला अस्पताल था। यहीं अकबर ने तमाम धर्मों के कुछ सिद्धांतों को लेकर दीन-ए-इलाही मज़हब स्थापित करने की कोशिश की थी। इसके लिये अकबर ने इबादत ख़ाना भी बनवाया था।

सन 1586 में अकबर सैन्य मुहिम पर पंजाब और काबुल निकल पड़ा था। वह पंजाब में कई साल तक रहा और लाहौर उसका मुख्यालय होता था। । अकबर सन 1598 में वापस आया और फ़तेहपुर सीकरी की बजाय वह आगरा में रुका क्योंकि सन 1610 तक फ़तेहपुर सीकरी वीरान सा हो गया था। अकबर का पुत्र जहांगीर सन 1619 में तीन महीने तक यहां रहा और आगरा में प्लेग महामारी के फ़ैलने की वजह से यहां से चला गया। सन 1803 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के आने के पहले तक यहां के भवनों का बुरा हाल हो चुका था। सन 1815 में ब्रिटिश गवर्नर जनरल मारक्यूस ने फ़तेहपुर सीकरी में मरम्मत का काम शुरु करवाया था। ये भवन अब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के संरक्षण में हैं।

फतेहपुर सीकरी के महत्वपूर्ण भवन –

बुलंद दरवाज़ा

फ़तेहपुर सीकरी में बुलंद दरवाज़ा विश्व के सबसे ऊंचे प्रवेश द्वारों में से एक है । इसकी ऊंचाई 52 मीटर है जो आज की 15 मंज़िला इमारत के बराबर है। इसे बनाने में लाल बालू पत्थर, सफ़ेद और काले संगमरमर का इस्तेमाल किया गया था।

इसके अग्रिम भाग में क़ुरान की आयतों की नक़्क़ाशी है। मध्य में मेहराबदार पथ के दाहिने तरफ़ अकबर का अभिलेख है जो सन 1601 का है। ये अभिलेख खानदेश पर विजय की यादगार था।

शेख़ सलीम चिश्ती का मक़बरा

शेख़ सलीम का मक़बरा अकबर के शासनकाल में सन 1580 और सन 1581 के बीच बनवाया गया था। ये मक़बरा वहीं है जहां सूफ़ी संत प्रार्थना करते थे। ये मक़बरा काले और सफ़ेद संग-ए-मरमर से बना है। यहां संग मरमर का एक स्मारक है जो हरी चादर से ढ़का रहता है। मध्य प्रकोष्ठ में क़ुरान की आयते लिखी हुई हैं। लोग यहां मन्नत मांगने आते हैं।

जामा मस्जिद

सन 1571 में बनी जामा मस्जिद भारत की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक है। मस्जिद का प्रवेश द्वार बुलंद दरवाज़ा ही है। मस्जिद के भीतर एक बड़ा दालान है जहां क़रीब 25 हज़ार लोग नमाज़ पढ़ सकते हैं।

इबादत ख़ाना

अकबर ने सन 1575 में विभिन्न धर्मों पर विचार विमर्श के लिये इबादत ख़ाना बनवाया था। यहीं उन्होंने विभिन्न धर्मों के सिद्धांतों को मिलाकर नया धर्म दीन-ए-इलाही स्थापित करने की कोशिश की थी।

पंचमहल

पंचमहल फ़तेहपुर सीकरी के महत्वपूर्ण भवनों में से एक है। इसका इस्तेमाल गरमी के मौसम में किया जाता था। पांच मंज़िला ये महल चारों तरफ़ से खुला है जहां गरमी के दिनों में ख़स के पर्दे लटकाये जाते थे।

पचीसी दरबार

पंचमहल के सामने एक जलाशय है जिसे अनूप तालाब कहते हैं। यहां संगीत और मनोरंजन के अन्य कार्यक्रम होते थे। इसके साथ ही पचीसी कोर्ट या दरबार है। कहते हैं कि बादशाह अकबर इस बिसात पर अपने नौकरों को मोहरे बनाकर खेल का लुत्फ़ लेते थे।

बीरबल का महल

शाही ज़नाना महल के मध्य में स्थित है बीरबल का तथाकथित महल। इस महल का संबंथ अकबर के क़रीबी मंत्री राजा बीरबल से बताया जाता है लेकिन इसमें कोई सच्चाई नहीं दिखाई देती ।

जोधाबाई महल

जोधा बाई महल को रानीवास और ज़नानी ड्योढ़ी के नाम से भी जाना जाता था। ये दो मंज़िला महल बहुत विशाल है। महल निर्माण में हिंदू वास्तुकला का प्रयोग किया गया था जिससे लगता है कि ये किसी हिंदू महिला के लिये ही बनवाया गया होगा। हालंकि इसका नाम जोधा बाई महल है लेकिन तब तक अकबर की कोई रानी नहीं थी। महल के अंदर सारस, हाथी, तोते आदि के चित्र देखे जा सकते हैं। महल में कई कमरे हैं जिनका प्रयोग मंदिर के रुप में होता था।

दीवान-ए-आम और दीवान-ए-ख़ास

परिसर में दो सभागार हैं -दीवान-ए-आम और दीवान-ए-ख़ास। दीवान-ए-आम में आम जनता की शिकायतों सुनी जाती थीं जबकि दीवान-ए-ख़ास में शाही अफ़सरों और मेहमानों के साथ बैठकें होती थीं। दीवान-ए-ख़ास के पास ही

अकबर का कमरा यानी ख़वाबगाह है।

एक समय फ़तेहपुर सीकरी शहर वीरान हो गया था लेकिन आज यहां सैलानियों की भीड़ लगी रहती है।सन 2018 के आंकड़ों के अनुसार यहां हर साल 12 लाख सैलानी आते हैं और टिकटों की बिक्री से 90 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त होता है जो दिल्ली के लाल क़िले से तीन करोड़ रुपये ज़्यादा है।

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