दरिया दौलत बाग़  

मैसूर के पास कावेरी नदी के तट पर है ऐतिहासिक शहर श्रीरंगापटनम जिस पर कभी दक्षिण भारत के महान शासक हैदर अली और उनके पुत्र टीपू सुल्तान की हुकुमत हुआ करती थी। 18वीं शताब्दी के इन शासकों के शासनकाल के कई स्मारक हमें उस समय की अद्भुत कला और वास्तुकला से रुबरु कराते हैं। इन्हीं में से एक स्मारक है गार्डन पैलेस दरिया दौलत बाग़। ये बाग़ इंडो-इस्लामिक वास्तुकला और भित्ति चित्रों का बेहतरीन नमूना है।

सन 1784 में टीपू सुल्तान ने अपनी राजधानी श्रीरंगापटनम में ये शानदार दरिया दौलत महल बनवाया था। इस महल में टीपू सुल्तान गर्मी के मौसम में रहने आता था। उस समय के शासक गर्मी से बचने के लिये हरीभरी जगहों में बारादरी बनवाते थे। दरिया दौलत बाग़ के पहले उस स्थान पर महा नवमी मंडप हुआ करता था जहां मैसूर के राजा राम नवमी और दशहरा मनाया करते थे। उसी दौरान एक बहादुर और होशियार सिपाही हैदर अली का उदय हुआ जो वाडियार शासकों की सेना में कमांडर-इन-चीफ़ था और जिसने कई सैन्य मुहिमों का नेतृत्व किया था। सन 1757 में, वाडियार को जब , हैदराबाद के निज़ाम और मराठों से ख़तरा मेहसूस हुआ तो उसने हैदर अली को श्रीरंगापटनम बुलाया था। हैदर अली ने इसी बारादरी को अपनी छावनी बना लिया था।

लेकिन सन 1760 में खांडे राव ने हैदर अली के बढ़ते रुतबे को देखते हुए उसके ख़िलाफ़ बग़ावत करने की कोशिश की। दरिया दैलत आज जहां स्थित है वहां राव ने हैदर अली को तोप के निशाना पर रख दिया था। इसके बाद बातचीत के कई दौर हुए और हादर अली को नाव से वहां से भाग निकलने मौक़ा दिया गया। लेकिन उसका परिवार और नौ साल का उसका बेटा टीपू सुल्तान और वहीं छूट गया। अपने परिवार को बचाने के लिये हैदर अली ने खांडे राव के ख़िलाफ फ़ौज तैयार की। सन 1760 में हैदर अली मैसूर साम्राज का असली शासक बन गया।

कहा जाता है कि दरिया दौलत महल बनवाने की शरुआत हादर अली ने की थी। लेकिन हैदर अली के ज़माने में ये अधूरा रह गया था। जिसे टीपू सुल्तान ने पूरा करवाया। टीपू ने अपने पिता की याद में एक बाग़ भी बनवाया और बाद में, उसी में एक महल भी बनवाया। सन 1780 में टीपू अपने पिता के स्थान पर मैसूर का शासक बन गया। टीपू के शासनकाल में मैसूर में बहुत समृद्ध हुई और श्रीरंगापटनम देश की बेहतरीन राजधानियों में गिना जाने लगा था। ये 18वीं शताब्दी में भारत का सबसे बड़ा शहर बन चुका था। दरिया दौलत महल 18वीं शताब्दी में, कर्नाटक के मुग़ल सूबेदार दिलावर ख़ान के, टुमकुर ज़िले में स्थित महल की वास्तुकला से प्रेरित था। इस ख़ूबसूरत महल में टीपू गर्मियां बिताने आता था । टीपू, कभी-कभी वहीं, दरबार को भी लगा लिया करता था। वहीं से हुकूमत का कामकाज भी कर लेता था और अतिथियों से भी मिल लेता था। लेकिन टीपू का मुख्य ठिकाना लाल बाग़ महल ही था।

दरिया दौलत महल चारों तरफ़ से बाग़ों से घिरा हुआ है । बाग़ को पानी के ज़रिये चार बराबरी के हिस्सों में बांटा गया है और उनकी सरहदें पैड़ों से बनी गई हैं। लेखक कॉंसटेंस ई. पारसन्स ने अपनी किताब श्रीरंगापटनम में लिखा है “ ये महल आज, उस समय से कहीं ज़्यादा सुंदर हालत में हैं,
फलों और फलों से भरे हैं और ज़्यादा सायादार भी हो गये हैं,जब टीपू ने दिल्ली, लाहौर, काबुल और कंधार को बीज तथा पेड़ लाने के लिये लूटा था। इन बीजों और पेड़ों को टीपू ,दूध, दही और नारियल पानी से सिंचवाया करता था।”

दो मंज़िला महल में टीक की लकड़ी का इस्तेमाल किया गया है और ये ऊंचे स्थान पर बनाया गया है। महल लकड़ी के खंबों और तीन मेहराबों पर खड़ा है। महल के आधार और खंबों पर पीला रंग किया गया है जो सोने की तरह दमकता है और लगता है मानो सोने का ही हो। स्कॉटलैंड के भू-वैज्ञानिक और वनस्पतिशास्त्री फ़्रांसिस बुकानन सन 1800 शताब्दी में भारत आए थे। उन्होंने सोने का आभास देने वाले इस रंग-रौग़न के बारे में विस्तृत से बताया है।

इस महल में दीवारों, खंबों और मेहराबों पर चित्रकारी बनी हुई है जो देखते ही बनती है। इन पर उकेरे गए भित्ति चित्र अलग-अलग विषयों पर हैं। इनमें हैदर अली और टीपू सुल्तान के युद्ध के बाद निकाले गए जुलूस का भी चित्रण है। अन्य पैंटिग्ज़ में टीपू के दरबार के दृश्य,नृत्य, संगीत आदि का चित्रण है। महल की पश्चिमी दीवार पर पोल्लीलुर युद्ध का चित्रण है। ये युद्ध सन 1780 में टीपू सुल्तान और ईस्ट इंडिया कंपनी के कर्नल विलियम बैले के बीच हुआ था। कहा जाता है कि दरिया दौलत बाग़ में ये चित्र युद्ध के पहले दस्तावेज़ हैं। महल की पूर्वी दीवार पर मुस्लिम शहज़ादियों, शासकों और टीपू के समकालीन राजाओं के चित्र हैं जिन्हें टीपू ने हराया था।

अंग्रेज़ प्रशासक सर जे.डी. रीस जब क्लेरैंस के शासक के साथ सन 1800 में महल में आए थे, तब उन्होंने कहा था कि उन्होंने भारत में इस जैसा कोई और महल नहीं देखा। उन्होंने इस महल की तुलना ईरान के इसफ़हान के महलों से की थी।

सन 1799 में श्रीरंगापटनम पर हमले के दौरान ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ युद्ध में टीपू सुल्तान मारा गया। टीपू के मरने के बाद वेलिंग्टन का प्रथम शासक कर्नल वेसले कुछ समय तक इस महल में रहा था। महल में अब एक संग्रहालय है जिसमें युद्ध में इस्तेमाल किये गये हथियार, पैंटिंग्स, सिक्के और टीपू के समय की अन्य बेशक़ीमती चीज़ें रखी हुई हैं।

दिलचस्प बात ये है कि सन 1781 में हैदर अली ने बैंगलोर क़िले में एक और महल का निर्माण-कार्य शुरु किया था जिसे टीपू सुल्तान ने दस साल बाद सन 1791 में पूरा किया था। बैंगलोर क़िले में टीपू का दो मंज़िला महल दरिया दौलत बाग़ की तर्ज़ पर बना हुआ है। महल की दूसरी मंज़िल पर चार सभागार हैं और हर सभागार में दो झरोके हैं। टीपू सुल्तान इनमें से एक झरोके से जनता को संभोधित करता था। लकड़ी के खंबों पर दरिया दौलत बाग़ की तरह, सोने जैसी चमकने वाली सजावट है। सन 1789-99 में एंग्लो-मैसूर युद्ध में टीपू की मौत के बाद अंग्रेज़ प्रशासन ने महल पर कब्ज़ा कर लिया था।

टीपू ने हालंकि ये महल अपनी आरामगह के लिये बनाये थे लेकिन आज दक्षिण भारत के इतिहास में इनका महत्वपूर्ण स्थान है।

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