मराठा शासक छत्रपति शिवाजी महाराज (1630-1680) अपने युद्ध कौशल, सैन्य शक्ति और भौगोलिक ज्ञान के लिये याद किये जाते हैं। उनकी शक्ति के सबूत हैं दक्किन के पठार में स्थित कई क़िले। ऐतिहासिक मराठी ग्रंथ शिवदिग्विजय के अनुसार छत्रपति शिवाजी के पास करीब 360 क़िले थे। इनमें से कई क़िलों को फ़तह कर छत्रपति शिवाजी ने उन्हें नये सिरे से बनवाया था लेकिन अपने क्षेत्र के विकास और सुरक्षा के लिये उन्होंने कुछ नये क़िले भी बनाये थे। हम यहां दस भव्य क़िलों और महलों के ज़रिये छत्रपति शिवाजी के जीवन पर एक नज़र डालते हैं।
शिवनेरी
पुणे ज़िले के जुन्नर शहर में स्थित शिवनेरी क़िला वो जगह है जहां छत्रपति शिवाजी का जन्म हुआ था। पहली और दूसरी शताब्दी में जुन्नर व्यापार का एक महत्वपूर्ण केंद्र हुआ करता था। बाद में 1480-90 में ये निज़ाम शाही राजवंश की पहली राजधानी बना। निज़ाम शाही वंश ने बाद में अहमदनगर को अपनी राजधानी बना लिया। अहमदनगर पर मुग़लों के कब्ज़ें के बाद 1600 में निज़ाम शाही के सिद्दी जनरल मलिक अंबर ने जुन्नर को अपनी राजधानी बना लिया। जुन्नर के बाद उसने 1604 में खिड़की (औरंगाबाद) को अपनी राजधानी बनाया। छत्रपति शिवाजी भोंसले परिवार से संबंध रखते थे जो एक मराठा वंश था। उनके पिता शाहजी राजे भोंसले 17वी शताब्दी में बीजापुर सल्तनत, अहमदनगर सल्तनत और मुग़ल सल्तनत में सैन्य लीडर थे। शाहजी को अपने पिता मालोजी से विरासत में जागीर के रुप में पुणे और सुपे (मौजूदा समय में पुणे ज़िले का एक गांव) मिला था। मालोजी 1577 में अहमदनगर सल्तनत में प्रधानमंत्री मलिक अंबर के मातहत काम करते थे। मालोजी को इन दो जागीरों के अलावा अहमदनगर के सुल्तान मुर्तज़ा निज़ाम शाह ने 1604 में शिवनेरी और छाकन के क़िले भी तोहफे में दिये थे।
छत्रपति शिवाजी की जन्म तारीख़ को लेकर अभी भी विवाद है। उनके जन्म को लेकर अलग अलग तारीख़ और वर्ष बताया जाता है। कुछ विद्वानों का कहना है कि छत्रपति शिवाजी का जन्म फरवरी 1630 में हुआ था जबकि कुछ अन्य विद्वान जन्म की तारीख़ अप्रैल 1627 बताते हैं। जीजाबाई ने जब छत्रपति शिवाजी को जन्म दिया था तब शाहजी राजे बीजापुर में थे। जहां छत्रपति शिवाजी का जन्म हुआ था वहा एक छोटा सा मंदिर था जो शिवाई देवी को समर्पित था। देवी के नाम पर ही छत्रपति शिवाजी का नाम आधारित है। 1636 में शाहजी राजे को शिवनेरी सहित अन्य छह क़िले मुग़लों को देने पडे। इसके बाद 1637 में जीजाबाई और छत्रपति शिवाजी पुणे चले गए जहां उनकी देखभाल दादोजी कोनदेव करते थे। दादोजी को शाहजी ने पुणे जागीर की देखेख के लिये नियुक्त किया था।
ये क़िला तीर की तरह है और इसकी दिशा उत्तर की तरफ है। यहां आज भी लोग इसे देखने आते हैं। जहां छत्रपति शिवाजी का जन्म हुआ था वहां 1925 में शिव मंदिर बनाया गया था जो आज भी मौजूद है।
पुणे
1637 में शाहजी राजे को आदिल शाही वंश के आदिल शाह से अनुदान के रुप में पुणे जागीर मिली थी। इसके बाद वह अपनी पत्नी और पुत्र के साथ पुणे शिफ्ट हो गए।कहा जाता है कि जीजाबाई, छत्रपति शिवाजी और दादोजी सबस पहले खेडेबारे गांव में रहे थे जहा दादोदी नेएक नया गांव बनाया था जिसे शिवपुर कहा जाता था। इसके अलावा एक अन्य निवास, लाल महल और प्राशासनिक कार्यालयों के निर्माण की प्रक्रिया भी चल रही थी। लाल महल छत्रपति शिवाजी के आरंभिक जीवनकाल में उनका निवास हुआ करता था। यहां वह 12 साल की उम्र तक रहे थे। 17वीं शताब्दी के आते आते लाल महल जर्जर हालत में पहुंच गया था। आज पेशवा के ऐतिहासिक दुर्ग शनीवरवाडा के पास जो लाल महल दिखाई देता है उसे फिर से बनाया गया था। ये काम 1988 में पूरा हुआ था।
1639 में बीजापुर सलतनत ने बैंगलोर पर कब्ज़ा कर लिया और इसे नयी जागीर की राजधानी बनाने के लिये शाहजी को अनुदान में सौंप दिया गया। 1640 में जीजाबाई और छत्रपति शिवाजी को बैंगलोर बुलाया गया जहां छत्रपति शिवाजी का विवाह साईबाई निम्बलकर से हुआ। इसके अलावा छत्रपति शिवाजी को औपचारिक रुप से पुणे जागीर भी सौंपी गई। 1642 में जब छत्रपति शिवाजी 16 साल के हुए तब दादोजी द्वारा स्थापित प्रशासनिक व्यवस्था ने कार्य करना शुरु कर दिया था।
तोरणा क़िला
1646 में छत्रपति शिवाजी ने अपने पहली बार क़िला अपने हाथ में लिया। दक्षिण-पश्चिम पुणे से करीब बीस मील दूर स्थित है तोरणा क़िला जिस पर बीजापुर सरकार का नियंत्रण था। छत्रपति शिवाजी ने अपने अधिकारी येसाजी कुंक, तानाजी मालुसारे और बाजी फसलकर को क़िले के गवर्नर से बातचीत करने के ये भेजा। छत्रपति शिवाजी चाहते थे कि सरकार के हित में उन्हें किले का गवर्नर बनाना चाहिये। उन्होंने किले के लिये बीजापुर सरकार को इतनी धनराशि की पेशकश की जो क़िले के दस साल के राजस्व से भी ज़्यादा थी। इस बीच छत्रपति शिवाजी के हाथ सरकार का सोने का ख़ज़ाना मिल गया जिसके बल पर उन्होंने सरकार से वार्ता कर उसे मनाने में सफलता हासिल की और इस तरह क़िला छत्रपति शिवाजी को मिल गया। कुछ समय के लिये इसका नाम प्रचंडगढ़ भी था।
पुरंदर क़िला
छत्रपति शिवाजी ने पुरंदर किले पर 1648 में कब्ज़ा किया था जो पुणे ज़िले में स्थित है। इस क़िले की देखरेख बीजापुर सरकार के प्रशासक नीलकंठ नीलोजी राव करते थे। क़िले के तार 11वीं शताब्दी में यादव वंश से भी जुड़े बताये जाते हैं। ये क़िला जागीरदारों के नहींबल्कि बीजापुर और अहमदनगर सल्तनत के सीधे नियंत्रण में था। बहादुर शाह ने जब मालोजी को जागीर दी थी तब इसमें पुरंदर किला भी शामिल था।बीजापुर सरकार से बढ़ते ख़तरे की वजह से छत्रपति शिवाजी ने 1648 में पुरंदर किले में शरण ली थी। छत्रपति शिवाजी ने नीलोजी के भाई पीलाजी और शंकरजी केसाथ मिलकर नीलोजी का तख़्ता पलटने की सजिश रची क्योंकि नीलोजी किले से मिलने वाला राजस्व अपने भाईयों के साथ बांटने को तैयार नही था। इसके बाद छत्रपति शिवाजी ने क़िले पर कब्ज़ा कर लिया और सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी थी।
इस क़िले में 1657 में छत्रपति शिवाजी को पत्नी साई बाई से पहले पुत्र संभाजी राजे भोसले की प्राप्ती हुई। 1665 में मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब ने पुरंदर किले पर कब्जा कर लिया। मुग़ल सेना का नेतृत्व राजपूत लीडर जय सिंह कर रहा था जो सेना का कमांडर था। क़िले को बचाने में क़िले के रखवाले मुरारबाजी देशपांडे की जान चली गई। क़िले पर मंडराते ख़तरे को भांप कर छत्रपति शिवाजी ने 1665 में जय सिंह के साथ संधि कर ली जिसे पृथम पुरंदर संधि कहा जाता है। संधि के अनुसार छत्रपति शिवाजी ने पुरंदर सहित 23 क़िले मुग़लों को दे दिये जिनसे सोने के चार लाख सिक्कों का रजस्व मिलता था। बहरहाल, ये संधि लंबे समय तक नहीं चल सकी और पांच साल बाद ही छत्रपति शिवाजी ने 1670 में औरंगज़ेब के ख़िलाफ़ बग़ावत कर क़िले पर फिर कब्जा कर लिया। पुणे के पास ये क़िला आज एक लोकप्रिय ट्रेकिंग स्थल है।
राजगढ़
पुणे के पास स्थित राजगढ़ किला 1647 से लेकर 1670 के आरंभ तक करीब 26 साल तक छत्रपति शिवाजी की राजधानी थी। कहा जाता है कि तोरणा किला जीतने के बाद छत्रपति शिवाजी ने ये किला बनवाया था। इसे बनवाने में उन्होंने तोरणा से मिले ख़ज़ाने का इस्तेमाल किया था। राजगढ़ राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र था। चूंकि ये लंबे समय तक राजधानी रहा इसलिये पानी की सप्लाई पर्याप्त रहती थी। यहां आज भी पानी के दो टैंक हैं जिनका इस्तेमाल होता है।
मुग़लों ने जय सिंह की कमान में 1665 में इस पर कब्ज़ा करने की कोशिश की थी लेकिन कामयाब नही हो सके। 1670 में इस किले में छत्रपति शिवाजी के छोटे पुत्र राजाराम का जन्म हुआ था।
प्रतापगढ़
प्रतापगढ़ का का हिल स्टेशन महाबलेश्वर के पास स्थित है। ये 1659 में छत्रपति शिवाजी और आदिल शाही जनरल अफ़ज़ल ख़ान के बीच युद्ध के लिये मशहूर है। छत्रपति शिवाजी ने 1656 में महाराष्ट्र के सतारा ज़िले में जवाली घाटी पर कब्ज़ा करने के बाद प्रतापगढ़ किले की परिकल्पना की थी। जवाली घाटी पर पहले मराठा जागीरदार चंद्रराव मोरे का कब्ज़ा था। 1656 में छत्रपति शिवाजी ने प्रतापगढ़ किला बनवाने में मोरे के ख़ज़ाने से मिले धन का एक बड़ा हिस्सा ख़र्च किया था।
1657 में बीजापुर सल्तनत के आदिल शाह ने छत्रपति शिवाजी से युद्ध करने के लिये अफ़ज़ल ख़ान को भेजा था। इस युद्ध को प्रतापगढ़ की लड़ाई के रुप में जाना जाता है। इस युद्ध में छत्रपति शिवाजी ने गोरिल्ला युद्ध के ज़रिये अफ़ज़ल ख़ान की भारी भरकम सेना को हराया था।घाटियों से घिरा ये क़िला अपनी ख़ूबसूरती की वजह से ट्रेकर्स और पर्वतारोहियों को बहुत आकर्षित करता है।
रायगढ़
रायगढ़ किला मराठा साम्राज के इतिहास के लिये कई कारणों से बहुत महत्वपूर्ण है। इस किले में सिर्फ एक ही तरफ से प्रवेश किया जा सकता है यानी तीन तरफ से प्रवेश संभव नही है। ये पत्थरों का ये किला सहयाद्री पर्वतमाला से दूर बनाया गया था। किले के स्थान की वजह से छत्रपति शिवाजी ने इसे अपनी राजधानी बनाने के बारे में भी सोचा था। लेकिन उन्होंने अपने चीफ आर्किटेक्ट हिरोजी इंदुलकर से इसे नये सिरे से बनवाया था और इसका नाम राईरी से बदलकर रायगढ़ कर दिया था। 1674 में इसी क़िले में छत्रपति शिवाजी की ताजपोशी हुई थी और तभी से यह मराठा साम्राज का बहुत महत्वपूर्ण सत्ता केंद्र बन गया था। छत्रपति शिवाजी ने इसी किले में 1680 में अंतिम सांस ली थी छत्रपति शिवाजी के बाद 1689 तक किले पर छत्रपति शिवाजी के पुत्र संभाजी का शासन था।
पन्हाला किला
कोल्हापुर शहर से 20 कि.मी. दूर पन्हाला किला 12वीं शताब्दी में शिलहारा राजवंश के भोज द्वतीय ने बनवाया था। मराठों के पहले इस पर देवगिरी के यादव, बहमनी और आदिल शाही का कब्ज़ा था। 1659 में बीजापुर के जनरल अफ़ज़ल ख़ान की मृत्यु के बाद छत्रपति शिवाजी ने इस पर कब्ज़ा कर लिया था। इसे वापस लेने के लिये आदिल शाह द्वतीय ने सिद्दी जोहर की कमान में सेना भेजी थी। जुलाई 1660 में छत्रपति शिवाजी कुछ कि.मी. दूर स्थित विशालगढ़ भाग गए। 1673 में छत्रपति शिवाजी ने पन्हाला किले पर फिर कब्ज़ा कर लिया। मराठाओं के इतिहास में रायगढ़ के बाद पन्हाला किला दूसरा सबसे महत्वपूर्ण किला माना जाता है। इस किले के अवशेष अब भारतीय पुरातत्व विभाग की निगरानी में है।
सिंधुदुर्ग
सिंधुदुर्ग किला उन किलों में से है जिन्हें छत्रपति शिवाजी ने ख़ुद 1664 में बनवाया था। इस किले का निर्माण छत्रपति शिवाजी के मुख्य वास्तुकार हिरोजी इंदूलकर की देखरेख में हुआ था। इस किले को बनवाने का मुख्य उद्देश्य विदेशी आक्रमणकारियों को रोकना और जंजीरा के सिद्दियों के बढ़ते प्रभाव को चुनौती देना था। अफ्रीका का सिद्दि समुदाय 600 ई.पू. में भारत आया था और वो मुग़ल सल्तनत का सहयोगी बन गया था। छत्रपति शिवाजी ने जंजीरा के किले पर कब्जा करने की कोशिश की थी लेकिन सफलता नहीं मिली। ये किला कुराते द्वीप में स्थित है जो कोंकण तट से दो कि.मी. दूर है। ये किला नौसेना की शक्ति का प्रतीक है जो कभी छत्रपति शिवाजी के पास हुआ करती थी।
जिंजी किला
तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई से 160 कि.मी. दूर स्थित है जिंजी। 15वीं शताब्दी में दक्षिण भारत में जिंजी विजयनगर साम्राज का एक महत्वपूर्ण सत्ता केंद्र था। 16वीं शताब्दी तक आते आते ये व्यापार का अहम केंद्र बन गया और इसे पूर्व का ट्रॉय कहा जाने लगा था। जिंजी की व्यापारिक गतिविधियों ने बीजापुर और गोलकुंडा सल्तनत का ध्यान आकर्षित किया। 1648 में बीजापुर सेना ने जिंजी पर नियंत्रण कर लिया |
1677 में दक्षिण में मुहिम शुरु करने के बाद छत्रपति शिवाजी एक महीने के लिये हैदराबाद गए और वहां मुग़लो के खिलाफ गोलकुंडा सल्तनत के कुतुबशाही के साथ संधि कर ली। उसी साल गोलकुंडा की मदद से छत्रपति शिवाजी ने जिंजी पर कब्ज़ा कर लिया और इस तरह जिंजी दक्षिण में मराठों का एक महत्वपूर्ण सामरिक केंद्र बन गया। ये किला 1920 से भारतीय पुरातत्व विभाग की संरक्षित धरोहर की सूची में है।
लोहागढ़, सिन्हागढ़ और विजय दुर्ग कुछ अन्य किले हैं जो मराठा शासक छत्रपति शिवाजी के जीवन की गाथा सुनाते हैं। छत्रपति शिवाजी के शासनकाल में 1674 और 1680 के दौरान वित्त मंत्री रहे रामचंद्र पंत अमत्य के अनुसार छत्रपति शिवाजी ने किलों की ही मदद से अपना साम्राज्य फैलाया था। आज ये किले छत्रपति शिवाजी महाराज के गौरवशाली राज्य के गवाह हैं।
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