चारमीनार: हैदराबाद की पहचान 

चारमीनार और हैदराबाद शहर दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। पुराने शहर के चौराहे पर स्थित चार मीनार सदियों से लोगों को रोमांचित करता रहा है। चार दिशावाले चारमीनार के अंदर एक मस्जिद भी है।इस स्मारक ने हैदराबाद शहर को बसते, उजड़ते और फिर बसते देखा है। इसलिये इसे सामुहिक स्मिर्तियों का इस्मार्क भी कहा जा सकता है ।

चार मीनार सुल्तान मोहम्मद क़ुली क़ुतुब ने सन 1592 में बनवाया था। चार मीनार की कहानी शुरु होती है चार कि.मी. दूर गोलकुंडा क़िले से। गोलकुंडा क़िला किसी समय मछलीपट्टनम बंदरगाह की तरफ़ जाने वाली सड़क पर एक पथरीली जगह हुआ करता था। 16वीं शताब्दी में गोलकुंडा क़ुतुब शाही वंश का गढ़ बन गया था। इस राजवंश का संस्थापक क़ुली क़ुतुब-उल-मुल्क ईरान में हमादान का रहने वाला था। वह दक्षिण में आकर बीदर के सुल्तानों बहमनी के यहां काम करने लगा।

सन 1518 में बहमनी साम्राज्य के पतन के बाद क़ुली क़ुतुब-उल-मुल्क ने राजवंश से ख़ुद को आज़ाद कर गोलकुंडा को अपनी राजधानी बना लिया। कृष्णा घाटी का हीरा पूरे विश्व में गोलकुंडा हीरा नाम से मशहूर हो गया था और आंध्रा के कपड़े की वजह से गोलकुंडा विश्व का सबसे अमीर साम्राज्य बन गया था। 18वीं शताब्दी के अंत तक ब्राज़ील में हीरे की खान मिलने के पहले तक गोलकुंडा ही विश्व में हीरे का एकमात्र स्रोत हुआ करता था। हीरे की खान की वजह से सारी दुनिया से लोग गोलकुंडा आते थे और इस तरह गोलकुंडा एशिया का एक महत्वपूर्ण शहर बन गया था। लेकिन गोलकुंडा की संपदा और समृद्धी की वजह से शहर में भीड़ होने लगी और बीमारियां भी फैलने लगी थीं। सन 1590 तक धनवान लोग शहर छोड़कर जाने लगे। उन्होंने शहर से निकलकर मुसी नदी की दूसरी तरफ़ बाग़ा वाले घर बनाने शुरु कर दिये। बाग़ों की वजह से ये उपनगर बाग़नगर नाम से प्रसिद्ध हो गया।

हैदराबाद- इस्फ़हान-ए-नौ

इस अवधि के दौरान गोलुकुंडा पर सुल्तान मोहम्मद क़ुली क़ुतुब शाह का शासन हुआ करता था। मोहम्मद क़ुली क़ुतुब शाह सन 1580 में 15 साल की उम्र में शासक बन गया था। उसने गोलकुंडा पर 31 साल तक राज किया था। मोहम्मद क़ुली क़ुतुब शाह न सिर्फ़ पढ़ा-लिखा था बल्कि शायर भी था। वह पहला शासक था जिसका दीवान (कविताओं का संग्रह) दक्किनी भाषा में प्रकाशित हुआ था। वह कला का भी बड़ा संरक्षक था। गोलकुंडा में बार बार हैज़ा फैलने की वजह से क़ुली क़ुतुब शाह ने मुसी नदी के पार चीचालम गांव को अपनी राजधानी बना लिया।

समकालीन ईरानी इतिहासकार फ़रिश्ता ने लिखा है- “नक्षत्र में जब चंद्रमा, सिंह और गुरु राशि में था तब मोहम्मद क़ुली क़ुतुब शाह ने ऐसा शहर बनाने की योजना बनाई जो दुनिया में अनोखा और स्वर्ग की तरह हनया शहर बनाने की ज़िम्मेदारी मोहम्मद क़ुली क़ुतुब शाह के पेशवा मीर मोमिन असत्राबादी को सौंपी गई। मीर मोमिन ईरान से आया था। मीर बहुत प्रतिभाशाली था और बहुत अच्छा वास्तुकार और कला का प्रेमी था। वह कवि और आलोचक भी था । सन 1585 से लेकर सन 1624 में निधन होने तक उसका क़ुतुब शाही दरबार में बहुत दबदबा था। मीर मोमिन की ही देखरेख में ईरान में शाह अब्बास (1571-1629) के शासनकाल में इस्फ़हान शहर बना था। वह दक्कन में भी इस्फ़हान-ए-नौ (नया इस्फ़हान) बनाना चाहता था।

मोहम्मद क़ुली क़ुतुब शाह के मंत्री मीर मोमिन अस्तराबादी ने नये शहर की जो योजना बनाई थी उसमें ग्रिड प्रणाली थी और मध्य में चार मीनार का प्रावधान था। चार मीनार से चार दिशाओं की तरफ़ चार सड़कें निकलनी थीं। इस पैटर्न से क्षेत्र चार हिस्सों में बंट गया। उत्तर-पश्चिमी हिस्सा शाही महलों और ऑफ़िसों के लिये रखा गया और उत्तर-पूर्वी हिस्सा रईसों के घर के लिये रखा गया। मुख्य मार्ग पर क़रीब 14 हज़ार दुकानों, मस्जिदों, सराय और स्कूलों का प्रावधान रखा गया था। हैदराबाद का नाम पैग़ंबर मोहम्मद के दामाद अली के नाम हैदर (शेर) के नाम पर रखा गया था। क़ुतुब शाही शासक शिया थे और वे अली को माननेवाले थे।

चार मीनार- हैदराबाद का चौबारा

नये शहर के निर्माण की शुरुआत चार मीनार से हुई थी। चार मीनार क्यों बनवाया गईया, इसे लेकर तरह तरह की कहानियां हैं। ऐसी ही एक कहानी ये भी है कि क़ुली क़ुतुब शाह को नृतकी भागमती से इश्क़ हो गया था और उसी की स्मृति में ये मीनार बनवाया गया था। लेकिन नरेंद्र लूथरा और सज्जाद शाहिद जैसे इतिहासकारों का मानना है कि चार मीनार गोरवांवित चौबारे या शहर के चौराहे से ज़्यादा कुछ नहीं था।

चार मीनार प्लास्टर और पत्थरों से बनी है और इसका आकार चौकोर है। इसका हर हिस्सा 18.26 मीटर लंबा है। हर हिस्से पर एक-एक मेहराब है। मीनारों की ऊंचाई 48.7 मीटर है और हर मीनार में चार मंज़िलें हैं। प्रत्येक मीनार में 146 सीढ़ियां हैं जो ऊपर तक जाती हैं। मुख्य इमारत में तीन मंज़िले हैं। छत के पश्चिमी तरफ़ एक मस्जिद है। मस्जिद में दोहरे मेहराब हैं जो इस्लाम के पांच संभ्रांत लोगों, पैग़ंबर मोहम्मद, उनके दामाद अली, उनकी बेटी फ़ातिमा, और नवासे हसन तथा हुसैन का प्रतिनिधित्व करते हैं। हैदराबादी इतिहासकार एस.ए.ए. बिलग्रामी के अनुसार चीन मीनार बनवाने में नौ लाख रुपये ख़र्च हुए थे।

दिलचस्प बात ये है कि मध्यकाल में भी यहां आने वाले लोग गंदी दुकानों से ख़राब हो रहे चार मीनार की ख़ूबसूरती के बारे में शिकायत करते थे। चार मीनार बनने के कुछ साल बाद यहां आए फ़्रांस के यात्री ज्यां थेवेनो ने लिखा है कि चार मीनार लकड़ी और घासफ़ूंस से बनी गंदी दुकानों से घिरा हुआ है जहां फलों का रस मिलता है।

सन 1687 में औरंगज़ेब की सेना ने गोलकुंडा पर कब्ज़ा कर लिया और इस तरह क़ुतुब शाही साम्राज्य का अंत हो गया। इसके बाद औरंगाबाद मुग़लों की राजधानी और राजनीतिक तथा आर्थिक केंद्र बन गया और हैदराबाद का महत्व कम हो गया। मुग़लकाल में बिजली गिरने से चार मीनार को दक्षिण-पश्चिमी मीनार को काफ़ी नुक़सान हुआ। उसी समय शहर के एक अमीर व्यक्ति का निधन हो गया । उसने कोई वसीयत नहीं छोड़ी थी। उसकी एक लाख 25 हज़ार रुपये की संपत्ति मुग़ल सुबेदार बहादुर दिल ख़ान को मिल गई। कहा जाता है कि बहादुर दिल ख़ान ने क़िस्मत से मिले इस धन में से साठ हज़ार रुपये मीनार की मरम्मत में लगाए|

हैदराबाद और चार मीनार का पुनर्जन्म

सन 1750 में फ़्रैंच ईस्ट इंडिया कंपनी की मदद से सालाबत जंग को निज़ाम घोषित कर दिया गया। इसके बाद हैदराबाद शहर का पुनर्जन्म हुआ। मराठों के लगातार आक्रमणोम की वजह से निज़ाम ने औरंगाबाद की बजाये हैदराबाद को दोबारा राजधानी बना दिया। सन 1756 में चार मीनार और उसके आसापास के बाग़ों पर फ़्रैंच कमांडर मार्क्विस डि बुस्सी कस्तेल्नौ और उसके सैनिकों का कब्ज़ा था। एंग्लो-फ़्रांस युद्ध के समय बसी फ़्रैंच ईस्ट इंडिया कंपनी का जनरल था और उसने ही सलाबत जंग को तख़्त पर बैठाया था।

दिलचस्प बात है कि हैदराबाद के निज़ामों की वजह से ही चार मीनार को शोहरत मिली। पहला निज़ाम मूलत:दक्कन का मुग़ल सूबेदार था जिसने ख़ुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया था। बाद के निज़ामों ने को जायज़ हक़दार साबित करने के लिये ख़ुद का रिश्ता क़ुतुब शाही से जोड़ना चाहते थे। उनके शासनकाल में चार मीनार हर तरफ़ छाने लगा था, सिक्कों पर, नोटों पर, डाक टिकटों पर और यहां तक कि हैदराबाद पुलिस के बिल्लों पर भी। बहुत जल्द चार मीनार हैदराबाद की पहचान बन गया।

आज भी तेलंगाना सरकार का राज्य चिन्ह चारमीनार ही है। चार मीनार बनने के बाद से ही ये लोगों के लिये ग़पशप करने की जगह बन गई थी। आज भी यहां से कई अफ़वाहें उड़ती हैं जिन्हें चार मीनार की ग़प कहा जाता है। यहां आसपास कई ईरानी चाय घर हैं जहां से इन अफ़वाहों के पर लगा जाते हैं। व्यस्त शहर के बीचों बीच खड़ा चार मीनार हैदराबाद के जीवन के अलग अलग दौर का मूक गवाह है।

हम आपसे सुनने को उत्सुक हैं!

लिव हिस्ट्री इंडिया इस देश की अनमोल धरोहर की यादों को ताज़ा करने का एक प्रयत्न हैं। हम आपके विचारों और सुझावों का स्वागत करते हैं। हमारे साथ किसी भी तरह से जुड़े रहने के लिए यहाँ संपर्क कीजिये: contactus@livehistoryindia.com