केरल की सरज़मीं की ख़ूबसूर्ती के बारे में जब आप सोचते हैं तब किसी क़िले का तसव्वुर करना नामुमकिन-सा लगता है। लेकिन केरल में कई ऐतिहासिक किले हैं। उनमें से एक है बेकल क़िला। कासरगोड ज़िले में स्थित ये केरल के सबसे पुराने और सबसे विशाल क़िलों में से एक है जिसका स्थानीय इतिहास में एक बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। इसके अलावा भी इसका और महत्व है। कुछ सालों पहले यहां हुई खुदाई में ख़ज़ाना मिला जिसमें न सिर्फ़ दरबार हॉल, टकसाल के अवशेष बल्कि कई सिक्के और मोहरें भी मिली। इन सिक्कों और मोहरों में से कई मैसूर के शासक टीपू सुल्तान, विजयनगर साम्राज्य और अंग्रेज़ शासनकाल के हैं। इनसे पता चलता है कि इस क़िले का किसी ज़माने में कितना महत्व रहा होगा।
कासरगोड में होसदुर्ग तालुक के पल्लीकर गांव में 40 एकड़ ज़मीन पर फैला बेकल क़िला केरल के सबसे संरक्षित क़िलों में से एक है। इसका इतिहास इस क्षेत्र से जुड़ा हुआ है जिसे समझने के लिए हमने कासरगोड की कहानी जानने की कोशिश की। भारत के पश्चिम तट पर स्थित कासरगोड कभी मालाबार में व्यापार का एक प्रमुख केंद्र हुआ करता था। 9वीं और 14वीं सदी के दौरान यहां कई यात्री और व्यापारी आए थे। 13वीं सदी के लगभग कोलाथिरी या कोलाट्टुनाडू नामक शासकों ने यहां राज किया। इनका संबंध मुशिका साम्राज्य से था जिसका आधुनिक केरल के कुछ क्षेत्रों पर शासन हुआ करता था। कोलाट्टुनाडू के ही शासनकाल में बेकल, केरल का एक महत्वपूर्ण शहर बन गया था क्योंकि ये आज के कर्नाटक के पास था। पश्चिमी तट पर इसकी सामरिक स्थित की वजह से जल्द ही बेकल समुद्रीय महत्व का शहर बन गया। इस क्षेत्र के महत्व की वजह से विजयनगर साम्राज्य का भी ध्यान इस ओर गया।
लेकिन सन 1565 में तालिकोट के युद्ध के बाद विजयनगर शासकों का दबदबा कम होने लगा जिसकी वजह से छोटे छोटे राज्य पैदा हो गए। इनमें इक्केरी नायक भी थे जो आधुनिक कर्नाटक और उत्तरी केरल के हिस्सों में शक्तिशाली हो गए थे। बडनोर (मौजूदा समय में नगारा) और केलाडी, कर्नाटक में इनकी राजधानी हुआ करती थीं। बेकल के आर्थिक और सामरिक महत्व को देखते हुए इक्केरी नायक वेंकडप्पा नायक ( सन 1582-1629) ने यहां एक क़िला बनाने का फ़ैसला किया। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि बेकल क़िले का निर्माण सदाशिव नायक ( सन 1513-1560) ने शुरु करवाया था। माना जाता है कि क़िले के निर्माण का काम शिवप्पा नायक ( सन 1645-1660) ने पूरा किया था। इक्केरी नायकों ने अपने साम्राज्य की सुरक्षा मज़बूत करने के लिए कासरगोड में बेकल के अलावा चंद्रगिरी क़िला भी बनवाया था।
कुछ लोगों का यह भी कहना है कि इस क़िले का निर्माण कोलाथिरी शासकों ने किया था। लेकिन कहा जाता है कि जब इक्केरी नायक सत्ता में आए तब उन्होंने ये क़िला फिर से बनवाया और इसे और बढ़ाया। इसकी सामरिक स्थिति की वजह से मैसूर के शासक हैदर अली की इस पर नज़र पड़ी। सन 1763 में जब उसने इक्केरी नायकों की राजधानी बडनोर पर हमला किया तब उसने बेकल क़िले पर कब्ज़ा कर लिया। टीपू सुल्तान के समय में ये तुलुनाडु (जिसमें कासरगोड ज़िले सहित आधुनिक केरल और कर्नाटक के हिस्से आते थे) का प्रशासनिक केंद्र हुआ करता था। ये बेकल के इतिहास का एक महत्वपूर्ण दौर था क्योंकि यहां मिले कई अवशेष इसी अवधि के हैं। सन 1792 में श्रीरंगपटनम संधि के बाद टीपू सुल्तान के अन्य क्षेत्रों सहित बेकल भी अंग्रेज़ों के अधिकार क्षेत्र में चला गया।
बेकल क़िला दरसल बहुत ही आकर्षक है। क़िले में 15 बुर्ज हैं। इन्हें देखकर लगता है मानों ये समंदर से ऊभर रहे हों क्योंकि क़िले का कुछ हिस्सा पानी में है। क़िले के भीतर महत्वपूर्ण अवशेषों में सीढ़ियों वाला जलाशय, दक्षिण दिशा में खुलने वाली गुफ़ाएं, गोला-बारुद रखने के लिए भंडार और ढ़लानवाला रास्ता, एक निगरानी बुर्ज शामिल है। इस बुर्ज का सामरिक महत्व है जहां से आसापस का इलाक़े का ख़ूबसूरत नज़ारा दिखाई देता है।
इस क़िले का सबसे दिलचस्प हिस्सा वो है जो खुदाई में मिला था। इसमें ऐतिहासिक महत्व के कई अवशेष हैं। ये सभी अवशेष आंशिक रुप से बाहर की तरफ़ निकले हुए थे। यहाँ का ऐतिहासिक महत्व, कारोबार के पैटर्न और सांस्कृतिक अनुक्रम को समझने के लिए यहां सन 1997 और सन 2001 के बीच खुदाई की गई थी। ये खुदाई भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के त्रिचुर सर्किल के पुरातत्विद निरीक्षक टी.सत्यमूर्ति की निगरानी में की गई थी। खुदाई में दो हज़ार से ज्यादा प्राचीन वस्तुएं मिली थीं।
खुदाई में रिहायशी मकान और महल-परिसर, टकसाल, दरबार हाल और एक मंदिर सहित कई हिस्सों के अवशेष मिले हैं। दरबार हाल इक्केरी नायकों का था जबकि टकसाल टीपू सुल्तान के समय की है जो पूरी खुदाई की सबसे महत्वपूर्ण खोज मानी जाती है। अन्य़ चीज़ों में नायकों और टीपू सुल्तान के समय के सिक्के, सोने-चांदी, सीसा और तांबे की वस्तुएं, विजयनगर की टेराकोटा मोहरें आदि शामिल हें। धातु की ज़्यादातर वस्तुएं टीपू सुल्तान के समय की हैं। बेकल से मिली प्राचीन वस्तुओं में सोने के गहनें, चांदी, लोहे, तांबे और सीसे की वस्तुएं हैं।
यहां खुदाई में जितनी संख्या में और जिस तरह के मुद्रा संग्रहण मिले हैं वे बहुत महत्वपूर्ण हैं और इनसे हमें पता चलता है कि इस क्षेत्र में विभिन्न राजवंशों के शासनकाल के समय बेकल प्रशासन का प्रमुख केंद्र था। बेकल में मिले मुद्रा संग्रहण बहुत महत्वपूर्ण हैं। महत्वपूर्ण खोज में भट्टी, सिक्के बनाने की भट्टी, तांबे के सिक्के बनाने के सांचे, तांबे की सिल, जस्ते की तलछट और सांचे, तांबे के छोटे सिक्के, टूटे-फूटे सिक्के, टीपू सुल्तान के पैसे के सिक्के और ब्रिटिश इंडिया ज़माने के सिक्के तथा टोराकोटा की मोहरें शामिल हैं जिन पर नगारी कथाएं अंकित हैं। खुदाई की रिपोर्ट के अनुसार टीपू सुल्तान के समय के पैसे के सिक्के कोझिकोड में बनते थे लेकिन नक़द सिक्के बेकल में बनाए जाते थे। एक अकेले घर से तांबे के 554 सिक्के मिले थे।
तांबे के ज़्यादातर सिक्के ख़राब स्थिति में थे इसलिए उनमें अंकित चिन्ह दिखाई नहीं पड़ते हैं। कुछ सिक्कों पर दाएं तरफ़ एक हाथी, बाएं तरफ़ पूंछ उठाकर धूमता हाथी, बिंदुओं वाली डबल क्रॉस लाइन, चक्र में बने फूल, देवी-देवता, चौकोर पत्तियां आदि के चिन्ह बने हुए हैं। इनके अलावा यहां खुदाई में, चक्के पर बनाए गए बर्तन भी मिले थे। इनमें मुख्यत: चार तरह के बर्तन हैं- लाल बर्तन, बफ बर्तन , काले और चमक वाले बर्तन हैं।
क़िले के परिसर में एक मस्जिद भी है और ऐसा माना जाता है कि इसे टीपू ने बनवाया था। क़िले के आस पास सुंदर समंदरी तट हैं जिसकी वजह से केरल में ये सैलानियों की बेहद लोकप्रिय जगह है। मध्ययुगीन इतिहास का गवाह रहे, बेकल क़िले को, कम से कम एक बार ज़रुर देखा जाना चाहिए।
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