बांधवगढ़ का क़िला  

मध्य प्रदेश के उमरिया ज़िले में है बांधवगढ़ नैशनल पार्क जो भारत का एक टाइगर रिज़र्व है और जहां देश में बाघों की अच्छी संख्या है। लेकिन सिर्फ़ इसी वजह से हम नैशनल पार्क की बात नहीं कर रहे हैं। पहाड़ों के बीच पार्क में एक छोटी सी पहाड़ी पर स्थित है बांधवगड़ क़िला जो क़रीब 2000 साल पुराना है।

बांधवगढ़ का ये जंगल कभी रीवा रियासत के बघेल राजाओं का शिकारगह हुआ करता था। बघेल राजाओं ने 13वीं से लेकर 17वीं शताब्दी तक यहां शासन किया था। हालंकि ये क़िला कई राजवंशों के शासन का गवाह रहा है लेकिन बघेल राजवंश ने यहां सबसे ज़्यादा शासन किया था। दिलचस्प बात ये है कि क़िला किसने बनाया इसे लेकर कोई ख़ास जानकारी नहीं है लेकिन एक मिथक के अनुसार भगवान राम ने ये क़िला अपने भाई लक्ष्मण को दिया था। इसीलिये शायद इसका नाम बांधवगढ़ पड़ा जिसका मतलब होता है भाई का क़िला।

पुरातत्विद और पुरालेखवेत्ता डॉ. एन.पी. चक्रवर्ती यहां सन 1938 में आए थे। खोज के दौरान उन्हें कुछ गुफाएं मिली थीं जिनमें से ज़्यादातर कृत्रिम थीं। इन पर ब्रह्मी लिपि में लिखे शिला-लेख भी मिले थे। ज़्यादातर ऐतिहासिक दस्तावेज़ में इस स्थान को बंधोगढ़ कहा गया है। इन शिला-लेखों के अध्ययन से ही क़िले में रहने वालों के बारे पता चला। बांधवगढ़ की गुफाओं में मिले शिला-लेखों से न सिर्फ़ क़िले के इतिहास की जानकारी मिलती है बल्कि ईसवी काल की प्रारंभिक सदियों में मध्य भारत के इतिहास के बारे में पता चलता है।

शिला-लेखों के अनुसार दूसरी और तीसरी शताब्दी के दौरान इस क़िले में मघा राजवंश रहा करता था। राजाओं के नाम मघा से ख़त्म होते थे और शायद इसीलिये इस राजवंश का नाम मघा राजवंश पड़ा। बांधवगढ़ और कौशांबी जैसे कुछ अन्य स्थानों में इस राजवंश के सिक्के, सील और शिला लेख मिले थे। कौशांबी उत्तर प्रदेश में है और ये मघा राजवंश का गढ़ हुआ करता था। इस क़िले से राजवंश के नौ से ज़्यादा राजाओं ने शासन किया था।

इस राजवंश के सबसे पहले शासक वशिष्ठि पुत्र भीमसेन और उनका पुत्र कौतसीपुत्र पोठासिरी थे। इनके बाद अन्य शासकों में कौशिकी पुत्र भद्रदेव, भद्रमघा, गौतिमीपुत्र शिवमघा, सतमघा और विजयमघा के नाम आते हैं। मघा की सत्ता 300 ई.पू. के क़रीब समाप्त हो गई थी।

बांधवगढ़ क़िला अलग अलग समयावधि के दौरान मध्य भारत में सत्ता में बदलाव को दर्शाता है। कहा जाता है कि मघा के बाद तीसरी शताब्दी के दौरान वाकाटक राजवंश ने इस क़िले से शासन किया था। वाकाटक राजवंश ने 250 से 500 ई. तक दक्षिण मध्य भारत पर शासन किया था और उनका साम्राज्य पूर्व में छत्तीसगढ़ के कुछ हिस्सों तक फैला हुआ था। वाकाटक महत्वपूर्ण शासक थे और उत्तर भारत में गुप्त राजवंश के वे समकालीन थे। बहुत मुमकिन है कि मध्य भारत में बांधवगढ़ वाकाटक राजवंश के सम्राज्य का हिस्सा रहा हो।

वाकाटक के बाद पांचवीं शताब्दी में सेंगर राजवंश का शासन आया जो राजपूत थे और जिन्होंने मौजूदा समय के लटेरी जैसे मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों पर शासन किया था। इनके बाद बांधवगढ़ क़िले से त्रिपुरी के कलचुरी शासकों ने राज किया। उनका साम्राज्य 7वीं से लेकर 13वीं शताब्दी तक चला। कलचुरी राजवंश के शासक युवराज देव के नाम का एक शिला-लेख मिला है जिससे क़िले में उनकी मौजूदगी का पता चलता है। बांधवगढ़ क़िला-परिसर में भगवान विष्णु की एक बड़ी मूर्ति भी है जिसे आज भी देखा जा सकता है हालंकि सैलानियों को पूरे क़िले में जाने की इजाज़त नहीं है |माना जाता है कि इस मूर्ति की स्थापना युवराज देव के शासनकाल में हुई थी।

इन राजवंशों के बाद क़िले पर रत्नापुर के कलाचुरी का कब्ज़ा हो गया जो त्रिपुरी कलाचुरी की ही एक शाखा थे और 11वीं और 12वीं शताब्दी में मध्य प्रांत में त्रिपुरी कलाचुरी के जागीरदारों के रुप में काम करते थे। 13वीं शताब्दी में रत्नापुर के सोमदत्त कलाचुरी ने अपनी बेटी पद्मा कुंवती की शादी बघेल साम्राज्य के कर्ण देव से कर दी और उसे दहेज में बांधवगढ़ क़िला दे दिया। कर्ण देव बघेल साम्राज्य के संस्थापक व्याध्र देव का पुत्र था। बघेल मूलत: गुजरात के थे। कर्ण देव ने बांधवगढ़ को अपनी राजधानी बना लिया और तभी से ये क़िला बघेल साम्राज्य का केंद्र बन गया जो सन 1597 तक जारी रहा। इसके बाद रीवा राजधानी बन गई। दिल्ली में सन 1489 से सन 1517 तक शासन करने वाले सिकंदर लोधी ने क़िले पर क़ब्ज़ा करने की कोशिश की लेकिन नाकाम रहा। दरअसल लोधी बधेल शासक सिलावहन (1495-1500) की बेटी से शादी करना चाहता था लेकिन बधेल शासक इसके लिये राज़ी नहीं था।

सन 1597 में अकबर की सेना ने इसे नष्ट कर इस पर कब्ज़ा कर लिया था। सन1602 में इस पर फिर बघेल राजा विक्रमादित्य का कब्ज़ा हो गया। कहा जाता है कि विक्रमादित्य के बाद कुछ समय तक इस पर मराठों का कब्ज़ा रहा था। 18वीं सदी में ये अंग्रेज़ों के पास चला गया। इतने सारे शासकों के हाथों से निकलने के बाद सन1935 में ये क़िला वीरान हो गया।

क़िला परिसर के मंदिरों में शेष शैया पर लेटे भगवान विष्णु की मूर्ति के अलावा यहां कूर्मा अवतार (कछुआ), मत्स्य अवतार, वरहा अवतार जैसे विष्णु के कई अवतारों की मूर्तियां हैं। कहा जाता है कि पार्क की गुफाओं को शासक अस्तबल, सामान रखने और सैनिकों के रहने के स्थान के रुप में इस्तेमाल करते थे। यहां बघेल संग्रहालय भी है जहां बघेल शासकों के सामान के अलावा सैन्य उपकरण रखे हुए हैं। इसके अलावा यहां पहले सफ़ेद बाघ का भूसे से भरा एक शेर भी है जो बघेल राजाओं में से किसी एक मिला था।

ये क़िला अब अनेक वन्य प्राणियों का घर बन चुका है। मध्य भारत में बांधवगढ़ नैशनल पार्क का एक महत्वपूर्ण स्थान है, वो बांधवगढ़ जो कभी अनेक राजवंशों का सत्ता केंद्र रह चुका है।

मुख्य चित्र : ब्रायन स्कॉट, फ्लिकर कॉमन्स

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