हम में से ज़्यादातर लोग गोवा के इतिहास को पुर्तगाली शासन के साथ जोड़कर देखते हैं लेकिन सच यह है कि गोवा कभी कई हिंदू राजवंशो का क्षेत्र हुआ करता था जो पूरे राज्य में अपनी पहचान छोड़कर गए हैं?
गोवा की राजधानी पणजी से, सड़क मार्ग से एक घंटे की दूरी पर उत्तर गोवा के शहर बिचोलिम में एक गांव है जिसका नाम अर्वलम है। अपने सुंदर झरनों की वजह से ये जगह सैलानियों में बहुत लोकप्रिय है। लेकिन झरनों के पास कुछ ही दूरी पर गुफाओं का एक समूह है जो डेढ़ हज़ार साल पुराना है। अर्वलम गुफाएं गोवा की प्रारंभिक हिंदू वास्तु-कला का नमूना हैं।
स्थानीय लोग इसे पांडव गुफा कहते हैं। किवदंती के अनुसार बारह वर्ष के वनवास के दौरान पांडव अपनी पत्नी द्रोपदी के साथ इन गुफाओं में कुछ समय के लिये ठहरे थे।
पश्चिम भारत में गुफाएं जहां बजालत ( लाल रंग का आग्नय बलुआ पत्थर ) चट्टान काटकर बनाई गईं थी वहीं अर्वलम गुफाएं मानव निर्मित गुफाएं हैं जिन्हें मखराला (लैटराइट) चट्टानों को काटकर बनाया गया है। यहां कुल छह कमरे हैं जिनमें से पहले पांच कमरों का प्रयोग मंदिर के रुप में होता था। छठे कमरे का उपयोग शायद रसोईघर या स्टोर के रुप में होता होगा क्योंकि कमरे के किनारे एक प्लेटफ़ॉर्म बना हुआ है।
कुछ इतिहासकार अर्वलम गुफाओं को पांचवी सदी और कुछ छठी सदी का बताते हैं। ये वो समय था जब गोवा पर कदंब राजवंश (345-525) का शासन हुआ करता था। कदंब कर्नाटक का प्राचीन शाही परिवार था जो अपनी राजधानी बनवासी (मौजूदा समय में उत्तरा कन्नड ज़िला) से उत्तर कर्नाटक और कोंकण पर शासन करता था। दक्कन में वे सातवाहन राजवंश के बाद आए थे और वे पश्चिमी गंगा राजवंश के समकालीन थे। कदंब राजवंश भगवान शिव के उपासक थे।
अर्वलम गुफाओं के पहले कमरे में एक वेदी है। वेदी के छेद में एक शिवलिंग है जो भूरे रंग के बाजालत पत्थर का बना है। इससे पता चलता है कि ये गुफाएं अपनी प्रकृति में शायद शिवपंथ की रही होंगी।
अन्य चार कमरों में उनकी वेदियों के बीच लिंग की तरह की मूर्तियां हैं लेकिन ये कहना मुश्किल है कि ये शिवलिंग हैं। उदाहरण के लिये अर्वलम गुफा मंदिरों के तीसरे कमरे में रखे लिंग पर ब्रह्मी लिपि में एक पंक्ति का अभिलेख है जो कुछ इस तरह है-संबालुरु-वाली रविह। इसका अर्थ है “संबा शहर का निवासी रवि”। सूर्य को रवि भी कहा जाता है और इसलिये शायद तीसरा कमरा सूर्य देवता को समर्पित होगा।
पुरातत्वविद एम.एस. नागराजा राव के अनुसार “सूर्य देवता के कई नामों में से एक रवि का, संबा द्वारा स्थापित शहर के निवासी के रुप में संबा पुराण में कई बार उल्लेख है। संबा भगवान कृष्ण के पुत्र थे। वह कुष्ठ रोग से पीढ़ित थे। सूर्य देवता ने उनका ये रोग ठीक कर दिया था। सूर्य देवता का आभार मानते हुए संबा ने शायद संबापुरा शहर में सूर्य देवता का मंदिर बनवाया था।”
दिलचस्प बात ये है कि सन 1964 में किए गए एक सर्वे में, दक्षिण-पश्चिम अर्वलम से छह कि.मी. दूर कुडनम शहर में एक पुराने मंदिर का ढांचा मिला था जिसमें सूर्य देवता की एक छोटी मूर्ति थी। हो सकता है कि प्राचीन समय में कुडनम और अर्वलम को संबापुरा कहा जाता हो।
कला इतिहासकारों का मानना है कि अगर एक लिंग शिव को और दूसरा लिंग सूर्य को समर्पित है तो पांच में से तीसरा लिंग शायद स्कंद या कार्तिकेय को समर्पित होगा और ये शिव-कार्तिकेय-सूर्य के संबंध को संपूर्ण करता है। इस तरह से इस मंदिर गुफा को अब तक भारत में अपनी तरह की एक अनोखी गुफा माना जा सकता है।
कमरों के बाहर खंबो वाला एक बरामदा है। दिलचस्प बात ये है कि अर्वलम गुफाओं के किसी भी खंबे, वेदी, दीवारों, दरवाज़ों या खिड़कियों की चोखट पर किसी भी तरह की कोई सजावट नहीं है। ये सभी साधारण हैं और दिखने में फूहड़ लगते हैं। ऐसा शायद मखराला चट्टानों की प्रकृति की वजह से हुआ होगा, जिन पर नफ़ीस कटाई करना आसान काम नहीं होता।
इसके अलावा गुफाओं के बारे में और कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है, बस अंदाज़े ही लगाए गए हैं। माना ये भी जाता है कि ये गुफाएं कभी बौद्ध प्रकृति की रही होंगी और यहां से गुज़रने वाले बौद्ध भिक्षु इनका उपयोग विहार के रुप में करते होंगे। बाद में इन्हें शिव गुफाओं मे तब्दील कर दिया गया। लेकिन इस तर्क में ज़्यादा दम नहीं है। हालंकि पश्चिम भारत की ब्राह्मण-परम्परा की गुफाओं में, इन गुफाओं को इतना महत्व भले ही नहीं दिया जाता हो लेकिन इनसे ये तो पता चलता ही है कि छठी शताब्दी में शिव संप्रदाय गोवा जैसे आधुनिक राज्य में आ चुका था।
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