जापान में भारतीयों के सम्मान और प्रभाव की कभी कोई कमी नहीं रही है। चाहे वो नेताजी सुभाषचंद्र बोस के विचार हों,या राश बिहारी बोस की मशहूर इंडोकरी, चाहे वो सत्यजीत राय का सिनेमा हो या ए.आर. रहमान का संगीत। भारत की छाप जापान में प्राचीन काल से रही है। राजधानी टोक्यो के हिगाशी गिंजा गली में अगर आप जाएंगे, तो वहां एक छोटा-सा रेस्टोरेंट दिखाई देगा; नायर रेस्टोरेंट। अब ये नायर शब्द पूरी दुनियाभर में सिर्फ़ एक ही जगह से आ सकता है, और वो जगह है ,भारत का केरल राज्य । तो सवाल यह है कि केरल का जापान के इस रेस्टारेंट से क्या सम्बन्ध है?
राश बिहारी बोस के मशहूर इंडोकरी की तरह, इसका भी देशभक्ति से सम्बन्ध है । इस सम्बंध को रूप देनेवाले महापुरुष का नाम है : अय्यप्पन पिल्लई माधवन नायर
सन 1905 में तिरुवनंतपुरम में जन्में नायर के दिल में देशभक्ति की भावना बचपन से ही थी. सन 1920 में स्कूल की पढ़ाई के दौरान, नायर अक्सर विद्यार्थी मोर्चों में हिस्सा लेते थे। इसी वजह से वो अंग्रेज़ी सरकार की नज़र में आ चुके थे। अंग्रेज़ों की नज़रों से दूर रखने के लिए नायर के पिता ने अपने बड़े बेटे की तरह उनको भी इंजीनियरिंग पढ़ने के लिए जापान भेज दिया। नायर के बड़े भाई ने सप्पारो विश्वविद्यालय से मछली-पालन की तालीम हासिल की थी। ठीक वैसे ही नायर ने क्योटो विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। इस दौरान भारत से प्रमुख स्वंत्रता-सेनानी राश बिहारी बोस टोक्यो पहुंच चुके थे और जापान में अपने स्वंतंत्रता-संग्राम से जुड़े विचारों की वजह से काफ़ी मशहूर हो गये थे। बिना समय गंवाए, नायर, राश बिहारी के संपर्क में आ गये। सन 1932 में अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करते-करते उन्होंने जापानी भाषा में निपुणता प्राप्त कर ली थी।
अपनी आत्मकथा “ एन इंडियन फ़्रीडम फ़ाइटर इन जापान: मेमोयर्स “ में नायर ने बताया कि उन दोनों ने पूरे जापान में घूमकर अपनी आज़ादी की लड़ाई की बात भाषणों, रेडियो वार्ताओं और लेखों के माध्यम से फैलाई। ये ख़बर केरल तक पहुँच गयी थी, जहां अंग्रेज़ नायर की गिरफ़्तरी की राह देख रहे थे। अपने एक वरिष्ठ सहकर्मी की सलाह पर, योजनाबद्ध तरीक़े से केरल में नायर की मृत्यू की अफ़वाह फैला दी गई।उनके हिस्से की सम्पत्ति का भी बटवारा कर दिया गया। अब नायर के लिए जापान में मैदान साफ़ हो गया था, इसीलिए भी क्यूंकि उस दौरान एक अंग्रेज़ युद्धपोत ने एक जापानी मर्चेंट जहाज़ पर ग़लती से हमला कर दिया था, जिसके कारण दोनों देशों के संबंध ख़त्म हो चुके थे।
अपनी आत्मकथा में नायर ने ये भी ज़िक्र किया कि है सन 1932 -33 में जब जापान ने चीन के मंचूरिया क्षेत्र में क़ब्ज़ा जमाया, तब जापान ने वहाँ जाकर, वहाँ बसे चंद भारतीय व्यवसायिक परिवारों और राजा महेंद्र प्रताप सिंह के साथ मिलकर, पहली एशियाई बैठक का आयोजन किया। उस दौरान अंग्रेज़ों के साथ उनका व्यापार काफ़ी तेज़ी से हो रहा था। महात्मा गांधी अंग्रेज़ी सामान के बहिष्कार का ऐलान कर चुके थे। गांधीजी से प्रेरित होकर, नायर कई दफ़ा भेस बदलकर मंगोलिया तक गए । तब जापानी सेना चीनियों के साथ काफ़ी दुर्व्यवहार कर रही थी। बावजूद इसके, नायर ने उन दोनों देशों के बीच व्यापार सम्बंध इस क़दर मज़बूत कर दिये कि अंग्रेज़ों को वहां से बिल्कुल हटा दिया गया था।
इतना ही नहीं, रूसी हमले के ख़तरे को देखते हुए, नायर ने कोरियाई जवानों को गुप्तचरी का प्रशीक्षण देने में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। जापानी सेना के कठपुतली, चीनी राज्य मांचुकुओ से, नायर ने अपना काम जारी रखा। सन 1938 में उन्होंने एक जापानी महिला इकु असामी से शादी रचाई और उन्हें जानकी अम्मा नाम दिया। जब नायर मांचुकुओ में शासन प्रबंधन विश्वविद्यालय में प्रशिक्षक के तौर पर काम कर रहे थे, तभी वहां एक ब्रिटिश काउंसिल सदस्य एरिक टैंचमैन को, दिल्ली से तिब्बत होते हुये चीन तक जाने के रास्ते को नापने के काम में सहायता की गई। और यह तब हुआ जब जापान की अंग्रेज़ों के साथ दुश्मनी चल रही थी।
द्वितीय विश्व-युद्ध शुरू होने के बाद पूर्वी एशिया में बसे भारतीय मूल के नागरिक ख़तरे में आ गये थे। क्यूंकि
अधिकाँश क्षेत्र अंग्रेज़ों के अधीन थे। नायर ने राश बिहारी बोस के साथ मिलकर रेडियो के माध्यम से अपनी बात पहुंचाई और जापानी सेना के साथ अपने दोस्ताना संबंध मज़बूत किये। भारतीयों पर, जापानी सेना ने जो अत्याचार किये थे, नायर और राश बिहारी उनसे अपरिचित थे। जापानी सेना अपनी पकड़ मज़बूत करने के लिए जी-तोड़ मेहनत कर रही थी। जिसके लिए वो किसी भी हद तक जाने को तैयार थी। आगे चलकर राश बिहारी की बीमारी को देखते हुए, नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने सिंगापुर में क़दम रखे । नेताजा ने आज़ाद हिन्द फ़ौज की बागडोर संभाली। अब रफ़्ता-रफ़्ता क्रान्ति की आग ठंडी पड़ रही थी। राश बिहारी टीबी के शिकार हो कर दुनिया को अलविदा कह चुके थे। दूसरी ओर उत्तर-पूर्व भारत और अंडमान में अपने क़दम जमाने के बाद आज़ाद हिन्द फ़ौज की हितैषी, जापानी सेना हिरोशिमा और नागासाकी में परमाणु बम धमाकों के बाद आत्मसमर्पण कर चुकी थी।
नेताजी की, ताइवान में, हवाई जहाज़ दुर्घटना में मौत की खबर ज़ोरों पर थी। उस घटना की जांच के लिये बैठाये गये खोसला कमीशन का साथ देने से, नायर ने मना कर दिया था. “ द् रोड टू दिल्ली “ में नेताजी के सहायक रहे शिवराम ने बताया कि आज़ाद हिन्द फ़ौज भ्र्ष्टाचार का शिकार हो चुकी थी और बहुत लोगों ने उसका साथ छोड़ दिया था।
आज़ादी मिलने के बाद, नयी गठित भारत सरकार ने नायर को उनके योगदान के लिए कोई ख़ास अहमियत नहीं दी । उन्हें कोबे शहर में कॉउंसलेट जनरल का पद सौंपा जा रहा था। मगर नायर ने ये पेशकश ठुकरा दी। नेताजी के मृत्यु की जांच के लिये भेजे गये भारत सरकार के कमीशन ने, नायर के साथ कई बार बदसलूकी भी की। नायर, नेताजी की मृत्यु की बात से संतुष्ट नहीं थे। क्यूंकि उनके गुमनामी में चले जाने के क़िस्सों से मामला गरम होता जा रहा था। पंडित जवाहरलाल नेहरू से मुलाक़ात के दौरान नायर को लग गया था कि नेहरू बोस को क़तई पसंद नहीं करते थे। अपने मादरे वतन से दूर होने के बावजूद, नायर ने हर साल 26 जनवरी और 15 अगस्त को भारत वापस आकर जश्न मनाने की परम्परा आख़िरी सांस तक क़ायम रखी। सन 1962 में, चीन से युद्ध के दौरान, भारत सरकार ने नायर को, चीन सरकार से बातचीत करने के लिए आमंत्रित किया था, लेकिन नायर ने ये कहकर प्रस्ताव ठुकरा दिया था कि वो “मांचुकुओ नायर” ही रहेंगे, “चाइना नायर” नहीं बनेगें।
सन 1969 में मशहूर राजदूत टी पी श्रीनिवासन अपना हनीमून मनाने जापान गए थे। वहां उनकी नज़र टोक्यो के हिगाशी गिंजा गली में एक नायर रेस्टोरेंट पर पड़ी। तब उनको पता चला कि ये रेस्टोरेंट किसी और ने नहीं, बल्कि मशहूर स्वंत्रता सेनानी अय्यप्पन पिल्लई माधवन नायर ने बनाया था । दिलचस्प बात ये थी कि इसके साथ-साथ टोक्यो में एक और भारतीय रेस्टोरेंट “अजंता” भी नेताजी के एक ख़ास सहायक ने शुरू किया था. फिर आता है एक गुजराती रेस्टोरेंट “अशोका” और फिर राश बिहारी बोस के नाकामुराया इंडोकरी से तो हर जापानी वाक़िफ़ है।
श्रीनिवासन ने अपने एक मशहूर लेख में ये बताया है कि नायर ने वहाँ एक मसाले की खोज भी थी , जिसका नाम उन्होंने “इंदिरा” रखा था. पंडित जवाहरलाल नेहरू से बैर रखने के बावजूद , नायर उनकी बेटी इंदिरा के क़ायल थे। उसी मोहब्बत को क़ायम रखने के लिए उन्होंने अपने खोजे गये मसाले का नाम “इंदिरा” रखा था। ये मसाला डिश की पाउडर है, जिससे बनाई गयी स्थाई इंडियन करी जापान में लोकप्रिय तो हुई । मगर उसका स्वाद कुछ ऐसा था कि जापान से भारत गए कई लोग इसको खोज ही ना पाए।
सन 1984 में जापान के राजा हिरोहितो ने नायर को “आर्डर ऑफ़ सेक्रेड ट्रेशर” की उपाधि से समान्नित किया।
सन 1990 में इस महापुरुष ने समाधि ले ली। नायर के क़िस्से उनकी आत्मकथा “एन इंडियन फ़्रीडम फ़ाइटर इन जापान: मेमोयर्स” और उनके सहयोगी एम शिवराम द्वारा रचित “द् रोड टू दिल्ली” में विस्तार से पढ़े जा सकते हैं। नायर पर एक फ़िल्म मलयालम, चीनी और जापानी भाषा में “नायरसान” मोहनलाल और जैकी चैन को लेकर बननेवाली थी लेकिन किसी कारण से नहीं बन पाय़ी।
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