अहोम राजवंश और इसकी वास्तुकला

क्या आपको पता है कि असम नाम असामा शब्द से बना है जिसका स्थानीय नाम अहोम है? और क्या आपको पता है कि अहोम राजवंश ने शक्तिशाली मुग़लों को एक नहीं, दो नहीं, 15 से ज़्यादा बार हराया था ?

अहोम कौन हैं और वे महत्वपूर्ण क्यों हैं ?

अहोम ताई वंश के वंशज हैं। ताई मौजूदा समय में चीन का यून्नान प्रांत कहलाता है। कहा जाता है कि अहोम 13वीं शताब्दी में म्यंमार से ब्रह्मापुत्र घाटी आए थे। उनके नेता चाई-लुंग-सिऊ-का-फ़ा अथवा सुकाफ़ा ने 16वीं शताब्दी में पुरानी राजनीतिक व्यवस्था को ख़त्म कर नये राज्य की स्थापना की थी। अहोम शासकों ने सन 1228 से लेकर सन 1838 तक इस राज्य पर शासन किया। बाद में अंग्रेज़ों ने इस पर कब्ज़ा कर लिया।

अहोम शासकों ने अपने शासनकाल के दौरान कई भवनों का निर्माण किया था। पूर्वोत्तर भारत में मध्य युगीन के दौर के कई मंदिरों और महलों को बनवाने का श्रेय उन्हें ही जाता है। विशालता और मज़बूती उनके द्वारा निर्मित स्मारकों की विशेषता होती थी। इसका उदाहरण शिवसागर के आसपास मौजूद स्मारक हैं। शिवसागर को एक समय रंगपुर कहा जाता था जो सन 1699 सन 1788 तक अहोम की राजधानी होता था।

शिवसागर कारेंग घर, एंफ़ीथिएटर रंग घर, मंदिर परिसर शिवडोल और सैन्य स्टेशन तालाताल घर जैसे सुंदर अहोम स्मारकों से घिरा हुआ है।

दिखोव नदी के तट पर स्थित तालाताल घर सुरेमफा या स्वर्गदेव राजेश्वर सिंघा ने 1751 ई. में ताजपोशी के बाद बनवाया था। लेकिन माना जाता है कि उनके पिता रुद्र सिंघा ने दरअसल महल बनवाया था जिसमें लकड़ी और अन्य स्थानीय भवन निर्माण सामग्री का इस्तेमाल किया गया था। बाद में स्वर्गदेव राजेश्वर सिंघा ने इसमें ईंटें लगवाईं।

तालाताल घर की ख़ास बात ये है कि ये सात मंज़िला है जिनमें से तीन मंज़िले भू-तल में हैं। इसे सैन्य प्रयोग के लिए बनवाया गया था और इसकी वास्तुकला में समकालीन मुग़लकालीन वास्तुकला की झलक मिलती है। इसकी सीड़ियों की बनावट थाईलैंड की वास्तुकला से मेल खाती है।

सुरेमफा ने पुराने महल के ध्वस्त होने के बाद भव्य कारेंग घर दोबारा बनवाया था। इसमें एक सभागार हुआ करता था जहां राजा लोगों को संबोधित करते थे। इसका सुंदर वर्णन लेखक शिहाबुद्दीन ने किया है जो 1662 में मीर जुमला के साथ यहां आए थे। उनके अनुसार-

“कारेंग घर महल 66 स्तम्भों पर खड़ा है। महल के किनारों में लकड़ी की जालियों की मदद से विभाजन किये गए हैं। इन जालियों में कई तरह की उभरी हुई आकृतियों को उकेरा गया है और ये बाहर और अंदर दोनों ही तरफ लगाई गई हैं। इनमें पीतल के आईने हैं जिनमें इतनी महीन पॉलिश की गई है कि जब सूरज की किरणें उन पर गिरती हैं तो उनके प्रतिबिंबित से आँखें चौंधिया जाती हैं। महल को बनाने में 12 हज़ार मिस्त्री लगे थे और निर्माण कार्य एक साल में पूरा हुआ था।”

रंग घर का निर्माण पहले स्वर्गदेव रुद्र सिंघा के शासनकाल में बांस और लकड़ी से करवाया गया था। बाद में 1744-1750 के बीच स्वर्गदेव प्रमात्ता सिंघा ने इसे ईंटों से फिर बनवाया। रंग घर का इस्तेमाल शाही स्पोर्ट्स पेवेलियन के रुप में होता था जहां से अहोम राजा और उनके दरबारी सांडों की लड़ाई जैसे खेल देखा करते थे। दिलचस्प बात ये है कि ये एशिया में बचे रह गए प्राचीनतम एंफीथिएटर्स में से एक है। रंग घर की छत उल्टी लंबी अहोम नौका के आकार की है। स्मारक के प्रवेश द्वार धनुषाकार हैं जबकि छत के ऊपर पत्थर के तराशे हुआ मगरमच्छ का जोड़ा सुसज्जित है।

अहोम शासकों द्वारा बनवाए गए स्मारकों में शिवडोल ऐसा स्मारक है जहां ज़्यादातर लोग जाया करते थे। शिवडोल मंदिर परिसर में मंदिर शिव, विष्णु और दुर्गा को समर्पित हैं। शिवसागर सरोवर के साथ स्थित शिवडोल का निर्माण 1734 में बार राजा अंबिका ने बनवाया था जो स्वर्गदेव शिव सिंघा की राजकुमारी थीं। अहोम हालंकि पहले बौद्ध थे लेकिन बाद में उन पर हिंदू धर्म का प्रभाव पड़ने लगा था।

हम आपसे सुनने को उत्सुक हैं!

लिव हिस्ट्री इंडिया इस देश की अनमोल धरोहर की यादों को ताज़ा करने का एक प्रयत्न हैं। हम आपके विचारों और सुझावों का स्वागत करते हैं। हमारे साथ किसी भी तरह से जुड़े रहने के लिए यहाँ संपर्क कीजिये: contactus@livehistoryindia.com