अहमदाबाद शहर गुजरात की आर्थिक राजधानी और देश के सबसे आधुनिक शहरो मे से एक माना जाता है | पर आधुनिकता की चकाचौंद के पीछे छिपे हे अहमदाबाद के पारम्परिक मोहल्ले , जिन्हे पोल कहा जाता है | इन पोलों मे कदम रखते ही आपको ऐसा लगता है की आप किसी टाइम मशीन मे बैठकर सदियों पीछे चले गए है | अहमदाबाद के पोल हमे एक बीते हुए काल की याद दिलाते है |
अहमदाबाद शहर का निर्माण सं १४११ मे गुजरात के सुल्तान अहमद शाह ने किया , जिनके नाम पर ही शहर का नाम अहमदाबाद पड़ा | समय के साथ हर धर्म , सम्प्रदाय और जाती के लोग यहाँ आकर बस गए और अहमदाबाद भारत के प्रमुख व्यापारी केन्द्रो में से एक बन गया |
प्राचीन काल से भारतीय शहर पारम्परिक वसाहतो मे विभाजित हुआ करते थे जिनमे अलग अलग पेशे और संप्रदाय के लोग रहते थे | उत्तर भारत में उन्हें मोहल्ला कहा जाता था, महाराष्ट्र में पेठ , बंगाल में पारा और गुजरात में पोल। ‘पोल ‘ ये शब् सनस्क्रीत शब् ‘प्रतोली ‘ से आया है जिसका अर्थ हैं ‘दरवांजा’ | हर पोल की सुरक्षा के लिए एक बड़ा दरवाज़ा हुआ करता था जिससे इन मोहल्लो का नाम ‘पोल ‘ पड़ा |
अहमदाबाद शहर मे सौ से अधिक पोल है , जिनमे कुछ तो ६०० साल पुराने है | शहर के मानेक चौक के पास स्तित मुहूर्त पोल , अहमदाबद का पहला और सबसे पुराना पोल माना जाता है |
यहाँ के रहिवासी इन पोलों को विशिष्ट पद्धति से चलाते है | हर पोल का एक बड़ा द्वार होता है , जिसके ऊपर होता है उस पोल के गार्ड का घर | पोल में जाते ही आपको नज़र आएंगे नोटिस बोर्ड जिनपर यहाँ के रहिवासियों के लिए ज़रूरी जानकारी लिखी रहती है |
पोल को चलाते है पांचो का मंडल , जो रेहवासियो के वरिष्ठ लोगो में से चुने जाते है | यही लोगो यहाँ की रोज़मर्राह की चीज़ो की देखरेख करते है | जायदातर पोल में एक धर्म , जात और संप्रदाय के लोग रहते है | और इन पोलों मे आपको उस संप्रदाय के धर्म स्थल (मंदिर और मस्जिद) भी मिलते है| ज़्यादातर पोल में एक चबूतरा , एक कुआ और बीच में एक छोटीसी खुली जगह भी होती है | अहमदाबाद शहर के कूच सबसे भव्य मंदिर , जैसे की शनिनाथ जैन मंदिर और जगवल्लभ मंदिर , इन पोलो में स्तित है |
इन पोलों के नाम भी काफी दिलचस्प है | इनके नाम यहाँ रहने वाले समाज और व्यक्ति, या देवी देवता , प्राणी आदि के नाम पर रखे गए है | जैसे की कंसारा पोल , कंसारा समाज के नाम पर रखा गया है , जो कांसे का काम करते थे | देसाई पोल यहाँ रहने वाले देसाई परिवार के नाम पर रखा गया | जावेरवाड़ पोल जौहरियों का निवास हुआ करता था | शायद ‘हाजा पटेल नी पोल ‘ किसी हाजा पटेल नामक व्यक्ति के नाम पर रखा गया और यहाँ पर एक ‘मामा नी पोल ‘ (मामा का पोल ) भी है! ये नाम इन मोहल्लो को अपनी अलग ही पहचान देते है |
पुराने दौर में , हर पोल में सुरक्षा की ऐसी तगड़ी व्यवस्था थी , की कोई दुश्मन या आक्रमणकारी अंदर घुस नहीं सकता था | पोल के बड़े शक्तिशाली दरवाज़े एक स्पेशल लॉकिंग मैकेनिज्म से लॉक हुआ करते थे जो अगर एक बार बंद हो जाय तोह उन्हें बाहर से खोलना लगभग नामुमकिन था | ये पोल एक दूसरो के साथ गुप्त अंदरूनी रास्तो से जुड़े हुए थे ताकि आपातकालीन स्थिति में , रहिवासी एक पोल से दुसरे पोल भाग सके | एक गुप्त रास्ता शांतिनाथ नी पोल के पास आज भी देखा जा सकता है | एक छत से दुसरे छत जाने के लिए भी रास्ते बने हुए थे | सं १८५७ में जब देश भर में अंग्रेज़ो के खिलाफ विद्रोह हुआ तब , अँगरेज़ प्रशासन ने अहमदाबाद के ज़्यादातर पोलों के दरवाज़े निकाल लिए | उन्हें यह दर था की इन पोलों का विद्रोह के लिए इस्तेमाल होगा |
हर पोल में सुन्दर पारम्परिक पद्धति के घर देखे जा सकते है | लकड़ी से बने इन घरो में लकड़ी पर की गयी सुन्दर नक़्क़ाशी देखि जा सकती है | एक खुले चौक के अलावा इन घरो में एक बड़ी कुए जैसी टंकी भी होती है,जिसकी गहराई कभी कभी ४० फ़ीट तक भी जाती है, जिनमे हज़ारो लीटर पानी सालो तक रखा जा सकता था | ये कुआनुमा टंकिया आकाल के समय बड़ी काम आती थी |
अहमदाबाद में पक्षी और प्राणियों दाना और चारा खिलाने की पुराणी परंपरा है | लगभग हर पोल में सुन्दर चबूतरे देखे जा सकते है जिनमे पक्षियों के लिए दाना और पानी रखा हुआ रहता है |
इन पोलों में सिर्फ रहने के मकान बने हुआ करते थे | पर अहमदाबाद के पुराने शहर में ऐसे भी मोहल्ले थे जो व्यापार और रिहाइशी स्थान दोनों के तौर पर इस्तेमाल किये जाते थे | इन्हे ‘ऑल ‘ कला जाता था | इन ‘ऑल ‘ में नीचे दूकान और ऊपर घर बने हुआ करते थे | आज भी कुछ ऑल यहाँ पर है जैसे चंदला ऑल (पूजा की सामग्री), खंडोई ओल (खाद्य पदार्थ ) और चूड़ी ऑल (शादी की सामग्री ).
अहमदाबाद में कई शासको ने राज किया और इसका प्रभाव यहाँ की वास्तुकला में दीखता है | यहाँ हमे गुजराती , मराठा, मुग़ल, और अँगरेज़ वास्तुकला के प्रभाव दिखाई देते है |
आज जब अहमदाबाद तेज़ी से आधुनिकता की ओर बढ़ रहा है , ये पोल हमे एक बीते हुए ज़माने और जीवनशैली की याद दिलाते है |
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