आगरा का नाम आते ही ज़हन में संग-ए-मरमर से बने ताजमहल की तस्वीर उभर आती है और लोग ख़ासतौर पर ताजमहल को देखने ही आगरा आते हैं। ताजमहल से जुड़ी कहानी से सब लोग वाक़िफ़ हैं लेकिन क्या आपको पता है कि आगरा से बमुश्किल ढ़ाई कि.मी. दूर एक ऐसा स्मारक है जिसे आगरा का लाल क़िला कहा जाता है और जिसका उल्लेख इतिहास की किताबों में कोई ज़्यादा नहीं मिलता है।
सन 1638 तक मुग़ल बादशाह यमुना नदी के तट पर स्थित आगरा क़िले का इस्तेमाल सैन्य ठिकाने और रिहाइश के लिये किया करते थे। सन 1638 में मुग़लों ने आगरा छोड़कर दिल्ली को अपनी राजधानी बना लिया था। शहर के भीतर स्थित क़िले के अंदर भी एक शहर है। क़िले के अंदर की इमारतें फ़ारस और तैमूर शैली की वास्तुकला को दर्शाती हैं। आगरे का क़िला ऐसे समय में बना था जब बाहर से लगातार हमले होते थे । ऐसे हालात में विशाल महल तथा क़िले शक्ति के प्रतीक माने जाते थे।
माना जाता है कि जिस ज़मीन पर आगरे का क़िला बनवाया गया था, उससे पहले वहां बादलगढ़ का पुराना क़िला हुआ करता था जिसे लोधी सुल्तानों ने बनवाया था। लोधी राजवंश ने सन 1451 से लेकर सन 1526 तक दिल्ली पर राज किया था। लोधी वंश के दूसरे शासक सिकंदर लोधी ने सन 1503-04 में आगरा शहर बसाया था। ये शहर गुजरात, बंगाल और राजपूताना के बीच व्यापार मार्ग पर पड़ता था लिहाज़ा ये शहर बहुत जल्द समृद्ध हो गया।
सन 1526 में, पानीपत के युद्ध में बाबर ने सिकंदर लोधी के उत्तराधिकारी इब्राहिम लोधी को हराया था। उसके बादआगरा मुग़लों के नियंत्रण में चला गया। बाबर ने क़िले के अंदर बावड़ी बनवाई थी और यहीं उसके पुत्र हुमांयू की भी ताजपोशी हुई ।
आगरे का सुनहरा समय अकबर के शासनकाल में शुरु हुआ। अकबर ने पुराने बादलगढ़ क़िले को गिरवाकर नया क़िला बनवाया। बताया जाता है कि क़िले को बनाने में क़रीब चार हज़ार मज़दूर लगे थे और इसका निर्माण कार्य सन 1565 से शुरु हुआ था और सन 1573 में पूरा हुआ था। क़िले का निर्माण कार्य क़ासिम ख़ान की देखरेख में हुआ था। क़ासिम अकबर के दरबार में मीर-ए-बहर हुआ करता था। ये क़िला 94 एकड़ भूमि पर फैला हुआ है।
अकबर के वज़ीर और इतिहासकार अबुल फ़ज़ल ने अकबरनामा में लिखा है कि क़िला बनवाने में आज के हिसाब से क़रीब छह करोड़ रुपये ख़र्च हुए थे। क़िले का बाहरी हिस्सा लाल बलुआ पत्थर से बना है जो राजस्थान के धोलपुर शहर से लाया गया था। अबुल फ़ज़ल ने ये भी लिखा है कि दीवारें इस तरह बनवाई गई थीं कि जोड़ों के बीच से एक बाल भी नहीं निकल सकता था। दीवारों के जोड़ों को लोहे के सरियों से जोड़ा गया था। क़िले के तीन तरफ़ खंदकें थीं और क़िले के चार दरवाज़े थे जो सुसज्जित थे। इनमें से एक दरवाज़े को ख़िज़री दरवाज़ा (पानी का दरवाज़ा) कहा जाता था जो नदी की तरफ़ खुलता था जहां घाट बने हुए थे।
इसी क़िले में सन 1605 में अकबर के पुत्र जहांगीर की ताजपोशी हुई थी। अकबर के पोते शाहजहां के शासनकाल में ही यहां कई प्रमुख भवनों का निर्माण हुआ था। लाल बलुआ पत्थर जहां अकबर की पसंद हुआ करता था, वहीं शाहजहां भवनों का निर्माण सफ़ेद संग-ए-मरमर से करवाता था, यहां तक कि उसने पुराने भवनों को गिरवाकर उनकी जगह अपनी पसंद के पत्थरों से भवन बनवाए थे। लेकिन जल्द ही शाहजहां ने आगरा क़िले को छोड़कर दिल्ली में शाहजहांबाद को अपनी राजधानी बना लिया। लेकिन उसके बेटा औरंगज़ैब फिर आगरा पहुंच गया और अपने पिता शाहजहां को आगरा के क़िले में ही क़ैद करवा दिया। बाद में औरंगज़ेब, विद्रोह और युद्ध में व्यस्त रहे के बावजूदकभी कभार आगरा में दरबार लगाया करता था।
सन 1707 मे औरंगज़ेब के निधन के बाद 18वीं शताब्दी में आगरा क़िले पर कब्ज़े और लूटपाट का दौर चलता रहा था। पहले इस पर जाटों ने और बाद में मराठों ने कब्ज़ा किया। सन 1803 में दूसरे एंग्लो-मराठा युद्ध में ये क़िला इनके हाथों से निकलकर अंग्रेज़ों के पास चला गया। सन 1857 के ग़दर के दौरान भारतीय सिपाहियों ने इस पर फिर कब्ज़ा कर लिया और वे यहां से युद्ध का संचालन करने लगे।अंग्रेज़ों ने क़िले में मरम्मत का भी काम करवाया था हालंकि उन्होंने छावनी बनवाने के लिये कुछ भवनों को तोड़ भी दिया था।
आज क़िले के परिसर में क़रीब 24 भवन मौजूद हैं जो 16वीं और 17वीं शताब्दी में मुग़ल बादशाहों ने बनवाए थे। इनकी संरचना अलग अलग है और ये देखने में बहुत सुंदर हैं।
क़िले के मुख्य आकर्षणों में जहांगीर महल है जिसे अकबर ने बनवाया था। ये महल मुग़लों द्वारा बनवाए गए महलों में सबसे प्राचीन महलों में से एक है और ये सबसे बड़ा भी है। ये महल किस मक़सद से बनवाया गया था, इसे लेकर कई बातें हैं। कुछ का कहना है कि ये अकबर के रहने की निजी जगह थी जबकि अन्य कुछ लोगों का कहना है कि अकबर ने इसे अपने बेटे जहांगीर के लिये बनवाया था जैसा कि नाम से ज़ाहिर है। मुग़ल स्मारकों पर गहन अध्ययन करने वाले वास्तुकार और इतिहासकार एब्बा कोच का कहना है कि ये महल शायद शाही महिलाओं के रहने की जगह यानी ज़नानख़ाना रही होगी।
क़िले में एक अन्य महत्वपूर्ण भवन है दिवान-ए-ख़ास जहां ख़ास मेहमानों का स्वागत किया जाता था। हॉल के अंदर सन 1636-37 में एक काले पत्थर पर फ़ारसी में लिखा गया शिला-लेख भी है। इसमें हॉल की तुलना स्वर्ग और बादशाह की तुलना सूर्य से की गई है। किसी समय सभागार की छत सोने और चांदी की हुआ करती थी जो सूर्य की किरणों को दर्शाती थीं। सन 1666 में शिवाजी यहां आए थे तब वे यहीं औरंगज़ेब से मिले थे। तब औरंगज़ेब ने उन्हें दरबार के मनसबदारों के पीछे खड़ा किया था जो शिवाजी को नागवार गुज़रा था और वह दरबार छोड़कर चले गए थे। इसके बाद शिवाजी को आगरा के कोतवाल फ़ैलाद ख़ान की निगरानी में नज़रबंद कर दिया गया था
क़िले में दीवान-ए-आम भी है जहां बादशाह लोगों की शिकायतें सुना करते थे और सरकारी अफ़सरों से मिला करते थे।
क़िले के अंदर शाहजहां ने कई मस्जिदें बनवाई थीं जैसे मोती मस्जिद, नगीना मस्जिद और मीना मस्जिद। ये सुंदर मस्जिदें संगमरमर की बनी हैं।
इनके अलावा क़िले के परिसर में शीश महल भी है जिसकी दीवारें और छतें शीशों से बनी हुई हैं।
यहां मच्छी भवन भी है। शाहजहां के शासनकाल के इतिहास पादशाहनामा के अनुसार यहां शाही ज़ैवर रखे जाते थे। चतुर्भुजाकार मच्छी भवन में एक विशाल अहाता है जिसका द्वार उत्तर की तरफ़ है और बाक़ी तीन तरफ़ दो मंज़िला मेहराबदार गैलरियां हैं।
क़िले में एक अष्टकोणीय बहुमंज़िला मुसम्मन बुर्ज है जो किसी पहेली की तरह है। ये बुर्ज यमुना नदी की तरफ़ है, जहां से ताजमहल बहुत अच्छी तरह दिखाई देता है। कहा जाता है कि यहीं औरंगज़ेब ने शाहजहां को क़ैद करके रखा था।
मुग़लो के सत्ता संघर्ष और नाक की लड़ाई में आगरा क़िला कहीं खो गया। बाद में अंग्रेज़ों ने इसका इस्तमाल सैन्य ठिकाने और हथियार रखने के लिये किया। आज़ादी के बाद क़िले को पर्यटक स्थल के रुप में विकसित किया गया और यूनेस्को ने सन1983 में इसे वर्ल्ड हेरिटेज की अपनी सूची में भी शामिल किया। आज आप पूरे क़िले में नहीं घूम सकते क्योंकि इसका उत्तरी हिस्सा भारतीय सेना की पैराशूट ब्रिगेड इस्तेमाल करती है।
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