क्या आपको पता है कि छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से क़रीब 35 कि.मी. दूर एक शहर है जिसे मंदिरों का शहर कहा जाता है? आरंग शहर अपने सुंदर मंदिरों के लिए जाना जाता है। कहा जाता है कि इनमें से कुछ मंदिर 11वीं और 12वीं सदी के हैं। ये शहर कभी हिंदू और जैन धर्म की आस्था का केंद्र हुआ करता था। आज इन मंदिरों के अवशेष बचे रह गए हैं। वास्तुशिल्प और इतिहास की दृष्टि से ये मंदिर बहुत महत्वपूर्ण हैं। इन्हें देखकर मन प्रसन्न हो जाता है।
शहर, शहर के नाम और इसके इतिहास को लेकर एक दिलचस्प कहानी है। स्थानीय लोककथा के अनुसार भगवान कृष्ण ने स्थानीय राजा मोरध्वज से उस के पुत्र ताम्रध्वज का आधा शरीर (अंग) आरा से काटने को कहा था । भगवान कृष्ण उसके शरीर का आधा अंग अपने शेर को खिलाना चाहते थे । चूंकि अंग आरा से काटा गया था इसलिये इस जगह का नाम आरंग पड़ गया। आरंग दो शब्दों से मिलकर बना है-आरा और अंग। ऐसा माना जाता है कि शायद इस पौराणिक कथा की वजह से छत्तीसगढ़ में आरा के प्रयोग पर पाबंदी लगा दी गई थी।

आरंग को लेकर एक और कथा है जिसके अनुसार महाभारत में भी इस शहर का उल्लेख मिलता है। इससे जहां आरंग की प्राचीनता के बारे में पता चलता है वहीं यहां मिले ताम्रपत्रों और अभिलेखों से इस स्थान के इतिहास की कड़ियों को जोड़ने में मदद मिलती है। यहां खुदाई में एक बहुत ही महत्वपूर्ण ताम्रपत्र मिला है जो गुप्तकाल का है। 31 मई सन 1908 में गज़ेटीयर के सहायक निरीक्षक हीरा लाल को ये ताम्रपत्र आरंग में मिला था जो 1400 साल से ज़्यादा पुराना है और शायद ये मध्य प्रांतों में सबसे पुराने तामपत्र पर लिखित अभिलेखों में से एक है। अभिलेख में राजर्षि तुल्य वंश के राजा भीमसेन-द्वितीय का ज़िक्र है। ये ताम्रपत्र लगभग 282 वर्ष पूर्व गुप्त-युग का है जिसका संबंध क़रीब सन 602 से है। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे पता चलता है कि गुप्त-राजवंश का महाकौशल या छत्तीसगढ़ में सन 601 तक में प्रभुत्व माना जाता था।
अभिलेख से भीमसेन-द्वितीय की पहली छह पीढ़ियों और पहले शासक सुरा के बारे में जानकारी मिलती है। माना जाता है कि ये शासक आरंभिक या राजसी गुप्त शासकों के जागीरदार हुआ करते थे। एक अन्य अभिलेख 8वीं-9वीं सदी का है जिसका संबंध राजा जयराजा से है । माना जाता है कि वो स्थानीय शरभपुरीय वंश का था। एक अन्य महत्वपूर्ण अभिलेख स्थानीय रायपुर के राजा अमरसिंहदेव के हैहय अथवा रायपुर कलाचुरी का है जो सन 1735 का है। इन अभिलेखों का अध्ययन करने वाले हीरा लाल का कहना है कि नागपुर के भोंसले राजवंश ने इस राजा को सत्ता से बेदख़ल कर दिया था।
आरंग में खुदाई के दौरान रत्नों से जड़ी हुई कुछ जैन मूर्तियां भी मिली थीं। आरंग में मिले अभिलेखों और मूर्तियों से हमें इस जगह के लंबे इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है। हमारे पास आरंभिक 7वीं सदी से लेकर 18वीं सदी तक के सबूत मौजूद हैं।

लेकिन हिंदू और जैन मंदिर शहर के सबसे महत्वपूर्ण हिस्से हैं। यहां कई जलाशयों और मूर्तियों के अवशेष हैं लेकिन उनमें सबसे ख़ास है मंदिर। जैन और हिंदू मंदिरों में सबसे प्रसिद्ध मंदिर है भांड देवल मंदिर।
कहा जाता है कि भांड देवल मंदिर 11वीं-12वीं सदी का है। उस समय आरंग, जैनियों का एक प्रमुख स्थल हुआ करता था जहां कई जैन मंदिर होते थे। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इन मंदिरों का निर्माण हैहय शासकों के शासनकाल में हुआ था। एलेक्जेंडर कनिंघम और जे.डी. बेगलर की रिपोर्ट जैसे ऐतिहासिक रिकॉर्ड्स के अनुसार इस मंदिर का इस्तेमाल सर्वेक्षण केंद्र के रुप में किया जाता था। सर्वेक्षकों ने मंदिर के चारों तरफ़ लोहे की दो पट्टियां लगा दी थीं जिसकी वजह से मंदिर अभी तक बचा रह गया है। मंदिर में जैन भगवानों के तीन विशाल पॉलिश की हुई मूर्तियां है। मंदिर का निर्माण पंचरथ वास्तुकला शैली में किया गया था। इस शैली में पांच मंज़िलें हुआ करती थीं।

मंदिर के बाहर सुंदर नक़्क़ाशी की गई है और उत्कृष्ट मूर्तियां तथा प्रतिमाएं हैं। मंदिर में क़तारों में बड़ी और छोटी छवियां बनी हुई हैं और अन्य पैनलों पर घुंघरु, फूल, घोड़ों, हाथियों और इंसानों के जुलूस की छवियां बनी हुई हैं। मंदिर के मंडप और बरामदे नष्ट हो चुके हैं लेकिन मंदिर का बुर्ज अभी देखा जा सकता है हालंकि इसे मरम्मत कर दोबारा बनाया गया है। मंदिर के पीछे कई अवशेष हैं जो शायद छोटे जैन मंदिरों के रहे होंगे ।

इसी तरह बाघ देवल या बाघेश्वर मंदिर भी महत्वपूर्ण है जो 11वीं या 12वीं सदी का है। ये भांड देवल मंदिर से क़रीब एक कि.मी. दूर स्थित है। ये मंदिर खजुराहो के मंदिर की तरह लगता है हालंकि इसका अलंकरण खजुराहो के मंदिर की तरह नहीं है। अब ये शिव मंदिर है लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि चूंकि आरंग जैन धर्म का केंद्र था इसलिए हो सकता है कि ये कभी जैन विहार रहा होगा जिसे बाद में हिंदू मंदिर बना दिया गया। इस मंदिर को अब बागेश्वर मंदिर कहते हैं और कभी उड़ीसा के पुरी में जगन्नाथ मंदिर जाने वाले श्रद्धालु यहां आते थे।

शहर की पश्चिमी दिशा में महामाया मंदिर है जो एक तटबंध के पास है। इस मंदिर को आधुनिक बनाया गया है और पुराने मंदिर में कई बदलाव किए गए हैं। इसके इर्दगिर्द एक अहाता है जिसमें कई जैन मूर्तियों के अवशेष हैं। इन्हें देखकर लगता है ये कभी मूर्तियों वाला एक भव्य स्थल रहा होगा। मंदिर के अंदर तीन तार्थांकरों की छवियां हैं और एक हाथी, एक शयन और एक गेंडे के प्रतीक चिन्ह हैं जो अजीतनाथ, नेमीनाथ और श्रेयासनाथ का प्रतिनिधित्व करते हैं। महामाया मंदिर में पत्थर की एक बड़ा सिल्ल है जिस पर 24 तीर्थंकरों की छवियां बनी हुई हैं। माना जाता है कि ये उन चंद मंदिरों में से एक है जहां सभी 24 जैन तार्थकरों की छवियां बनी हुई हैं। एक टूटी पड़ी हुई सिल्ल भी है जिस पर 18 पंक्तियां लिखी हुई हैं।
इसके अलावा आरंग में दंतेश्वरी मंदिर, चंडी माहेश्वरी मंदिर, पंचमुखी महादेव मंदिर और पंचमुखी हनुमान मंदिर भी हैं। अगर आप इस शहर में हैं तो इन्हें ज़रुर देखने जाएं।
स्थानीय लोक गीतों में आरंग बेहद लोकप्रिय है। इसकी वजह ये है कि आरंग शहर, लोरिक और चांदनी का घर रहा है। लोरिक और चांदनी,छत्तीसगढ़ में सबसे लोकप्रिय प्रेम-गीतों में से एक गीत के हीरो और हिरोइन हैं। छत्तीसगढ़ में मौजूद इस नगीने को एक बार ज़रुर देखा जाना चाहिए। क्योंकि आरंग शहर में हिंदू और जैन आस्था तथा उनके मंदिरों का ग़ज़ब का संगम देखने को मिलता है।
हम आपसे सुनने को उत्सुक हैं!
लिव हिस्ट्री इंडिया इस देश की अनमोल धरोहर की यादों को ताज़ा करने का एक प्रयत्न हैं। हम आपके विचारों और सुझावों का स्वागत करते हैं। हमारे साथ किसी भी तरह से जुड़े रहने के लिए यहाँ संपर्क कीजिये: contactus@livehistoryindia.com
An effort like this needs your support. No contribution is too small and it will only take a minute. We thank you for pitching in.