मैसूर रियासत की क़िस्मत बदलने वाला कृष्णा राज सागर बांध

मैसूर रियासत की क़िस्मत बदलने वाला कृष्णा राज सागर बांध

मैसूर के पास कृष्णाराज सागर बांध और वृंदावन गार्डन लोकप्रिय पर्यटन स्थल हैं, जिसे देखने के लिये लाखों लोग आते हैं । लेकिन कम ही लोग इनकी उत्पत्ति की दिलचस्प कहानी के बारे में जानते हैं।

20वीं शताब्दी की शुरुआत में  मैसूर के एक दूरदर्शी राजा ने भारत के ‘इंजीनियरिंग के जनक’ के साथ मिलकर उस समय के, भारत के सबसे बड़े बांधों में से एक, के निर्माण की महत्वाकांक्षी परियोजना को अंजाम दिया था, जिसने मैसूर रियासत की क़िस्मत बदल डाली थी। कावेरी नदी पर बना  कृष्णा राज सागर (के सी आर) बांध भारत के सबसे प्रतिष्ठित बांधों में से एक है, जिसका नाम मैसूर के महाराजा कृष्णा राज वाडियार-IV  के नाम पर रखा गया था, जिनके शासनकाल में इसे बनाया गया था।

वाडियार राजवंश की मैसूर रियासत कावेरी नदी के जल पर बहुत ज़्यादा निर्भर थी। 19वीं सदी के अंत, और 20वीं सदी की शुरुआत में तब की मैसूर रियासत को प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ा। सन 1874 में इस इलाक़े में बहुत ज़्यादा बारिश हुई, जिसकी वजह से सभी संग्रहित फ़सलें बरबाद हो गईं। इस आपदा से रियासत अभी ठीक से उबर भी नहीं पाई थी, कि एक साल बाद यहां सबसे भीषण अकाल पड़ गया। सन 1875 और सन 1900 के बीच इस क्षेत्र में इतने भयंकर अकाल पड़े थे, कि लगभग बीस प्रतिशत आबादी इनका शिकार हो गई और अधिकांश लोग रोज़गार की तलाश में आस-पास के क्षेत्रों में चले गए।

कावेरी - कृष्णा राज सागर बांध | विकिमीडिआ कॉमन्स

हालांकि बिजली उत्पादन के लिए, नदी के बहाव के प्रयोग के वास्ते सन 1902 में शिवसमुद्रम जलप्रपात पर कावेरी पर जल विद्युत निर्माण कार्य किया गया था, लेकिन बिजली का उत्पादन लगातार घटता-बढ़ता रहता था। यहां से कर्नाटक के कोलार ज़िले में प्रसिद्ध सोने की खदान को बिजली की सप्लाई की जाती थी, जो नाकाफ़ी होती थी। इसके अलावा कावेरी पर कई छोटे बांध पूरे राज्य के लिए पर्याप्त नहीं थे, इसलिये बड़े पैमाने पर सिंचाई की आवश्यकता महसूस की गई।

इसी समय के आसपास कृष्णराज वाडियार- चतुर्थ ने आधिकारिक तौर पर राज्य की बागडोर संभाली थी। मैसूर के चौबीसवें महाराजा कृष्णा राज वाडियार भारत के सबसे प्रगतिशील शासकों में से एक थे,  जिन्हें मैसूर को एक आदर्श आधुनिक राज्य बनाने का श्रेय दिया जाता है। उनके प्रशासनिक सुधारों की वजह से महात्मा गांधी ने उन्हें “राजश्री” या “ऋषि राज” का ख़िताब दिया था।

कृष्णा राज वाडियार | विकिमीडिआ कॉमन्स

सन 1909 में मशहूर इंजीनियर सर एम. विश्वेश्वरैया को मैसूर की रियासत के मुख्य इंजीनियर के रूप में नियुक्त किया गया जिन्हें ‘भारतीय इंजीनियरिंग के जनक ‘ के रूप में जाना जाता है।  वह मिस्र में असवान बांध देख चुके थे और बॉम्बे प्रेसीडेंसी तथा हैदराबाद में बड़ी जलाशय परियोजनाओं पर काम भी कर चुके थे। उन्होंने तुरंत योजना का ख़ाका बनाया। उनका मानना ​​​​था कि बांध से “कृषि उपज में वृद्धि और उद्योगों तथा निर्माण कार्य के साथ साथ लोगों की उत्पादक शक्ति भी बढ़ेगी और इस तरह राज्य के महत्व की संभावनाओं का एक रास्ता भी खुल जाएगा।”

सर एम. विश्वेश्वरैया | विकिमीडिआ कॉमन्स

परियोजना की अनुमानित शुरूआती लागत 253 लाख रुपये थी। कुछ सरकारी अफ़सरों को योजना पर संदेह था, और वे परियोजना पर इतनी बड़ी रक़म ख़र्च करने के ख़िलाफ़ थे, क्योंकि राज्य ने इससे पहले एक परियोजना पर इतनी बड़ी रक़म कभी ख़र्च नहीं की थी। लेकिन इस योजना का मैसूर रियासत के राजा और उनके दीवान टी. आनंद राव ने तहेदिल से समर्थन किया और राजा ने बिना किसी बदलाव के परियोजना को मंज़ूरी दे दी।

इस बांध के निर्माण के लिए मैसूर शहर से लगभग 12 मील दूर मांड्या ज़िले के कन्नमबाड़ी गांव को चुना गया इसलिये इस बांध को कन्नंबादी कट्टे के नाम से भी जाना जाता है। मांड्या का क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों से संपन्न है और यहां तीन प्रमुख नदियां कावेरी, लोकपवनी और इलेमावती बहती हैं जिससे आर्थिक विकास की अपार संभावनाएं थी।

कृष्णा राज सागर बांध | विकिमीडिआ कॉमन्स

लेकिन बांध के निर्माण में एक और बाधा आ गई। इसी समय के आसपास मद्रास प्रेसीडेंसी के औपनिवेशिक प्रशासक मेट्टूर में कावेरी पर एक जलाशय के लिए अपनी परियोजना तैयार कर रहे थे, जो कन्नमबाड़ी में बनने वाले बांध से लगभग 60 मील नीचे था। प्रशासक चिंतित थे क्योंकि उनका मानना ​​​​था कि कन्नमबाड़ी बांध उनकी परियोजना में बाधा डाल सकता है, और उन्हें उतना पानी नहीं मिलेगा, जितना उन्हें चाहिए। इसके अलावा उन्हें लगा, कि उन्हें डिज़ाइन में बदलाव भी करना पड़ेगा। आख़िरकार दोनों में समझौता हो गया, और जल्द ही महत्वाकांक्षी परियोजना पर काम शुरू हो गया।

मुख्य वास्तुकार एम. विश्वेश्वरैया की देखरेख में कावेरी और उसकी सहायक नदियों हेमवती और लक्ष्मण तीर्थ के संगम के नीचे नवंबर सन 1911 में बांध के निर्माण का काम शुरू हो गया। पूरी परियोजना का ख़र्च राजा ने उठाया। बांध बनाने के काम में क़रीब दल हज़ार मज़दूरों को लगाया गया था। इनमें से मानसून से प्रभावित कई श्रमिक मैसूर और मांड्या के विस्थापित लोग थे। बांध के निर्माण ने उन्हें रोज़गार दिया।

बांध के निर्माण के दौरान हज़ारों बेघर लोगों को दोबारा बसाया गया और सरकार ने आसपास के क्षेत्रों में उन्हें खेती के लिये ज़मीनें दीं।

दिलचस्प बात यह थी, कि उन दिनों सीमेंट का आयात करना पड़ता था, क्योंकि तब भारत में सीमेंट नहीं बनती थी। एम. विश्वेश्वरैया ने सीमेंट के आयात में होने वाले भारी सरकारी ख़र्चे को बचाने के लिये सीमेंट की जगह सुरकी नामक गारे का इस्तेमाल किया।

लेकिन जल्द ही बांध के निर्माण के काम पर वित्तीय संकट मंडराने लगा। बांध बनाने की लागत लगभग 2.75 करोड़ रुपये थी, जबकि मैसूर राज्य की आय ही लगभग 2.32 करोड़ थी। लेकिन राजा अपने लोगों के कल्याण के लिए बांध बनाने के प्रति इतने समर्पित थे, कि उन्होंने मुंबई में शाही परिवार के निजी ख़जाने से गहने बेच दिये। उनकी मां रानी कंपराजम्मान्नी ने भी बांध के निर्माण के लिए अपने क़ीमती सोने के ज़ैवर गिरवी रखे थे। ऐसा कहा जाता है, कि शाही परिवार के त्याग को देखकर  राज्य के अन्य लोगों ने भी अपनी क्षमता के अनुसार बांध के लिए दान करना शुरू कर दिया। बांध सन 1931 में बनकर तैयार हो गया, और  इस तरह ये उस समय  भारत का सबसे बड़ा जलाशय बन गया। ये जलाशय एक बहुउद्देश्यीय परियोजना थी, और इसी कारण विश्वेश्वरैया इसे अमेरिका की टेनेसी घाटी प्राधिकरण योजना का छोटा रूप मानते थे।

कृष्णा राज सागर का निर्माण इस क्षेत्र के लिये एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। यह कई क़स्बों और गांवों के साथ-साथ प्रसिद्ध कोलार गोल्ड फील्ड्स (केजीएफ) और प्रमुख शहर मैसूर तथा बेंगलुरु के लिए बिजली आपूर्ति का स्रोत बन गया। यह मैसूर और बेंगलुरु शहरों के लिए पानी का प्रमुख स्रोत है। बांध को सिंचाई के लिये एक लाख एकड़ से भी ज़्यादा ज़मीन मिली। गन्ना समृद्ध ये इलाक़ा  पहले अकाल से प्रभावित था। बांध की वजह से यहां गन्ने की ख़ूब खेती होने लगी। गन्ने की खेती और बिजली आपूर्ति की वजह से मैसूर चीनी मिल उद्योग की स्थापना हुई, जो भारत में अपनी तरह का सबसे बड़ा उद्योग था। चीनी मिलों के अलावा बांध से मैसूर और बेंगलुरु में कपास मिलों और अन्य उद्योगों को चलाने के लिए भी बिजली पैदा की जाने लगी।

वृंदावन गार्डन | विकिमीडिआ कॉमन्स

इस बांध की एक ख़ासियत कृष्णा राज सागरल के क़रीब बने मशहूर वृंदावन बाग़ हैं। ये बाग़ मैसूर के दीवान सर मिर्ज़ा इस्माइल ने बनवाये थे। कहा जाता है, कि दीवान को बाग़ों का शौक़ था और इन्हें कश्मीर के मुग़ल गार्डन की तर्ज़ पर बनाया गया था। बाग़ बनाने का काम सन 1932 में पूरा हुआ था।

एक सदी के बाद भी आज भी कृष्णा राज सागर बांध यहां के लाखों किसानों के लिये एक महत्वपूर्ण जीवन रक्षक की भूमिका अदा कर रहा है।

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